"दशलक्षण धर्म": अवतरणों में अंतर

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[[आत्मा]] का सहज स्वभाव ही उसका धर्म है। राग-द्वेष रहित आत्मा का सहज स्वभाव क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य है। धर्म के इन 10 लक्षणों की सामाजिक प्रासंगिकता भी है। ये सभी अहिंसा परम-धर्म के पोषक धर्म हैं। <br />
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क्या अहिंसक व्यक्ति किसी पर क्रोध कर सकता है ? क्षमा उसका सहज स्वभाव हो जाता है। जिसके मन में सृष्टि के कण-कण के प्रति प्रेम एवं करुणा है क्या वह किसी पर क्रोध कर सकता है ? जो सभी जीवो पर मैत्रीभाव रखता है वह क्या किसी की हिंसा कर सकता है ? विश्लेषण पद्धति की दृष्टि से धर्म के सामान्य लक्षणों, अंगों,विधियों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है:-


==धर्मभाव : सद्गुणों का वरण==
#  क्षमा
# मार्दव/विनम्रता/करूणा एवं विनयशीलता
# आर्जव / निष्कपटता / हृदय की शुद्धता शुद्धता /आत्म संशोधन / मन, वाणी एवं कर्म की एकरूपता
# सत्य/सत्य-आचरण
# शौच / आत्मशुद्धि / पवित्रता
# संयम / अप्रमाद / आत्म- संयम
# तप / मनोनिग्रह / अन्तःकरण की पवित्रता
# त्याग / दान करना / परिग्रहों का त्याग / अनासक्ति
# आकिंचन्य / अपरिग्रह वृत्ति / पदार्थों के प्रति अनासक्ति
# ब्रह्मचर्य / कामवासना पर विजय / / कामभाव का संयमीकरण


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आत्मा का सहज स्वभाव ही उसका धर्म है। राग-द्वेष रहित आत्मा का सहज स्वभाव क्षमा, मार्दव, आर्जव,सत्य,शौच,संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य है। धर्म के इन 10 लक्षणों की सामाजिक प्रासंगिकता भी है। ये सभी अहिंसा परम-धर्म के पोषक धर्म हैं। क्या अहिंसक व्यक्ति किसी पर क्रोध कर सकता है ? क्षमा उसका सहज स्वभाव हो जाता है। जिसके मन में सृष्टि के कण-कण के प्रति प्रेम एवं करुणा है क्या वह किसी पर क्रोध कर सकता है ? जो सभी जीवो पर मैत्रीभाव रखता है वह क्या किसी की हिंसा कर सकता है ?
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==शीर्षक उदाहरण 1==
==अधर्ममाव : दुर्गुणों में आसक्ति==  
विश्लेषण पद्धति की दृष्टि से धर्म के सामान्य लक्षणों, अंगों,विधियों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है:
 
विश्लेषण पद्धति की दृष्टि से धर्म के सामान्य लक्षणों, अंगों,विधियों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है:
 
धर्मभाव = सद्गुणों का वरण ।
 
1. क्षमा
 
2. मार्दव/विनम्रता/करूणा एवं विनयशीलता
 
3. आर्जव / निष्कपटता / हृदय की शुद्धता शुद्धता /आत्म संशोधन / मन, वाणी एवं कर्म की एकरूपता
 
4. सत्य/सत्य-आचरण
 
5. शौच/ आत्मशुद्धि / पवित्रता
 
6. संयम / अप्रमाद / आत्म- संयम
 
7. तप / मनोनिग्रह / अन्तःकरण की पवित्रता
 
8. त्याग / दान करना / परिग्रहों का त्याग / अनासक्ति
 
9. आकिंचन्य / अपरिग्रह वृत्ति / पदार्थों के प्रति अनासक्ति
 
10. ब्रह्मचर्य / कामवासना पर विजय / / कामभाव का संयमीकरण
 
 
 
 
 
 
 
 
===शीर्षक उदाहरण 2===
इन 10 धर्मों के विपरीत अधर्म-भाव हैं जो दुर्गुणों के प्रति आसक्ति का कारण बनते हैं। ये अधर्म के 10 विपरीत भाव निम्न हैं -
इन 10 धर्मों के विपरीत अधर्म-भाव हैं जो दुर्गुणों के प्रति आसक्ति का कारण बनते हैं। ये अधर्म के 10 विपरीत भाव निम्न हैं -
# क्रोध / वैर / द्वेष
# अहंकार / गर्व / मान / मद
# माया / कपटता / कुटिलता / मिथ्यात्व
# झूठ बोलना / दुर्वचन / मिथ्या व्यवहार
# लोभ / बंधन / मल / भोगों में रत रहना
# इन्द्रिय लोलुपता / प्रमाद
# वासनायें / कषाय / कलमषताएँ
# संग्रह / तृष्णा / आसक्ति
# पदार्थों के प्रति आसक्ति / ममत्व एवं मन का अहंकार / परिग्रह वृत्ति
# कामाचार / विषय वासनाओं में लीन होना / इंद्रियों की चंचलता




अधर्ममाव = दुर्गुणों में आसक्ति


 
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1. क्रोध / वैर / द्वेष
 
2. अहंकार / गर्व / मान / मद
 
3. माया / कपटता / कुटिलता / मिथ्यात्व
 
4.झूठ बोलना / दुर्वचन / मिथ्या व्यवहार
 
5. लोभ / बंधन / मल / भोगों में रत रहना
 
6. इन्द्रिय लोलुपता / प्रमाद
 
7. वासनायें / कषाय / कलमषताएँ
 
8. संग्रह / तृष्णा / आसक्ति
 
9. पदार्थों के प्रति आसक्ति / ममत्व एवं मन का अहंकार / परिग्रह वृत्ति
 
 
10. कामाचार/विषय वासनाओं में लीन होना/ इंद्रियों की चंचलता
 
====शीर्षक उदाहरण 3====
 
=====शीर्षक उदाहरण 4=====
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
सन्दर्भ
    ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 1 - क्षमा
    [ http://www.rachanakar.org/2013/09/2_28.html ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 2 - मार्दव ]
    [ http://www.rachanakar.org/2013/09/3_28.html ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 3 - आर्जव ]
    [ http://www.rachanakar.org/2013/09/4.html ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 4 - सत्य ]
    [ http://www.rachanakar.org/2013/09/5.html ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 5 - शौच ]
    [ http://www.rachanakar.org/2013/10/6.html ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 6 - संयम ]
    [ http://www.rachanakar.org/2013/10/7.html ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 7 - तप ]
    [ http://www.rachanakar.org/2013/10/8.html ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 8 - त्याग ]
    [ http://www.rachanakar.org/2013/10/9.html ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 9 - आकिंचन्य ]
    ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 10 - ब्रह्मचर्य
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
*[ http://www.rachanakar.org/2013/09/2_28.html प्रोफेसर महावीर सरन जैन - अध्याय 2 - मार्दव]


==बाहरी कड़ियाँ==


==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
[[Category:अध्यात्म]][[Category:शब्द संदर्भ कोश]]
[[Category:नया पन्ना मार्च-2013]]


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14:06, 21 अक्टूबर 2013 का अवतरण

आत्मा का सहज स्वभाव ही उसका धर्म है। राग-द्वेष रहित आत्मा का सहज स्वभाव क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य है। धर्म के इन 10 लक्षणों की सामाजिक प्रासंगिकता भी है। ये सभी अहिंसा परम-धर्म के पोषक धर्म हैं।
क्या अहिंसक व्यक्ति किसी पर क्रोध कर सकता है ? क्षमा उसका सहज स्वभाव हो जाता है। जिसके मन में सृष्टि के कण-कण के प्रति प्रेम एवं करुणा है क्या वह किसी पर क्रोध कर सकता है ? जो सभी जीवो पर मैत्रीभाव रखता है वह क्या किसी की हिंसा कर सकता है ? विश्लेषण पद्धति की दृष्टि से धर्म के सामान्य लक्षणों, अंगों,विधियों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है:-

धर्मभाव : सद्गुणों का वरण

  1. क्षमा
  2. मार्दव/विनम्रता/करूणा एवं विनयशीलता
  3. आर्जव / निष्कपटता / हृदय की शुद्धता शुद्धता /आत्म संशोधन / मन, वाणी एवं कर्म की एकरूपता
  4. सत्य/सत्य-आचरण
  5. शौच / आत्मशुद्धि / पवित्रता
  6. संयम / अप्रमाद / आत्म- संयम
  7. तप / मनोनिग्रह / अन्तःकरण की पवित्रता
  8. त्याग / दान करना / परिग्रहों का त्याग / अनासक्ति
  9. आकिंचन्य / अपरिग्रह वृत्ति / पदार्थों के प्रति अनासक्ति
  10. ब्रह्मचर्य / कामवासना पर विजय / / कामभाव का संयमीकरण


अधर्ममाव : दुर्गुणों में आसक्ति

इन 10 धर्मों के विपरीत अधर्म-भाव हैं जो दुर्गुणों के प्रति आसक्ति का कारण बनते हैं। ये अधर्म के 10 विपरीत भाव निम्न हैं -

  1. क्रोध / वैर / द्वेष
  2. अहंकार / गर्व / मान / मद
  3. माया / कपटता / कुटिलता / मिथ्यात्व
  4. झूठ बोलना / दुर्वचन / मिथ्या व्यवहार
  5. लोभ / बंधन / मल / भोगों में रत रहना
  6. इन्द्रिय लोलुपता / प्रमाद
  7. वासनायें / कषाय / कलमषताएँ
  8. संग्रह / तृष्णा / आसक्ति
  9. पदार्थों के प्रति आसक्ति / ममत्व एवं मन का अहंकार / परिग्रह वृत्ति
  10. कामाचार / विषय वासनाओं में लीन होना / इंद्रियों की चंचलता



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