"रामसिंह अखाड़ा, वाराणसी": अवतरणों में अंतर

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'''अखाड़ा रामसिंह''' के पहले ‘धूर पर गदा और जोड़ियाँ फेरी जाती थी। बाद में रामसिंह ने कुश्ती शुरू कराई। रामसिंह स्वयं [[बनारस]] के ग़ज़ब के लड़वैये थे। बेनियाबाग स्थित इस अखाड़े के पहलवानों ने खूब नाम कमाया। सर्वजीत यहाँ का ही पहलवान था। इसने मजीद, हुसेना, अद्धा, अदालत नट आदि को शिकस्त दी थी। ‘चाँदी’ ने [[मेरठ]] के प्रसिद्ध हफीज को चारो खाना चित्त कर दिया। लक्ष्मीकान्त पाण्डेय, चिक्कन यहीं के पलवान थे। उन्होंने ओलम्पिक कुश्तियों में [[भारत]] का नाम रोशन किया। [[अमेरिका]] आदि में अपनी मल्ल कला का प्रदर्शन किया। झारखण्डेय राय अपने जमाने के नामी पहलवान थे। इनकी लड़ाई टाउनहाल में हिन्द केशरी विजय कुमार से हुई। [[महाराष्ट्र]] सरकार ने इन्हें स्वर्ण पदक दिया। बनारस का प्रसिद्ध शामू यहीं का पहलवान रहा। उसने अरसे तक बनारस केशरी का खिताब अपनी झोली में रखा। अपने समय में भारत द्वितीय स्थान रखने वाले बनारसी पाण्डेय ने दिल्ली में ओलम्यिन सुदेश कुमार से कुश्ती लड़ी। झारखण्डेय राय की कुश्ती दादू चौगुले, सज्जन सिंह, आगरा के तेजबहादुर व हरियाणा के मित्तल से हुई थी। भग्गू पहलवान ने रामजीत, सिक्कड़, बिजली, किंकड़, किंकड़, जीऊत आदि नामी पहलवानों को दे मारा था। ओलम्पियन राजेन्द्र ने खूब नाम कमाया। किशुन मोहन से लड़ाई में विश्वविद्यालय के अध्यक्ष स्व. कपुरिया पराजित हुए थे। इस अखाड़े ने अब तक 6-7 हजार पहलवानों को पैदा किया। आज भी वहाँ रोज करीब 50-60 पहलवान जोर आजमाइश करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.kashikatha.com/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A4/%E0%A4%85%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81/ |title= अखाड़े/व्यायामशालाएँ|accessmonthday=19 जनवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=काशीकथा |language=हिंदी }}</ref>
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14:09, 16 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

अखाड़ा रामसिंह के पहले ‘धूर पर गदा और जोड़ियाँ फेरी जाती थी। बाद में रामसिंह ने कुश्ती शुरू कराई। रामसिंह स्वयं बनारस के ग़ज़ब के लड़वैये थे। बेनियाबाग स्थित इस अखाड़े के पहलवानों ने खूब नाम कमाया। सर्वजीत यहाँ का ही पहलवान था। इसने मजीद, हुसेना, अद्धा, अदालत नट आदि को शिकस्त दी थी। ‘चाँदी’ ने मेरठ के प्रसिद्ध हफीज को चारो खाना चित्त कर दिया। लक्ष्मीकान्त पाण्डेय, चिक्कन यहीं के पलवान थे। उन्होंने ओलम्पिक कुश्तियों में भारत का नाम रोशन किया। अमेरिका आदि में अपनी मल्ल कला का प्रदर्शन किया। झारखण्डेय राय अपने जमाने के नामी पहलवान थे। इनकी लड़ाई टाउनहाल में हिन्द केशरी विजय कुमार से हुई। महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें स्वर्ण पदक दिया। बनारस का प्रसिद्ध शामू यहीं का पहलवान रहा। उसने अरसे तक बनारस केशरी का खिताब अपनी झोली में रखा। अपने समय में भारत द्वितीय स्थान रखने वाले बनारसी पाण्डेय ने दिल्ली में ओलम्यिन सुदेश कुमार से कुश्ती लड़ी। झारखण्डेय राय की कुश्ती दादू चौगुले, सज्जन सिंह, आगरा के तेजबहादुर व हरियाणा के मित्तल से हुई थी। भग्गू पहलवान ने रामजीत, सिक्कड़, बिजली, किंकड़, किंकड़, जीऊत आदि नामी पहलवानों को दे मारा था। ओलम्पियन राजेन्द्र ने खूब नाम कमाया। किशुन मोहन से लड़ाई में विश्वविद्यालय के अध्यक्ष स्व. कपुरिया पराजित हुए थे। इस अखाड़े ने अब तक 6-7 हजार पहलवानों को पैदा किया। आज भी वहाँ रोज क़रीब 50-60 पहलवान जोर आजमाइश करते हैं।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अखाड़े/व्यायामशालाएँ (हिंदी) काशीकथा। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2014।

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