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||[[चित्र: | ||[[चित्र:Keshavdas.jpg|right|100px|right]][[हिन्दी]] में सर्वप्रथम केशवदास जी ने ही काव्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय पद्धति से विवेचन किया। यह ठीक है कि उनके काव्य में भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष की प्रधानता है और पांडित्य प्रदर्शन के कारण उन्हें 'कठिन काव्य का प्रेत' कहकर पुकारा जाता है, किंतु उनका महत्त्व बिल्कुल समाप्त नहीं हो जाता। भाव और [[रस]] कवित्व की [[आत्मा]] है। केशव अपने रचना-चमत्कार द्वारा श्रोता और पाठकों को चमत्कृत करने के प्रयास में रहे हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केशवदास]] | ||
{'मुख रूपी [[चन्द्रमा|चाँद]] पर [[राहु देव|राहु]] भी धोखा खा गया', इन पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है? | {'मुख रूपी [[चन्द्रमा|चाँद]] पर [[राहु देव|राहु]] भी धोखा खा गया', इन पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है? |
03:35, 10 फ़रवरी 2014 का अवतरण
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