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| |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 28 जनवरी 2014|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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| <center>[[भारतकोश सम्पादकीय 28 जनवरी 2014|किसी देश का गणतंत्र दिवस]]</center>
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| [[चित्र:Bhikhari-ka-katora.jpg|right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 28 जनवरी 2014]]
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| हमने नदियों का भी पूरा ख़याल रखा है। लोग कुछ समय पहले तक नदियों का पानी पी पीकर उनको सुखाए दे रहे थे। उसमें नहाते भी थे और उसके पानी को बर्तनों में भरकर भी ले जाते थे। इस ग़लत परम्परा के चलते नदियाँ सूखने लगीं। हमने छोटे-बड़े शहरों के पूरे मलबे-कचरे को इन नदियों में डलवाया जिससे इनका पानी पीने तो क्या नहाने लायक़ भी नहीं रहा। नदियों की रक्षा के लिए हमने करोड़ों-अरबों रुपया ख़र्च करके यह योजना बनाई जो आज सुचारू रूप से चल रही है। [[भारतकोश सम्पादकीय 28 जनवरी 2014|...पूरा पढ़ें]]
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] →
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय 22 दिसम्बर 2013|ताऊ का इलाज]] ·
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय 8 नवम्बर 2013|कभी ख़ुशी कभी ग़म]] ·
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय 21 सितम्बर 2013|समाज का ऑपरेटिंग सिस्टम]]
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| |}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
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