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एक राजा जिसका नाम चंद्रप्रभा था, [[पिण्ड (श्राद्ध)|पिंडदान]] करने नदी के किनारे पहुँचा। पिंड को हाथ में लेकर वह नदी में प्रवाहित करने को ही था कि नदी से तीन हाथ पिंड लेने को निकले। | एक राजा जिसका नाम चंद्रप्रभा था, [[पिण्ड (श्राद्ध)|पिंडदान]] करने नदी के किनारे पहुँचा। पिंड को हाथ में लेकर वह नदी में प्रवाहित करने को ही था कि नदी से तीन हाथ पिंड लेने को निकले। | ||
राजा आश्चर्य में पड़ गया। ब्राह्मण ने कहा: | राजा आश्चर्य में पड़ गया। ब्राह्मण ने कहा: राजन! इन तीन हाथों में से एक हाथ किसी सूली पर चढ़ाए व्यक्ति का है क्योंकि उसकी कलाई पर रस्सी से बांधने का चिह्न बना है, दूसरा हाथ किसी ब्राह्मण का है क्योंकि उसके हाथ में दूब (घास) है और तीसरा किसी राजा का है क्योंकि उसका हाथ राजसी प्रतीत होता है साथ ही उसकी उंगली में राजमुद्रिका है।” [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|पूरा पढ़ें]] | ||
राजन! इन तीन हाथों में से एक हाथ किसी सूली पर चढ़ाए व्यक्ति का है क्योंकि उसकी कलाई पर रस्सी से बांधने का चिह्न बना है, दूसरा हाथ किसी ब्राह्मण का है क्योंकि उसके हाथ में दूब (घास) है और तीसरा किसी राजा का है क्योंकि उसका हाथ राजसी प्रतीत होता है साथ ही उसकी उंगली में राजमुद्रिका है।” [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|पूरा पढ़ें]] | |||
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14:49, 3 मार्च 2015 का अवतरण
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