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इस कथा में [[उत्तर वैदिक काल]] की मान्यताओं की झलक मिलती है। एक स्त्री के द्वारा वचन निबाहने की पराकाष्ठा और एक [[शूद्र|शूद्रों]] के विद्रोही नेता, जिसकी जाति का पता नहीं, एक [[वैश्य]] स्त्री से विवाह करता है। उस स्त्री को एक [[ब्राह्मण]] से बेटा होता है, जिसे एक [[क्षत्रिय]] राजा गोद लेता है। इससे जाति के उतार-चढ़ाव का पता चलता है। चंद्रप्रभा के पिता के रूप में विद्रोही के अधिकार को ही मान्यता दी जाती है, न कि ब्राह्मण या क्षत्रिय के अधिकार को। व्यक्ति के अधिकार के संदर्भ में जाति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|पूरा पढ़ें]] | इस कथा में [[उत्तर वैदिक काल]] की मान्यताओं की झलक मिलती है। एक स्त्री के द्वारा वचन निबाहने की पराकाष्ठा और एक [[शूद्र|शूद्रों]] के विद्रोही नेता, जिसकी जाति का पता नहीं, एक [[वैश्य]] स्त्री से [[विवाह]] करता है। उस स्त्री को एक [[ब्राह्मण]] से बेटा होता है, जिसे एक [[क्षत्रिय]] राजा गोद लेता है। इससे जाति के उतार-चढ़ाव का पता चलता है। चंद्रप्रभा के पिता के रूप में विद्रोही के अधिकार को ही मान्यता दी जाती है, न कि ब्राह्मण या क्षत्रिय के अधिकार को। व्यक्ति के अधिकार के संदर्भ में जाति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|पूरा पढ़ें]] | ||
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