"चोर से सहानुभूति": अवतरणों में अंतर
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*भक्त की इस बात का चोर पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वह भक्त की कुटिया पर जाकर अपनी ग़लती के लिए रोने लगा। उस दिन से वह चोर भी एक भक्त बन गया। | *भक्त की इस बात का चोर पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वह भक्त की कुटिया पर जाकर अपनी ग़लती के लिए रोने लगा। उस दिन से वह चोर भी एक भक्त बन गया। | ||
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07:36, 15 मई 2014 का अवतरण
एक भक्त थे, कोई उनका कपड़ा चुरा ले गया। कुछ दिनों बाद उस भक्त ने वह कपड़ा एक आदमी के हाथ में देखा जो उसे बाज़ार में बेच रहा था।
- वह दुकानदार उस आदमी से कहता है "यह कपड़ा तुम्हारा है या चोरी का, इसका क्या पता। हाँ कोई सज्जन पहचान कर बता दें कि तुम्हारा ही है तो मैं इसे ख़रीद लूँगा।"
- वह भक्त पास ही खड़े थे और उनसे दुकानदार का परिचय भी था। उन्होंने उस दुकानदार से कहा मैं इस आदमी को जानता हूँ, तुम इस कपड़े के दाम दे, दो।
- दुकानदार ने कपड़ा ख़रीदकर कीमत चुका दी। यह सब देखकर भक्त के एक साथी ने उनसे पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? इस पर भक्त बोले कि वह बेचारा बहुत ग़रीब है, ग़रीबी से तंग आकर उसे ऐसा करना पड़ा है।
- भक्त कहते हैं ग़रीब की तो हर तरह से सहायता ही करनी चाहिये। इस अवस्था में उसको चोर बतलाकर फ़साना अत्यन्त पाप है।
- भक्त की इस बात का चोर पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वह भक्त की कुटिया पर जाकर अपनी ग़लती के लिए रोने लगा। उस दिन से वह चोर भी एक भक्त बन गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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