"विभज्यवाद निकाय": अवतरणों में अंतर

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[[बौद्ध धर्म]] में विभज्यवाद निकाय [[अठारह बौद्ध निकाय|अठारह निकायों]] में से एक है:-<br />
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आचार्य [[वसुमित्र]] के मतानुसार यह निकाय सर्वास्तिवादी निकाय के अन्तर्गत गृहीत होता है। स्थविरवादी भी अपने को विभज्यवादी कहते हैं। आचार्य भव्य के अनुसार यह निकाय स्थविरवाद से भिन्न है। कुछ लोगों के अनुसार इन्हें हेतुवादी भी कहा जाता है। इस निकाय का यह विशिष्ट अभिमत है कि किये हुए कर्म का जब तक फल या विपाक उत्पन्न नहीं हो जाता, जब तक उस अतीत कर्म का द्रव्यत: अस्तित्व होता है। जिसने अभी फल नहीं दिया है, उस अतीत कर्म की और वर्तमान कर्म की द्रव्यसत्ता है तथा जिसने फल दे दिया है, उस अतीत कर्म की और अनागत कर्म की प्रज्ञप्तिसत्ता है- इस प्रकार कर्मों के बारे में इनकी व्यवस्था है। कर्मों के इस प्रकार के विभाजन के कारण ही इस निकाय का नाम 'विभज्यवाद' है। हेतुवादी भी इन्हीं का काम है। भूत, भौतिक समस्त वस्तुओं के हेतु होते हैं, यह इनका अभिमत है। कथावत्थु और उसकी अट्ठकथा में इस निकाय के बारे में पुष्कल चर्चा उपलब्ध होती है।
आचार्य [[वसुमित्र]] के मतानुसार यह निकाय सर्वास्तिवादी निकाय के अन्तर्गत गृहीत होता है। स्थविरवादी भी अपने को विभज्यवादी कहते हैं। आचार्य भव्य के अनुसार यह निकाय स्थविरवाद से भिन्न है। कुछ लोगों के अनुसार इन्हें हेतुवादी भी कहा जाता है। इस निकाय का यह विशिष्ट अभिमत है कि किये हुए कर्म का जब तक फल या विपाक उत्पन्न नहीं हो जाता, जब तक उस अतीत कर्म का द्रव्यत: अस्तित्व होता है। जिसने अभी फल नहीं दिया है, उस अतीत कर्म की और वर्तमान कर्म की द्रव्यसत्ता है तथा जिसने फल दे दिया है, उस अतीत कर्म की और अनागत कर्म की प्रज्ञप्तिसत्ता है- इस प्रकार कर्मों के बारे में इनकी व्यवस्था है। कर्मों के इस प्रकार के विभाजन के कारण ही इस निकाय का नाम 'विभज्यवाद' है। हेतुवादी भी इन्हीं का काम है। भूत, भौतिक समस्त वस्तुओं के हेतु होते हैं, यह इनका अभिमत है। कथावत्थु और उसकी अट्ठकथा में इस निकाय के बारे में पुष्कल चर्चा उपलब्ध होती है।
 
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{{अठारह बौद्ध निकाय}}
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12:00, 14 जुलाई 2010 का अवतरण

बौद्ध धर्म में विभज्यवाद निकाय अठारह निकायों में से एक है:-
आचार्य वसुमित्र के मतानुसार यह निकाय सर्वास्तिवादी निकाय के अन्तर्गत गृहीत होता है। स्थविरवादी भी अपने को विभज्यवादी कहते हैं। आचार्य भव्य के अनुसार यह निकाय स्थविरवाद से भिन्न है। कुछ लोगों के अनुसार इन्हें हेतुवादी भी कहा जाता है। इस निकाय का यह विशिष्ट अभिमत है कि किये हुए कर्म का जब तक फल या विपाक उत्पन्न नहीं हो जाता, जब तक उस अतीत कर्म का द्रव्यत: अस्तित्व होता है। जिसने अभी फल नहीं दिया है, उस अतीत कर्म की और वर्तमान कर्म की द्रव्यसत्ता है तथा जिसने फल दे दिया है, उस अतीत कर्म की और अनागत कर्म की प्रज्ञप्तिसत्ता है- इस प्रकार कर्मों के बारे में इनकी व्यवस्था है। कर्मों के इस प्रकार के विभाजन के कारण ही इस निकाय का नाम 'विभज्यवाद' है। हेतुवादी भी इन्हीं का काम है। भूत, भौतिक समस्त वस्तुओं के हेतु होते हैं, यह इनका अभिमत है। कथावत्थु और उसकी अट्ठकथा में इस निकाय के बारे में पुष्कल चर्चा उपलब्ध होती है।

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