"राजस्थान की हस्तकला": अवतरणों में अंतर

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'''राजस्थान की हस्तकला''' पूरे [[भारत]] में बहुत प्रसिद्ध है।
'''राजस्थान की हस्तकला''' पूरे [[भारत]] में बहुत प्रसिद्ध है। सातवीं शताब्दी से राजस्थान की शिल्पकला में राजपूत प्रशासन का प्रभाव हमें शक्ति और भक्ति के विविध पक्षों द्वारा प्राप्त होता है। [[जयपुर ज़िला|जयपुर ज़िले]] में स्थित [[आभानेरी]] का मन्दिर ([[हर्षत माता मंदिर|हर्षत माता का मंदिर]]), [[जोधपुर]] में ओसिया का सच्चियां माता का मन्दिर, जोधपुर संभाग में किराडू का मंदिर, इत्यादि और भिन्न प्रांतों के प्राचीन मंदिर कला के विविध स्वरों की अभिव्यक्ति संलग्न राजस्थान के सांस्कृतिक इतिहास पर विस्तृत प्रकाश डालने वाले स्थापत्य के नमूने हैं। उल्लेखित युग में निर्मित [[चित्तौड़गढ़ दुर्ग|चित्तौड़]], [[कुम्भलगढ़]], [[रणथंभौर क़िला|रणथंभोर]], [[गागरोन दुर्ग|गागरोन]], [[अचलगढ़ क़िला|अचलगढ़]], गढ़ बिरली ([[अजमेर]] का [[तारागढ़ क़िला, अजमेर|तारागढ़]]) [[जालौर]], जोधपुर आदि के [[दुर्ग]]-स्थापत्य कला में राजपूत स्थापत्य शैली के दर्शन होते हैं। सुरक्षा प्रेरित शिल्पकला इन दुर्गों की विशेषता कही जा सकती है जिसका प्रभाव इनमें स्थित मन्दिर शिल्प-मूर्ति लक्षण एवं भवन निर्माण में आसानी से परिलक्षित है।
==राजस्थान की हस्तकलाएँ==
# [[मीनाकारी]]
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# [[पॉटरी कला]]
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14:00, 2 मार्च 2015 का अवतरण

राजस्थान की हस्तकला पूरे भारत में बहुत प्रसिद्ध है। सातवीं शताब्दी से राजस्थान की शिल्पकला में राजपूत प्रशासन का प्रभाव हमें शक्ति और भक्ति के विविध पक्षों द्वारा प्राप्त होता है। जयपुर ज़िले में स्थित आभानेरी का मन्दिर (हर्षत माता का मंदिर), जोधपुर में ओसिया का सच्चियां माता का मन्दिर, जोधपुर संभाग में किराडू का मंदिर, इत्यादि और भिन्न प्रांतों के प्राचीन मंदिर कला के विविध स्वरों की अभिव्यक्ति संलग्न राजस्थान के सांस्कृतिक इतिहास पर विस्तृत प्रकाश डालने वाले स्थापत्य के नमूने हैं। उल्लेखित युग में निर्मित चित्तौड़, कुम्भलगढ़, रणथंभोर, गागरोन, अचलगढ़, गढ़ बिरली (अजमेर का तारागढ़) जालौर, जोधपुर आदि के दुर्ग-स्थापत्य कला में राजपूत स्थापत्य शैली के दर्शन होते हैं। सुरक्षा प्रेरित शिल्पकला इन दुर्गों की विशेषता कही जा सकती है जिसका प्रभाव इनमें स्थित मन्दिर शिल्प-मूर्ति लक्षण एवं भवन निर्माण में आसानी से परिलक्षित है।

राजस्थान की हस्तकलाएँ

  1. मीनाकारी
  2. पॉटरी कला
  3. आला गिल्ला कारीगरी
  4. मथैरणा कला
  5. उस्ता कला
  6. रंगाई व छपाई कला
  7. चर्म कला
  8. मूर्तिकला
  9. थेवा कला
  10. टेराकोटा कला
  11. फड़ चित्रांकन
  12. रमकड़ा कला उद्योग
  13. तूडिया हस्तशिल्प
  14. तारकशी कला
  15. पिछवाई कला
  16. कोफ्त गिरी
  17. काष्ठ कला
  18. कुंदन कला
  19. पेचवर्क कला

राजस्थानी साड़ियाँ

  • फूल-पत्ती की छपाई वाली साड़ियाँ- जोबनेर (जयपुर) में बनाई जाती हैं।
  • स्प्रे पेन्टिंग्स की साड़ियाँ - नाथद्वारा (राजसमंद) में बनाई जाती हैं।
  • सानिया साड़ियाँ - जालौर में बनाई जाती हैं।
  • सूंठ की साड़ियाँ - सवाई माधोपुर में बनाई जाती हैं।
  • बंधेज की साड़ियाँ - जोधपुर में बनाई जाती हैं।
  • चुनरी, लहरिया व पोमचे - जयपुर में बनाई जाती हैं।

बन्धेज का कार्य

  • बन्धेज के कार्य के लिए जयपुरजोधपुर प्रसिद्ध है।
  • लहरिया, चुनरी व पौमचे जयपुर के प्रसिद्ध है।
  • सर्वोत्तम किस्म की बन्धेज के लिए शेखावटी क्षेत्र प्रसिद्ध हैं
साफा -
  • बावरा:- पांच रंग युक्त बन्धेज का साफा।
  • मोठडा - दो रंग युक्त बंधेज का साफा।

कढ़ाई एवं कसीदाकारी का कार्य

  • इस कार्य के लिए शेखावटी क्षेत्र प्रसिद्ध है।
  • कपड़े पर कांच की कढ़ाई के लिए जैसलमेर, बाड़मेर प्रसिद्ध है।

ज़री-गोटे का कार्य

  • ज़री-गोटे के कार्य के लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
  • गोटा-किनारी की बल्कि शैली के लिए खण्डेला (सीकर) प्रसिद्ध है।
  • गोटे के प्रकार - लप्पा, लप्पी, लहर, किरण, गोखरू बांकडी, नक्षी, सितारा दबका आदि।

गलीचे, नमदे व दरियां

  • गलीचों के लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
  • बीकानेर जेल में वियना तथा फारसी डिजाइन में गलीचे तैयार किए जाते है, जो विष्व प्रसिद्ध है।
  • नमदों के लिए टोंक प्रसिद्ध है।
  • अजमेर, टोंक, नागौर, जोधपुर ज़िले दरियों के लिए प्रसिद्ध है।
  • गांव - सालावस (जोधपुर), टाकला (नागौर), लवाण (दौसा) दरी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।
  • खेस के लिए चैमूं (जयपुर) प्रसिद्ध है।
  • खेसला के लिए लेटाग्राम (जालौर) प्रसिद्ध है।
  • लेटागांव को सौ बुनकरों का गांव कहते हैं।

कुट्टी / पेपर पेशी

  • कुट्टी / पेपर मेशी कार्य के लिए सांगानेर (जयपुर) प्रसिद्ध है।

अन्य हस्त कलाएँ

  • तलवार निर्माण - सिरोही
  • खेल का सामान - हनुमानगढ़
  • कृषि यंत्र - गजसिंहपुर, सांगरिया
  • आधुनिक कृषि यंत्र - कोटा
  • गरासियों की फाग- सोजत (पाली)
  • मेहंदी - सोजत (पाली)
  • छाते- फालना (पाली)
  • डूंगरशाही ओढनी - जोधपुर
  • नान्दणे (कलात्मक घाघरे) -भीलवाडा
  • पाव रजाई -जयपुर
  • संगमरमर की मूर्तियां - जयपुर व किषोरी गांव (अलवर)
  • पशु-पक्षियों का सैट - जयपुर
  • कठपुतली निर्माण -उदयपुर
  • ऊनी बरड़ी/पट्टू - जैसलमेर
  • ऊनी लोई - नापासर (बीकानेर)
  • सुराही, मटके -रामसर (बीकानेर)
  • बादला नामक बर्तन (जिंक निर्मित)- जोधपुर
  • लाख का सामान - जोधपुर, उदयपुर, जयपुर
  • काली, लाल व हरी चूडियां - जोधुपर
  • हाथी दांत की चूडिंया - जयपुर
  • चांदी का कार्य - बीकानेर
  • सुक्ष्म चित्रण (मिनिएचर पेंटिंग्स) - जयपुर, किषनगढ़
  • धातू के कार्य के लिए - नागौर
  • पीतल पर मुरादाबादी षैली का कार्य - जयपुर
  • कांसे के बर्तन - भीलवाडा
  • गोल्डन पेंटिग्स - नागौर
  • लकड़ी के झुले - जोधपुर
  • लकडी के फर्नीचर पर चित्रकारी - जोधपुर
  • चंदन काष्ठ कला - मल्यागिरी का कार्य - चूरू। कारीगर - चैथमल
  • मृण मूर्तियां - मोलेला (राजसमंद)
  • बकरी के बालो की जट पटिृयां - जसोल (बाड़मेर)

शिल्प ग्राम

राजस्थान राज्य के दो शिल्पग्राम निम्नलिखित हैं-

  1. हवाला ग्राम (उदयपुर)
  2. बोरनाडा (जोधपुर)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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