"धनि रहीम जल पंक को -रहीम": अवतरणों में अंतर

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कीचड़ का भी [[पानी]] धन्य है, जिसे पीकर छोटे-छोटे जीव-जन्तु भी तृप्त हो जाते हैं। उस [[समुन्द्र]] की क्या बड़ाई, जहां से सारी दुनिया प्यासी ही लौट जाती है?
कीचड़ का भी [[पानी]] धन्य है, जिसे पीकर छोटे-छोटे जीव-जन्तु भी तृप्त हो जाते हैं। उस [[समुद्र]] की क्या बड़ाई, जहां से सारी दुनिया प्यासी ही लौट जाती है?


{{लेख क्रम3| पिछला=धन थोरो, इज्जत बड़ी -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=अनुचित बचत न मानिए -रहीम}}
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11:00, 12 फ़रवरी 2016 का अवतरण

धनि ‘रहीम’ जल पंक को, लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन हैं, जगत पियासो जाय ॥

अर्थ

कीचड़ का भी पानी धन्य है, जिसे पीकर छोटे-छोटे जीव-जन्तु भी तृप्त हो जाते हैं। उस समुद्र की क्या बड़ाई, जहां से सारी दुनिया प्यासी ही लौट जाती है?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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