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'''गीत गोविन्द''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gita Govinda'') 12 अध्यायों वाला एक गीति काव्य है जिसे प्रबंध कहे जाने वाले चौबीस भागों में विभाजित किया गया है। इसके रचयिता 12वीं शताब्दी के कवि [[जयदेव]] हैं। इस कृति में रचयिता ने धार्मिक उत्साह के साथ श्रृंगारिकता का सुन्दर संयोजन प्रस्तुत किया है। यह मध्यकालीन [[वैष्णव संप्रदाय]] से संबंधित है और इसमें [[राधा]] और [[कृष्ण]] की प्रेम लीला और उनके अलगाव के दुःख (विरह-वेदना) का वर्णन किया गया है। इस काव्य में, कवि के अनुसार, उन्होंने संगीत और नृत्य की अपनी प्रवीणता, भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति, ज्ञान और श्रृंगार या काम-शास्त्र के प्रति अपनी समझ आदि का चित्रण किया है। | '''गीत गोविन्द''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gita Govinda'') 12 अध्यायों वाला एक गीति काव्य है जिसे प्रबंध कहे जाने वाले चौबीस भागों में विभाजित किया गया है। इसके रचयिता 12वीं शताब्दी के कवि [[जयदेव]] हैं। इस कृति में रचयिता ने धार्मिक उत्साह के साथ श्रृंगारिकता का सुन्दर संयोजन प्रस्तुत किया है। यह मध्यकालीन [[वैष्णव संप्रदाय]] से संबंधित है और इसमें [[राधा]] और [[कृष्ण]] की प्रेम लीला और उनके अलगाव के दुःख (विरह-वेदना) का वर्णन किया गया है। इस काव्य में, कवि के अनुसार, उन्होंने संगीत और नृत्य की अपनी प्रवीणता, भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति, ज्ञान और श्रृंगार या काम-शास्त्र के प्रति अपनी समझ आदि का चित्रण किया है। | ||
==भक्ति संगीत की लोकप्रिय कृति== | ==भक्ति संगीत की लोकप्रिय कृति== |
09:35, 19 मई 2015 के समय का अवतरण
गीत गोविन्द (अंग्रेज़ी: Gita Govinda) 12 अध्यायों वाला एक गीति काव्य है जिसे प्रबंध कहे जाने वाले चौबीस भागों में विभाजित किया गया है। इसके रचयिता 12वीं शताब्दी के कवि जयदेव हैं। इस कृति में रचयिता ने धार्मिक उत्साह के साथ श्रृंगारिकता का सुन्दर संयोजन प्रस्तुत किया है। यह मध्यकालीन वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है और इसमें राधा और कृष्ण की प्रेम लीला और उनके अलगाव के दुःख (विरह-वेदना) का वर्णन किया गया है। इस काव्य में, कवि के अनुसार, उन्होंने संगीत और नृत्य की अपनी प्रवीणता, भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति, ज्ञान और श्रृंगार या काम-शास्त्र के प्रति अपनी समझ आदि का चित्रण किया है।
भक्ति संगीत की लोकप्रिय कृति
कृति के अन्त में वह रचना के इन पक्षों की समीक्षा के लिए आलोचकों को आमंत्रित करते हैं। प्रबंध कहे जाने वाले प्रत्येक उपविभाग पुनः दो भागों में विभक्त किए गए हैं जिनमें आठ दोहे होते हैं और इसी कारण वे अष्टपदी कहलाते हैं। इन अष्टपदियों के आगे और पीछे विभिन्न प्रकार के छंदों वाले श्लोक हैं जो संख्या में तेरह हैं। यह छंद शास्त्र में उनके महारथ को दर्शाता है और परवर्ती कवि उनके शब्द चयन की सराहना करते हैं। क्षेत्रीय संस्करणों एवं अनुकृतियों के अलावा इस कृति पर चालीस से भी अधिक टीकाएं उपलब्ध हैं। इससे इस कृति की लोकप्रियता का पता चलता है। ‘गीत गोविन्द’ के गीत संपूर्ण भारत में भक्ति संगीत में पिरोए गए हैं। उन्हें नृत्य और चित्रकारी का विषय भी बनाया गया है। इस सबके मूल में श्रोताओं और दर्शकों की भावनाओं को जागृत करने की इसकी क्षमता है। यही कारण है कि इसका अनुवाद भारत की सभी भाषाओं में होने के साथ ही आधुनिक काल में यूरोपीय भाषाओं में भी किया गया है। जब आप गीत गोविन्द के गीत सुनते हैं या नृत्य की मुद्राओं में उनकी अभिव्यक्ति देखते हैं तो यह आप में सुरुचि पैदा करता है और एक साहित्यिक स्वाद और धार्मिक भाव जगाता है। यह श्रोता की सांस्कृतिक प्रकृति के साथ घुल-मिल जाता है। इसे विभिन्न संगीत और नृत्य विधाओं में ढालना सरल होता है। अपनी धार्मिकता के कारण यह मंदिरों के नृत्य कलाकारों द्वारा अपनाया गया। उड़ीसा (अब ओडिशा) में अपनी रचना के मूल स्थान से निकल कर यह पश्चिम बंगाल, गुजरात, दक्षिण भारत और नेपाल तक लोकप्रिय हुआ। इन गीतों के लिए रागों और तालों के रचना की गई और विभिन्न अवसरों पर उन्हें गाया जाना लगा और उनपर नृत्य प्रस्तुत किए जाने लगे।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीत गोविंद (हिन्दी) ignca.nic.in। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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