"मंडौर जोधपुर": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (फ़ौज़िया ख़ान (Talk) के संपादनोंको हटाकर [[User:आदित्य चौधर�)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{tocright}}
{{tocright}}
मंडौर [[मारवाड़]] की [[जोधपुर]] से पहले की राजधानी है। मंडौर नामक वर्तमान ग्राम का प्राचीन नाम [[मंडोदर जोधपुर राजस्थान|मंडोदर]] या [[मांडव्यपुर जोधपुर राजस्थान|मांडव्यपुर]] है।  
मंडौर [[मारवाड़]] की [[जोधपुर]] से पहले की राजधानी है। मंडौर नामक वर्तमान ग्राम का प्राचीन नाम [[मंडोदर]] या [[मांडव्यपुर]] है।  
==जनश्रुति==
==जनश्रुति==
कहा जाता है कि यहाँ [[मांडव्य ऋषि]] का आश्रम था। स्थानीय रूप से यह जनश्रुति है कि नगर का नाम [[रावण]] की रानी [[मंदोदरी]] के नाम पर प्रसिद्ध हुआ था और वह स्थान जहाँ लंकापति के साथ मंदोदरी का विवाह हुआ था वह आज भी मंडौर में स्थित बताया जाता है।  
कहा जाता है कि यहाँ [[मांडव्य ऋषि]] का आश्रम था। स्थानीय रूप से यह जनश्रुति है कि नगर का नाम [[रावण]] की रानी [[मंदोदरी]] के नाम पर प्रसिद्ध हुआ था और वह स्थान जहाँ लंकापति के साथ मंदोदरी का विवाह हुआ था वह आज भी मंडौर में स्थित बताया जाता है।  
पंक्ति 11: पंक्ति 11:


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
* ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 687-688 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार  
* ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 667-668 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार  


[[Category:राजस्थान]]
[[Category:राजस्थान]]

12:12, 21 जुलाई 2010 का अवतरण

मंडौर मारवाड़ की जोधपुर से पहले की राजधानी है। मंडौर नामक वर्तमान ग्राम का प्राचीन नाम मंडोदर या मांडव्यपुर है।

जनश्रुति

कहा जाता है कि यहाँ मांडव्य ऋषि का आश्रम था। स्थानीय रूप से यह जनश्रुति है कि नगर का नाम रावण की रानी मंदोदरी के नाम पर प्रसिद्ध हुआ था और वह स्थान जहाँ लंकापति के साथ मंदोदरी का विवाह हुआ था वह आज भी मंडौर में स्थित बताया जाता है।

गुर्जर नरेश

7वीं शती ई. के उपरान्त गुर्जर नरेशों ने मंडौर में अपनी राजधानी बनाई थी। मांडव्य ऋषि के आश्रम के समीप स्थित मांडव्यदुर्ग की गणना राजस्थान के महत्वशाली दुर्गों में की जाती है। मंडौर में प्राप्त एक शिलालेख में इस स्थान को मांडव्याश्रम कहा गया है और इसके निकट एक पुण्यशालिनी नदी का उल्लेख है जो सम्भवतः नागोदरी है,

मांडववस्थाश्रमे पुण्ये नदीनिर्झर शोभते।

मन्दिर

दुर्ग के अन्दर विष्णु तथा जैन मन्दिरों के खण्डहर हैं। 12वीं, 13वीं शतियों की कई मूर्तियाँ यहाँ से प्राप्त हुई हैं। मन्दिर यद्यपि खण्डहर की अवस्था में है किन्तु उसकी दीवारों पर बेल-बूटे, पशु-पक्षी, कीर्तिमुख आदि का तक्षण बड़ी सुन्दर रीति से किया गया है। आधुनिक मंडौर ग्राम तथा दुर्ग के मध्यवर्ती भाग में खुदाई में मिट्टी के कुम्भ मिले हैं, जिनमें से एक पर गुप्तलिपि में विखय (विषय) शब्द खुदा है। दुर्ग के नीचे पंचकुंडा की ओर नरेशों की छतरियाँ, चूंडा जी का देवल तथा पंचकुंडा दर्शनीय हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 667-668 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार