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येऽन्ये च पापास्तदपाश्रयाश्रयः–
येऽन्ये च पापास्तदपाश्रयाश्रयः–
शुध्यतिं तस्मै प्रभविष्णवे नमः। – 'भागवत', 24-18</poem></ref> नहीं गिना गए।- हज़ारीप्रसाद द्विवेदी <ref>"कबीर" लेखक- हज़ारीप्रसाद द्विवेदी</ref>{{highclose}}
शुध्यतिं तस्मै प्रभविष्णवे नमः। – 'भागवत', 24-18</poem></ref> नहीं गिना गए।- हज़ारीप्रसाद द्विवेदी <ref>"कबीर" लेखक- हज़ारीप्रसाद द्विवेदी</ref>{{highclose}}
*[[अंग]]- पूर्वी [[बिहार]]
{{महाजनपद सूची1}}
*[[मगध]]- दक्षिणी बिहार
*[[काशी]]- [[बनारस]]
*[[कोशल]]- [[अवध]]-[[लखनऊ]]
*[[वृज्जि ]]- उत्तरी बिहार
*[[मल्ल]]- [[गोरखपुर]]
*[[चेदि]]- [[बुंदेलखण्ड]]
*[[वत्स]]- [[इलाहाबाद]]
*[[कुरु]]- [[थानेश्वर]] तथा [[दिल्ली]] क्षेत्र
*[[पंचाल]]- [[बरेली]] तथा [[बदायूँ]]
*[[मत्स्य]]- [[जयपुर]]
*[[शूरसेन]]- [[मथुरा]]
*[[अश्मक]]- [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] के तट पर
*[[अवन्ती]]- [[मालवा]]
*[[गांधार]]- [[पेशावर]] क्षेत्र
*[[कम्बोज]]- [[कश्मीर]] तथा [[अफ़ग़ानिस्तान]]
 
इन राज्यों मे आपस में बराबर लड़ाई होती रहती थी। छठीं शताब्दी ई॰ पू॰ के मध्य में [[बिम्बिसार]] तथा [[अजातशत्रु]] के राज्य काल में [[मगध]] ने [[काशी]]  तथा [[कोशल]] पर अधिकार करने के बाद अपनी सीमाओं का विस्तर आरम्भ किया। इन्हीं दोनों मगध राजाओं के राज्यकाल में वर्धमान [[महावीर]] ने [[जैन धर्म]] तथा [[बुद्ध|गौतम बुद्ध]] ने [[बौद्ध धर्म]] का उपदेश दिया। बाद मे काल में मगध राज्य का विस्तार जारी रहा और चौथी शताब्दी ई॰ पू॰ के अंत में नन्द राजाओं के शासनकाल में उसका विस्तार [[बंगाल]] से लेकर [[पंजाब]] में [[व्यास नदी]] के तट तक सारे उत्तरी भारत में हो गया।
इन राज्यों मे आपस में बराबर लड़ाई होती रहती थी। छठीं शताब्दी ई॰ पू॰ के मध्य में [[बिम्बिसार]] तथा [[अजातशत्रु]] के राज्य काल में [[मगध]] ने [[काशी]]  तथा [[कोशल]] पर अधिकार करने के बाद अपनी सीमाओं का विस्तर आरम्भ किया। इन्हीं दोनों मगध राजाओं के राज्यकाल में वर्धमान [[महावीर]] ने [[जैन धर्म]] तथा [[बुद्ध|गौतम बुद्ध]] ने [[बौद्ध धर्म]] का उपदेश दिया। बाद मे काल में मगध राज्य का विस्तार जारी रहा और चौथी शताब्दी ई॰ पू॰ के अंत में नन्द राजाओं के शासनकाल में उसका विस्तार [[बंगाल]] से लेकर [[पंजाब]] में [[व्यास नदी]] के तट तक सारे उत्तरी भारत में हो गया।



12:16, 10 अगस्त 2010 का अवतरण

भारत गणराज्य
Republic of India
भारत का ध्वज भारत का कुलचिह्न
राष्ट्रवाक्य: "सत्यमेव जयते" (संस्कृत)

सत्य ही विजयी होता है

राष्ट्रगान: जन गण मन
भारत की स्थिति
भारत की स्थिति
राजधानी नई दिल्ली
28° 34′ N 77° 12′ E
सबसे बड़े नगर दिल्ली, मुम्बई
राजभाषा(एँ) हिन्दी संघ की राजभाषा है,
अंग्रेज़ी "सहायक राजभाषा" है.
अन्य भाषाएँ अन्य भाषाएँ
सरकार प्रकार
-राष्ट्रपति
-उपराष्ट्रपति
-लोकसभा अध्यक्ष
-प्रधानमंत्री
-मुख्य न्यायाधीश
गणराज्य
प्रतिभा पाटिल
हामिद अंसारी
मीरा कुमार
डॉ मनमोहन सिंह
के.जी.बालकृष्णन
विधायिका
-उपरी सदन
-निचला सदन
भारतीय संसद
राज्य सभा
लोक सभा
स्वतंत्रता
तिथि
गणराज्य
संयुक्त राजशाही से
15 अगस्त, 1947
26 जनवरी, 1950
क्षेत्रफल
 - कुल
 
 - जलीय (%)
 
32,87,590 किमी² (सातवां)
12,22,559 मील² 
9.56
जनसंख्या
 - 2005
 - 2001 जनगणना
 - जनसंख्या घनत्व
 
1,10,33,71,000 (द्वितीय)
1,02,70,15,248
329/किमी² (31वां)
852/ मील² 
सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी)
 - कुल
 - प्रतिव्यक्ति
2005 अनुमान
$3.633 महासंख चौथा
$3,320 122 वां
सकल घरेलू उत्पाद (सांकेतिक)
 - कुल
 - प्रतिव्यक्ति
2008 अनुमान
$1.209 महाशंख 
$1,016 
मानव विकास संकेतांक (एचडीआई) 0.611 (126 वीं) – मध्यम
मुद्रा भारतीय रुपया (आइएनआर (INR))
समय मण्डल
 - ग्रीष्म ऋतु (डेलाइट सेविंग टाइम)
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अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

दुनियाँ की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक हैं, जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाज़ों और परम्‍पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है। आज़ादी के बाद 62 वर्षों में भारत ने सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर देश है और औद्योगीकरण में भी विश्व के चुने हुए देशों में भी इसकी गिनती की जाती है। यह उन देशों में से एक है, जो चाँद पर पहुँच चुके हैं और परमाणु शक्ति संपन्न हैं। भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि.मी. है, जो हिमाच्‍छादित हिमालय की बुलन्दियों से दक्षिण के विषुवतीय वर्षा वनों तक विस्तृत है। क्षेत्रफल में विश्‍व का सातवां बड़ा देश होने के कारण भारत एशिया महाद्वीप में अलग दिखायी देता है। इसकी सरहदें हिमालय पर्वत और समुद्रों ने बांधी है, जो इसे एक विशिष्‍ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् हिमालय की पर्वत श्रृंखला से घिरा यह देश कर्क रेखा से आगे संकरा होता चला जाता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्‍द महासागर इसकी सीमाओं का निर्धारण करते हैं।
उत्‍तरी गोलार्ध में स्थित भारत की मुख्‍यभूमि 8 डिग्री 4 मिनट और 37 डिग्री 6 मिनट उत्‍तरी अक्षांश और 68 डिग्री 7 मिनट तथा 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशान्‍तर के बीच स्थित है । उत्‍तर से दक्षिण तक इसकी अधिकतम लंबाई 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2,933 कि.मी. है। इसकी ज़मीनी सीमाओं की लंबाई लगभग 15,200 कि.मी. और तटरेखा की कुल लम्‍बाई 7,516.6 कि.मी है। यह उत्‍तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिंद महासागर से घिरा हुआ है।

भारत एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित तीन प्रायद्वीपों में मध्यवर्ती और सबसे बड़ा प्रायद्वीप । यह त्रिभुजाकार है। हिमालय पर्वत श्रृंखला को इस त्रिभुज का आधार और कन्याकुमारी को उसका शीर्षबिन्दु कहा जा सकता है। इसके उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में हिन्द महासागर स्थित है। ऊँचे-ऊँचे पर्वतों ने इसे उत्तर-पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान तथा उत्तर-पूर्व में म्यांमार से अलग कर दिया है। यह स्वतंत्र भौगोलिक इकाई है। प्राकृतिक दृष्टि से इसे तीन क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है—हिमालय क्षेत्र, उत्तर का मैदान जिससे होकर सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ बहती हैं, दक्षिण का पठार, जिसे विंध्य पर्वतमाला उत्तर के मैदान से अलग करती है। भारत की विशाल जनसंख्या सात सौ पचास से अधिक [1] बोलियाँ बोलती है और संसार के सभी मुख्य धर्मों को मानने वाले यहाँ मिलते हैं। अंग्रेज़ी में भारत का नाम 'इंडिया' सिंधु के फ़ारसी रूपांतरण के आधार पर यूनानियों के द्वारा प्रचलित 'हंडस' नाम से पड़ा। सिन्धु का फ़ारसी में हिन्द, हन्द या हिन्दू हुआ। हिन्द का यूनानियों ने इन्दस किया जो बाद में 'इंडिया' हो गया। सिन्धु नदी को अंगेज़ी में आज भी 'इन्डस' ही कहते हैं। मूल रूप से इस देश का नाम प्रागैतिहासिक काल के राजा भरत[2] के आधार पर भारतवर्ष है किन्तु अधिकारिक नाम 'भारत' ही है। अब इसका क्षेत्रफल संकुचित हो गया है और इस प्रायद्वीप के दो छोटे-छोटे क्षेत्रों पाकिस्तान तथा बांग्लादेश को इससे पृथक करके शेष भू-भाग को भारत कहते हैं। 'हिन्दुस्थान' नाम सही तौर से केवल गंगा के उत्तरी मैदान के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है जहाँ हिन्दी बोली जाती है। इसे भारत अथवा इंडिया का पर्याय नहीं माना जा सकता।


हर दशा में दूसरे सम्प्रदायों का आदर करना ही चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य अपने सम्प्रदाय की उन्नति और दूसरे सम्प्रदायों का उपकार करता है। इसके विपरीत जो करता है वह अपने सम्प्रदाय की (जड़) काटता है और दूसरे सम्प्रदायों का भी अपकार करता है। क्योंकि जो अपने सम्प्रदाय की भक्ति में आकर इस विचार से कि मेरे सम्प्रदाय का गौरव बढ़े, अपने सम्प्रदाय की प्रशंसा करता है और दूसरे सम्प्रदाय की निन्दा करता है, वह ऐसा करके वास्तव में अपने सम्प्रदाय को ही गहरी हानि पहुँचाता है। इसलिए समवाय (परस्पर मेलजोल से रहना) ही अच्छा है अर्थात् लोग एक-दूसरे के धर्म को ध्यान देकर सुनें और उसकी सेवा करें। - सम्राट अशोक महान[3] |}

भारत की आधारभूत एकता उसकी विशिष्ट संस्कृति तथा सभ्यता पर आधारित है। यह इस बात से प्रकट है कि हिन्दू धर्म सारे देश में फैला हुआ है। संस्कृत को सब देवभाषा स्वीकार करते हैं। जिन सात नदियों को पवित्र माना जाता है उनमें सिंधु पंजाब में बहती है और कावेरी दक्षिण में, इसी प्रकार जिन सात पुरियों को पवित्र माना जाता है उनमें हरिद्वार उत्तर प्रदेश में स्थित है और कांची सुदूर दक्षिण में। भारत के सभी राजाओं की आकांक्षा रही है कि उनके राज्य का विस्तार आसेतु हिमालय हो। परन्तु इतने बड़े देश को जो वास्तव में एक उपमहाद्वीप है और क्षेत्रफल में पश्चिमी रूस को छोड़कर सारे यूरोप के बराबर है, एक राजनीतिक इकाई बनाये रखना अत्यन्त कठिन था। वास्तव में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश शासकों की स्थापना से पूर्व सारा देश बहुत थोड़े काल को छोड़कर, कभी एक साम्राज्य के अंतर्गत नहीं रहा। ब्रिटिश काल में सारे देश में एक समान शासन व्यवस्था करके तथा अंग्रेजों को सारे देश में प्रशासन और शिक्षा की समान भाषा बनाकर पूरे देश को एक राजनीतिक इकाई बना दिया गया। परन्तु यह एकता एक शताब्दी के अन्दर ही भंग हो गयी। 1947 ई॰ में जब भारत स्वाधीन हुआ, उसे विभाजित करके सिंधु, उत्तर पश्चिमी सीमाप्रान्त, पश्चिमी पंजाब (यह भाग अब पाकिस्तान कहलाता है), पूर्वी तथा उत्तरी बंगाल (यह भाग अब बांगलादेश कहलाता है) उससे अलग कर दिया गया।

भौतिक विशेषताएँ

मुख्‍य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, गंगा और सिंधु नदी के मैदानी क्षेत्र और मरूस्‍थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।

हिमालय की तीन श्रृंखलाएँ हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े - बड़े पठार और घाटियाँ हैं, इनमें कश्‍मीर और कुल्‍लू जैसी कुछ घाटियाँ उपजाऊ, विस्‍तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्‍हीं पर्वत श्रृंखलाओं में हैं। अधिक ऊंचाई के कारण आना -जाना केवल कुछ ही दर्रों से हो पाता है, जिनमें मुख्‍य हैं -

  • चुंबी घाटी से होते हुए मुख्‍य भारत-तिब्‍बत व्‍यापार मार्ग पर जेलप ला और नाथू-ला दर्रे
  • उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग
  • कल्‍पना (किन्‍नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा

पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 कि.मी. से 320 कि.मी. तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा म्‍यांमार और भारत एवं बंगलादेश के बीच में पहाड़ी श्रृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियाँ उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडियों की श्रृंखला से जा मिलती हैं।

मरुस्‍थली क्षेत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है बड़ा मरुस्‍थल कच्‍छ के रण की सीमा से लुनी नदी के उत्‍तरी ओर आगे तक फैला हुआ है। राजस्थान सिंध की पूरी सीमा इससे होकर गुजरती है। छोटा मरुस्‍थल लुनी से जैसलमेर और जोधपुर के बीच उत्‍तरी भूभाग तक फैला हुआ बड़े और छोटे मरुस्‍थल के बीच का क्षेत्र बिल्‍कुल ही बंजर है जिसमें चूने के पत्‍थर की पर्वत माला द्वारा पृथक किया हुआ पथरीला भूभाग है।

पर्वत समूह और पहाड़ी श्रृंखलाएँ जिनकी ऊँचाई 460 से 1,220 मीटर है, प्रायद्वीपीय पठार को गंगा और सिंधु के मैदानी क्षेत्रों से अलग करती हैं। इनमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्‍य, सतपुड़ा, मैकाला और अजन्‍ता। इस प्रायद्वीप की एक ओर पूर्व घाट दूसरी ओर पश्चिमी घाट है जिनकी ऊँचाई सामान्‍यत: 915 से 1,220 मीटर है, कुछ स्‍थानों में 2,440 मीटर से अधिक ऊँचाई है। पश्चिमी घाटों और अरब सागर के बीच एक संकीर्ण तटवर्ती पट्टी है जबकि पूर्व घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच का विस्‍तृत तटवर्ती क्षेत्र है। पठार का दक्षिणी भाग नीलगिरी पहाड़ियों द्वारा निर्मित है जहाँ पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके आगे इलायची की पहाडियाँ पश्चिमी घाट के विस्‍तारण के रुप में मानी जा सकती हैं।

भूगर्भीय संरचना

भू‍वैज्ञानिक क्षेत्र व्‍यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्‍हें तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:

  • हिमाचल पर्वत श्रृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह
  • भारत-गंगा मैदान क्षेत्र
  • प्रायद्वीपीय ओट

उत्‍तर में हिमाचलय पर्वत क्षेत्र और पूर्व में नागालुशाई पर्वत, पर्वत निर्माण गतिविधि के क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग जो वर्तमान समय में विश्‍व का सार्वधिक सुंदर पर्वत दृश्‍य प्रस्‍तुत करता है, 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्री क्षेत्र में था। 7 करोड़ वर्ष पहले शुरु हुए पर्वत-निर्माण गतिविधियों की श्रृंखला में तलछटें और आधार चट्टानें काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गई। आज हम जो इन पर उभार देखते हैं, उनको उत्‍पन्‍न करने में अपक्षय और अपरदक ने कार्य किया। भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र एक जलोढ़ भूभाग हैं जो दक्षिण के प्रायद्वीप से उत्‍तर में हिमाचल को अलग करते हैं।

प्रायद्वीप सापेक्ष स्थिरता और कभी-कभार भूकंपीय परेशानियों का क्षेत्र है। 380 करोड़ वर्ष पहले के प्रारंभिक काल की अत्‍याधिक कायांतरित चट्टानें इस क्षेत्र में पायी जाती हैं, बाक़ी क्षेत्र गोंदवाना के तटवर्ती क्षेत्र से घिरा है, दक्षिण में सीढ़ीदार रचना और छोटी तलछटें लावा के प्रवाह से निर्मित हैं।

नदियाँ

भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-

  • हिमाचल से निकलने वाली नदियाँ
  • दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
  • तटवर्ती नदियाँ
  • अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्‍लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्‍तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्‍थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्‍थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ्‍ नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी प्रकृति की हैं।

हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्‍य प्रणाली सिंधु और गंगा ब्रहमपुत्र मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।

सिंधु नदी

विश्‍व की महान, नदियों में एक है, तिब्‍बत में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्‍पश्‍चात् पाकिस्‍तान से हो कर और अंतत: कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में सतलुज (तिब्‍बत से निकलती है), व्‍यास, रावी, चेनाब, और झेलम है।

गंगा

ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्‍तरांचल, उत्‍तर प्रदेश, बिहार और प.बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी,जो पुराने समय में मुख्‍य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और बांग्‍लादेश में प्रवेश करती है।

सहायक नदियाँ

यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी, और सोन; गंगा की महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्‍वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रुप में बहती रहती है।

ब्रह्मपुत्र

ब्रह्मपुत्र तिब्‍बत से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में अरुणाचल प्रदेश तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है और यह संयुक्‍त नदी पूरे असम से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में बांग्‍लादेश में प्रवेश करती है।

सहायक नदियाँ

भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्‍लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्‍त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्‍य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्‍कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्‍वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्‍लादेश में भैरव बाजार के निकट गंगा-‍ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है।

दक्‍कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्‍यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।

गोदावरी, कृष्‍णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्‍ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी का दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्‍णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्‍थान है जबकि महानदी का तीसरा स्‍थान है। डेक्‍कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्‍तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।

कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्‍टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है।

राजस्‍थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्‍त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्‍त कुछ मरुस्‍थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्‍थल में लुप्‍त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्‍छ, स्‍पेन, सरस्‍वती, बानस और घग्‍गर जैसी अन्‍य नदियाँ हैं।

भारत की प्रमुख नदियाँ

क्रम नदी लम्बाई (कि.मी.) उद्गम स्थान सहायक नदियाँ प्रवाह क्षेत्र (सम्बन्धित राज्य)
1 सिन्धु नदी 2,880 (709) मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत) सतलुज, व्यास, झेलम, चिनाब, रावी, शिंगार, गिलगित, श्योक जम्मू और कश्मीर, लेह
2 झेलम नदी 720 शेषनाग झील, जम्मू-कश्मीर किशन, गंगा, पुँछ, लिदार, करेवाल, सिंध जम्मू-कश्मीर, कश्मीर
3 चिनाब नदी 1,180 बारालाचा दर्रे के निकट चन्द्रभागा जम्मू-कश्मीर
4 रावी नदी 725 रोहतांग दर्रा, कांगड़ा साहो, सुइल हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब
5 सतलुज नदी 1440 (1050) मानसरोवर के निकट राकसताल व्यास, स्पिती, बस्पा हिमाचल प्रदेश, पंजाब
6 व्यास नदी 470 रोहतांग दर्रा तीर्थन, पार्वती, हुरला हिमाचल प्रदेश
7 गंगा नदी 2,510 (2071) गंगोत्री के निकट गोमुख से यमुना, रामगंगा, गोमती, बागमती, गंडक, कोसी, सोन, अलकनंदा, भागीरथी, पिण्डार, मंदाकिनी उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल
8 यमुना नदी 1375 यमुनोत्री ग्लेशियर चम्बल, बेतवा, केन, टोंस, गिरी, काली, सिंध, आसन उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली
9 रामगंगा नदी 690 नैनीताल के निकट एक हिमनदी से खोन उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश
10 घाघरा नदी 1,080 मप्सातुंग (नेपाल) हिमनद शारदा, करनली, कुवाना, राप्ती, चौकिया उत्तर प्रदेश, बिहार
11 गंडक नदी 425 नेपाल तिब्बत सीमा पर मुस्ताग के निकट काली, गंडक, त्रिशूल, गंगा बिहार
12 कोसी नदी 730 नेपाल में सप्तकोशिकी (गोंसाईधाम) इन्द्रावती, तामुर, अरुण, कोसी सिक्किम, बिहार
13 चम्बल नदी 960 मऊ के निकट जानापाव पहाड़ी से काली, सिंध, सिप्ता, पार्वती, बनास मध्य प्रदेश
14 बेतवा नदी 480 भोपाल के पास उबेदुल्ला गंज के पास मध्य प्रदेश
15 सोन नदी 770 अमरकंटक की पहाड़ियों से रिहन्द, कुनहड़ मध्य प्रदेश, बिहार
16 दामोदर नदी 600 छोटा नागपुर पठार से दक्षिण पूर्व कोनार, जामुनिया, बराकर झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
17 ब्रह्मपुत्र नदी 2,880 मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत में सांग्पो) घनसिरी, कपिली, सुवनसिती, मानस, लोहित, नोवा, पद्मा, दिहांग अरुणाचल प्रदेश, असम
18 महानदी 890 सिहावा के निकट रायपुर सियोनाथ, हसदेव, उंग, ईब, ब्राह्मणी, वैतरणी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा
19 वैतरणी नदी 333 क्योंझर पठार उड़ीसा
20 स्वर्ण रेखा 480 छोटा नागपुर पठार उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
21 गोदावरी नदी 1,450 नासिक की पहाड़ियों से प्राणहिता, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, इन्द्रावती, मंजीरा, पुरना महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
22 कृष्णा नदी 1,290 महाबलेश्वर के निकट कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगप्रभा, मूसी महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
23 कावेरी नदी 760 केरकारा के निकट ब्रह्मगिरी हेमावती, लोकपावना, शिमला, भवानी, अमरावती, स्वर्णवती कर्नाटक, तमिलनाडु
24 नर्मदा नदी 1,312 अमरकंटक चोटी तवा, शेर, शक्कर, दूधी, बर्ना मध्य प्रदेश, गुजरात
25 ताप्ती नदी 724 मुल्ताई से (बेतूल) पूरणा, बेतूल, गंजल, गोमई मध्य प्रदेश, गुजरात
26 साबरमती 716 जयसमंद झील (उदयपुर) वाकल, हाथमती राजस्थान, गुजरात
27 लूनी नदी नाग पहाड़ सुकड़ी, जनाई, बांडी राजस्थान, गुजरात, मिरूडी, जोजरी
28 बनास नदी खमनौर पहाड़ियों से सोड्रा, मौसी, खारी कर्नाटक, तमिलनाडु
29 माही नदी मेहद झील से सोम, जोखम, अनास, सोरन मध्य प्रदेश, गुजरात
30 हुगली नदी नवद्वीप के निकट जलांगी
31 उत्तरी पेन्नार 570 नंदी दुर्ग पहाड़ी पाआधनी, चित्रावती, सागीलेरू
32 तुंगभद्रा नदी पश्चिमी घाट में गोमन्तक चोटी कुमुदवती, वर्धा, हगरी, हिंद, तुंगा, भद्रा
33 मयूसा नदी आसोनोरा के निकट मेदेई
34 साबरी नदी 418 सुईकरम पहाड़ी सिलेरु
35 इन्द्रावती नदी 531 कालाहाण्डी, उड़ीसा नारंगी, कोटरी
36 क्षिप्रा नदी काकरी बरडी पहाड़ी, इंदौर चम्बल नदी
37 शारदा नदी 602 मिलाम हिमनद, हिमालय, कुमायूँ घाघरा नदी
38 तवा नदी महादेव पर्वत, पंचमढ़ी नर्मदा नदी
39 हसदो नदी सरगुजा में कैमूर पहाड़ियाँ महानदी
40 काली सिंध नदी 416 बागलो, ज़िला देवास, विंध्याचल पर्वत यमुना नदी
41 सिन्ध नदी सिरोज, गुना ज़िला चम्बल नदी
42 केन नदी विंध्याचल श्रेणी यमुना नदी
43 पार्वती नदी विंध्याचल, मध्य प्रदेश चम्बल नदी
44 घग्घर नदी कालका, हिमाचल प्रदेश
45 बाणगंगा नदी 494 बैराठ पहाड़ियाँ, जयपुर यमुना नदी
46 सोम नदी बीछा मेंड़ा, उदयपुर जोखम, गोमती, सारनी
47 आयड़ या बेडच नदी 190 गोमुण्डा पहाड़ी, उदयपुर बनास नदी
48 दक्षिण पिनाकिन 400 चेन्ना केशव पहाड़ी, कर्नाटक
49 दक्षिणी टोंस 265 तमसा कुंड, कैमूर पहाड़ी
50 दामन गंगा नदी पश्चिम घाट
51 गिरना नदी पश्चिम घाट, नासिक

राज्यों का गठन एक झलक

क्रम राज्य का नाम पूर्ण राज्य के रूप में राज्य के नाम का अर्थ, उद्भव, परिचय
1 तमिलनाडु 14 जनवरी, 1969 तमिलभाषी प्रदेश
2 केरल 1 नवम्बर, 1956 1-'केरा' अर्थात 'नारियल के वृक्षों की भूमि' 2-केरल शब्द की उत्पत्ति 'केरलम' से भी मानी जाती है जो 'चेरलम' का अपभ्रंश है। यहाँ चेर का आशय 'पाना या जोड़ना' होता है। इस तरह चेरलम का आशय हो गया- 'वह भूमि जो समुद्र से प्राप्त होकर जोड़ी गयी हो।'
3 आन्ध्र प्रदेश 1-1अक्टूबर, 1953 को नये 'आन्ध्र प्रदेश' का गठन हुआ।, 2-वर्तमान आन्ध्र प्रदेश(तेलांगाना+हैदराबाद) जिसकी राजधानी हैदराबाद थी, 1 नवम्बर, 1956 को अस्तित्व में आया। आन्ध्रों का देश
4 कर्नाटक 1956 में मैसूर के नाम से राज्य का गठन हुआ जिसे बाद में 1 नवम्बर, 1973 को कर्नाटक के नाम से नामान्तरित किया गया। कुरूनाडु शब्द से कर्नाटक की उत्पत्ति मानी जाती है जिसका अर्थ होता है- 'भव्य, उच्च भूमि'।
5 उड़ीसा 19 अगस्त, 1949 उड़िया लोगों की भूमि
6 महाराष्ट्र 1 मई, 1960 महा तथा राष्ट्र से महाराष्ट्र बना है। इसका आशय है- 'गौरवशाली या श्रेष्ठ अतीत वाला
7 गोवा 30 मई, 1987
8 छत्तीसगढ़ 1 नवम्बर, 2000 छत्तीस गढ़ों या क़िलों का प्रदेश
9 मध्य प्रदेश 1 नवम्बर, 1956 देश का मध्य भाग
10 गुजरात 1 मई, 1960 गुर्जरों का प्रदेश
11 राजस्थान 1 नवम्बर 1956 राजस्थान का शाब्दिक आशय 'राजाओं के स्थान' से है। उल्लेखनीय है इतिहास के अनुसार राजस्थान राजपूत राजाओं का प्रदेश था।
12 उत्तर प्रदेश 26 जनवरी, 1950 1- उत्तर में स्थित प्रदेश, 2- उत्तरी क्षेत्रों का बौद्धिक नेतृत्व करने वाला प्रदेश
13 बिहार सन 1936 में पृथक राज्य बना, 1956 के पुनर्गठन विधेयक द्वारा बिहार को वर्तमान स्वरूप मिला। बिहार की उत्पत्ति 'विहार' से मानी गयी है। यह नाम यहाँ पर अवस्थित असंख्य बौद्ध विहारों के कारण पड़ा माना जाता है।
14 झारखण्ड 15 नवम्बर 2000 झाड़ और खण्ड के मिलने से बने झारखण्ड का आशय ऐसे प्रदेश से है जहाँ झाड़ियों की बहुलता हो।
15 पश्चिम बंगाल राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के द्वारा यह वर्तमान स्वरूप में अस्तित्व में आया। बंगाल की उत्पत्ति 'बंग' शब्द से मानी जाती है तथा पश्चिम शब्द क्षेत्रगत अवस्थिति की ओर संकेत करते हैं।
16 उत्तराखंड 1- 9 नवम्बर 2000, 2- उत्तरांचल को 1 जनवरी 2007 से उत्तराखंड किया गया। उत्तरांचल का आशय 'उत्तर का अंचल' या क्षेत्र है।
17 हरियाणा 1 नवम्बर 1966 हरियाली युक्त प्रदेश
18 पंजाब 1 नवम्बर, 1956 'पंच'(पांच) और आब(पानी) नामक दो फ़ारसी शब्दों से पंजाब बना है। पंजाब का अर्थ है 'पांच नदियों का प्रदेश'
19 हिमाचल प्रदेश 25 जनवरी, 1971 हिम(बर्फ) तथा अचल(पहाड़) से हिमाचल बना है। इसका आशय हुआ 'बर्फ़ से ढका पहाड़ वाला प्रदेश'।
20 जम्मू और कश्मीर 26 अक्टूबर, 1947 1- कश्यप ॠषि का प्रदेश, 2- केसर भूमि
21 असम पुनर्गठन अधिनियम, 1956 1- अद्वितीय, 2- उबड़-खाबड़(समान नहीं) भूमि का प्रदेश
22 मणिपुर 21 जनवरी, 1972 मणियों का नगर
23 मेघालय 2 अप्रॅल 1970 को स्वायत्तशासी राज्य के रूप में तथा 21 जनवरी, 1972 को पूर्ण राज्य के रूप गठित। मेघ+आलय= बादलों का घर।
24 त्रिपुरा 21 जनवरी, 1972 त्रिपुर शासक द्वारा बसाया गया क्षेत्र।
25 मिज़ोरम फ़रवरी, 1987 मिज़ोरम का आशय है 'पहाड़वासियों की भूमि'।
26 अरुणाचल प्रदेश 20 फ़रवरी, 1987 सूर्योदय का प्रदेश
27 नागालैंड 1961 में इसे राज्य का दर्जा दिया गया लेकिन 1 दिसम्बर, 1963 को इसे विधिवत पूर्ण राज्य घोषित किया गया। नागाओं की भूमि।
28 सिक्किम 26 अप्रॅल, 1975 'लिम्बू भाषा' के सिक्किम का अर्थ होता है 'नया महल'। प्रदेश के अद्वितीय प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण इसे स्वर्ग भी कहा जाता है।

कृषि

महत्त्वपूर्ण फ़सलों के तीन सबसे बड़े उत्पादक राज्य, 2007-08
फ़सल/फ़सल समूह राज्य उत्पादन (मिलियन टन) देश के कुल उत्पादन का प्रतिशत
खाद्यान्न
चावल पश्चिम बंगाल 14.72 15.22
आंध्र प्रदेश 13.32 13.78
उत्तर प्रदेश 11.78 12.18
गेहूँ उत्तर प्रदेश 25.68 32.68
पंजाब 15.72 20.01
हरियाणा 10.24 13.03
मक्का आंध्र प्रदेश 3.62 19.09
कर्नाटक 3.25 17.14
राजस्थान 1.96 10.34
मोटे अनाज राजस्थान 7.12 17.47
महाराष्ट्र 7.09 17.4
कर्नाटक 6.94 17.03
दालें महाराष्ट्र 3.02 20.46
मध्य प्रदेश 2.45 16.6
आंध्र प्रदेश 1.7 11.52
खाद्यान्न उत्तर प्रदेश 42.09 18.24
पंजाब 26.82 11.62
आंध्र प्रदेश 19.3 8.36
तिलहन
मूंगफली गुजरात 3.3 35.95
आंध्र प्रदेश 2.6 28.32
तमिलनाडु 1.05 11.44
रेपसीड व सरसों राजस्थान 2.36 40.48
उत्तर प्रदेश 1 17.15
हरियाणा 0.6 10.29
सोयाबीन मध्य प्रदेश 5.48 49.95
महाराष्ट्र 3.98 36.28
राजस्थान 1.07 9.75
सूरजमुखी कर्नाटक 0.59 40.41
आंध्र प्रदेश 0.44 30.14
महाराष्ट्र 0.2 13.7
तिलहन मध्य प्रदेश 6.35 21.34
महाराष्ट्र 4.87 16.36
गुजरात 4.73 15.89
नकदी फ़सलें
गन्ना उत्तर प्रदेश 124.67 35.81
महाराष्ट्र 88.44 25.4
तमिलनाडु 38.07 10.93
कपास[4] गुजरात 8.28 31.99
महाराष्ट्र 7.02 27.13
आंध्र प्रदेश 3.49 13.49
जूट व मेस्ता[5] पश्चिम बंगाल 8.29 73.95
बिहार 1.46 13.02
असम 0.68 6.07
आलू उत्तर प्रदेश 9.99 41.77
पश्चिम बंगाल 7.46 31.21
बिहार 1.23 5.16
प्याज़ महाराष्ट्र 2.47 28.44
गुजरात 2.13 24.52
कर्नाटक 0.87 10.02

खनिज संपदा

देश के महत्त्वपूर्ण खनिज
खनिज अनुमानित भण्डार प्राप्ति के क्षेत्र विशेष बिन्दु
लौह खनिज 13 अरब टन उड़ीसा: सोनाई, क्योंझर, मयूरभंज · झारखण्ड: सिंहभूम, हज़ारीबाग़ पलामू · छत्तीसगढ़: बस्तर, दुर्ग, रायपुर, रायगढ़ · मध्य प्रदेश: जबलपुर, बिलासपुर, बालाघाट, छिन्दबाड़ा · आन्ध्र प्रदेश: कुडप्पा, कृष्णा, कुरनूल, गुंटूर, वारंगल, चित्तूर · कर्नाटक: बेलारी, चिकमंगलूर, चीतल दुर्ग · महाराष्ट्र: सलेम, तिरुचिरापल्ली · गोवा देश में विश्व का सर्वाधिक अनुमानित भण्डार[6] झारखण्ड तथा उड़ीसा राज्यों से देश का लगभग 75% लोहा प्राप्त किया जाता है।
मैंगनीज़ 16.7 करोड़ टन झारखण्ड: सिंहभूम · कर्नाटक: चीतलदुर्ग, तुमकुर, शिमोगा, किंमगलूर, उत्तरी कनारा, धारवाड़, बेलगाँव · आन्ध्र प्रदेश: विशाखापट्टनम · गुजरात पंचमहल· राजस्थान: उदयपुर तथा बाँसवाड़ा · मध्य प्रदेश: बालाघाट, छिन्दवाड़ा, सिवनी, जबलपुर · उड़ीसा: क्योंझर, कालाहांडी, तलचर, मयूरभंज · महाराष्ट्र: नागपुर, भण्डारा तथा रत्नागिरी मैंगनीज़ उत्पादन में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है। उड़ीसा देश का सर्वाधिक मैंगनीज़ उत्पादन करने वाला राज्य है।
अभ्रक 1.09 लाख टन बिहार: अभ्रक पेटी का विस्तार गया तथा मुंगेर ज़िलों में · झारखण्ड: हज़ारीबाग़ में · राजस्थान: अभ्रक पेटी का विस्तार अजमेर, शाहपुरा, टींका, भीलवाड़ा, जयपुर में · आन्ध्र प्रदेश: नेल्लोर भारत में विश्व का सर्वाधिक अभ्रक है तथा यहाँ पर से विश्व उत्पादन का लगभग दो तिहाई अभ्रक प्राप्त किया जाता है।
बॉक्साइट 303.7 करोड़ टन झारखण्ड: पलामू · गुजरात: खेड़ा · मध्य प्रदेश: कटनी, बालाघाट, बिलासपुर, बस्तर तथा जबलपुर · तमिलनाडु: सलेम · कर्नाटक: चीतलदुर्ग तथा बेलगाँव · महाराष्ट्र: कोल्हापुर · जम्मू कश्मीर: कोटली बाक्साइट से एल्युमीनियम धातु की प्राप्ति होती है। भारत का विश्व में बाक्साइट उत्पादन में तीसरा स्थान है।
ताँबा 67.41 करोड़ टन झारखण्ड: सिंहभूम, हज़ारीबाग़ · राजस्थान: खेतडी, झुंझुनू, भीलवाड़ा, अलवर, सिरोही · कर्नाटक: चीतलदुर्ग, हासन, रायचूर तथा चिकमंगलूर ·आन्ध्र प्रदेश: गुण्टूर, खम्माम तथा अग्रिगुण्डल · गुजरात: बनांसकाठा · मध्य प्रदेश: बालाघाट · देश में ताँबे की कुछ मात्रा पंजाब, उत्तर प्रदेश, सिक्किम तथा तमिलनाडु से भी प्राप्त होती है।
देश में ताँबा बहुत ही कम मात्रा में भण्डारित है। देश का लगभग ताँबा बिहार के सिंहभूम तथा हज़ारीबाग़ ज़िलों एवं राजस्थान की खेतड़ी खानों से प्राप्त किया जाता है।
सोना 176.9 लाख टन कर्नाटक [7]
मैग्रेसाइट 24.50 करोड़ टन कर्नाटक: मैसूर तथा हासन · उत्तराखण्ड: अल्मोड़ा, चमोली तथा पिथोरागढ़ · तमिलनाडु: सलेम
कोयला 2,0624 खरब टन झारखण्ड तथा बंगाल: रानीगंज, झरिया, गिरिडीह, बोकारो तथा करनपुरा · मध्य प्रदेश: सिंगरौली · छत्तीसगढ़: रायगढ़, सोनहट, सोहागपुर तथा उमरिया · उड़ीसा: देसगढ़, तलचर · महाराष्ट्र: चांदा ज़िला · असम: माकूम तथा लखीमपुर · आन्ध्र प्रदेश: सिंगरेनी · बहुत थोड़ी मात्रा में कोयला अरुणाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, मेघालय तथा नागालैण्ड से भी प्राप्त किया जाता है।
लिग्नाइट 260 करोड़ टन तमिलनाडु: नेबेली क्षेत्र · राजस्थान: पल्लू क्षेत्र · जम्मू कश्मीर: रियासी क्षेत्र · गुजरात तथा पाण्डिचेरी: लिग्नाइट के कुछ भण्डार मिलते हैं। देश में लिग्नाइट का सर्वाधिक भण्डार[8] केवल तमिलनाडु राज्य में ही है।
खनिज तेल 620 करोड़ टन इसकी प्राप्ति के प्रमुख क्षेत्र असम की ब्रह्मपुत्र घाटी तथा गुजरात राज्य में स्थित हैं। इनके अतिरिक्त त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, कच्छ क्षेत्र, आन्ध्र प्रदेश आदि में भी खनिज तेल का पता लगा है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र तथा गुजरात के अपतटीय क्षेत्र में भी तेल भण्डार स्थित हैं।

राष्ट्रीय चिन्ह और प्रतीक

तिरंगा अशोक चिन्ह जन गण मन आम कमल बाघ गंगा गंगा डॉल्फ़िन मोर वन्देमातरम हॉकी बरगद

इतिहास (आदिकाल से स्वतंत्रता तक)

भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। 3000 ई॰ पूर्व तथा 1500 ई॰ पूर्व के बीच सिंधु घाटी में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष मोहन जोदड़ो (मुअन-जो-दाड़ो) और हड़प्पा में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में आर्यों का प्रवेश बाद में हुआ। आर्यों ने पाया कि इस देश में उनसे पूर्व के जो लोग निवास कर रहे थे, उनकी सभ्यता यदि उनसे श्रेष्ठ नहीं तो किसी रीति से निकृष्ट भी नहीं थी। आर्यों से पूर्व के लोगों में सबसे बड़ा वर्ग द्रविड़ों का था। आर्यों द्वारा वे क्रमिक रीति से उत्तर से दक्षिण की ओर खदेड़ दिये गए। जहाँ दीर्घ काल तक उनका प्रधान्य रहा। बाद में उन्होंने आर्यों का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। उनसे विवाह सम्बन्ध स्थापित कर लिये और अब वे महान् भारतीय राष्ट्र के अंग हैं। द्रविड़ों के अलावा देश में और मूल जातियाँ थी, जिनमें से कुछ का प्रतिनिधित्व मुण्डा, कोल, भील आदि जनजातियाँ करती हैं जो मोन-ख्मेर वर्ग की भाषाएँ बोलती हैं। भारतीय आर्यों का प्राचीनतम साहित्य हमें वेदों में विशेष रूप से ऋग्वेद में मिलता है, जिसका रचनाकाल कुछ विद्वान् तीन हज़ार ई॰ पू॰ मानते हैं। वेदों में हमें उस काल की सभ्यता की एक झाँकी मिलती है। आर्यों ने इस देश को कोई राजनीतिक एकता प्रदान नहीं की। यद्यपि उन्होंने उसे एक पुष्ट दर्शन और धर्म प्रदान किया, जो हिन्दू धर्म के नाम से प्रख्यात है और कम से कम चार हज़ार वर्ष से अक्षुण्ण है।

आर्यों के आदि स्थल हड़प्पाकालीन नदियों के किनारे बसे नगर विभिन्न विद्वानों द्वारा सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण
आदि (मूल) स्थान मत नगर नदी / सागर तट काल विद्वान
सप्तसैंधव क्षेत्र डॉ. अविनाश चंद्र, डॉ. संपूर्णानन्द
ब्रह्मर्षि देश पं. गंगानाथ झा
मध्य प्रदेश डॉ. राजबली पाण्डेय
कश्मीर एल. डी. कल्ल
देविका प्रदेश (मुल्तान) डी. एस. त्रिवेदी
उत्तरी ध्रुव प्रदेश बाल गंगाधर तिलक
हंगरी (यूरोप) (डेन्यूब नदी की घाटी) पी. गाइल्स
दक्षिणी रूस नेहरिंग गार्डन चाइल्ड्स
जर्मनी पेन्का
यूरोप फिलिप्पो सेस्सेटी, सर विलियम जोन्स
पामीर एवं बैक्ट्रिया एडवर्ड मेयर एवं ओल्डेन वर्ग जे. जी. रोड
मध्य एशिया मैक्समूलर
तिब्बत दयानन्द सरस्वती
हिमालय (मानस) के. के. शर्मा
मोहनजोदड़ो सिंधु नदी
हड़प्पा रावी नदी
रोपड़ सतलुज नदी
कालीबंगा घग्घर नदी
लोथल भोगवा नदी
सुत्कागेनडोर दाश्त नदी
वालाकोट अरब सागर
सोत्काकोह अरब सागर
आलमगीरपुर हिन्डन नदी
रंगपुर मदर नदी
कोटदीजी सिंधु नदी
3500 - 2700 ई.पू. माधोस्वरूप वत्स
3250 - 2750 ई.पू. जॉन मार्शल
2900 ई.पू. - 1900 ई.पू. डेल्स
2800 - 2500 ई.पू. अर्नेस्ट मैके
2500 - 1500 ई.पू. मार्टिमर ह्वीलर
2350 - 1700 ई.पू. सी. जे. गैड
2300 ई.पू. - 1750 ई.पू. डी. पी. अग्रवाल
2000 - 1500 ई.पू. फेयर सर्विस

महाजनपद युग

प्राचीन भारतीयों ने कोई तिथि क्रमानुसार इतिहास नहीं सुरक्षित रखा है। सबसे प्राचीन सुनिश्चित तिथि जो हमें ज्ञात है, 326 ई॰ पू॰ है, जब मक़दूनिया के राजा सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया। इस तिथि से पहले की घटनाओं का तारतम्य जोड़ कर तथा साहित्य में सुरक्षित ऐतिहासिक अनुश्रुतियों का उपयोग करके भारत का इतिहास सातवीं शताब्दी ई॰ पू॰ तक पहुँच जाता है। इस काल में भारत क़ाबुल की घाटी से लेकर गोदावरी तक षोडश जनपदों में विभाजित था, जिनके नाम निम्नोक्त थेः-


भारतवर्ष कोई नया देश नहीं है। बड़े–बड़े साम्राज्य उसकी धूल में दबे हुए हैं, बड़ी–बड़ी धार्मिक घोषणाएँ उसके वायुमण्डल में निनादित हो चुकी हैं। बड़ी–बड़ी सभ्यताएँ उसके प्रत्येक कोने में उत्पन्न और विलीन हो चुकी हैं। उनके स्मृति चिह्न अब भी इस प्रकार निर्जीव होकर खड़े हैं मानों अट्टाहस करती हुई विजयलक्ष्मी को बिजली मार गई हो। अनादिकाल में उसमें अनेक जातियों, कबीलों, नस्लों और घुमक्कड़ ख़ानाबदोशों के झुण्ड इस देश में आते रहे हैं। कुछ देर के लिए इन्होंने देश के वातावरण को विक्षुब्ध भी बनाया है, पर अन्त तक वे दखल करके बैठ जाते रहे हैं और पुराने देवताओं के समान ही श्रद्धाभाजन बन जाते रहे हैं—कभी–कभी अधिक सम्मान भी पा सके हैं। भारतीय संस्कृति कि कुछ ऐसी विशेषता रही है कि उन कबीलों, नस्लों और जातियों की भीतरी समाज–व्यवस्था और धर्म–मत में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया गया है और फिर भी उनको सम्पूर्ण भारतीय मान लिया गया है। भागवत में ऐसी जातियों की एक सूची देकर बताया गया है कि एक बार भगवान का आश्रय पाते ही ये शुद्ध हो गई हैं। इनमें किरात हैं, हूण हैं, आंध्र हैं, पुलिंद हैं, पुक्कस हैं, आभीर हैं, शुंग हैं, यवन हैं, खस हैं, शक हैं और भी निश्चय ही ऐसी बहुत सी जातियाँ हैं, जिनका नाम भागवताकार[9] नहीं गिना गए।- हज़ारीप्रसाद द्विवेदी [10] |}

नाम विवरण क्षेत्र
अंग वर्तमान में बिहार के मुंगेर और भागलपुर ज़िले इसमें आते थे। इनकी राजधानी चंपा थी। पूर्वी बिहार
मगध इसकी स्थिति स्थूल रूप से दक्षिण बिहार के प्रदेश में थी। आधुनिक पटना तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे । दक्षिणी बिहार
काशी वाराणसी, काशी अथवा बनारस भारत देश के उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन और धार्मिक महत्ता रखने वाला शहर है । इसका पुराना नाम काशी है। बनारस
कोशल उत्तरी भारत का प्रसिद्ध जनपद जिसकी राजधानी विश्वविश्रुत नगरी अयोध्या थी। उत्तर प्रदेश के फैजाबाद ज़िला, गोंडा और बहराइच के क्षेत्र शामिल थे। अवध-लखनऊ
वत्स आधुनिक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तथा मिर्ज़ापुर ज़िले इसके अर्न्तगत आते थे। इस जनपद की राजधानी कौशांबी (ज़िला इलाहाबाद उत्तर प्रदेश) थी। इलाहाबाद
कुरु आधुनिक हरियाणा तथा दिल्ली का यमुना नदी के पश्चिम वाला अंश शामिल था । इसकी राजधानी आधुनिक दिल्ली (इन्द्रप्रस्थ) थी । थानेश्वर तथा दिल्ली क्षेत्र
वत्स आधुनिक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तथा मिर्ज़ापुर ज़िले इसके अर्न्तगत आते थे। इस जनपद की राजधानी कौशांबी (ज़िला इलाहाबाद उत्तर प्रदेश) थी। इलाहाबाद
पंचाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूँ और फर्रूख़ाबाद ज़िलों से परिवृत प्रदेश का प्राचीन नाम है। यह कानपुर से वाराणसी के बीच के गंगा के मैदान में फैला हुआ था। बरेली तथा बदायूँ
मत्स्य मत्स्य देश में विराट का राज था तथा वहाँ की राजधानी उपप्लव नामक नगर में थी। विराट नगर मत्स्य देश का दूसरा प्रमुख नगर था। जयपुर
शूरसेन मथुरा का पुराना नाम शूरसेन था । मथुरा
अश्मक नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच अवस्थित इस प्रदेश की राजधानी पाटन थी। गोदावरी के तट पर
अवंती आधुनिक मालवा का प्रदेश जिसकी राजधानी उज्जयिनी और महिष्मति थी। मालवा
गांधार पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र। पेशावर क्षेत्र
कंबोज कंबोज देश या यहाँ के निवासी कांबोजों के विषय में अनेक उल्लेख हैं जिनसे जान पड़ता है कि कंबोज देश का विस्तार स्थूल रूप से कश्मीर से हिन्दूकुश तक था। कश्मीर तथा अफ़ग़ानिस्तान
वृज्जि उत्तर बिहार का बौद्ध कालीन गणराज्य जिसे बौद्ध साहित्य में वृज्जि कहा गया है। उत्तरी बिहार
मल्ल मल्ल भी एक गणसंघ था और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके इसके क्षेत्र थे। गोरखपुर
चेदि गंगा और नर्मदा के बीच के क्षेत्र का प्राचीन नाम चेदि था। बुंदेलखण्ड

इन राज्यों मे आपस में बराबर लड़ाई होती रहती थी। छठीं शताब्दी ई॰ पू॰ के मध्य में बिम्बिसार तथा अजातशत्रु के राज्य काल में मगध ने काशी तथा कोशल पर अधिकार करने के बाद अपनी सीमाओं का विस्तर आरम्भ किया। इन्हीं दोनों मगध राजाओं के राज्यकाल में वर्धमान महावीर ने जैन धर्म तथा गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का उपदेश दिया। बाद मे काल में मगध राज्य का विस्तार जारी रहा और चौथी शताब्दी ई॰ पू॰ के अंत में नन्द राजाओं के शासनकाल में उसका विस्तार बंगाल से लेकर पंजाब में व्यास नदी के तट तक सारे उत्तरी भारत में हो गया।

मौर्य और शुंग

यूनानी इतिहासकारों के द्वारा वर्णित 'प्रेसिआई' देश का राजा इतना शक्तिशाली था कि सिकन्दर की सेनाएँ व्यास पार करके प्रेसिआई देश में नहीं घुस सकीं और सिकन्दर, जिसने 326 ई॰ में पंजाब पर हमला किया, पीछे लौटने के लिए विवश हो गया। वह सिंधु के मार्ग से पीछे लौट गया। इस घटना के बाद ही मगध पर चंद्रगुप्त मौर्य (लगभग 322 ई॰ पू॰-298 ई॰ पू॰) ने पंजाब में सिकन्दर जिन यूनानी अधिकारियों को छोड़ गया था, उन्हें निकाल बाहर किया और बाद में एक युद्ध में सिकन्दर के सेनापति सेल्युकस को हरा दिया। सेल्युकस ने हिन्दूकुश तक का सारा प्रदेश वापस लौटा कर चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली। चन्द्रगुप्त ने सारे उत्तरी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उसने सम्भ्वतः दक्षिण भी विजय कर लिया। वह अपने इस विशाल साम्राज्य पर अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से शासन करता था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र वैभव और समृद्धि में सूसा और एकबताना नगरियों को भी मात करती थी। उसका पौत्र अशोक था, जिसने कलिंग (उड़ीसा) को जीता। उसका साम्राज्य हिमालय के पादमूल से लेकर दक्षिण में पन्नार नदी तक तथा उत्तर पश्चिम में हिन्दूकुश से लेकर उत्तर-पूर्व में आसाम की सीमा तक विस्तृत था। उसने अपने विशाल साम्राज्य के समय साधनों को मनुष्यों तथा पशुओं के कल्याण कार्यों तथा बौद्ध धर्म के प्रसार में लगाकर अमिट यश प्राप्त किया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को मिस्र, मक़दूनिया तथा कोरिन्थ (प्राचीन यूनान की विलास नगरी) जैसे दूर-दराज स्थानों में भेजा और वहाँ लोकोपकारी कार्य करवाये। उसके प्रयत्नों से बौद्ध धर्म विश्वधर्म बन गया। परन्तु उसकी युद्ध से विरत रहने की शान्तिपूर्ण नीति ने उसके वंश की शक्ति क्षीण कर दी और लगभग आधी शताब्दी के बाद पुष्यमित्र ने उसका उच्छेद कर दिया। पुष्यमित्र ने शुगवंश (लगभग 185 ई॰ पू॰- 73 ई॰ पू॰) की स्थापनी की, जिसका उच्छेद कराव वंश (लगभग 73 ई॰ पू॰-28 ई॰ पू॰) ने कर दिया।


देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ऐसा कहते हैं... मैंने यह (प्रबन्ध) किया कि हर समय चाहे मैं खाता होऊँ या अन्तःपुर में रहूँ या गर्भागार (शयनगृह) में होऊँ या टहलता होऊँ या सवारी पर होऊँ या कूच कर रहा होऊँ, सभी जगह किसी भी समय पर, प्रतिवेदक (गुप्तचर) प्रजा का हाल मुझे सुनावें। मैं प्रजा का काम सभी जगह पर करता हूँ।… क्योंकि मैं कितना ही परिश्रम करूँ और कितना ही राजकार्य करुँ मुझे सन्तोष नहीं होता। सब लोगों का हित करना ही मैं अपना प्रधान कर्तव्य समझता हूँ। पर सभी लोगों का हित, परिश्रम और राजकार्य सम्पादन के बिना नहीं हो सकता। सभी लोगों का हित करने से बढ़कर और कोई कार्य नहीं है। जो कुछ भी पराक्रम करता हूँ वह इसीलिए कि प्राणियों के प्रति जो मेरा ऋण है उससे उऋण हो जाऊँ… अधिक परिश्रम के बिना यह कार्य कठिन है।- सम्राट अशोक महान[11] |}

शक, कुषाण और सातवाहन

मौर्यवंश के पतन के बाद मगध की शक्ति घटने लगी और सातवाहन राजाओं के नेतृत्व में मगध साम्राज्य दक्षिण से अलग हो गया। सातवाहन वंश को आन्ध्र वंश भी कहते हैं और उसने 50 ई॰ पू॰ से 225 ई॰ तक राज्य किया। भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार के अभाव में बैक्ट्रिया और पार्थिया के राजाओं ने उत्तरी भारत पर आक्रमण शुरू कर दिये। इन आक्रमणकारी राजाओं में मिनाण्डर सबसे विख्यात है। इसके बाद ही शक राजाओं के आक्रमण शुरू हो गये और महाराष्ट्र, सौराष्ट्र तथा मथुरा शक क्षत्रपों के शासन में आ गये। इस तरह भारत की जो राजनीतिक एकता भंग हो गयी थी, वह ईसवीं पहली शताब्दी में कुजुल कडफ़ाइसिस द्वारा कुषाण वंश की शुरूआत से फिर स्थापित हो गयी। इस वंश ने तीसरी शताब्दी ईसवीं के मध्य तक उत्तरी भारत पर राज्य किया।
इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क (लगभग 120-144 ई॰) था, जिसकी राजधानी पुरुषपुर अथवा पेशावर थी। उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया और अश्वघोष, नागार्जुन तथा चरक जैसे भारतीय विद्वानों को संरक्षण दिया। कुषाणवंश का अज्ञात कारणों से तीसरी शताब्दी के मध्य तक पतन हो गया। इसके बाद भारतीय इतिहास का अंधकार युग आरम्भ होता है। जो चौथी शताब्दी के आरम्भ में गुप्तवंश के उदय से समाप्त हुआ।

गुप्त

लगभग 320 ई॰ पू॰ में चन्द्रगुप्त ने गुप्तवंश का प्रचलित किया और पाटलिपुत्र को फिर से अपनी राजधानी बनाया। गुप्त वंश में एक के बाद एक चार महान शक्तिशाली राजा हुए, जिन्होंने सारे उत्तरी भारत में अपना साम्राज्य विस्तृत कर लिया और दक्षिण के कई राज्यों पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उन्होंने हिन्दू धर्म को राज्य धर्म बनाया, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता बरती और ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला, वास्तुकला और चित्रकला की उन्नति की। इसी युग में कालिदास, आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर हुए। रामायण, महाभारत, पुराणों तथा मनुसंहिता को भी इसी युग में वर्तमान रूप प्राप्त हुआ। चीनी यात्री फाह्यान ने 401 से 410 ई॰ के बीच भारत की यात्रा की और उसने उस काल का रोचक वर्णन किया है। उसका मत है कि उस काल में देश में पूरा रामराज्य था। स्वाभाविक रूप से गुप्त युग को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग माना जाता है और उसकी तुलना एथेन्स के परीक्लीज युग से की जाती है। (पेरीक्लीज (लगभग 492-529 ई॰ पू॰) एथेन्स का महान राजनेता तथा सेनापति था। उसके प्रशासकाल (460-429 ई॰ पू॰) में एथेन्स उन्नति के शिखर पर पहुँच गया।) आंतरिक विघटन तथा हूणों के आक्रमणों के फलस्वरूप छठी शताब्दी में गुप्त वंश का पतन हो गया। परन्तु सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हर्षवर्धन ने एक दूसरा साम्राज्य खड़ा कर दिया, जिसकी राजधानी कन्नौज थी। यह साम्राज्य सारे उत्तरी भारत में विस्तृत था। दक्षिण में चालुक्य राजा पुलकेशी द्वितीय ने उसका साम्राज्य नर्मदा तट से आग बढ़ने से रोक दिया था। चीनी यात्री ह्वयुएनत्सांग उसके राज्यकाल में भारत आया था और उसने अपने यात्रा वर्णन में लिखा है कि हर्षवर्धन बड़ा प्रतापी और शक्तिशाली राजा है। वह 646 ई॰ में निस्संतान मर गया और उसके बाद सारे उत्तरी भारत में फिर से अव्यवस्था फैल गयी।

राजपूत आदि राजवंश

इस अव्यवस्था के फलस्वरूप राजवंशों का उदय हुआ, जो अपने को राजपूत कहते थे। इनमें पंजाब का हिन्दूशाही राजवंश, गुजरात का गुर्जर-प्रतिहार राजवंश, अजमेर का चौहान वंश, कन्नौज का गहदवाल वंश तथा मगध और बंगाल का पाल वंश था। दक्षिण में भी सातवाहन वंश के पतन के बाद इसी प्रकार सत्ता का विघटन हो गया। उड़ीसा के गंग वंश जिसने पुरी का प्रसिद्ध जगन्नाथ मन्दिर बनवाया, वातापी के चालुक्य वंश, जिसके राज्यकाल में अजन्ता के कुछ गुफ़ा चित्र बने तथा कांची के पल्लव वंश ने, जिसकी स्मृति उस काल में बनवाये गये कुछ प्रसिद्ध मन्दिरों में सुरक्षित है, दक्षिण को आपस में बांट लिया और परस्पर युद्धों में एक दूसरे का नाश कर दिया। इसके बाद मान्यखेट अथवा मालखड़ के राष्ट्रकूट वंश का उदय हुआ, जिसका उच्छेद पुर ने चालुक्य वंश की एक नवीन शाखा ने कर दिया। जिसने कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया। उसका उच्छेद देवगिरि के यादवों तथा द्वारसमुद्र के होयसल वंश ने कर दिया। सुदूर दक्षिण में चेर, पांड्य और चोल राज्यों का उदय हुआ, जिनमें से अंतिम राज्य सबसे अधिक चला। इस तरह सारे भारत में अनैक्य व्याप्त हो गया।

इस्लाम का प्रवेश

इस बीच 712 ई॰ में भारत में इस्लाम का प्रवेश हो चुका था। मुहम्मद-इब्न-क़ासिम के नेतृत्व में मुसलमान अरबों ने सिंध पर हमला कर दिया और वहाँ के ब्राह्मण राजा दाहिर को हरा दिया। इस तरह भारत की भूमि पर पहली बार इस्लाम के पैर जम गये और बाद की शताब्दियों के हिन्दू राजा उसे फिर हटा नहीं सके। परन्तु सिंध पर अरबों का शासन वास्तव में निर्बल था और 1176 ई॰ में शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने उसे आसानी से उखाड़ दिया। इससे पूर्व सुबुक्तगीन के नेतृत्व में सुसलमानों ने हमले करके पंजाब छीन लिया था और ग़ज़नी के सुल्तान महमूद ने 997 से 1030 ई॰ के बीच भारत पर सत्रह हमले किये और हिन्दू राजाओं की शक्ति कुचल डाली। फिर भी हिन्दू राजाओं ने मुसलमानी आक्रमण का जिस अनवरत रीति से प्रबल विरोध किया, उसका महत्व कम करके नहीं आंकना चाहिए।

पृथ्वीराज चौहान और ग़ोरी

फ़ारस तथा पश्चिम एशिया के दूसरे राज्यों की तरह मुसलमानों को भारत में शीघ्रता से सफलता नहीं मिली। यद्यपि सिंध पर अरब मुसलमानों का शीघ्रता से क़ब्ज़ा हो गया, परन्तु वहाँ से वे लगभग चार शताब्दियों तक आगे नहीं बढ़ पाये। उत्तर-पश्चिम के मुसलमान आक्रमणकारियों को भी भारत ने लगभग तीन शताब्दियों तक रोके रखा। शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी का दिल्ली जीतने का पहला प्रयास विफल हुआ और पृथ्वीराज ने 1190 ई॰ में तराईन की पहली लड़ाई में उसे हरा दिया। वह 1193 ई॰ में तराईन की दूसरी लड़ाई में ही पृथ्वीराज को हराने में सफल हुआ। इस विजय के बाद शहाबुद्दीन और उसके सेनापतियों ने उत्तरी भारत के दूसरे हिन्दू राजाओं को भी हरा दिया और वहाँ मुसलमानी शासन स्थापित कर दिया। इस तरह तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में दिल्ली के सुल्तानों की अधीनता में उत्तरी भारत की राजनीतिक एकता फिर से स्थापित हो गई।

तैमूर

दक्षिण एक और शताब्दी तक स्वतंत्र रहा, किन्तु सुल्तान ख़िलजी के राज्यकाल में दक्षिण भी दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया और इस तरह चौदहवीं शताब्दी में कुछ काल के लिए सारे भारत का शासन फिर से एक केन्द्रीय सत्ता के अंतर्गत आ गया। परन्तु दिल्ली सल्तनत का शीघ्र ही पतन शुरू हो गया और 1336 ई॰ में दक्षिण में हिन्दुओं का एक विशाल राज्य स्थापित हुआ, जिसकी राजधानी विजयनगर थी। बंगाल (1338 ई॰), जौनपुर (1393 ई॰), गुजरात तथा दक्षिण के मध्यवर्ती भाग में भी बहमनी सल्तनत (1347 ई॰) के नाम से स्वतंत्र मुसलमानी राज्य स्थापित हो गया। 1398 ई॰ में तैमूर ने भारत पर हमला किया और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे लूटा। उसके हमले से दिल्ली की सल्तनत जर्जर हो गयी।

मुग़ल

दिल्ली की सल्तनत वास्तव में कमज़ोर थी, क्योंकि सुल्तानों ने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का ह्रदय जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। वे धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त कट्टर थे और उन्होंने बलपूर्वक हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। इससे हिन्दू प्रजा उनसे कोई सहानुभूति नहीं रखती थी। इसक फलस्वरूप 1526 ई॰ में बाबर ने आसानी से दिल्ली की सल्तनत को उखाड़ फैंका। उसने पानीपत की पहली लड़ाई में अन्तिम सुल्तान इब्राहीम लोदी को हरा दिया और मुग़ल वंश की प्रतिष्ठित किया, जिसने 1526 से 1858 ई॰ तक भारत पर शासन किया। तीसरा मुग़ल बादशाह अकबर असाधारण रूप से योग्य और दूरदर्शी शासक था। उसने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का ह्रदय जीतने की कोशिश की और विशेष रूप से युद्ध प्रिय राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता तथा मेल-मिलाप की नीति बरती, हिन्दुओं पर से जज़िया उठा लिया और राज्य के ऊँचे पदों पर बिना भेदभाव के सिर्फ योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ कीं।

मराठा

राजपूतों और मुग़लों के योग से उसने अपना साम्राज्य कन्दहार से आसाम की सीमा तक तथा हिमालय की तलहटी से लेकर दक्षिण में अहमदनगर तक विस्तृत कर दिया। उसके पुत्र जहाँगीर जहाँ पौत्र शाहजहाँ कि राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार जारी रहा। शाहजहाँ ने ताज का निर्माण कराया, परन्तु क्न्दहार उसके हाथ से निकल गया। अकबर के प्रपौत्र औरंगज़ेब के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार अपने चरम शिखर पर पहुँच गया और कुछ काल के लिए सारा भारत उसके अंतर्गत हो गया। परन्तु औरंगज़ेब ने जान-बूझकर अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति त्याग दी और हिन्दुओं को अपने विरुद्ध कर लिया। उसने हिन्दुस्तान का शासन सिर्फ मुसलमानों के हित में चलाने की कोशिश की और हिन्दुओं को ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाने का असफल प्रयास किया। इससे राजपूताना, बुंदेलखण्ड तथा पंजाब के हिन्दू उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए। महाराष्ट्र में शिवाजी ने 1707 ई॰ में औरंगज़ेब की मृत्यु से पूर्व ही एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित कर दिया। औरंगज़ेब अन्तिम शक्तिशाली मुग़ल बादशाह था। उसके उत्तराधिकारी अत्यन्त निर्बल और अयोग्य थे, उनके वज़ीर विश्वासघाती थे। फ़ारस के नादिरशाह ने मुग़ल बादशाहत पर सबसे सांघातिक प्रहार किया। उसने 1739 ई॰ में भारत पर चढ़ाई की और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे निर्दयता से पूरी तरह लूटा। उसके हमले से मुग़ल साम्राज्य पूरी तरह जर्जर हो गया और इसके बाद शीघ्रता से उसका विघटन हो गया। अवध, बंगाल तथा दक्षिण के मुसलमान सूबेदारों ने अपने को स्वतंत्र कर लिया। राजपूत राजा भी अर्द्ध-स्वतंत्र हो गये। पेशवा बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में मराठों ने मुग़ल साम्राज्य के खंडहरों पर हिन्दू पद पादशाह की स्थापना का प्रयास किया।

अंग्रेज़

परन्तु यह सम्भव नहीं हो सका। फ़िरंगी लोग समुद्री मार्गों से भारत की ज़मीन पर पैर जमा चुके थे। अकबर से लेकर औरंगज़ेब तक मुग़ल बादशाहों ने भारत के इस नये मार्ग का महत्व नहीं समझा। इनमें से कोई इन नवांगतुकों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का अनुमान नहीं लगा सका और उनके जंगी बेड़े का मुक़ाबला करने के लिए एक शक्तिशाली भारतीय जंगी बेड़ा तैयार करने की आवश्यकता को अनुभव नहीं कर सका। इस तरह भारतीयों की ओर से किसी प्रतिरोध का सामना किये बग़ैर सबसे पहले पुर्तग़ाली भारत पहुँचे। उसके बाद डच, अंग्रेज, फ्राँसीसी आये। सोलहवीं शताब्दी में इन फिरंगियों में आपस में लड़ाइयाँ होती रही, जो अधिकांश समुद्र में हुई। डच और अंग्रेजों ने मिलकर सबसे पहले पुर्तग़ालियों की सामुद्रिक शक्ति को समाप्त किया। इसके बाद डच लोगों को पता चला कि उनके लिए भारत की अपेक्षा मसाले वाले द्वीपों से व्यापार करना अधिक लाभदायी है। इस तरह भारत में सिर्फ अंग्रेज और फ्राँसीसी लोगों के बीच प्रतिद्वन्द्विता हुई।

ईस्ट इंडिया कम्पनी

अठारहवीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) तथा कलकत्ता (कोलकाता) पर क़ब्ज़ा कर लिया। उधर फ्राँसीसियों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने माहे, पांडिचेरी तथा चंद्रानगर पर क़ब्ज़ा कर लिया। उन्हें अपनी सेनाओं में भारतीय सिपाहियों की भरती करने की भी इजाज़त मिल गयी। वे इन भारतीय सिपाहियों का उपयोग न केवल अपनी आपसी लड़ाइयों में करते थे बल्कि इस देश के राजाओं के विरुद्ध भी करते थे। इन राजाओं की आपसी प्रतिद्वन्द्विता और कमज़ोरी ने इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का जाग्रत कर दिया और उन्होंने कुछ देशी राजाओं के विरुद्ध दूसरे देशी राजाओं से संधियाँ कर लीं। 1744-49 ई॰ में मुग़ल बादशाह की प्रभुसत्ता की पूर्ण उपेक्षा करके उन्होंने आपस में कर्नाटक की दूसरी लड़ाई छेड़ी। एक साल के बाद कर्नाटक की दूसरी लड़ाई शुरू हुई। जिसमें फ्राँसीसी गवर्नर डूप्ले ने पहली लड़ाई से सबक़ लेते हुए न केवल कर्नाटक के प्रशासन पर, बल्कि निज़ाम के राज्य पर भी फ़्राँस का राजनीतिक नियत्रंण स्थापित करने की कोशिश की। परन्तु अंग्रेजों ने उसकी महत्वाकांक्षा पूरी नहीं होने दी। अंग्रेजों को बंगाल में भारी सफलता मिली थी। बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु के केवल पचास वर्ष बाद 1757 ई॰ में राबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेजों ने नवाब सिराजुद्दोला के विरुद्ध विश्वासघातपूर्ण राजद्रोहात्मक षड़यंत्र रचकर प्लासी की लड़ाई जीत ली और बंगाल को एक प्रकार से अपनी मुट्ठी में कर लिया। उन्होंने बंगाल की गद्दी पर एक कठपुतली नवाब मीर ज़ाफ़र को बिठा दिया। इसके बाद एक के बाद, तेज़ी से कई घटनाएँ घटीं।

पानीपत

अहमद शाह अब्दाली ने 1748 से 1760 ई॰ के बीच भारत पर चढ़ाइयाँ कीं और 1761 ई॰ में पानीपत की तीसरी लड़ाई जीत कर मुग़ल साम्राज्य का फ़ातिहा पढ़ दिया। उसन दिल्ली पर दख़ल करके उसे लूटा। पानीपत की तीसरी लड़ाई में सबसे अधिक क्षति मराठों को उठानी पड़ी। कुछ समय के लिए उनकी बाढ़ रुक गयी और इस प्रकार वे मुग़ल बादशाहों की जगह ले लेने का मौका खो बैठे। यह लड़ाई वास्तव में मुग़ल साम्राज्य के पतन की सूचक है। इसने भारत में मुग़ल साम्राज्य के स्थान पर ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना में मदद की। अब्दाली को पानीपत में जो फ़तह मिली, उससे न तो वह स्वयं कोई लाभ उठा सका और न उसका साथ देने वाले मुसलमान सरदार। इस लड़ाई से वास्तविक फ़ायदा अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उठाया। इसके बाद कम्पनी को एक के बाद दूसरी सफलताएँ मिलती गयीं।

रेग्युलेटिंग एक्ट

बंगाल के साधनों से बलशाली होकर अंग्रेजों ने 1760 ई॰ में वाण्डीवाश की लड़ाई में फ्राँसीसियों को हरा दिया और 1762 ई॰ में उनस पांडेचेरी ले लिया। इस प्रकार उन्होंने भारत में फ्राँसीसियों की राजनीतिक शक्ति समाप्त कर दी। 1764 ई॰ में अंग्रजों ने बक्सर की लड़ाई में बादशाह बहादुर शाह और अवध के नवाब की सम्मिलित सेना को हरा दिया और 1765 ई॰ में बादशाह से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली। इसके फलस्वरूप ईस्ट इंडिया कम्पनी को पहली बार बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार के प्रशासन का क़ानूनी अधिकार मिल गया। कुछ इतिहासकार इसे भारत में ब्रिटिश राज्य का प्रारम्भ मानते हैं। 1773 ई॰ में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने एक रेग्युलेटिंग एक्ट पास करके भारत में ब्रिटिश प्रशासन को व्यवस्थित रूप देने का प्रयास किया। इस एक्ट के अंतर्गत भारत में कम्पनी क्षेत्रों का प्रशासन गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया गया। उसकी सहायता के लिए चार सदस्यों की कौंसिल गठित की गयी। एक्ट में बंगाल के गवर्नर को गवर्नर-जनरल का पद प्रदान किया गया और कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की भी स्थापना की गयी। वारेन हेस्टिग्स, जो उस समय बंगाल का गवर्नर था, 1773 ई॰ में पहला गवर्नर-जनरल बनाया गया।

1773 ई॰ से 1947 ई॰ तक का काल, जब भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हुआ और भारत स्वाधीन हुआ, दो भागों में बाँटा जा सकता है। पहला, कम्पनी का शासनकाल, जो 1858 ई॰ तक चला और दूसरा, 1858 से 1947 ई॰ तक का काल, जब भारत का शासन सीधे ब्रिटेन द्वारा होने लगा।

गवर्नर-जनरलों का समय

कम्पनी के शासन काल में भारत का प्रशासन एक के बाद एक बाईस गवर्नर-जनरलों के हाथों मे रहा। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे उल्लेखनीय घटना यह है कि कम्पनी युद्ध तथा कूटनीति के द्वारा भारत में अपने साम्राज्य का उत्तरोत्तर विस्तार करती रही। मैसूर के साथ चार लड़ाइयाँ, मराठों के साथ तीन, बर्मा (म्यांमार) तथा सिखों के साथ दो-दो लड़ाइयाँ तथा सिंध के अमीरों, गोरखों तथा अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक-एक लड़ाई छेड़ी गयी। इनमें से प्रत्येक लड़ाई में कम्पनी को एक या दूसरे देशी राजा की मदद मिली। उसने जिन फ़ौजों से लड़ाई की उनमें से अधिकांश भारतीय सिपाही थे और लड़ाई का ख़र्च पूरी तरह भारतीय करदाता को उठाना पड़ा। इन लड़ाइयों के फलस्वरूप 1857 ई॰ तक सारे भारत पर सीधे कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। दो-तिहाई भारत पर देशी राज्यों का शासन बना रहा। परन्तु उन्होंने कम्पनी का सार्वभौम प्रभुत्व स्वीकार कर लिया और अधीनस्थ तथा आश्रित मित्र राजा के रूप में अपनी रियासत का शासन चलाते रहे।

ग़दर- प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम

इस काल में सती प्रथा का अन्त कर देने के समान कुछ सामाजिक सुधार के भी कार्य किये गये। अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिम शिक्षा के प्रसार की दिशा में क़दम उठाये गये, अंग्रेजी देश की राजभाषा बना दी गयी, सारे देश में समान ज़ाब्ता दीवानी और ज़ाब्ता फ़ौजदारी क़ानून लागू कर दिया गया, जिससे सारे देश में एकता की नयी भावना पैदा हो गयी। परन्तु शासन स्वेच्छाचारी बना रहा और वह पूरी तरह अंग्रेजों के हाथों में रहा। 1833 के चार्टर एक्ट के विपरीत ऊँचे पदों पर भारतीयों को नियुक्त नहीं किया गया। भाप से चलने वाले जहाज़ों और रेलगाड़ियों का प्रचलन, ईसाई मिशनरियों द्वारा आक्षेपजनक रीति से ईसाई धर्म का प्रचार, लार्ड डलहौज़ी द्वारा ज़ब्ती का सिद्धांत लागू करके अथवा कुशासन के आधार पर कुछ पुरानी देशी रियासतों की ज़ब्ती तथा ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय सिपाहियों की शिकायतें—इन सब कारणों ने मिलकर सारे भारत में एक गहरे असंतोष की आग धधका दी, जो 1857-58 ई॰ में ग़दर के रूप में भड़क उठी। अन्तिम मुग़ल बहादुर शाह ज़फ़र, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे (रामचंन्द्र पांडुरंग), बिहार के बाबू कुँवरसिंह, महाराष्ट्र से नाना साहिब, इस प्रथम क्रान्ति के प्रयास के नायक थे किन्तु प्रयास विफल हो गया।

अधिकांश देशी राजाओं ने अपने को ग़दर से अलग रखा। देश की अधिकांश जनता ने भी इसमें कोई हिस्सा नहीं लिया। फलस्वरूप कम्पनी को बल पूर्वक ग़दर को कुचल देने में सफलता मिली, परन्तु ग़दर के बाद ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत पर कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया। भारत का शासन अब सीधे ब्रिटेन के द्वारा किया जाने लगा। महारानी विक्टोरिया ने एक घोषणा पत्र जारी करके अपनी भारतीय प्रजा को उसके कुछ अधिकारों तथा कुछ स्वाधीनताओं के बारे में आश्वासन दिया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना

इस प्रकार भारत में ब्रिटिश शासन का दूसरा काल (1858-1947 ई॰) आरम्भ हुआ। इस काल का शासन एक के बाद इकत्तीस गवर्नर-जनरलों के हाथों में रहा। गवर्नर-जनरल को अब वाइसराय (ब्रिटिश सम्राट का प्रतिनिधी) कहा जाने लगा। लार्ड कैनिंग पहला वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल नियुक्त हुआ। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे प्रमुख घटना है—भारत में राष्ट्रवादी भावना का उदय और 1947 ई॰ में भारत की स्वाधीनता के रूप में अंतिम विजय। 1857 ई॰ में कलकत्ता (कोलकाता), मद्रास (चेन्नई) तथा बम्बई (मुम्बई) में विश्वविद्यालयों की स्थापना के बाद शिक्षा का प्रसार होने लगा तथा 1869 ई॰ में स्वेज़ नहर खुलने के बाद इंग्लैण्ड तथा यूरोप से निकट सम्पर्क स्थापित हो जाने से भारत में नये मध्यवर्ग का विकास हुआ। यह मध्य वर्ग पश्चिमी दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र तथा अर्थशास्त्र के विचारों से प्रभावित था और ब्रिटिश शासन में भारतीयों को जो नीचा दर्ज़ा मिला हुआ था, उससे रुष्ट था। ब्रिटिश में स्थापित शान्ति के फलस्वरूप यह वर्ग सारे भारत को एक देश तथा समस्त भारतीयों को एक क़ौम मानने लगा और ब्रिटेन की भाँति संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना उसका लक्ष्य बन गया। वह एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगा जो समस्त भारतीय राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर सके।

इसके फलस्वरूप 1885 ई॰ में बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई जिसमें देश के समस्त भागों से 71 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन 1883 ई॰ में कलकत्ता में हुआ, जिसमें सारे देश से निर्वाचित 434 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस अधिवेशन में माँग की गयी कि भारत में केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधानमंडलों का विस्तार किया जाये और उसके आधे सदस्य निर्वाचित भारतीय हों। कांग्रेस हर साल अपने अधिवेशनों में अपनी माँगें दोहराती रही। लार्ड डफ़रिन ने कांग्रेस पर व्यग्य करते हुए उसे ऐसे अल्पसंख्यक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था बताया जिसे सिर्फ़ ख़ुर्दबीन से देखा जा सकता है। लार्ड लैन्सडाउन ने उसके प्रति पूर्ण उपेक्षा की नीति बरती, लार्ड कर्ज़न ने उसका खुलेआम मज़ाक उड़ाया तथा लार्ड मिन्टो द्वितीय ने 1909 के इंडियन कौंसिल एक्ट द्वारा स्थापित विधानमंडलों में मुसलमानों को अनुपात से अनुचित रीति से अधिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें फोड़ने तथा कांग्रेस को तोड़ने की कोशिश की, फिर भी कांग्रेस जिन्दा रही।

प्रारम्भिक सफलता

कांग्रेस को पहली मामूली सफलता 1909 में मिली, जब इंग्लैण्ड में भारत मंत्री के निर्शदन में काम करने वाली भारत परिषद में दो भारतीय सदस्यों की नियुक्ति पहली बार की गयी, वाइसराय की एक्जीक्यूटिव काउंसिल में पहली बार एक भारतीय सदस्य की नियुक्ति की गयी तथा इंडियन काउंसिल एक्ट के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधानमंडलों का विस्तार कर दिया गया तथा उनमें निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों का अनुपात पहले से अधिक बढ़ा दिया गया। इन सुधारों के प्रस्ताव लार्ड मार्ले ने हालाँकि भारत में संसदीय संस्थाओं की स्थापना करने का कोई इरादा होने से इन्कार किया, फिर भी एक्ट में जो व्यवस्थाएँ की गयीं थी, उनका उद्देश्य उसी दिशा में आगे बढ़ने के सिवा और कुछ नहीं हो सकता था। 1911 ई॰ में लार्ड कर्जन के द्वारा 1905 ई॰ में किया बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया और भारत ने ब्रिटेन का पूरा साथ दिया। भारत ने युद्ध को जीतने के लिए ब्रिटेन की फ़ौजों से, धन से तथा समाग्री से मदद की। भारत आशा करता था कि इस राजभक्ति प्रदर्शन के बदले युद्ध से होने वाले लाभों में उसे भी हिस्सा मिलेगा।

द्वैधशासन प्रणाली

भारत के लिए स्वशासन की माँग करने में पहली बार भारतीय मुसलमान भी हिन्दुओं के साथ संयुक्त हो गये और अगस्त 1917 ई॰ में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटेश शासन की नीति है कि शासन की प्रत्येक शाखा में भारतीयों को अधिकारिक स्थान दिया जाय तथा स्वायत्त शासन का क्रमिकरूप से विकास किया जाय, ताकि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत भारत में उत्तरदायी सरकार की उत्तरोत्तर स्थापना हो सके। इस घोषणा के अनुसार 1919 का गवर्नमेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया गया। इस एक्ट के द्वारा विधान मंडलों का विस्तार कर दिया गया और अब उनके बहुसंख्य सदस्य भारतीय जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि होने लगे। एक्ट के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों के कार्यों का विभाजन कर दिया गया और प्रान्तों में द्वैधशासन प्रणाली लागू करके कार्यपालिका को आंशिक रीति से विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी बना दिया गया। इस एक्ट के द्वारा भारत ने सुनिश्चित रीति से प्रगति की। भारतीय के इतिहास में पहली बार एक ऐसी संस्था की स्थापना की गयी, जिसके द्वारा ब्रिटिश भारत के निर्वाचित प्रतिनिधि सरकारी आधार पर एकत्र हो सकते थे। पहली बार उनका बहुमत स्थापित कर दिया गया और अब वे सरकार के कार्यों की निर्भयतापूर्वक आलोचना कर सकते थे।

असहयोग और सत्याग्रह

इन सुधारों से पुराने कांग्रेसजन संतुष्ट हो गये, परन्तु नव युवकों का दल, जिसे मोहनदास करमचंद गाँधी के रूप में एक नया नेता मिल गया था, संतुष्ट नहीं हुआ। इन सुधारों के अंतर्गत केन्द्रीय कार्यपालिका को केन्द्रीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया गया था और वाइसराय को बहुत अधिक अधिकार प्रदान कर दिये गये थे। अतएव उसने इन सुधारों को अस्वीकृत कर दिया। उसके मन में जो आशंकाएँ थीं, वे ग़लत नहीं थी, यह 1919 के एक्ट के बाद ही पास किये गये रौलट एक्ट जैसे दमनकारी कानूनों तथा जलियाँवाला बाग़ हत्याकांण्ड जैसे दमनमूलक कार्यों से सिद्ध हो गया। कांग्रेस ने 1920 ई॰ में अपने नागपुर अधिवेशन में अपना ध्येय पूर्ण स्वराज्य की स्थापना घोषित कर दी और अपनी माँगों को मनवाने के लिए उसने अहिंसक असहयोंग की नीति अपनायी। चूंकि ब्रिटिश सरकार ने उसकी माँगें स्वीकार नहीं की और दमनकारी नीति के द्वारा वह असहयोग आंदोलन को दबा देने में सफल हो गयी। इसलिए कांग्रेस ने दिसम्बर 1929 ई॰ में लाहौर अधिवेशन में अपना लक्ष्य पूर्ण स्वीधीनता निश्चित किया और अपनी माँग का मनवाने के लिए उसने 1930 में सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया।

द्वितीय विश्वयुद्ध

सरकार ने पहले की तरह आंदोलन को दबाने के लिए दमन और समझौते के दोनों रास्ते अख़्तियार किये और 1935 का गवर्नेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया। इस एक्ट के द्वारा ब्रिटश भारत तथा देशी रियासतों के लिए सम्मिलित रूप से एक संघीय शासन का प्रस्ताव किया, केन्द्र में एक प्रकार के द्वैध शासन की स्थापना की गयी तथा प्रान्तों को स्वशासन प्रदान कर दिया गया। एक्ट का प्रान्तों से सम्बन्धित भाग लागू कर दिया गया तथा अप्रैल 1937 ई॰ में प्रान्तीय स्वशासन का श्रीगणेश कर दिया गया। परन्तु एक्ट के संघ सरकार से सम्बन्धित भाग के लागू होने से पहले ही सितम्बर 1939 ई॰ में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया जो 1945 ई॰ तक जारी रहा। यह विश्वव्यापी युद्ध था और ब्रिटेन को अपने सारे साधन उसमें झोंक देने पड़े। भारत ने ब्रिटेन का साथ दिया और भारत के पास जन और धन की जो विशाल शक्ति थी उससे लाभ उठाकर तथा अमरीका की सहायता से ब्रिटेन युद्ध जीत गया। गाँधी जी के अमित प्रभाव तथा अहिंसा में उनकी दृढ़ निष्ठा के कारण भारत ने यद्यपि ब्रिटिश सम्बन्ध को बनाये रखा, फिर भी यह स्पष्ट हो गया कि भारत अब ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता में नहीं रहना चाहता।

सम्प्रदायिक दंगे

कुछ ब्रिटिश अफ़सरों ने भारत को स्वाधीन होने से रोकने के लिए अंतिम दुर्राभ संधि की और मुसलमानों की भारत विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना की माँग का समर्थन करना शुरू कर दिया। इसके फलस्वरूप अगस्त 1946 ई॰ में सारे देश में भयानक सम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गये, जिन्हें वाइसराय लार्ड वेवेल अपने समस्त फ़ौजी अनुभवों तथा साधनों बावजूद रोकन में असफल रहा। यह अनुभव किया गया कि भारत का प्रशासन ऐसी सरकार के द्वारा चलाना सम्भव नहीं है। जिसका नियंत्रण मुध्य रूप से अंग्रेजों के हाथों में हो। अतएव सितम्बर 1946 ई॰ में लार्ड वेवेल ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय नेताओं की एक अंतरिम सरकार गठित की। ब्रिटिश अधिकारियों की कृपापात्र होने के कारण मुस्लिम लीग के दिमाग़ काफ़ी ऊँचे हो गये थे। उसने पहले तो एक महीने तक अंतरिम सरकार से अपने को अलग रखा, इसके बाद वह भी उसमें सम्मिलित हो गयी।

स्वाधीनता

15 अगस्त 1947 का अख़बार
Newspaper Of 15th August 1947

भारत का संविधान बनाने के लिए एक भारतीय संविधान सभा का आयोजन किया गया। 1947 ई॰ के शुरू में लार्ड वेवेल के स्थान पर लार्ड माउंटबेटेन वाइसराय नियुक्त हुआ। उसे पंजाब में भयानक सम्प्रदायिक दंगों का सामना करना पड़ा। जिनको भड़काने में वहाँ के कुछ ब्रिटिश अफसरों का हाथ था। वह प्रधानमंत्री एटली के नेतृत्व में ब्रिटेन की सरकार को यह समझाने में सफल हो गया कि भारत का भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान करने से शान्ति की स्थापना सम्भव हो सकेगी और ब्रिटेन भारत में अपने व्यापारिक हितों को सुरक्षित रख सकेगा। 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार की ओर से यह घोषणा कर दी गयी कि भारत का; भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान कर दी जायगी। ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 15 अगस्त 1947 को इंडिपेडंस आफ इंडिया एक्ट पास कर दिया। इस तरह भारत उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, बलूचिस्तान, सिंध, पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल तथा पश्चिम बंगाल के मुसलिम बहुल भागों से रहित हो जाने के बाद, सात शताब्दियों की विदेशी पराधीनता के बाद स्वाधीनता के एक नये पथ पर अग्रसर हुआ।

गांधी जी की हत्या

स्वाधीन भारत को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा, वे सरल नहीं थीं। उसे सबसे पहले साम्प्रदायिक उन्माद को शान्त करना था। भारत ने जानबूझकर धर्म निरपेक्ष राज्य बनना पसंद किया। उसने आश्वासन दिया कि जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान को निर्गमन करने के बजाय भारत में रहना पसंद किया है उनको नागरिकता के पूर्ण अधिकार प्रदान किये जायेंगे। हालाँकि पाकिस्तान जानबूझकर अपने यहाँ से हिन्दुओं को निकाल बाहर करने अथवा जिन हिन्दुओं ने वहाँ रहने का फैसला किया था, उनको एक प्रकार से द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना देने की नीति पर चल रहा था। लॉर्ड माउंटबेटेन को स्वाधीन भारत का पहला गवर्नर जनरल बनाये रखा गया और पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा अंतरिम सरकार में उनके कांग्रसी सहयोगियों ने थोड़े से हेरफेर के साथ पहले भारतीय मंत्रिमंडल का निर्माण किया। इस मंत्रिमंडल में सरदार पटेल तथा मौलाना अबुलकलाम आज़ाद का तो सम्मिलित कर लिया गया था, परन्तु नेताजी के बड़े भाई शरतचंद्र बोस को छोड़ दिया गया। 30 जनवरी 1948 ई॰ को नाथूराम गोडसे नामक हिन्दू ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या कर दी। सारा देश शोक के सागर में डूब गया। नौ महीने के बाद, पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मुहम्मद अली जिन्नाह की भी मृत्यु हो गयी। उसी वर्ष लार्ड माउंटबेटेन ने भी अवकाश ग्रहण कर लिया और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के प्रथम और अंतरिम गवर्नर जनरल नियुक्त हुए।

रियासतों का विलय

अधिकांश देशी रियासतों ने , जिनके सामने भारत अथवा पाकिस्तान में विलय का प्रस्ताव रखा गया था, भारत में विलय के पक्ष में निर्णय लिया, परन्तु, दो रियासतों—कश्मीर तथा हैदराबाद ने कोई निर्णय नहीं किया। पाकिस्तान ने बलपूर्वक कश्मीर की रियासत पर अधिकार करने का प्रयास किया, परन्तु अक्टूबर 1947 ई॰ में कश्मीर के महाराज ने भारत में विलय की घोषणा कर दी और भारतीय सेनाओं को वायुयानों से भेजकर श्रीनगर सहित कश्मीरी घाटी तक जम्मू की रक्षा कर ली गयी। पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने रियासत के उत्तरी भाग पर अपना क़ब्ज़ा बनाये रखा और इसके फलस्वरूप पाकिस्तान से युद्ध छिड़ गया। भारत ने यह मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाया और संयुक्त राष्ट्र संघ ने जिस क्षेत्र पर जिसका क़ब्ज़ा था, उसी के आधार पर युद्ध विराम कर दिया। वह आज तक इस सवाल का कोई निपटारा नहीं कर सका है। हैदराबाद के निज़ाम ने अपनी रियासत को स्वतंत्रता का दर्जा दिलाने का षड़यंत्र रचा, परन्तु भारत सरकार की पुलिस कार्यवाही के फलस्वरूप वह 1948 ई॰ में अपनी रियासत भारत में विलयन करने के लिए मजबूर हो गये। रियासतों के विलय में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की मुख्य भूमिका रही।

संघ राज्यों का विलय

भारतीय संविधान सभा के द्वारा 26 नवम्बर 1949 में संविधान पास किया गया। भारत का संविधान अधिनियम 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। इस संविधान में भारत को लौकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था और संघात्मक शासन की व्यवस्था की गयी थी। डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद को पहला राष्ट्रपति चुना गया और बहुमत पार्टी के नेता के रूप में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रधान मंत्री का पद ग्रहण किया। इस पद पर वे 27 मई 1964 ई॰ में, अपनी मृत्यु तक बने रहे। नवोदित भारतीय गणराज्य के लिए उनका दीर्घकालीन प्रधनमंत्रित्व बड़ा लाभदायी सिद्ध हुआ। उससे प्रशासन तथा घरेलू एवं विदेश नीतियों में निरंतरता बनी रही। पंडित नेहरू ने वैदेशिक मामलों में गुट-निरपेक्षता की नीति अपनायी और चीन से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये। फ्राँस ने 1951 ई॰ में चंद्रनगर शान्तिपूर्ण रीति से भारत का हस्तांतरित कर दिया। 1956 ई॰ में उसने अन्य फ्रेंच बस्तियाँ (पांडिचेरी, कारीकल, माहे तथा युन्नान) भी भारत को सौंप दीं। पुर्तग़ाल ने फ्राँस का अनुसरण करने और शान्तिपूर्ण रीति से अपनी पुर्तग़ाली बस्तियाँ (गोवा, दमन और दीव) छोड़ने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप 1961 ई॰ में भारत को बलपूर्वक इन बस्तियों को लेना पड़ा[12]। इस तरह भारत का एकीकरण पूरा हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता लेखक- दामोदर धर्मानंद कोसंबी
  2. इतिहास कारों के अनुसार यह प्राचीन भरतों का क़बीला भरत है जो उत्तर-पश्चिम में था भरत वंशी भी इन्हें ही माना जाता है
  3. गिरनार का बारहवाँ शिलालेख "अशोक के धर्म लेख" से पृष्ठ सं- 31
  4. प्रत्येक 170 किग्रा वजन वाली मिलियन गांठे
  5. प्रत्येक 180 किग्रा वजन वाली मिलियन गांठे
  6. सम्पूर्ण विश्व का लगभग 25% विद्यमान है।
  7. (कोल्लार स्वर्ण क्षेत्र तथा अनन्तपुर ज़िले से बहुत कम मात्रा में सोना निकाला जाता है)
  8. लगभग 383 करोड़ टन
  9. किरात हूणांध्र–पुलिंदा–पुक्कसाः
    आभीर–शुंगा यवनाः खसादयः
    येऽन्ये च पापास्तदपाश्रयाश्रयः–
    शुध्यतिं तस्मै प्रभविष्णवे नमः। – 'भागवत', 24-18

  10. "कबीर" लेखक- हज़ारीप्रसाद द्विवेदी
  11. गिरनार का षष्ठ शिलालेख "अशोक के धर्म लेख" से पृष्ठ सं- 28
  12. 1975 ई॰ में पुर्तग़ाली शासन ने वास्तविकता को समझकर इसको वैधानिक मान्यता दे दी है।