"ठाकुर रोशन सिंह": अवतरणों में अंतर
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ठाकुर रोशन सिंह [[1929]] के आस-पास 'असहयोग आन्दोलन' से पूरी तरह प्रभावित हो गए थे। वे देश सेवा की और झुके और अंतत: [[रामप्रसाद बिस्मिल]] के संपर्क में आकर क्रांति पथ के यात्री बन गए। यह उनकी ब्रिटिश विरोधी और [[भारत]] भक्ति का ही प्रभाव था की वे बिस्मिल के साथ रहकर खतरनाक कामों में उत्साह पूर्वक भाग लेने लगे। '[[काकोरी काण्ड]]' में भी वे सम्म्लित थे और उसी के आरोप में वे [[26 सितम्बर]], [[1925]] को गिरफ़्तार किये गए थे। | ठाकुर रोशन सिंह [[1929]] के आस-पास 'असहयोग आन्दोलन' से पूरी तरह प्रभावित हो गए थे। वे देश सेवा की और झुके और अंतत: [[रामप्रसाद बिस्मिल]] के संपर्क में आकर क्रांति पथ के यात्री बन गए। यह उनकी ब्रिटिश विरोधी और [[भारत]] भक्ति का ही प्रभाव था की वे बिस्मिल के साथ रहकर खतरनाक कामों में उत्साह पूर्वक भाग लेने लगे। '[[काकोरी काण्ड]]' में भी वे सम्म्लित थे और उसी के आरोप में वे [[26 सितम्बर]], [[1925]] को गिरफ़्तार किये गए थे। | ||
====मुखबिर बनाने की कोशिश==== | ====मुखबिर बनाने की कोशिश==== | ||
जेल जीवन में पुलिस ने उन्हें मुखबिर बनाने के लिए बहुत कोशिश की, लेकिन वे डिगे नहीं। चट्टान की तरह अपने सिद्धांतो पर दृढ रहे। 'काकोरी काण्ड' के सन्दर्भ में रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ तरह ठाकुर रोशन सिंह को भी फ़ाँसी की सज़ा दी गई थी। यद्यपि लोगों का अनुमान था की उन्हें कारावास मिलेगा, पर वास्तव में उन्हें कीर्ति भी मिलनी थी और उसके लिए फ़ाँसी ही श्रेष्ठ माध्यम थी। फ़ाँसी की सज़ा सुनकर उन्होंने अदालत में 'ओंकार' का उच्चारण किया और फिर चुप हो गए। 'ॐ' मंत्र के वे अनन्य उपासक थे।<ref>{{cite web |url=http://www.facebook.com/note.php?note_id=269405513102335 |title=रौशनी की मीनार ठाकुर रोशन सिंह|accessmonthday= 17 दिसम्बर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | जेल जीवन में पुलिस ने उन्हें मुखबिर बनाने के लिए बहुत कोशिश की, लेकिन वे डिगे नहीं। चट्टान की तरह अपने सिद्धांतो पर दृढ रहे। 'काकोरी काण्ड' के सन्दर्भ में रामप्रसाद बिस्मिल और [[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ]] तरह ठाकुर रोशन सिंह को भी फ़ाँसी की सज़ा दी गई थी। यद्यपि लोगों का अनुमान था की उन्हें कारावास मिलेगा, पर वास्तव में उन्हें कीर्ति भी मिलनी थी और उसके लिए फ़ाँसी ही श्रेष्ठ माध्यम थी। फ़ाँसी की सज़ा सुनकर उन्होंने अदालत में 'ओंकार' का उच्चारण किया और फिर चुप हो गए। 'ॐ' मंत्र के वे अनन्य उपासक थे।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.facebook.com/note.php?note_id=269405513102335 |title=रौशनी की मीनार ठाकुर रोशन सिंह|accessmonthday= 17 दिसम्बर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
==साथियों से प्रेम== | |||
अपने साथियों में रोशन सिंह प्रोढ़ थे। इसलिए युवक मित्रों की फ़ाँसी उन्हें कचोट रही थी। अदालत से बहार निकलने पर उन्होंने साथियों से कहा था "हमने तो ज़िन्दगी का आनंद खूब ले लिया है, मुझे फ़ाँसी हो जाये तो कोई दुःख नहीं है, लेकिन तुम्हारे लिए मुझे अफ़सोस हो रहा है, क्योंकि तुमने तो अभी जीवन का कुछ भी नहीं देखा।" | |||
====कारावास==== | |||
उसी रात रोशन सिंह [[लखनऊ]] से ट्रेन द्वारा [[इलाहाबाद]] जेल भेजे गए। उन्हें इलाहाबाद की 'मलाका' जेल में फ़ाँसी दिए जाने का फैसला किया गया था। उसी ट्रेन से 'काकोरी कांड' के दो अन्य कैदी विष्णु शरण दुबलिस और मन्मथनाथ गुप्त भी इलाहाबाद जा रहे थे। उनके लिए वहाँ की नेनी जेल में कारावास की सज़ा दी गई थी। लखनऊ से इलाहाबाद तक तीनों साथी, जो अपने क्रांति जीवन और 'काकोरी कांड' में भी साथी थे, बाते करते रहे। डिब्बे के दूसरे यात्रियों को जब पता चला की ये तीनों क्रन्तिकारी और 'काकोरी कांड' के दण्डित वीर हैं तो उन्होंने श्रद्धा-पूर्वक इन लोगों के लिए अपनी-अपनी सीटें खाली करके आराम से बेठने का अनुरोध किया। ट्रेन में भी ठाकुर रोशन सिंह बातचीत के दौरान बीच-बीच में 'ॐ मंत्र' का उच्च स्वर में जप करने लगते थे।<ref name="aa"/> | |||
==शहादत== | ==शहादत== | ||
'मलाका' जेल में रोशन सिंह को आठ महीने तक बड़ा कष्टप्रद जीवन बिताना पड़ा। न जाने क्यों फ़ाँसी की सज़ा को क्रियान्वित करने में [[अंग्रेज़]] अधिकारी बंदियों के साथ ऐसा अमानुषिक बर्ताव कर रहे थे। अंत : [[19 दिसम्बर]], [[1927]] को वहीं इलाहाबाद जेल में रोशन सिंह को फ़ाँसी दी गई। फ़ाँसी के दिन वे सवेरे से ही नहा-धोकर प्रसन्न मन से तैयार बेठे थे। जेलर का सन्देश आते ही '[[श्रीमद्भगवद गीता]]' की प्रति हाथ में लिए हुए कठघरे की और चल पड़े। कटघरे पर चढ़कर उन्होंने एक बार '[[वन्दे मातरम्]]' का मंत्रोचार किया। फिर 'ॐ मन्त्र' का जप करते हुए फंदा पहन कर लटक गए। उस समय वे इतने निर्विकार थे, जैसे कोई योगी सहज भाव से अपनी साधना कर रहा हो। | |||
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13:25, 17 दिसम्बर 2013 का अवतरण
ठाकुर रोशन सिंह (जन्म- 22 जनवरी, 1892, शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश; शहादत- 19 दिसम्बर, 1927, नैनी जेल, इलाहाबाद) भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे। 9 अगस्त, 1925 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पास 'काकोरी' स्टेशन के निकट 'काकोरी काण्ड' के अंतर्गत सरकारी खजाना लूटा गया था। यद्यपि ठाकुर रोशन सिंह ने 'काकोरी काण्ड' में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था, फिर भी उनके आकर्षक व रौबीले व्यक्तित्व को देखकर डकैती के सूत्रधार पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल और उनके सहकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के साथ उन्हें 19 दिसम्बर, 1927 को फ़ाँसी दे दी गई।
जन्म तथा परिवार
ठाकुर रोशन सिंह का जन्म 22 जनवरी, 1892 को उत्तर प्रदेश के ख्याति प्राप्त जनपद शाहजहाँपुर में स्थित गांव 'नबादा' में हुआ था। उनकी माता का नाम कौशल्या देवी और पिता का नाम ठाकुर जंगी सिंह था।[1] ठाकुर रोशन सिंह का पूरा परिवार 'आर्य समाज' से अनुप्राणित था। वे अपने पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। जब गाँधीजी ने 'असहयोग आन्दोलन' शुरू किया, तब रोशन सिंह ने उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर और बरेली ज़िले के ग्रामीण क्षेत्र में अद्भुत योगदान दिया था।
व्यक्तित्व
हिन्दू धर्म, आर्य संस्कृति, भारतीय स्वाधीनता और क्रान्ति के विषय में ठाकुर रोशन सिंह सदैव पढ़ते व सुनते रहते थे। ईश्वर पर उनकी आगाध श्रद्धा थी। हिन्दी, संस्कृत, बंगला और अंग्रेज़ी इन सभी भाषाओं को सीखने के वे बराबर प्रयत्न करते रहते थे। स्वस्थ, लम्बे, तगड़े सबल शारीर के भीतर स्थिर उनका हृदय और मस्तिष्क भी उतना ही सबल और विशाल था।
गिरफ़्तारी
ठाकुर रोशन सिंह 1929 के आस-पास 'असहयोग आन्दोलन' से पूरी तरह प्रभावित हो गए थे। वे देश सेवा की और झुके और अंतत: रामप्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आकर क्रांति पथ के यात्री बन गए। यह उनकी ब्रिटिश विरोधी और भारत भक्ति का ही प्रभाव था की वे बिस्मिल के साथ रहकर खतरनाक कामों में उत्साह पूर्वक भाग लेने लगे। 'काकोरी काण्ड' में भी वे सम्म्लित थे और उसी के आरोप में वे 26 सितम्बर, 1925 को गिरफ़्तार किये गए थे।
मुखबिर बनाने की कोशिश
जेल जीवन में पुलिस ने उन्हें मुखबिर बनाने के लिए बहुत कोशिश की, लेकिन वे डिगे नहीं। चट्टान की तरह अपने सिद्धांतो पर दृढ रहे। 'काकोरी काण्ड' के सन्दर्भ में रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ तरह ठाकुर रोशन सिंह को भी फ़ाँसी की सज़ा दी गई थी। यद्यपि लोगों का अनुमान था की उन्हें कारावास मिलेगा, पर वास्तव में उन्हें कीर्ति भी मिलनी थी और उसके लिए फ़ाँसी ही श्रेष्ठ माध्यम थी। फ़ाँसी की सज़ा सुनकर उन्होंने अदालत में 'ओंकार' का उच्चारण किया और फिर चुप हो गए। 'ॐ' मंत्र के वे अनन्य उपासक थे।[2]
साथियों से प्रेम
अपने साथियों में रोशन सिंह प्रोढ़ थे। इसलिए युवक मित्रों की फ़ाँसी उन्हें कचोट रही थी। अदालत से बहार निकलने पर उन्होंने साथियों से कहा था "हमने तो ज़िन्दगी का आनंद खूब ले लिया है, मुझे फ़ाँसी हो जाये तो कोई दुःख नहीं है, लेकिन तुम्हारे लिए मुझे अफ़सोस हो रहा है, क्योंकि तुमने तो अभी जीवन का कुछ भी नहीं देखा।"
कारावास
उसी रात रोशन सिंह लखनऊ से ट्रेन द्वारा इलाहाबाद जेल भेजे गए। उन्हें इलाहाबाद की 'मलाका' जेल में फ़ाँसी दिए जाने का फैसला किया गया था। उसी ट्रेन से 'काकोरी कांड' के दो अन्य कैदी विष्णु शरण दुबलिस और मन्मथनाथ गुप्त भी इलाहाबाद जा रहे थे। उनके लिए वहाँ की नेनी जेल में कारावास की सज़ा दी गई थी। लखनऊ से इलाहाबाद तक तीनों साथी, जो अपने क्रांति जीवन और 'काकोरी कांड' में भी साथी थे, बाते करते रहे। डिब्बे के दूसरे यात्रियों को जब पता चला की ये तीनों क्रन्तिकारी और 'काकोरी कांड' के दण्डित वीर हैं तो उन्होंने श्रद्धा-पूर्वक इन लोगों के लिए अपनी-अपनी सीटें खाली करके आराम से बेठने का अनुरोध किया। ट्रेन में भी ठाकुर रोशन सिंह बातचीत के दौरान बीच-बीच में 'ॐ मंत्र' का उच्च स्वर में जप करने लगते थे।[2]
शहादत
'मलाका' जेल में रोशन सिंह को आठ महीने तक बड़ा कष्टप्रद जीवन बिताना पड़ा। न जाने क्यों फ़ाँसी की सज़ा को क्रियान्वित करने में अंग्रेज़ अधिकारी बंदियों के साथ ऐसा अमानुषिक बर्ताव कर रहे थे। अंत : 19 दिसम्बर, 1927 को वहीं इलाहाबाद जेल में रोशन सिंह को फ़ाँसी दी गई। फ़ाँसी के दिन वे सवेरे से ही नहा-धोकर प्रसन्न मन से तैयार बेठे थे। जेलर का सन्देश आते ही 'श्रीमद्भगवद गीता' की प्रति हाथ में लिए हुए कठघरे की और चल पड़े। कटघरे पर चढ़कर उन्होंने एक बार 'वन्दे मातरम्' का मंत्रोचार किया। फिर 'ॐ मन्त्र' का जप करते हुए फंदा पहन कर लटक गए। उस समय वे इतने निर्विकार थे, जैसे कोई योगी सहज भाव से अपनी साधना कर रहा हो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ठाकुर रोशन सिंह, भारत के क्रांतिकारी सपूत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 17 दिसम्बर, 2013।
- ↑ 2.0 2.1 रौशनी की मीनार ठाकुर रोशन सिंह (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 17 दिसम्बर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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