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लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक एवं समसामयिक साहित्य आते हैं। ऐसे साहित्य को धर्मेत्तर साहित्य भी कहते हैं। इस प्रकार की कृतियों से तत्कालीन भारतीय समाज के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को जानने में काफ़ी मदद मिलती है।  
'''लौकिक साहित्य''' के अन्तर्गत ऐतिहासिक एवं समसामयिक साहित्य आते हैं। ऐसे साहित्य को धर्मेत्तर साहित्य भी कहते हैं। इस प्रकार की कृतियों से तत्कालीन भारतीय समाज के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को जानने में काफ़ी मदद मिलती है।  
* ऐसी रचनाओं में सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य [[चाणक्य]] के अर्थशास्त्र का किया जाता है।  
* ऐसी रचनाओं में सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य [[चाणक्य]] के अर्थशास्त्र का किया जाता है।  
* व्याकरण के पितामह आचार्य [[पाणिनि]] का [[अष्टाध्यायी]], विशाखदत्त का मुद्राराक्षस, [[पतंजलि|महर्षि पतंजलि]] का [[महाभाष्य]], [[कालिदास]] का [[मालविकाग्निमित्रम्]], [[बाणभट्ट]] का [[हर्षचरित]], भास का [[स्वप्नवासवदत्तम]], शूद्रक  [[मृच्छकटिकम]], [[कल्हण]] का [[राजतरंगिणी]] आदि साहित्य से विभिन्न ऐतिहासिक जानकारी मिलती है।
* व्याकरण के पितामह आचार्य [[पाणिनि]] का [[अष्टाध्यायी]], विशाखदत्त का मुद्राराक्षस, [[पतंजलि|महर्षि पतंजलि]] का [[महाभाष्य]], [[कालिदास]] का [[मालविकाग्निमित्रम्]], [[बाणभट्ट]] का [[हर्षचरित]], भास का [[स्वप्नवासवदत्तम]], शूद्रक  [[मृच्छकटिकम]], [[कल्हण]] का [[राजतरंगिणी]] आदि साहित्य से विभिन्न ऐतिहासिक जानकारी मिलती है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
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कालिदास

लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक एवं समसामयिक साहित्य आते हैं। ऐसे साहित्य को धर्मेत्तर साहित्य भी कहते हैं। इस प्रकार की कृतियों से तत्कालीन भारतीय समाज के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को जानने में काफ़ी मदद मिलती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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