"मधु गोस्वामी": अवतरणों में अंतर
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*मधु गोसाईं बंगाल से<ref> कथा सुनकर</ref> [[वृन्दावन]] आये थे। यहाँ आने पर इनके मन में यह चाह बढ़ी कि इन नेत्रों से श्रीश्यामसुंदर के त्रिभुवन मोहन स्वरूप को देखना चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि भगवान का वह अचिन्त्यानन्त सौंदर्य स्वरूप कैसा है?<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=श्री भक्तमाल|लेखक=भक्तमाली श्रीरामकृपालदास 'चित्रकूटी'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=श्री सद्गुरु पुस्तकालय, श्रीशालग्राम कुटी, वृन्दावन, मथुरा|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=536|url=}}</ref> | *मधु गोसाईं बंगाल से<ref> कथा सुनकर</ref> [[वृन्दावन]] आये थे। यहाँ आने पर इनके मन में यह चाह बढ़ी कि इन नेत्रों से श्रीश्यामसुंदर के त्रिभुवन मोहन स्वरूप को देखना चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि भगवान का वह अचिन्त्यानन्त सौंदर्य स्वरूप कैसा है?<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=श्री भक्तमाल|लेखक=भक्तमाली श्रीरामकृपालदास 'चित्रकूटी'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=श्री सद्गुरु पुस्तकालय, श्रीशालग्राम कुटी, वृन्दावन, मथुरा|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=536|url=}}</ref> | ||
*अपने मन में ठाकुर जी के दर्शन की लालसा लिये मधु गोस्वामी [[वृन्दावन]] के वन-वन, वृक्ष-लता-कुंजों में भगवान को ढूँढ़ते फिरते। दर्शन की चटपटी में इनकी भूख-प्यास मर गई। ऐसे बेसुध हुए कि इन्हें छाया-धूप का भी किंचित भान न रहा। | *अपने मन में ठाकुर जी के दर्शन की लालसा लिये मधु गोस्वामी [[वृन्दावन]] के वन-वन, वृक्ष-लता-कुंजों में भगवान को ढूँढ़ते फिरते। दर्शन की चटपटी में इनकी भूख-प्यास मर गई। ऐसे बेसुध हुए कि इन्हें छाया-धूप का भी किंचित भान न रहा। | ||
*एक बार बंसीवट के निकट [[यमुना]] के तट पर (पीठ देकर) बैठे हुए थे। उस समय यमुना जी में बाढ़ आई हुई थी, वे ऊपर चढ़ रही थीं। उनका तीव्र वेग बड़े वेग से करारों को काट-काटकर गिरा रहा था। उसी समय उन्हें बंसीवट के समीप अनूप रूपसिन्धु श्रीठाकुर जी के दर्शन हुए। उन्होंने दौड़कर श्रीठाकुर जी को गोद में उठा लिया। आज भी वे शिरमौर श्रीठाकुर जी 'श्रीगोपीनाथ जी' के रूप में विराजमान हैं। बड़भागी जन आज भी उनका दर्शन कर कृतार्थ होते हैं।<ref>वर्तमान में श्रीगोपीनाथ जी [[जयपुर]] में विराजमान हैं।</ref> | *एक बार बंसीवट के निकट [[यमुना]] के तट पर (पीठ देकर) बैठे हुए थे। उस समय यमुना जी में बाढ़ आई हुई थी, वे ऊपर चढ़ रही थीं। उनका तीव्र वेग बड़े वेग से करारों को काट-काटकर गिरा रहा था। उसी समय उन्हें बंसीवट के समीप अनूप रूपसिन्धु श्रीठाकुर जी के दर्शन हुए। उन्होंने दौड़कर श्रीठाकुर जी को गोद में उठा लिया। आज भी वे शिरमौर श्रीठाकुर जी '[[गोपीनाथ जी मन्दिर वृन्दावन|श्रीगोपीनाथ जी]]' के रूप में विराजमान हैं। बड़भागी जन आज भी उनका दर्शन कर कृतार्थ होते हैं।<ref>वर्तमान में श्रीगोपीनाथ जी [[जयपुर]] में विराजमान हैं।</ref> | ||
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10:56, 13 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
मधु गोस्वामी का नाम भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों में लिया जाता है। वे बंगाल के रहने वाले थे, किंतु श्रीकृष्ण की कथाएँ सुनकर वे वृन्दावन आ गए थे। बंसीवट के समीप ही उन्हें ठाकुर जी के दर्शन हुए थे।
- मधु गोसाईं बंगाल से[1] वृन्दावन आये थे। यहाँ आने पर इनके मन में यह चाह बढ़ी कि इन नेत्रों से श्रीश्यामसुंदर के त्रिभुवन मोहन स्वरूप को देखना चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि भगवान का वह अचिन्त्यानन्त सौंदर्य स्वरूप कैसा है?[2]
- अपने मन में ठाकुर जी के दर्शन की लालसा लिये मधु गोस्वामी वृन्दावन के वन-वन, वृक्ष-लता-कुंजों में भगवान को ढूँढ़ते फिरते। दर्शन की चटपटी में इनकी भूख-प्यास मर गई। ऐसे बेसुध हुए कि इन्हें छाया-धूप का भी किंचित भान न रहा।
- एक बार बंसीवट के निकट यमुना के तट पर (पीठ देकर) बैठे हुए थे। उस समय यमुना जी में बाढ़ आई हुई थी, वे ऊपर चढ़ रही थीं। उनका तीव्र वेग बड़े वेग से करारों को काट-काटकर गिरा रहा था। उसी समय उन्हें बंसीवट के समीप अनूप रूपसिन्धु श्रीठाकुर जी के दर्शन हुए। उन्होंने दौड़कर श्रीठाकुर जी को गोद में उठा लिया। आज भी वे शिरमौर श्रीठाकुर जी 'श्रीगोपीनाथ जी' के रूप में विराजमान हैं। बड़भागी जन आज भी उनका दर्शन कर कृतार्थ होते हैं।[3]
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