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| |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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| <center>[[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|भारत की जाति-वर्ण व्यवस्था]]</center>
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| [[चित्र:Bharat-Ek-Khoj.jpg|right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015]]
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| एक राजा जिसका नाम चंद्रप्रभा था, [[पिण्ड (श्राद्ध)|पिंडदान]] करने नदी के किनारे पहुँचा। पिंड को हाथ में लेकर वह नदी में प्रवाहित करने को ही था कि नदी से तीन हाथ पिंड लेने को निकले।
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| राजा आश्चर्य में पड़ गया। ब्राह्मण ने कहा: राजन! इन तीन हाथों में से एक हाथ किसी सूली पर चढ़ाए व्यक्ति का है क्योंकि उसकी कलाई पर रस्सी से बांधने का चिह्न बना है, दूसरा हाथ किसी ब्राह्मण का है क्योंकि उसके हाथ में दूब (घास) है और तीसरा किसी राजा का है क्योंकि उसका हाथ राजसी प्रतीत होता है साथ ही उसकी उंगली में राजमुद्रिका है।” [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मार्च 2015|पूरा पढ़ें]]
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] →
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय 15 जनवरी 2015|भूली-बिसरी कड़ियों का भारत]] ·
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय 23 सितम्बर 2014|‘ब्रज’ एक अद्भुत संस्कृति]]
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| |}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
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