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इंदिरा गाँधी
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पूरा नाम | इंदिरा प्रियदर्शनी गांधी |
अन्य नाम | इन्दु |
जन्म | 19 नवम्बर, 1917 |
जन्म भूमि | इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 31 अक्टूबर, 1984 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली, भारत |
मृत्यु कारण | हत्या |
पति/पत्नी | फ़िरोज़ गाँधी |
संतान | राजीव गाँधी और संजय गाँधी |
स्मारक | शक्ति स्थल, दिल्ली |
प्रसिद्धि | 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय |
पार्टी | काँग्रेस |
पद | भारत की तृतीय प्रधानमंत्री |
कार्य काल | 19 जनवरी 1966-24 मार्च 1977, 14 जनवरी 1980-31 अक्टूबर 1984 |
विद्यालय | विश्वभारती विश्वविद्यालय बंगाल, इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी, शांति निकेतन |
भाषा | हिन्दी, अग्रेज़ी |
जेल यात्रा | अक्टूबर 1977 और दिसम्बर 1978 |
पुरस्कार-उपाधि | भारत रत्न सम्मान |
विशेष योगदान | बैंको का राष्ट्रीयकरण |
इंदिरा गाँधी- भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री
जन्म-1917, मृत्यु-1984
इन्दिरा गांधी ने न केवल भारतीय राजनीति को नये आयाम दिये बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वे एक युग बनकर छाई रहीं। राष्ट्रप्रेम, राष्ट्र की अखण्डता, राजनीति और लोक कल्याण, आदि उन्हें अपने दादा पं मोतीलाल नेहरू और पिता पं जवाहर लाल नेहरू से विरासत में मिले थे। उन दिनों भारत ब्रिटिश दासता के चंगुल से मुक्त होने के लिए छटपटा रहा था।
जीवन परिचय
एशिया की इस लौह-महिला का जन्म 19 नवम्बर, 1917 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश के एक सम्पन्न परिवार में हुआ। इनका पूरा नाम है- 'इन्दिरा प्रियदर्शनी गांधी'। वे राष्ट्रनायक तथा भारत के प्रथम पंधानमंत्री पं0 जवाहर नेहरू की इकलौती सन्तान थीं। उन्होंने पश्चिम बंगाल में विश्वभारती विश्वविद्यालय और इंग्लैंड की आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त की। 1942 में उनका विवाह फिरोज़ गाँधी से हुआ। उनके दो पुत्र हुए- राजीव गाँधी और संजय गाँधी। राजीव गांधी भी भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं।
वानर सेना का गठन
राजनेता और जनसाधारण, दोनों ही आज़ादी के आन्दोलनों में बराबर के भागीदार थे। नन्ही इन्दिरा के दिल पर इन सभी घटनाओं का अमिट प्रभाव पड़ा और 13 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने 'वानर सेना' का गठन कर अपने इरादों को स्पष्ट कर दिया।
कार्यकारी समिति की सदस्य
1955 से वह सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं और 1959 में पार्टी की अध्यक्ष चुनी गईं। नेहरू के बाद 1964 में प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें अपनी सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया।
प्रथम महिला प्रधानमंत्री
इन्दिरा गांधी लगातार तीन बार (1966-77) और फिर चौथी बार (1980-84) भारत की प्रधानमंत्री बनी।
- भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी भारत की तृतीय और प्रथम महिला प्रधानमंत्री निर्वाचित हुई।
- 1967 के चुनाव में वह बहुत ही कम बहुमत से जीत सकीं।
- 1971 में पुनः भारी बहुमत से वे प्रधामंत्री बनी और 1977 तक निरन्तर इस गौरवशाली पद पर रहते हुए उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक नयी शक्ति के रूप में स्थापित किया।
- 1977 के बाद ये 1980 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनी और 1984 तक प्रधानमंत्री के पद पर रही।
जनवरी 1966 में शास्त्रीजी की अचानक मृत्यु के बाद श्रीमती गांधी पार्टी की दक्षिण और वाम शाखाओं के बीच सुलह के तौर पर कांग्रेस पार्टी की नेता (और इस तरह प्रधानमंत्री भी) बन गईं, लेकिन उनके नेतृत्व को भूतपूर्व वित्त मंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पार्टी की दक्षिण शाखा से लगातार चुनौती मिलती रही। 1967 के चुनाव में वह बहुत ही कम बहुमत से जीत सकीं और उन्हें देसाई को उप-प्रधानमंत्री स्वीकार करना पड़ा। लेकिन 1971 में उन्होंने रूढ़िवादी पार्टियों के गठबंधन को भारी बहुमत से पराजित किया।
बांग्लादेश का निर्माण
श्रीमती गांधी ने 1971 के उत्तरार्द्ध में पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) द्वारा पाकिस्तान से अलग होने के संघर्ष का ज़ोरदार समर्थन किया और भारत की सशस्त्र सेनाओं ने पाकिस्तान पर त्वरित और निर्णायक जीत हासिल की। जिसके फलस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
आपातकाल
मार्च 1972 में पाकिस्तान पर भारत की जीत के बाद श्रीमती गाँधी ने राष्ट्रीय चुनावों मे अपनी नई कांग्रेस पार्टी की ज़ोरदार जीत का नेतृत्व किया। कुछ ही समय बाद उनके पराजित समाजवादी प्रतिद्वन्दी ने उन पर चुनाव नियमों के उल्लघंन का आरोप लगाया। जून 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया। जिससे उनकी संसद की सदस्यता समाप्त हो जाती और उन्हें छः वर्ष के लिए राजनीति से अलग रहना पड़ता। प्रतिक्रियास्वरूप उन्होंने समूचे भारत में आपातकाल की घोषणा कर दी। अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों को गिरफ़्तार करवा लिया और आपातकालीन शक्तियाँ हासिल करके व्यक्तिगत स्वतंत्रता सीमित करने सम्बन्धी कई क़ानून बनाए। इस काल में उन्होंने कई अलोकप्रिय नीतियाँ लागू कीं, जिनमें बड़े पैमाने पर नसबंदी (जन्म नियंत्रण का एक उपाय) कार्यक्रम भी शामिल था। जब लम्बे समय तक स्थगित राष्ट्रीय चुनाव 1977 में हुए तो, श्रीमती गांधी और उनकी पार्टी की करारी हार हुई, जिसके बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा। जनता पार्टी ने सरकार की बागडोर सम्भाली।
कांग्रेस—इ पार्टी की स्थापना
1978 के आरम्भ में श्रीमती गांधी के समर्थक कांग्रेस पार्टी से अलग हो गए और कांग्रेस—इ (इ से इंदिरा) पार्टी की स्थापना की। सरकारी भ्रष्टाचार के आरोप में श्रीमती गांधी कुछ तक जेल (अक्टूबर 1977 और दिसम्बर 1978) में रहीं। इन झटकों के बावजूद नवम्बर 1978 में वह नई संसदीय सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं और उनकी कांग्रेस—इ पार्टी धीरे-धीरे फिर से मज़बूत होने लगी। सत्तारूढ़ जनता पार्टी में अंतर्कलह के कारण अगस्त 1979 में सरकार गिर गई। जब जनवरी 1980 में लोकसभा (संसद का निचला सदन) के लिए चुनाव हुए तो श्रीमती गांधी और उनकी पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में लौट आई। उनके प्रमुख राजनीतिक सलाहकार, उनके पुत्र संजय गांधी भी लोकसभा की सीट पर विजयी रहे। इंदिरा और उनके पुत्र के ख़िलाफ़ चल रहे सभी क़ानूनी मुक़दमे वापस ले लिए गए।
ऑपरेशन ब्लू स्टार और हत्या
जून 1980 में एक वायुयान दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु ने भारत के राजनीतिक नेतृत्व के लिए इंदिरा गांधी के चुने हुए उत्तराधिकारी को समाप्त कर दिया। संजय की मृत्यु के बाद इंदिरा ने अपने दूसरे पुत्र राजीव गांधी को पार्टी के नेतृत्व के लिए तैयार किया। 1980 के दशक के आरम्भ में इंदिरा गांधी को भारत की राजनीतिक अखंडता के ख़तरों से झूझना पड़ा। कई राज्य केन्द्र सरकार से अधिक स्वतंत्रता की माँग करने लगे तथा पंजाब में सिक्ख आतंकवादियों ने स्वायत्त राज्य की माँग पर ज़ोर देने के लिए हिंसा का रास्ता अपना लिया। जवाब में श्रीमती गांधी ने जून 1984 में सिक्खों के पवित्रतम धर्मस्थल अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर पर सेना के हमले के आदेश दिए, जिसके फलस्वरूप 450 से अधिक सिक्खों की मृत्यु हो गई। स्वर्ण मन्दिर पर हमले के प्रतिकार में पाँच महीने के बाद ही श्रीमती गांधी के आवास पर तैनात उनके दो सिक्ख अंगरक्षकों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। श्रीमती गांधी के द्वारा शुरू की गई औद्योगिक विकास की अर्द्ध समाजवादी नीतियों पर क़ायम रहीं। उन्होंने सोवियत संघ के साथ नज़दीकी सम्बन्ध क़ायम किए और पाकिस्तान—भारत विवाद के दौरान समर्थन के लिए उसी पर आश्रित रहीं।
उपलब्धियाँ
करोड़ों लोगों की प्रिय प्रधानमंत्री का जीवन-इतिहास उपलब्धियों से भरा पड़ा है। जिनमें प्रमुख हैं—
- बैंकों का राष्ट्रीयकरण,
- निर्धन लोगों के उत्थान के लिए आयोजित 20 सूत्रीय कार्यक्रम,
- गुट निरपेक्ष आन्दोलन की अध्यक्षा, इत्यादि।
- 1980 में वे विपक्षी दलों को करारी पराजय देकन पुनः प्रधानमंत्री चुनी गईं।
निधन
31 अक्टूबर, 1984 की मनहूस सुबह को उन्हीं के अंगरक्षकों ने गोलियों से उन्हें शहादत की बलिवेदी पर चढ़ा दिया।
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सम्बंधित लिंक
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