"इतिहास सामान्य ज्ञान 44": अवतरणों में अंतर
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||'[[अशोक]]' अथवा 'असोक' प्राचीन [[भारत]] में [[मौर्य राजवंश]] का राजा था। अशोक का 'देवानाम्प्रिय' एवं 'प्रियदर्शी' आदि नामों से भी उल्लेख किया जाता है। 'देवानाम्प्रिय प्रियदर्शी', इस वाक्यांश में बी.ए. स्मिथ के मतानुसार 'देवानाम्प्रिय' आदरसूचक पद है और इसी अर्थ में हमने भी इसको लिया है, किंतु 'देवानाम्प्रिय' शब्द (देव-प्रिय नहीं) [[पाणिनी]] के एक सूत्र के अनुसार अनादर का सूचक है। इन सबके उत्तरकालीन वैयाकरण भट्टोजिदीक्षित इसे अपवाद में नहीं रखते। उनके मत से 'देवानाम्प्रिय ब्रह्मज्ञान से रहित उस पुरुष को कहते हैं जो यज्ञ और पूजा से भगवान को प्रसन्न करने का यत्न करता है। | ||'[[अशोक]]' अथवा 'असोक' प्राचीन [[भारत]] में [[मौर्य राजवंश]] का राजा था। अशोक का 'देवानाम्प्रिय' एवं 'प्रियदर्शी' आदि नामों से भी उल्लेख किया जाता है। 'देवानाम्प्रिय प्रियदर्शी', इस वाक्यांश में बी.ए. स्मिथ के मतानुसार 'देवानाम्प्रिय' आदरसूचक पद है और इसी अर्थ में हमने भी इसको लिया है, किंतु 'देवानाम्प्रिय' शब्द (देव-प्रिय नहीं) [[पाणिनी]] के एक सूत्र के अनुसार अनादर का सूचक है। इन सबके उत्तरकालीन वैयाकरण [[भट्टोजिदीक्षित]] इसे अपवाद में नहीं रखते। उनके मत से 'देवानाम्प्रिय ब्रह्मज्ञान से रहित उस पुरुष को कहते हैं जो यज्ञ और पूजा से भगवान को प्रसन्न करने का यत्न करता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अशोक]] | ||
{[[समुद्रगुप्त]] के काल का [[इतिहास]] जानने का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन क्या है? | {[[समुद्रगुप्त]] के काल का [[इतिहास]] जानने का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन क्या है? | ||
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-[[साँची]] गुफ़ा [[अभिलेख]] | -[[साँची]] गुफ़ा [[अभिलेख]] | ||
-[[भरहुत]] भित्तिचित्र | -[[भरहुत]] भित्तिचित्र | ||
||[[चित्र:Sangam-Allahabad.jpg|right|120px|संगम, इलाहाबाद]]'इलाहाबाद' का प्राचीन नाम '[[प्रयाग]]' है और यह 'तीर्थराज' के नाम से भी जाना जाता है। सातवीं शताब्दी में सम्राट [[हर्षवर्धन]] | ||[[चित्र:Sangam-Allahabad.jpg|right|120px|संगम, इलाहाबाद]] 'इलाहाबाद' का प्राचीन नाम '[[प्रयाग]]' है और यह 'तीर्थराज' के नाम से भी जाना जाता है। सातवीं शताब्दी में सम्राट [[हर्षवर्धन]] यहाँ पाँच-पाँच वर्ष के अनन्तर पर एक सत्र का आयोजन किया करता था। ऐसे एक सत्र में चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग]] ने 643 ई. में भाग लिया था। इलाहाबाद में सबसे प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक सम्राट [[अशोक]] (273-232 ई. पू.) के 6 स्तम्भ-लेखों में से एक है। इस पर [[गुप्त]] सम्राट [[समुद्रगुप्त]] (330-380 ई.) के कवि '[[हरिषेण]]' रचित प्रसिद्ध प्रशस्ति है, जिसमें उसके दिग्विजय होने का वर्णन है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इलाहाबाद]] | ||
{निम्न में से कौन 'भारतीय क्रांति की माँ' कहलाती हैं? | {निम्न में से कौन 'भारतीय क्रांति की माँ' कहलाती हैं? | ||
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-[[सरोजनी नायडू]] | -[[सरोजनी नायडू]] | ||
-रामा बाई | -रामा बाई | ||
+भीकाजी-रुस्तम कामा | +[[भीकाजी कामा|भीकाजी-रुस्तम कामा]] | ||
{[[गाँधी जी]] द्वारा [[असहयोग आन्दोलन]] कब वापस ले लिया गया? | {[[गाँधी जी]] द्वारा [[असहयोग आन्दोलन]] कब वापस ले लिया गया? | ||
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-[[5 मार्च]], [[1931]] | -[[5 मार्च]], [[1931]] | ||
-[[3 फ़रवरी]], [[1928]] | -[[3 फ़रवरी]], [[1928]] | ||
||[[चित्र:Mahatma-Gandhi-2.jpg|right|100px|महात्मा गाँधी]][[असहयोग आन्दोलन]] [[गांधी जी]] ने [[1 अगस्त]], [[1920]] को आरम्भ किया था। किंतु [[5 फ़रवरी]], [[1922]] को [[देवरिया ज़िला|देवरिया]] ज़िले के [[चौरी चौरा]] नामक स्थान पर पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रोकना चाहा, इसके फलस्वरूप जनता ने क्रोध में आकर थाने में [[आग]] लगा दी, जिसमें एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से गांधी जी स्तब्ध रह गए। [[12 फ़रवरी]], [[1922]] को बारदोली में हुई [[कांग्रेस]] की बैठक में 'असहयोग आन्दोलन' को समाप्त करने का निर्णय ले लिया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[असहयोग आन्दोलन]] | ||[[चित्र:Mahatma-Gandhi-2.jpg|right|100px|महात्मा गाँधी]][[असहयोग आन्दोलन]] [[गांधी जी]] ने [[1 अगस्त]], [[1920]] को आरम्भ किया था। किंतु [[5 फ़रवरी]], [[1922]] को [[देवरिया ज़िला|देवरिया]] ज़िले के [[चौरी चौरा]] नामक स्थान पर पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रोकना चाहा, इसके फलस्वरूप जनता ने क्रोध में आकर थाने में [[आग]] लगा दी, जिसमें एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से गांधी जी स्तब्ध रह गए। [[12 फ़रवरी]], [[1922]] को बारदोली में हुई [[कांग्रेस]] की बैठक में 'असहयोग आन्दोलन' को समाप्त करने का निर्णय ले लिया गया।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[असहयोग आन्दोलन]] | ||
{[[भारत]] | {[[भारत का विभाजन|भारत के विभाजन]] की [[माउण्टबेटन योजना]] योजना कब घोषित की गई थी? | ||
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-[[14 अगस्त]], [[1947]] | -[[14 अगस्त]], [[1947]] | ||
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-[[13 अगस्त]], [[1948]] | -[[13 अगस्त]], [[1948]] | ||
||[[चित्र:Lord-Mountbatten.jpg|right|100px|लॉर्ड माउन्ट बेटन]]'[[माउन्टबेटन योजना]]' [[3 जून]], [[1947]] ई. को [[लॉर्ड माउन्ट बेटन|लॉर्ड माउन्टबेटन]] द्वारा प्रस्तुत की गई थी। यह योजना [[भारत]] के जनसाधारण लोगों में 'मनबाटन योजना' के नाम से भी प्रसिद्ध हुई। [[मुस्लिम लीग]] अपनी माँग [[पाकिस्तान]] के निर्माण पर अड़ी हुई थी। इस स्थिति में विवशतापूर्वक [[कांग्रेस]] तथा [[सिक्ख|सिक्खों]] द्वारा देश के विभाजन को स्वीकार कर लेने के बाद समस्या के हल के लिए लॉर्ड | ||[[चित्र:Lord-Mountbatten.jpg|right|100px|लॉर्ड माउन्ट बेटन]]'[[माउन्टबेटन योजना]]' [[3 जून]], [[1947]] ई. को [[लॉर्ड माउन्ट बेटन|लॉर्ड माउन्टबेटन]] द्वारा प्रस्तुत की गई थी। यह योजना [[भारत]] के जनसाधारण लोगों में 'मनबाटन योजना' के नाम से भी प्रसिद्ध हुई। [[मुस्लिम लीग]] अपनी माँग [[पाकिस्तान]] के निर्माण पर अड़ी हुई थी। इस स्थिति में विवशतापूर्वक [[कांग्रेस]] तथा [[सिक्ख|सिक्खों]] द्वारा देश के विभाजन को स्वीकार कर लेने के बाद समस्या के हल के लिए लॉर्ड माउन्टबेटन [[लन्दन]] गये और वापस आकर उन्होंने देश के विभाजन की अपनी योजना प्रस्तुत की।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[माउण्टबेटन योजना]] | ||
{[[1917]] ई. के [[चम्पारण सत्याग्रह]] का सम्बन्ध किससे था? | {[[1917]] ई. के [[चम्पारण सत्याग्रह]] का सम्बन्ध किससे था? | ||
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+नील की खेती करने वालों से | +नील की खेती करने वालों से | ||
-[[जूट]] पैदा करने वालों से | -[[जूट]] पैदा करने वालों से | ||
||चम्पारन के किसानों से [[अंग्रेज़]] बाग़ान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था, जिसके द्वारा किसानों को ज़मीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे 'तिनकठिया पद्धति' कहते थे। 19वीं शताब्दी के अन्त में रासायनिक [[रंग|रगों]] की खोज और उनके प्रचलन से नील के बाज़ार में गिरावट आने लगी, जिससे नील बाग़ान के मालिक अपने कारखाने बंद करने लगे। किसान भी नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे। गोरे बाग़ान मालिकों ने किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान को मनमाने ढंग से बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह शुरू हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चम्पारण सत्याग्रह]] | ||चम्पारन के किसानों से [[अंग्रेज़]] बाग़ान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था, जिसके द्वारा किसानों को ज़मीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे 'तिनकठिया पद्धति' कहते थे। 19वीं शताब्दी के अन्त में रासायनिक [[रंग|रगों]] की खोज और उनके प्रचलन से नील के बाज़ार में गिरावट आने लगी, जिससे नील बाग़ान के मालिक अपने कारखाने बंद करने लगे। किसान भी नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे। गोरे बाग़ान मालिकों ने किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान को मनमाने ढंग से बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह शुरू हुआ।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चम्पारण सत्याग्रह]] | ||
{[[मराठा]] राज्य का दूसरा प्रवर्तक किसे कहा जाता था? | {[[मराठा]] राज्य का दूसरा प्रवर्तक किसे कहा जाता था? | ||
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+[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]] | +[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]] | ||
||[[चित्र:Subhash-Chandra-Bose-2.jpg|right|100px|सुभाषचन्द्र बोस]]'फ़ारवर्ड ब्लॉक' नाम की एक नई पार्टी का गठन नेताजी [[सुभाषचन्द्र बोस]] द्वारा [[अप्रैल]], [[1939]] ई. में किया गया था। '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के 'हरिपुरा अधिवेशन' में [[19 फ़रवरी]], [[1938]] ई. को सुभाषचन्द्र बोस को अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस के 'त्रिपुरा अधिवेशन' में सुभाषचन्द्र बोस पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे, परन्तु [[गाँधी जी]] के विरोध के चलते उन्होंने त्यागपत्र दे दिया तथा अप्रैल, 1939 ई. मे '[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]]' नाम की एक नई पार्टी का गठन किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]] | ||[[चित्र:Subhash-Chandra-Bose-2.jpg|right|100px|सुभाषचन्द्र बोस]]'फ़ारवर्ड ब्लॉक' नाम की एक नई पार्टी का गठन नेताजी [[सुभाषचन्द्र बोस]] द्वारा [[अप्रैल]], [[1939]] ई. में किया गया था। '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के 'हरिपुरा अधिवेशन' में [[19 फ़रवरी]], [[1938]] ई. को सुभाषचन्द्र बोस को अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस के 'त्रिपुरा अधिवेशन' में सुभाषचन्द्र बोस पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे, परन्तु [[गाँधी जी]] के विरोध के चलते उन्होंने त्यागपत्र दे दिया तथा अप्रैल, 1939 ई. मे '[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]]' नाम की एक नई पार्टी का गठन किया।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]] | ||
{[[मेवाड़]] से युद्ध और 'चित्तौड़ की सन्धि' किसके शासन काल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी? | {[[मेवाड़]] से युद्ध और 'चित्तौड़ की सन्धि' किसके शासन काल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी? | ||
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-[[शाहजहाँ]] | -[[शाहजहाँ]] | ||
-[[औरंगज़ेब]] | -[[औरंगज़ेब]] | ||
||अब्दुल्ला ख़ाँ ने 1611 ई. में रणपुर के दर्रे में राजकुमार कर्ण को परास्त किया था, परन्तु एक अन्य रणपुर के संघर्ष में अब्दुल्ला ख़ाँ को पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद मिर्ज़ा अजीज कोका को भेजा गया, | ||अब्दुल्ला ख़ाँ ने 1611 ई. में रणपुर के दर्रे में राजकुमार कर्ण को परास्त किया था, परन्तु एक अन्य रणपुर के संघर्ष में अब्दुल्ला ख़ाँ को पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद मिर्ज़ा अजीज कोका को भेजा गया, ख़ुद [[जहाँगीर]] अपने प्रभाव से शत्रु को आतंकित करने के लिए 1613 ई. में [[अजमेर]] गया। इस समय जहाँगीर ने [[मेवाड़]] के आक्रमण का भार शाहज़ादा 'ख़ुर्रम' ([[शाहजहाँ]]) को दिया। शाहज़ादा के नेतृत्व में [[मुग़ल]] सेना के दबाब के सामने मेवाड़ की सेना को समझौते के लिए बाध्य होना पड़ा। [[राणा अमरसिंह]] की शर्तों पर जहाँगीर सन्धि के लिए तैयार हो गया।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जहाँगीर]] | ||
{"यदि हम मेंढक की तरह वर्ष में केवल एक बार टर्रायेंगे तो भारतीयों को कोई सफलता नहीं मिल सकती।" [[कांग्रेस]] के बारे में उपरोक्त कथन किसका है? | {"यदि हम मेंढक की तरह वर्ष में केवल एक बार टर्रायेंगे तो भारतीयों को कोई सफलता नहीं मिल सकती।" [[कांग्रेस]] के बारे में उपरोक्त कथन किसका है? | ||
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-[[अरविन्द घोष]] | -[[अरविन्द घोष]] | ||
-[[गोपाल कृष्ण गोखले]] | -[[गोपाल कृष्ण गोखले]] | ||
||[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak-2.gif|right|100px|बाल गंगाधर तिलक]][[भारत]] के [[वाइसरॉय]] [[लॉर्ड कर्ज़न]] ने जब सन [[1905]] ई. में [[बंगाल का विभाजन]] किया, तो [[बाल गंगाधर तिलक]] ने बंगालियों द्वारा इस विभाजन को रद्द करने की मांग का ज़ोरदार समर्थन किया और ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार की वक़ालत की, जो जल्दी ही एक देशव्यापी आंदोलन बन गया। अगले वर्ष उन्होंने [[सत्याग्रह]] के कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई, जिसे 'नए दल का सिद्धांत' कहा जाता था। उन्हें उम्मीद थी कि इससे ब्रिटिश शासन का सम्मोहनकारी प्रभाव ख़त्म होगा और लोग स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु बलिदान के लिए तैयार होंगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बाल गंगाधर तिलक]] | ||[[चित्र:Lokmanya-Bal-Gangadhar-Tilak-2.gif|right|100px|बाल गंगाधर तिलक]][[भारत]] के [[वाइसरॉय]] [[लॉर्ड कर्ज़न]] ने जब सन [[1905]] ई. में [[बंगाल का विभाजन]] किया, तो [[बाल गंगाधर तिलक]] ने बंगालियों द्वारा इस विभाजन को रद्द करने की मांग का ज़ोरदार समर्थन किया और ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार की वक़ालत की, जो जल्दी ही एक देशव्यापी आंदोलन बन गया। अगले वर्ष उन्होंने [[सत्याग्रह]] के कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई, जिसे 'नए दल का सिद्धांत' कहा जाता था। उन्हें उम्मीद थी कि इससे ब्रिटिश शासन का सम्मोहनकारी प्रभाव ख़त्म होगा और लोग स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु बलिदान के लिए तैयार होंगे।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बाल गंगाधर तिलक]] | ||
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश
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