"जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
प्रभा तिवारी (वार्ता | योगदान) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
|देश = | |देश = | ||
|विषय = | |विषय = | ||
|शैली =[[सोरठा]], [[चौपाई]] [[छंद]] और [[दोहा]] | |शैली =[[सोरठा]], [[चौपाई]], [[छंद]] और [[दोहा]] | ||
|मुखपृष्ठ_रचना = | |मुखपृष्ठ_रचना = | ||
|विधा = | |विधा = |
08:22, 24 मई 2016 के समय का अवतरण
जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा। बध लायक नहिं पुरुष अनूपा॥ |
- भावार्थ
यद्यपि इन्होंने हमारी बहिन को कुरूप कर दिया तथापि ये अनुपम पुरुष वध करने योग्य नहीं हैं। 'छिपाई हुई अपनी स्त्री हमें तुरंत दे दो और दोनों भाई जीते जी घर लौट जाओ'॥3॥
जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख