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==गीतकार के रूप में==
==गीतकार के रूप में==
आनंद बख़्शी बचपन से ही फ़िल्मों में काम करके शोहरत की बुंलदियों तक पहुंचने का सपना देखा करते थे, लेकिन लोगों के मज़ाक उड़ाने के डर से उन्होंने अपनी यह मंशा कभी ज़ाहिर नहीं की थी। वह फ़िल्मी दुनिया में गायक के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे। आनंद बख़्शी अपने सपने को पूरा करने के लिए 14 वर्ष की उम्र में ही घर से भागकर फ़िल्म नगरी [[मुंबई]] आ गए, जहाँ उन्होंने 'रॉयल इंडियन नेवी' में कैडेट के तौर पर 2 वर्ष तक काम किया। किसी विवाद के कारण उन्हें वह नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद [[1947]] से [[1956]] तक उन्होंने '[[भारतीय सेना]]' में भी नौकरी की। बचपन से ही मज़बूत इरादे वाले आनंद बख़्शी अपने सपनों को साकार करने के लिए नए जोश के साथ फिर मुंबई पहुंचे, जहाँ उनकी मुलाकात उस जमाने के मशहूर अभिनेता [[भगवान दादा]] से हुई। शायद नियति को यही मंजूर था कि आनंद बख़्शी गीतकार ही बने। <br />
आनंद बख़्शी बचपन से ही फ़िल्मों में काम करके शोहरत की बुंलदियों तक पहुंचने का सपना देखा करते थे, लेकिन लोगों के मज़ाक उड़ाने के डर से उन्होंने अपनी यह मंशा कभी ज़ाहिर नहीं की थी। वह फ़िल्मी दुनिया में गायक के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे। आनंद बख़्शी अपने सपने को पूरा करने के लिए 14 वर्ष की उम्र में ही घर से भागकर फ़िल्म नगरी [[मुंबई]] आ गए, जहाँ उन्होंने 'रॉयल इंडियन नेवी' में कैडेट के तौर पर 2 वर्ष तक काम किया। किसी विवाद के कारण उन्हें वह नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद [[1947]] से [[1956]] तक उन्होंने '[[भारतीय सेना]]' में भी नौकरी की। बचपन से ही मज़बूत इरादे वाले आनंद बख़्शी अपने सपनों को साकार करने के लिए नए जोश के साथ फिर मुंबई पहुंचे, जहाँ उनकी मुलाकात उस जमाने के मशहूर अभिनेता [[भगवान दादा]] से हुई। शायद नियति को यही मंजूर था कि आनंद बख़्शी गीतकार ही बने। <br />
भगवान दादा ने उन्हें अपनी फ़िल्म 'बड़ा आदमी' में गीतकार के रूप में काम करने का मौक़ा दिया। इस फ़िल्म के जरिए वह पहचान बनाने में भले ही सफल नहीं हो पाए, लेकिन एक गीतकार के रूप में उनके सिने कॅरियर का सफर शुरू हो गया। अपने वजूद को तलाशते आनंद बख़्शी को लगभग सात वर्ष तक फ़िल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा। वर्ष [[1965]] में 'जब जब फूल खिले' प्रदर्शित हुई तो उन्हें उनके गाने 'परदेसियों से न अंखियां मिलाना..', 'ये समां समां है ये प्यार का..', 'एक था गुल और एक थी बुलबुल..' सुपरहिट रहे और गीतकार के रुप में उनकी पहचान बन गई। इसी वर्ष फ़िल्म 'हिमालय की गोद में' उनके गीत 'चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था..' को भी लोगों ने काफ़ी पसंद किया। वर्ष [[1967]] में प्रदर्शित [[सुनील दत्त]] और [[नूतन]] अभिनीत फ़िल्म 'मिलन' के गाने 'सावन का महीना पवन कर शोर..', 'युग युग तक हम गीत मिलन के गाते रहेंगे..', 'राम करे ऐसा हो जाए..' जैसे सदाबहार गानों के जरिए उन्होंने गीतकार के रूप में नई ऊंचाइयों को छू लिया। चार दशक तक फ़िल्मी गीतों के बेताज बादशाह रहे आनंद बख़्शी ने 550 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में लगभग 4000 गीत लिखे।
भगवान दादा ने उन्हें अपनी फ़िल्म 'बड़ा आदमी' में गीतकार के रूप में काम करने का मौक़ा दिया। इस फ़िल्म के जरिए वह पहचान बनाने में भले ही सफल नहीं हो पाए, लेकिन एक गीतकार के रूप में उनके सिने कैरियर का सफर शुरू हो गया। अपने वजूद को तलाशते आनंद बख़्शी को लगभग सात वर्ष तक फ़िल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा। वर्ष [[1965]] में 'जब जब फूल खिले' प्रदर्शित हुई तो उन्हें उनके गाने 'परदेसियों से न अंखियां मिलाना..', 'ये समां समां है ये प्यार का..', 'एक था गुल और एक थी बुलबुल..' सुपरहिट रहे और गीतकार के रुप में उनकी पहचान बन गई। इसी वर्ष फ़िल्म 'हिमालय की गोद में' उनके गीत 'चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था..' को भी लोगों ने काफ़ी पसंद किया। वर्ष [[1967]] में प्रदर्शित [[सुनील दत्त]] और [[नूतन]] अभिनीत फ़िल्म 'मिलन' के गाने 'सावन का महीना पवन कर शोर..', 'युग युग तक हम गीत मिलन के गाते रहेंगे..', 'राम करे ऐसा हो जाए..' जैसे सदाबहार गानों के जरिए उन्होंने गीतकार के रूप में नई ऊंचाइयों को छू लिया। चार दशक तक फ़िल्मी गीतों के बेताज बादशाह रहे आनंद बख़्शी ने 550 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में लगभग 4000 गीत लिखे।
==प्रसिद्ध गीत==  
==प्रसिद्ध गीत==  
यह सुनहरा दौर था जब गीतकार आनन्द बख़्शी ने संगीतकार [[लक्ष्मीकांत]]-प्यारेलाल के साथ काम करते हुए 'फ़र्ज़ (1967)', 'दो रास्ते (1969)', 'बॉबी (1973'), 'अमर अकबर एन्थॉनी (1977)', 'इक दूजे के लिए (1981)' और [[राहुल देव बर्मन]] के साथ 'कटी पतंग (1970)', 'अमर प्रेम (1971)', हरे रामा हरे कृष्णा (1971)' और 'लव स्टोरी (1981)' फ़िल्मों में अमर गीत दिये। फ़िल्म 'अमर प्रेम' (1971) के 'बड़ा नटखट है किशन कन्हैया', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'ये क्या हुआ', और 'रैना बीती जाये' जैसे उत्कृष्ट गीत हर दिल में धड़कते हैं और सुनने वाले के दिल की सदा में बसते हैं। अगर फ़िल्म निर्माताओं के साक्षेप चर्चा की जाये तो [[राज कपूर]] के लिए 'बॉबी (1973)', 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम् (1978)'; सुभाष घई के लिए 'कर्ज़ (1980)', 'हीरो (1983)', 'कर्मा (1986)', 'राम-लखन (1989)', 'सौदाग़र (1991)', 'खलनायक (1993)', 'ताल (1999)' और 'यादें (2001)'; और [[यश चोपड़ा]] के लिए 'चाँदनी (1989)', 'लम्हें (1991)', 'डर (1993)', 'दिल तो पागल है (1997)'; आदित्य चोपड़ा के लिए 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (1995)', 'मोहब्बतें (2000)' फ़िल्मों में सदाबहार गीत लिखे।<ref>{{cite web |url=http://podcast.hindyugm.com/2009/02/anand-bakshi-song-writer-of-common-man.html |title=आनंद बख़्शी |accessmonthday=[[10 जुलाई]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=आवाज़ |language=[[हिन्दी]] }}</ref>   
यह सुनहरा दौर था जब गीतकार आनन्द बख़्शी ने संगीतकार [[लक्ष्मीकांत]]-प्यारेलाल के साथ काम करते हुए 'फ़र्ज़ (1967)', 'दो रास्ते (1969)', 'बॉबी (1973'), 'अमर अकबर एन्थॉनी (1977)', 'इक दूजे के लिए (1981)' और [[राहुल देव बर्मन]] के साथ 'कटी पतंग (1970)', 'अमर प्रेम (1971)', हरे रामा हरे कृष्णा (1971)' और 'लव स्टोरी (1981)' फ़िल्मों में अमर गीत दिये। फ़िल्म 'अमर प्रेम' (1971) के 'बड़ा नटखट है किशन कन्हैया', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'ये क्या हुआ', और 'रैना बीती जाये' जैसे उत्कृष्ट गीत हर दिल में धड़कते हैं और सुनने वाले के दिल की सदा में बसते हैं। अगर फ़िल्म निर्माताओं के साक्षेप चर्चा की जाये तो [[राज कपूर]] के लिए 'बॉबी (1973)', 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम् (1978)'; सुभाष घई के लिए 'कर्ज़ (1980)', 'हीरो (1983)', 'कर्मा (1986)', 'राम-लखन (1989)', 'सौदाग़र (1991)', 'खलनायक (1993)', 'ताल (1999)' और 'यादें (2001)'; और [[यश चोपड़ा]] के लिए 'चाँदनी (1989)', 'लम्हें (1991)', 'डर (1993)', 'दिल तो पागल है (1997)'; आदित्य चोपड़ा के लिए 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (1995)', 'मोहब्बतें (2000)' फ़िल्मों में सदाबहार गीत लिखे।<ref>{{cite web |url=http://podcast.hindyugm.com/2009/02/anand-bakshi-song-writer-of-common-man.html |title=आनंद बख़्शी |accessmonthday=[[10 जुलाई]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=आवाज़ |language=[[हिन्दी]] }}</ref>   

15:01, 6 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण

आनंद बख़्शी
आनंद बख़्शी
आनंद बख़्शी
पूरा नाम आनंद प्रकाश बख़्शी आनंद बख़्शी
प्रसिद्ध नाम आनंद बख़्शी
अन्य नाम 'नंद' और 'नंदो'
जन्म 21 जुलाई, 1930
जन्म भूमि रावलपिंडी, पाकिस्तान
मृत्यु 30 मार्च, 2002
मृत्यु स्थान मुम्बई, भारत
अभिभावक पिता- मोहन लाल वैद बख़्शी
कर्म-क्षेत्र कवि, गीतकार
मुख्य रचनाएँ 'बड़ा नटखट है किशन कन्हैया', 'सावन का महीना पवन कर शोर..', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'चांद सी महबूबा हो मेरी...', 'परदेसियों से न अंखियां मिलाना..', 'इश्क बिना क्या जीना' आदि
मुख्य फ़िल्में 'कटी पतंग (1970)', 'बॉबी (1973)', 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम् (1978)', 'अमर अकबर एन्थॉनी (1977)', 'इक दूजे के लिए (1981)' , 'हीरो (1983)', 'कर्मा (1986)', 'राम-लखन (1989)', 'खलनायक (1993)', 'ताल (1999)', 'यादें (2001) आदि
पुरस्कार-उपाधि चार बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार
नागरिकता भारतीय

आनंद बख़्शी (अंग्रेज़ी: Anand Bakshi, जन्म- 21 जुलाई 1930 ; मृत्यु- 30 मार्च 2002) एक लोकप्रिय भारतीय कवि और गीतकार थे।

जीवन परिचय

आनंद बख़्शी का जन्म पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में 21 जुलाई 1930 को हुआ था। आनंद बख़्शी को उनके रिश्तेदार प्यार से नंद या नंदू कहकर पुकारते थे। बख़्शी उनके परिवार का उपनाम था, जबकि उनके परिजनों ने उनका नाम 'आनंद प्रकाश' रखा था, लेकिन फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद 'आनंद बख़्शी' के नाम से उनकी पहचान बनी। आनंद बख़्शी के दादाजी सुघरमल वैद बख़्शी रावलपिण्डी में ब्रिटिश राज के दौरान सुपरिंटेंडेण्ट ऑफ़ पुलिस थे। उनके पिता मोहन लाल वैद बख़्शी रावलपिण्डी में एक बैंक मैनेजर थे, और जिन्होंने देश विभाजन के बाद भारतीय सेना को सेवा प्रदान की। नेवी में बतौर सिपाही उनका कोड नाम था 'आज़ाद'। आनंद बख़्शी ने केवल 10 वर्ष की आयु में अपनी माँ सुमित्रा को खो दिया और अपनी पूरी ज़िंदगी मातृ प्रेम के पिपासु रह गए। उनकी सौतेली माँ ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। इस तरह से आनंद अपनी दादीमाँ के और क़रीब हो गए। आनंद बख़्शी साहब ने अपनी माँ के प्यार को सलाम करते हुए कई गानें भी लिखे जैसे कि "माँ तुझे सलाम" (खलनायक), "माँ मुझे अपने आंचल में छुपा ले" (छोटा भाई), "तू कितनी भोली है" (राजा और रंक) और "मैंने माँ को देखा है" (मस्ताना)।

पहली फ़िल्म

'मोम की गुड़िया' सन् 1972 की फ़िल्म थी। यह मोहन कुमार की फ़िल्म थी जिसमें मुख्य कलाकार थे रतन चोपड़ा और तनूजा। यह कम बजट की फ़िल्म थी, जिसमें संगीतकार थे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। यही वह फ़िल्म थी जिसमें पहली बार आनंद बख़्शी को गीत गाने का मौका मिला था। एक बार मोहन कुमार ने बख़्शी साहब को एक चैरिटी फ़ंक्शन में गाते हुए सुन लिया था। उसके बाद उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को राज़ी करवाया कि वो कम से कम एक गीत बख़्शी साहब से गवाए 'मोम की गुड़िया' में। और इस तरह से बख़्शी साहब ने एक एकल गीत गाया "मैं ढूंढ रहा था सपनों में"। यह गीत सब को इतनी पसंद आया कि मोहन कुमार ने सब को आश्चर्य चकित करते हुए घोषणा कर दी कि आनंद बख़्शी एक डुएट भी गाएँगे लता मंगेशकर के साथ। और इस तरह से बना "बाग़ों में बहार आई"। इस गीत के रिकार्डिंग के बाद बख़्शी साहब ने उनके साथ युगल गीत गाने के लिए लता जी को फूलों का एक गुलदस्ता उपहार में दिया। फ़िल्म के ना चलने से ये गानें भी ज़्यादा सुनाई नहीं दिए, लेकिन इस युगल गीत को आनंद बख़्शी पर केन्द्रित हर कार्यक्रम में शामिल किया जाता है।

गीतकार के रूप में

आनंद बख़्शी बचपन से ही फ़िल्मों में काम करके शोहरत की बुंलदियों तक पहुंचने का सपना देखा करते थे, लेकिन लोगों के मज़ाक उड़ाने के डर से उन्होंने अपनी यह मंशा कभी ज़ाहिर नहीं की थी। वह फ़िल्मी दुनिया में गायक के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे। आनंद बख़्शी अपने सपने को पूरा करने के लिए 14 वर्ष की उम्र में ही घर से भागकर फ़िल्म नगरी मुंबई आ गए, जहाँ उन्होंने 'रॉयल इंडियन नेवी' में कैडेट के तौर पर 2 वर्ष तक काम किया। किसी विवाद के कारण उन्हें वह नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद 1947 से 1956 तक उन्होंने 'भारतीय सेना' में भी नौकरी की। बचपन से ही मज़बूत इरादे वाले आनंद बख़्शी अपने सपनों को साकार करने के लिए नए जोश के साथ फिर मुंबई पहुंचे, जहाँ उनकी मुलाकात उस जमाने के मशहूर अभिनेता भगवान दादा से हुई। शायद नियति को यही मंजूर था कि आनंद बख़्शी गीतकार ही बने।
भगवान दादा ने उन्हें अपनी फ़िल्म 'बड़ा आदमी' में गीतकार के रूप में काम करने का मौक़ा दिया। इस फ़िल्म के जरिए वह पहचान बनाने में भले ही सफल नहीं हो पाए, लेकिन एक गीतकार के रूप में उनके सिने कैरियर का सफर शुरू हो गया। अपने वजूद को तलाशते आनंद बख़्शी को लगभग सात वर्ष तक फ़िल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा। वर्ष 1965 में 'जब जब फूल खिले' प्रदर्शित हुई तो उन्हें उनके गाने 'परदेसियों से न अंखियां मिलाना..', 'ये समां समां है ये प्यार का..', 'एक था गुल और एक थी बुलबुल..' सुपरहिट रहे और गीतकार के रुप में उनकी पहचान बन गई। इसी वर्ष फ़िल्म 'हिमालय की गोद में' उनके गीत 'चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था..' को भी लोगों ने काफ़ी पसंद किया। वर्ष 1967 में प्रदर्शित सुनील दत्त और नूतन अभिनीत फ़िल्म 'मिलन' के गाने 'सावन का महीना पवन कर शोर..', 'युग युग तक हम गीत मिलन के गाते रहेंगे..', 'राम करे ऐसा हो जाए..' जैसे सदाबहार गानों के जरिए उन्होंने गीतकार के रूप में नई ऊंचाइयों को छू लिया। चार दशक तक फ़िल्मी गीतों के बेताज बादशाह रहे आनंद बख़्शी ने 550 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में लगभग 4000 गीत लिखे।

प्रसिद्ध गीत

यह सुनहरा दौर था जब गीतकार आनन्द बख़्शी ने संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ काम करते हुए 'फ़र्ज़ (1967)', 'दो रास्ते (1969)', 'बॉबी (1973'), 'अमर अकबर एन्थॉनी (1977)', 'इक दूजे के लिए (1981)' और राहुल देव बर्मन के साथ 'कटी पतंग (1970)', 'अमर प्रेम (1971)', हरे रामा हरे कृष्णा (1971)' और 'लव स्टोरी (1981)' फ़िल्मों में अमर गीत दिये। फ़िल्म 'अमर प्रेम' (1971) के 'बड़ा नटखट है किशन कन्हैया', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'ये क्या हुआ', और 'रैना बीती जाये' जैसे उत्कृष्ट गीत हर दिल में धड़कते हैं और सुनने वाले के दिल की सदा में बसते हैं। अगर फ़िल्म निर्माताओं के साक्षेप चर्चा की जाये तो राज कपूर के लिए 'बॉबी (1973)', 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम् (1978)'; सुभाष घई के लिए 'कर्ज़ (1980)', 'हीरो (1983)', 'कर्मा (1986)', 'राम-लखन (1989)', 'सौदाग़र (1991)', 'खलनायक (1993)', 'ताल (1999)' और 'यादें (2001)'; और यश चोपड़ा के लिए 'चाँदनी (1989)', 'लम्हें (1991)', 'डर (1993)', 'दिल तो पागल है (1997)'; आदित्य चोपड़ा के लिए 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (1995)', 'मोहब्बतें (2000)' फ़िल्मों में सदाबहार गीत लिखे।[1]

आनंद बख़्शी के लोकप्रिय गीत[2]
गीत फ़िल्म गीत फ़िल्म
  • लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है
  • धीरे धीरे बोल कोई सुन ना ले
  • दो लफ़्ज़ों की है, दिल की कहानी
  • दो दिल मिल रहे हैं
  • देश बदलते हैं
  • दिल्लगी ने दी हवा
  • दिल क्या करे जब किसी को
  • दिल की अदालत प्यार का मुकदमा
  • दिए जलते हैं
  • दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-जिगर दिल में जगाया आपने
  • दम मारो दम
  • तेरे मेरे होंठों पे मीठे मीठे गीत मितवा
  • तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बन्धन
  • तेरे नैना मेरे नैनों से
  • तू मेरे सामने मैं तेरे सामने
  • तू मेरा जानू है तू मेरा दिलबर है
  • तू मुझे सुना मैं तुझे सुनाऊँ
  • तूने बेचैन इतना ज़्यादा किया
  • तू न जा मेरे बादशाह
  • तुम याद न आया करो
  • तुम आए तो आया मुझे याद
  • तुझे देखा तो ये जाना सनम
  • ताल से ताल मिलाओ
  • ड्रीम गर्ल
  • डोली में बिठाई के कहार
  • आया सावन झूम के
  • आया आया अटरिया पे कोई चोर
  • आप का ख़त मिला आप का शुक्रिया
  • आने से उसके आए बहार
  • आदमी मुसाफ़िर है
  • आदमी जो सुनता है, आदमी जो कहता है
  • आते जाते ख़ूबसूरत आवारा सड़कों पे
  • आजा तुझको पुकारे मेरे गीत रे
  • बाबुल भी रोए बेटी भी रोए
  • बहारों ने मेरा चमन लूटकर
  • बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा
  • बड़ा नटखट है रे
  • फूलों का तारों का सबका कहना है
  • फूल आहिस्ता फेंको
  • प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है
  • प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम
  • प्यार के इस खेल में
  • प्यार करने वाले कभी डरते नहीं
  • पैरों में बन्धन है पायल ने मचाया शोर
  • पालकी में हो के सवार चली रे
  • पर्वतों से आज मैं टकरा गया
  • पर्वत से काली घटा टकराई
  • परदेसिया ये सच है पिया
  • परदेशियों से न अँखियाँ मिलाना
  • परदेश जा के परदेशिया
  • पतझर, सावन, बसंत बहार
  • पढ़-लिख के बड़ा हो के तू एक किताब लिखना
  • निंदिया से जागी बहार
  • समाँ है सुहाना सुहाना
  • सनम मेरे सनम, कसम तेरी कसम
  • सच्चाई छुप नहीं सकती
  • संग बसंती अंग बसंती रंग बसंती
  • वादा कर ले साजना
  • लम्बी जुदाई
  • चाँदनी
  • गोरा और काला
  • द ग्रेट गैम्बलर
  • परदेस
  • बंजारन
  • दोस्ताना
  • जूली
  • कब्ज़ा
  • नमक हराम
  • कर्ज़
  • हरे रामा हरे कृष्णा
  • चाँदनी
  • एक दूजे के लिए
  • भ्रष्टाचार
  • डर
  • हीरो
  • चाँदनी
  • नगीना
  • ख़ुदा गवाह
  • जीने नहीं दूँगा
  • जख़्म
  • दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे
  • ताल
  • ड्रीम गर्ल
  • अमर प्रेम
  • आया सावन झूम के
  • मेरा गाँव मेरा देश
  • शारदा
  • जीने की राह
  • अपनापन
  • मजबूर
  • अनुरोध
  • गीत
  • अमीरी ग़रीबी
  • देवर
  • दोस्ताना
  • अमर प्रेम
  • हरे रामा हरे कृष्णा
  • प्रेम कहानी
  • कटी पतंग
  • एक दूजे के लिए
  • जुगनू
  • हीरो
  • मोहब्बतें
  • खलनायक
  • बेताब
  • चाँदनी
  • मि. नटवरलाल
  • जब जब फूल खिले
  • अर्पण
  • सिंदूर
  • जख़्म
  • हीरो
  • घर घर की कहानी
  • हम
  • दुश्मन
  • राजा और रंक
  • हाथ की सफाई
  • हीरो
  • रोते रोते हँसना सीखो
  • रैना बीती जाए
  • रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना
  • रुक जा ऐ दिल दीवाने
  • राम करे ऐसा हो जाए
  • रात सारी बेक़रारी में गुज़ारी
  • रब ने बनाया तुझे मेरे लिए मुझे तेरे लिए
  • रंग भरे बादल से
  • ये समाँ, समाँ है ये प्यार का
  • ये शाम मस्तानी, मदहोश किए जाए
  • ये जो मुहब्बत है, ये उनका है काम
  • ये जो चिलमन है दुश्मन है हमारी
  • ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा
  • ये रेशमी जुल्फ़ें, ये शर्बती आँखें
  • ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
  • ये दुनिया वाले पूछेंगे
  • ये दुनिया इक दुल्हन
  • ये दिल, दीवाना, दीवाना है ये दिल
  • ये जीवन है
  • ये खिड़की जो बंद रहती है
  • ये ख़बर छपवा दो अख़बार में
  • ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ
  • याद आ रही है, तेरी याद आ रही है
  • यहाँ मैं अजनबी हूँ
  • झिलमिल सितारों का आँगन होगा
  • जिसने पाप ना किया हो
  • जिस गली में तेरा घर न हो बालमा
  • जा रहे हो तुम कहाँ जाओगे
  • जाने क्यों लोग मुहब्बत किया करते हैं
  • जाने कैसे कब कहाँ इकरार हो गया
  • जादू तेरी नज़र, खुशबू तेरा बदन
  • ज़ुबाँ पे दर्द भरी दास्ताँ चली आई
  • ज़िक्र होता है जब क़यामत का
  • ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम
  • जब हम जवाँ होंगे
  • जब दर्द नहीं था सीने में
  • छुप गए सारे नज़ारे ओए क्या बात हो गई
  • चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है
  • चिंगारी कोई भड़के
  • चाँद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था
  • चलते चलते यूँ ही रुक जाता हूँ मैं
  • चंदा है तू मेरा सूरज है तू
  • घर आजा परदेशी तेरा देश बुलाए रे
  • गोरे रँग पे न इतना गुमान कर
  • गाड़ी बुला रही है
  • ग़म का फ़साना बन गया अच्छा
  • खुश रहे तू सदा
  • खिलौना जानकर तुम तो
  • खिड़की खुली जरा
  • नायक नहीं खलनायक हूँ मैं
  • नफ़रत की दुनिया को छोड़ के
  • न न करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे
  • नदिया से दरिया, दरिया से सागर
  • न कोई उमंग है, न कोई तरंग है
  • आज मौसम बड़ा बेईमान है
  • आज उनसे पहली मुलाकात होगी
  • आएगी आएगी आएगी किसी को हमारी याद आएगी
  • आँखों-आँखों में हम-तुम
  • अब के सजन सावन में
  • अँखियों को रहने दो, अँखियों के आस पास
  • अंधा क़ानून
  • अमर प्रेम
  • अराधना
  • दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे
  • मिलन
  • जख़्म
  • हीर रांझा
  • चाँदनी
  • जब जब फूल खिले
  • कटी पतंग
  • कटी पतंग
  • महबूब की मेंहदी
  • प्रेम नगर
  • दो रास्ते
  • शोले
  • महल
  • परदेस
  • परदेस
  • पिया का घर
  • मैं तुलसी तेरे आँगन की
  • अफलातून
  • अमर प्रेम
  • लव स्टोरी
  • जब जब फूल खिले
  • जीवन मृत्यु
  • रोटी
  • कटी पतंग
  • हम तुमपे मरते हैं
  • महबूब की मेंहदी
  • शक्ति
  • डर
  • मर्यादा
  • माय लव
  • आप की कसम
  • बेताब
  • अनुरोध
  • दो रास्ते
  • नाम
  • अमर प्रेम
  • हिमायल की गोद में
  • मोहब्बतें
  • अराधना
  • दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे
  • रोटी
  • दोस्त
  • मनचली
  • खिलौना
  • खिलौना
  • दीवाना मस्ताना
  • खलनायक
  • हाथी मेरे साथी
  • जब जब फूल खिले
  • नमक हराम
  • कटी पतंग
  • लोफ़र (1973)
  • पराया धन
  • जान-ए-मन
  • महल
  • चुपके चुपके
  • बॉबी
गीत फ़िल्म गीत फ़िल्म
  • यम्मा यम्मा, ये ख़ूबसूरत समाँ
  • मोसे नैना मिलाइके/छाप तिलक
  • मोरनी बागा मा बोले आधी रात मा
  • मैं ससुराल नहीं जाऊँगी
  • मैं शायर बदनाम
  • मैं शायर तो नहीं
  • मैं परदेशी घर वापस आया
  • मैं तेरे इश्क़ में मर न जाऊँ कहीं
  • मैं तुलसी तेरे आँगन की
  • मेहँदी लगा के रखना
  • मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियाँ हैं
  • मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू
  • मेरे सँग सँग आया तेरी यादों का मेला
  • मेरे महबूब क़यामत होगी
  • मेरे नैना सावन भादों
  • मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
  • मेरे ख़्वाबों में जो आए
  • ज़रा तस्वीर से तू
  • मुबारक हो सब को समाँ ये सुहाना
  • मुझे मत रोको मुझे गाने दो
  • मार गई मुझे तेरी जुदाई
  • माँ ने कहा
  • भूली बिसरी प्रेम कहानी
  • भीगी भीगी रातों में, मीठी मीठी बातों में
  • बिंदिया चमकेगी, चूड़ी खनकेगी
  • ख़िजा के फूल पे आती कभी बहार नहीं
  • ख़त लिख दे साँवरिया के नाम बाबू
  • कोई शहरी बाबू दिल-लहरी बाबू
  • हो गया है तुझको तो प्यार सजना
  • हुस्न के लाखों रंग
  • शान
  • मैं तुलसी तेरे आँगन की
  • चाँदनी
  • चाँदनी
  • नमक हराम
  • बॉबी
  • निगाहें
  • लोफ़र (1973)
  • मैं तुलसी तेरे आँगन की
  • दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे
  • चाँदनी
  • अराधना
  • राजपूत
  • मि. एक्स इन बॉम्बे
  • महबूबा
  • आये दिन बहार के
  • दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे
  • परदेस
  • मिलन
  • सरगम
  • जुदाई (1980)
  • चाचा भतीजा
  • नगीना
  • अजनबी
  • दो रास्ते
  • दो रास्ते
  • आये दिन बहार के
  • लोफ़र (1973)
  • दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे
  • जॉनी मेरा नाम
  • हाय शरमाऊँ, किस किस को बताऊँ
  • हवा के साथ साथ, घटा के संग संग
  • हम यहाँ तुम यहाँ दिल जवाँ
  • हम बेवफ़ा हरगिज न थे
  • हमने सनम को ख़त लिखा
  • हम दोनों दो प्रेमी दुनिया छोड़ चले
  • हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के
  • हम तुम इक कमरे में बंद हों
  • हम को हमीं से चुरा लो
  • हमको मुहब्बत ढूँढ रही थी
  • सोलह बरस की बाली उमर को सलाम
  • सावन का महीना, पवन करे सोर
  • सारे शहर में आपसा कोई नहीं
  • सामने ये कौन आया दिल में हुई हलचल
  • साथिया नहीं जाना के जी ना लगे
  • के आजा तेरी याद आई
  • कुछ देर पहले कुछ भी न था
  • कुछ तो लोग कहेंगे
  • की गल है कोई नहीं
  • किस लिये मैंने प्यार किया
  • काँची रे काँची रे
  • और क्या अहद-ए-वफ़ा होते हैं
  • ओम शांति ओम, शांति शांति ओम
  • ओ फिरकी वाली
  • एक बंजारा गाए, जीवन के गीत सुनाए
  • एक था गुल और एक थी बुलबुल
  • एक अजनबी, हसीना से, यूँ मुलाकात, हो गई
  • इस दुनिया में प्रेमग्रंथ जब लिक्खा जाएगा
  • इश्क बिना क्या मरना यारों
  • होली के दिन दिल खिल जाते हैं
  • मेरा गाँव मेरा देश
  • सीता और गीता
  • जख़्म
  • शालीमार
  • शक्ति
  • अजनबी
  • मिलन
  • बॉबी
  • मोहब्बतें
  • कितने दूर कितने पास
  • एक दूजे के लिए
  • मिलन
  • बैराग
  • जवानी दिवानी
  • आया सावन झूम के
  • चरस
  • प्यार का देवता
  • अमर प्रेम
  • जान-ए-मन
  • द ट्रेन (1970)
  • हरे रामा हरे कृष्णा
  • सनी
  • कर्ज़
  • राजा और रंक
  • जीने की राह
  • जब जब फूल खिले
  • अजनबी
  • प्रेमग्रंथ
  • ताल
  • शोले

नये गायकों को दिया जीवन

आनंद बख़्शी ने शैलेंद्र सिंह, उदित नारायण, कुमार सानू, कविता कृष्णमूर्ति और एस. पी. बालसुब्रय्मण्यम जैसे अनेक गायकों के पहले गीत का बोल भी लिखा है।

पुरस्कार

आनंद बख़्शी 40 बार 'फ़िल्मफेयर पुरस्कार' के लिए नामित किये गये और चार बार यह पुरस्कार उनके खाते में आया। अंतिम बार 1999 में सुभाष घई की 'ताल' के गीत 'इश्क बिना क्या जीना' के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर से नवाजा गया था। इसके अलावा भी उन्होंने कई पुरस्कार प्राप्त किए थे।

निधन

सिगरेट के अत्यधिक सेवन की वजह से वह फेफड़े तथा दिल की बीमारी से ग्रस्त हो गए। आखिरकार 72 साल की उम्र में अंगों के काम करना बंद करने के कारण 30 मार्च, 2002 को उनका निधन हो गया।


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आनंद बख़्शी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.) आवाज़। अभिगमन तिथि: 10 जुलाई, 2011।
  2. आनंद बख़्शी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.) हिन्दी साहित्य काव्य संकलन। अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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