"फूलमंजरी": अवतरणों में अंतर
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'''फूलमंजरी''' [[मतिराम]] की प्रथम रचना मानी जाती है। यह अभी तक अप्रकाशित है। इसकी प्रति भवानीशंकर याज्ञिक को [[भरतपुर|भरतपुर राज्य]] में [[हिन्दी]] पुस्तकों की खोज | '''फूलमंजरी''' [[मतिराम]] की प्रथम रचना मानी जाती है। यह अभी तक अप्रकाशित है। इसकी प्रति भवानीशंकर याज्ञिक को [[भरतपुर|भरतपुर राज्य]] में [[हिन्दी]] पुस्तकों की खोज करते समय मिली थी। इसका विवरण [[1 जुलाई]], सन [[1924]] की 'माधुरी' [[पत्रिका]] में<ref>मायाशंकर याज्ञिक लिखित 'मतिराम और भूषण' लेख में।</ref> दिया गया है। इसके अनुसार यह एक छोटी-सी पुस्तिका है। इसमें 60 [[दोहा|दोहे]] हैं और प्रत्येक दोहे में एक [[फूल]] का नाम आता है। इसके साथ ही नायिका से सम्बन्धित वर्णन भी हैं। फूल का नाम [[श्लेष अलंकार|श्लेष]] से उस वर्णन में भी खप जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=362|url=}}</ref> | ||
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इससे स्पष्ट है कि जब जहाँगीर बादशाह हो गया और वह आगरा के महल में था, उस समय [[मतिराम|मतिराम कवि]] को 'फूलमंजरी' लिखने की उसने आज्ञा दी। यह समय 'मतिराम ग्रंथावली' के सम्पादन के अनुसार वह था, जब जहाँगीर 16वें जलूसी वर्ष का उत्सव मना रहा था। 'जहाँगीरनामा' के प्रमाण के अनुसार यह उत्सव [[संवत]] 1678 वि. (1030 [[हिजरी]]) में मनाया गया था। अत: 'फूलमंजरी' का रचना काल भी इसी के आसपास माना जाना चाहिए। 'फूलमंजरी' जैसी रचना उत्सव के समय की ही कृति हो सकती है। | इससे स्पष्ट है कि जब जहाँगीर बादशाह हो गया और वह आगरा के महल में था, उस समय [[मतिराम|मतिराम कवि]] को 'फूलमंजरी' लिखने की उसने आज्ञा दी। यह समय 'मतिराम ग्रंथावली' के सम्पादन के अनुसार वह था, जब जहाँगीर 16वें जलूसी वर्ष का उत्सव मना रहा था। 'जहाँगीरनामा' के प्रमाण के अनुसार यह उत्सव [[संवत]] 1678 वि. (1030 [[हिजरी]]) में मनाया गया था। अत: 'फूलमंजरी' का रचना काल भी इसी के आसपास माना जाना चाहिए। 'फूलमंजरी' जैसी रचना उत्सव के समय की ही कृति हो सकती है। | ||
कुछ विद्वानों के मतानुसार 'फूलमंजरी' की रचना में एक दो वर्ष लगे होंगे।<ref>महाकवि मतिराम, पृष्ठ 126</ref> इस प्रकार इसकी समाप्ति संवत 1882 या 84 में हुई, परंतु [[मतिराम]] जैसे प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति का 60 [[दोहा|दोहों]] के लिए दस साल का समय लगाना उचित नहीं जान पड़ता। अत: ' | कुछ विद्वानों के मतानुसार 'फूलमंजरी' की रचना में एक दो [[वर्ष]] लगे होंगे।<ref>महाकवि मतिराम, पृष्ठ 126</ref> इस प्रकार इसकी समाप्ति संवत 1882 या 84 में हुई, परंतु [[मतिराम]] जैसे प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति का 60 [[दोहा|दोहों]] के लिए दस साल का समय लगाना उचित नहीं जान पड़ता। अत: 'फूलमंजरी' 1621 ई. की ही रचना मानी जानी चाहिए। कृष्णबिहारी मिश्र के मतानुसार यदि उस समय उनकी किशोरावस्था की आयु 18 वर्ष के लगभग मानी जाये तो मतिराम का जन्म-काल 1603 ई. के आसपास समझा जा सकता है। | ||
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'फूलमंजरी' एक सरस रचना है। इसमें मतिराम की रसिकता टपकती है। फूलों के नाम के साथ [[जहाँगीर]] का विभिन्न नायिकाओं के साथ विनोद इसमें वर्णित हैं- | 'फूलमंजरी' एक सरस रचना है। इसमें मतिराम की रसिकता टपकती है। फूलों के नाम के साथ [[जहाँगीर]] का विभिन्न नायिकाओं के साथ विनोद इसमें वर्णित हैं- | ||
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कमल नैन लीने कमल, कमल मुखी के ठाँव। तन न्योछावरि राजकी, यहि आवनि बलि जाँव।।"</poem></blockquote> | कमल नैन लीने कमल, कमल मुखी के ठाँव। तन न्योछावरि राजकी, यहि आवनि बलि जाँव।।"</poem></blockquote> | ||
इसकी [[भाषा]] सरस एवं सरल है। फूलों के प्रसंग को लेकर इस प्रकार के ग्रंथों की परम्परा [[हिन्दी]] में मिलती है और इस प्रसंग में 'कुसुमावली' और 'अनुराग बाग' के नाम उल्लेखनीय हैं, जिनमें क्रमश: फूलों के साथ भगवन्नामोल्लेख एवं प्रेम का वर्णन हुआ है। [[मतिराम]] की जन्म तिथि निकालने की दृष्टि से 'फूलमंजरी' का विशेष स्थान है।<ref>सहायता ग्रंथ- मतिराम-कवि और आचार्य: महेन्द्र कुमार: महाकवि मतिराम: त्रिभुवन सिंह।</ref> | इसकी [[भाषा]] सरस एवं सरल है। [[फूल|फूलों]] के प्रसंग को लेकर इस प्रकार के ग्रंथों की परम्परा [[हिन्दी]] में मिलती है और इस प्रसंग में 'कुसुमावली' और 'अनुराग बाग' के नाम उल्लेखनीय हैं, जिनमें क्रमश: फूलों के साथ भगवन्नामोल्लेख एवं प्रेम का वर्णन हुआ है। [[मतिराम]] की जन्म तिथि निकालने की दृष्टि से 'फूलमंजरी' का विशेष स्थान है।<ref>सहायता ग्रंथ- मतिराम-कवि और आचार्य: महेन्द्र कुमार: महाकवि मतिराम: त्रिभुवन सिंह।</ref> | ||
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05:45, 20 मई 2015 के समय का अवतरण
फूलमंजरी मतिराम की प्रथम रचना मानी जाती है। यह अभी तक अप्रकाशित है। इसकी प्रति भवानीशंकर याज्ञिक को भरतपुर राज्य में हिन्दी पुस्तकों की खोज करते समय मिली थी। इसका विवरण 1 जुलाई, सन 1924 की 'माधुरी' पत्रिका में[1] दिया गया है। इसके अनुसार यह एक छोटी-सी पुस्तिका है। इसमें 60 दोहे हैं और प्रत्येक दोहे में एक फूल का नाम आता है। इसके साथ ही नायिका से सम्बन्धित वर्णन भी हैं। फूल का नाम श्लेष से उस वर्णन में भी खप जाता है।[2]
रचना काल
इस पुस्तक की तीन प्रतियाँ प्राप्त हुई हैं और सबसे प्राचीन प्रति सन 1793 ई. (संवत 1850) की लिखी हुई है। ग्रंथ के अंतिम दोहे में यह स्पष्ट है कि यह पुस्तक मुग़ल बादशाह जहाँगीर के लिए आगरा में बनायी गयी थी-
"हुकुम पाय जहाँगीर के लिए आगरे धाम। फूलनि की माला करी, मति सों कवि मतिराम ॥"
इससे स्पष्ट है कि जब जहाँगीर बादशाह हो गया और वह आगरा के महल में था, उस समय मतिराम कवि को 'फूलमंजरी' लिखने की उसने आज्ञा दी। यह समय 'मतिराम ग्रंथावली' के सम्पादन के अनुसार वह था, जब जहाँगीर 16वें जलूसी वर्ष का उत्सव मना रहा था। 'जहाँगीरनामा' के प्रमाण के अनुसार यह उत्सव संवत 1678 वि. (1030 हिजरी) में मनाया गया था। अत: 'फूलमंजरी' का रचना काल भी इसी के आसपास माना जाना चाहिए। 'फूलमंजरी' जैसी रचना उत्सव के समय की ही कृति हो सकती है। कुछ विद्वानों के मतानुसार 'फूलमंजरी' की रचना में एक दो वर्ष लगे होंगे।[3] इस प्रकार इसकी समाप्ति संवत 1882 या 84 में हुई, परंतु मतिराम जैसे प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति का 60 दोहों के लिए दस साल का समय लगाना उचित नहीं जान पड़ता। अत: 'फूलमंजरी' 1621 ई. की ही रचना मानी जानी चाहिए। कृष्णबिहारी मिश्र के मतानुसार यदि उस समय उनकी किशोरावस्था की आयु 18 वर्ष के लगभग मानी जाये तो मतिराम का जन्म-काल 1603 ई. के आसपास समझा जा सकता है।
सरस कृति
'फूलमंजरी' एक सरस रचना है। इसमें मतिराम की रसिकता टपकती है। फूलों के नाम के साथ जहाँगीर का विभिन्न नायिकाओं के साथ विनोद इसमें वर्णित हैं-
"निसि कारी भारी हुती, तरसत मेरी जीव। फूल निवारी को सरस, वारी तुम पर पीव।।
कमल नैन लीने कमल, कमल मुखी के ठाँव। तन न्योछावरि राजकी, यहि आवनि बलि जाँव।।"
इसकी भाषा सरस एवं सरल है। फूलों के प्रसंग को लेकर इस प्रकार के ग्रंथों की परम्परा हिन्दी में मिलती है और इस प्रसंग में 'कुसुमावली' और 'अनुराग बाग' के नाम उल्लेखनीय हैं, जिनमें क्रमश: फूलों के साथ भगवन्नामोल्लेख एवं प्रेम का वर्णन हुआ है। मतिराम की जन्म तिथि निकालने की दृष्टि से 'फूलमंजरी' का विशेष स्थान है।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मायाशंकर याज्ञिक लिखित 'मतिराम और भूषण' लेख में।
- ↑ हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 362 |
- ↑ महाकवि मतिराम, पृष्ठ 126
- ↑ सहायता ग्रंथ- मतिराम-कवि और आचार्य: महेन्द्र कुमार: महाकवि मतिराम: त्रिभुवन सिंह।