"पावागढ़ शक्तिपीठ": अवतरणों में अंतर
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'''पावागढ़ शक्तिपीठ''' [[गुजरात]] में एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इस [[शक्तिपीठ]] में स्थित [[काली देवी|काली माँ]] को 'महाकाली' कहा जाता है। यह शक्तिपीठ [[वड़ोदरा]] शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर गुजरात की प्राचीन राजधानी [[चम्पारण्य]] में एक ऊँची पहाड़ी पर है। माना जाता है कि यहाँ पर [[सती]] का वक्षस्थल गिरा था। [[पुराण|पौराणिक]] धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किए हुए वस्त्र तथा [[आभूषण]] गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन [[तीर्थ स्थान]] कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। | '''पावागढ़ शक्तिपीठ''' [[गुजरात]] में एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इस [[शक्तिपीठ]] में स्थित [[काली देवी|काली माँ]] को 'महाकाली' कहा जाता है। यह शक्तिपीठ [[वड़ोदरा]] शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर गुजरात की प्राचीन राजधानी [[चम्पारण्य]] में एक ऊँची पहाड़ी पर है। माना जाता है कि यहाँ पर [[सती]] का वक्षस्थल गिरा था। [[पुराण|पौराणिक]] धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किए हुए वस्त्र तथा [[आभूषण]] गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन [[तीर्थ स्थान]] कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। | ||
==स्थिति== | |||
[[गुजरात]] के [[पंचमहल ज़िला|पंचमहल ज़िले]] में स्थित 'पावागढ़ महाकाली मंदिर' एक शक्तिपीठ है। यह धार्मिक ही नहीं पौराणिक, ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थल है। मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चम्पारण्य के पास स्थित है, जो [[वड़ोदरा]] शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। यह महाकाली मंदिर लगभग 550 मीटर की ऊंचाई पर पावागढ़ की ऊँची पहाड़ियों के बीच स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए अब रोपवे की भी सुविधा है। रोप-वे से उतरने के बाद भक्तों को लगभग 250 सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं, तब जाकर वे मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुँचते हैं। इसके अतिरिक्त कालिका के प्राचीन मंदिर, [[गोवा]] के दक्षिण गोवा में महामाया, [[कर्नाटक]] के बेलगाम में, [[पंजाब]] के [[चंडीगढ़]] में और [[कश्मीर]] में स्थित हैं। | |||
==ऐतिहासिक तथ्य== | |||
पावागढ़ का महाकाली मंदिर शक्तिपीठों में से एक है। [[इतिहास]] के पन्नों में पावागढ़ का नाम महान संगीतज्ञ तथा [[अकबर के नवरत्न|बादशाह अकबर के नवरत्नों]] में से एक [[तानसेन]] के समकालीन संगीतकार [[बैजू बावरा]] के संदर्भ में आया है। बैजू बावरा का जन्म इसी पवित्र भूमि पर हुआ था।<ref>{{cite web |url= http://www.samaylive.com/lifestyle-news-in-hindi/religion-news-in-hindi/152914/gujarat-panchmahal-pavagadh-mahakali-temple-shanktipit.html|title= पावागढ़ के महाकाली मंदिर जुडी हैं कई कहानियां|accessmonthday= 29 सितम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= सहारा समय|language= हिन्दी}}</ref> | |||
====पावागढ़ का नामकरण==== | |||
पावागढ़ के नाम के पीछे भी एक [[कहानी]] है। कहते हैं एक जमाने में दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव थी। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी हर तरफ एक-सा रहता है। इसलिए इसे 'पावागढ़', अर्थात 'वैसी जगह जहां पवन का वास हो', कहा जाता है। पावागढ़ पहाड़ियों की तलहटी में चंपानेरी नगरी है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने बुद्धिमान मंत्री के नाम पर बसाया था। पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से होती है। 1471 फुट की ऊंचाई पर 'माची हवेली' स्थित है। माँ के मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोपवे की सुविधा है। यहां से पैदल मंदिर तक पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। | |||
==विश्वामित्र से सम्बन्ध== | ==विश्वामित्र से सम्बन्ध== | ||
काली माता का यह प्रसिद्ध मंदिर माँ के शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि यहाँ माता का जागृत दरबार लगता है और उनकी कई सेविकाएँ उनके लिए कार्य करती हैं। यहीं लोगों को दंड या दान मिलता है। इस पहाड़ी को [[विश्वामित्र|गुरु विश्वामित्र]] से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि विश्वामित्र ने यहाँ काली माँ की तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि काली की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही प्रतिष्ठित किया था। यहाँ बहने वाली नदी का नामाकरण भी उन्हीं के नाम पर 'विश्वामित्री' पड़ा है। | काली माता का यह प्रसिद्ध मंदिर माँ के शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि यहाँ माता का जागृत दरबार लगता है और उनकी कई सेविकाएँ उनके लिए कार्य करती हैं। यहीं लोगों को दंड या दान मिलता है। इस पहाड़ी को [[विश्वामित्र|गुरु विश्वामित्र]] से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि विश्वामित्र ने यहाँ काली माँ की तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि काली की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही प्रतिष्ठित किया था। यहाँ बहने वाली नदी का नामाकरण भी उन्हीं के नाम पर 'विश्वामित्री' पड़ा है। | ||
==पुराण उल्लेख== | ==पुराण उल्लेख== | ||
पुराणों के अनुसार [[दक्ष|प्रजापति दक्ष]] के [[यज्ञ]] में अपमानित हुई सती ने भगवान [[शिव]] का अपमान सहन न कर पाने के कारण योगबल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। [[सती]] की मृत्यु से व्यथित शिवशंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करते हुए सम्पूर्ण [[ब्रह्मांड]] में भटकते रहे। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान [[विष्णु]] ने [[चक्र अस्त्र|चक्र]] से सती के टुकड़े कर दिये। इस समय माँ के अंग, वस्त्र तथा आभूषण आदि जहाँ-जहाँ गिरे, वहीं [[शक्तिपीठ]] बन गए। माना जाता है कि पावागढ़ में सती के वक्षस्थल गिरे थे। जगतजननी के स्तन गिरने के कारण इस जगह को बेहद पूजनीय और पवित्र माना जाता है। यहाँ की एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि यहाँ दक्षिण मुखी [[काली देवी]] की मूर्ति है, जिसकी दक्षिण रीति अर्थात तांत्रिक पूजा की जाती है। | पुराणों के अनुसार [[दक्ष|प्रजापति दक्ष]] के [[यज्ञ]] में अपमानित हुई सती ने भगवान [[शिव]] का अपमान सहन न कर पाने के कारण योगबल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। [[सती]] की मृत्यु से व्यथित शिवशंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करते हुए सम्पूर्ण [[ब्रह्मांड]] में भटकते रहे। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान [[विष्णु]] ने [[चक्र अस्त्र|चक्र]] से सती के टुकड़े कर दिये। इस समय माँ के अंग, वस्त्र तथा आभूषण आदि जहाँ-जहाँ गिरे, वहीं [[शक्तिपीठ]] बन गए। माना जाता है कि पावागढ़ में सती के वक्षस्थल गिरे थे। जगतजननी के स्तन गिरने के कारण इस जगह को बेहद पूजनीय और पवित्र माना जाता है। यहाँ की एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि यहाँ दक्षिण मुखी [[काली देवी]] की मूर्ति है, जिसकी दक्षिण रीति अर्थात तांत्रिक पूजा की जाती है। | ||
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पावागढ़ का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व है। बताया जाता है कि यह मंदिर [[अयोध्या]] के राजा [[राम|श्रीरामचंद्र]] के समय का है। इस मंदिर को एक जमाने में 'शत्रुंजय मंदिर' कहा जाता था। [[माघ|माघ महीने]] के [[शुक्ल पक्ष]] में यहां मेला लगता है। मान्यता है कि भगवान राम, उनके बेटे [[लव कुश|लव]] और [[लव कुश|कुश]] के अलावा बहुत से [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] [[भिक्कु|भिक्षुओं]] ने यहां मोक्ष प्राप्त किया था। | |||
====सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक==== | |||
सांप्रदायिक सौहार्द्र के प्रतीक इस मंदिर की छत पर [[मुसलमान|मुस्लिमों]] का पवित्र स्थल है, जहां 'अदानशाह पीर' की दरगाह है। यहां बड़ी संख्या में मुस्लिम श्रद्धालु भी दर्शन करने के लिए आते हैं। | |||
====आस्था==== | |||
[[नवरात्र]] के समय [[काली|काली माता]] के इस [[शक्तिपीठ]] में श्रद्धालुओं की बहुत भीड़ उमड़ती है। लोगों की यहाँ गहरी आस्था है। उनका मानना है कि यहाँ दर्शन करने के बाद माँ उनकी हर मुराद पूरी कर देती हैं। | |||
==कैसे पहुँचें== | ==कैसे पहुँचें== | ||
पावागढ़ शक्तिपीठ तक पहुँचने के लिए लगभग सभी साधन उपलब्ध हैं-<br /> | पावागढ़ शक्तिपीठ तक पहुँचने के लिए लगभग सभी साधन उपलब्ध हैं-<br /> |
08:49, 29 सितम्बर 2014 का अवतरण
पावागढ़ शक्तिपीठ
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विवरण | 'पावागढ़ शक्तिपीठ' गुजरात में एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इस शक्तिपीठ में स्थित काली माँ को 'महाकाली' कहा जाता है। माना जाता है कि यहाँ पर सती का वक्षस्थल गिरा था। |
राज्य | गुजरात |
मार्ग स्थिति | यह शक्तिपीठ वड़ोदरा से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर गुजरात की प्राचीन राजधानी चम्पारण्य में एक ऊँची पहाड़ी पर है |
प्रसिद्धि | हिन्दू धर्म में मान्य शक्तिपीठ। |
अहमदाबाद | |
वड़ोदरा | |
गुजरात सरकार और निजी कंपनियों की कई लक्जरी बसें और टैक्सी सेवा | |
अन्य जानकारी | माना जाता है कि विश्वामित्र ने यहाँ काली माँ की तपस्या की थी और काली की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही प्रतिष्ठित किया था। |
पावागढ़ शक्तिपीठ गुजरात में एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इस शक्तिपीठ में स्थित काली माँ को 'महाकाली' कहा जाता है। यह शक्तिपीठ वड़ोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर गुजरात की प्राचीन राजधानी चम्पारण्य में एक ऊँची पहाड़ी पर है। माना जाता है कि यहाँ पर सती का वक्षस्थल गिरा था। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किए हुए वस्त्र तथा आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थ स्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
स्थिति
गुजरात के पंचमहल ज़िले में स्थित 'पावागढ़ महाकाली मंदिर' एक शक्तिपीठ है। यह धार्मिक ही नहीं पौराणिक, ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थल है। मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चम्पारण्य के पास स्थित है, जो वड़ोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। यह महाकाली मंदिर लगभग 550 मीटर की ऊंचाई पर पावागढ़ की ऊँची पहाड़ियों के बीच स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए अब रोपवे की भी सुविधा है। रोप-वे से उतरने के बाद भक्तों को लगभग 250 सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं, तब जाकर वे मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुँचते हैं। इसके अतिरिक्त कालिका के प्राचीन मंदिर, गोवा के दक्षिण गोवा में महामाया, कर्नाटक के बेलगाम में, पंजाब के चंडीगढ़ में और कश्मीर में स्थित हैं।
ऐतिहासिक तथ्य
पावागढ़ का महाकाली मंदिर शक्तिपीठों में से एक है। इतिहास के पन्नों में पावागढ़ का नाम महान संगीतज्ञ तथा बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन के समकालीन संगीतकार बैजू बावरा के संदर्भ में आया है। बैजू बावरा का जन्म इसी पवित्र भूमि पर हुआ था।[1]
पावागढ़ का नामकरण
पावागढ़ के नाम के पीछे भी एक कहानी है। कहते हैं एक जमाने में दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव थी। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी हर तरफ एक-सा रहता है। इसलिए इसे 'पावागढ़', अर्थात 'वैसी जगह जहां पवन का वास हो', कहा जाता है। पावागढ़ पहाड़ियों की तलहटी में चंपानेरी नगरी है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने बुद्धिमान मंत्री के नाम पर बसाया था। पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से होती है। 1471 फुट की ऊंचाई पर 'माची हवेली' स्थित है। माँ के मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोपवे की सुविधा है। यहां से पैदल मंदिर तक पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं।
विश्वामित्र से सम्बन्ध
काली माता का यह प्रसिद्ध मंदिर माँ के शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि यहाँ माता का जागृत दरबार लगता है और उनकी कई सेविकाएँ उनके लिए कार्य करती हैं। यहीं लोगों को दंड या दान मिलता है। इस पहाड़ी को गुरु विश्वामित्र से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि विश्वामित्र ने यहाँ काली माँ की तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि काली की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही प्रतिष्ठित किया था। यहाँ बहने वाली नदी का नामाकरण भी उन्हीं के नाम पर 'विश्वामित्री' पड़ा है।
पुराण उल्लेख
पुराणों के अनुसार प्रजापति दक्ष के यज्ञ में अपमानित हुई सती ने भगवान शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण योगबल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। सती की मृत्यु से व्यथित शिवशंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करते हुए सम्पूर्ण ब्रह्मांड में भटकते रहे। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने चक्र से सती के टुकड़े कर दिये। इस समय माँ के अंग, वस्त्र तथा आभूषण आदि जहाँ-जहाँ गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए। माना जाता है कि पावागढ़ में सती के वक्षस्थल गिरे थे। जगतजननी के स्तन गिरने के कारण इस जगह को बेहद पूजनीय और पवित्र माना जाता है। यहाँ की एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि यहाँ दक्षिण मुखी काली देवी की मूर्ति है, जिसकी दक्षिण रीति अर्थात तांत्रिक पूजा की जाती है।
पावागढ़ का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व है। बताया जाता है कि यह मंदिर अयोध्या के राजा श्रीरामचंद्र के समय का है। इस मंदिर को एक जमाने में 'शत्रुंजय मंदिर' कहा जाता था। माघ महीने के शुक्ल पक्ष में यहां मेला लगता है। मान्यता है कि भगवान राम, उनके बेटे लव और कुश के अलावा बहुत से बौद्ध भिक्षुओं ने यहां मोक्ष प्राप्त किया था।
सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक
सांप्रदायिक सौहार्द्र के प्रतीक इस मंदिर की छत पर मुस्लिमों का पवित्र स्थल है, जहां 'अदानशाह पीर' की दरगाह है। यहां बड़ी संख्या में मुस्लिम श्रद्धालु भी दर्शन करने के लिए आते हैं।
आस्था
नवरात्र के समय काली माता के इस शक्तिपीठ में श्रद्धालुओं की बहुत भीड़ उमड़ती है। लोगों की यहाँ गहरी आस्था है। उनका मानना है कि यहाँ दर्शन करने के बाद माँ उनकी हर मुराद पूरी कर देती हैं।
कैसे पहुँचें
पावागढ़ शक्तिपीठ तक पहुँचने के लिए लगभग सभी साधन उपलब्ध हैं-
वायुमार्ग - यहाँ से सबसे नजदीक हवाईअड्डा अहमदाबाद है, जिसकी यहाँ से दूरी लगभग 190 किलोमीटर और वड़ोदरा से 50 किलोमीटर है।
रेलमार्ग - यहाँ का नजदीकी बड़ा रेलवे स्टेशन वड़ोदरा में है, जो कि दिल्ली और अहमदाबाद से सीधी रेल लाइनों से जुड़ा हुआ है। वड़ोदरा पहुँचने के बाद सड़क यातायात के सुलभ साधन उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग - गुजरात सरकार और निजी कंपनियों की कई लक्जरी बसें और टैक्सी सेवा गुजरात के अनेक शहरों से यहाँ के लिए संचालित की जाती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पावागढ़ के महाकाली मंदिर जुडी हैं कई कहानियां (हिन्दी) सहारा समय। अभिगमन तिथि: 29 सितम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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