"तबही लौं जीवो भलो -रहीम": अवतरणों में अंतर

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जीना तभी तक अच्छा है, जब तक कि दान देना कम न हो संसार में दान-रहित जीवन कुत्सित है। उसे सफल कैसे कहा जा सकता है ?  
जीना तभी तक अच्छा है, जब तक कि दान देना कम न हो संसार में दान-रहित जीवन कुत्सित है। उसे सफल कैसे कहा जा सकता है ?  


{{लेख क्रम3| पिछला=जो विषया संतन तजी -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=तरुवर फल नहिं खात है -रहीम}}
{{लेख क्रम3| पिछला=जो विषया संतन तजी -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=थोथे बादर क्वार के -रहीम}}
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12:26, 18 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

तबही लौं जीवो भलो, दीबो होय न धीम ।
जग में रहिबो कुचित गति, उचित होय ‘रहीम’ ॥

अर्थ

जीना तभी तक अच्छा है, जब तक कि दान देना कम न हो संसार में दान-रहित जीवन कुत्सित है। उसे सफल कैसे कहा जा सकता है ?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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