"जौं केवल पितु आयसु ताता": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
{{poemopen}} | {{poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
; | ;चौपाई | ||
जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥ | जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥ | ||
जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥1॥</poem> | जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥1॥</poem> | ||
पंक्ति 43: | पंक्ति 43: | ||
''' | |||
'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। | |||
13:06, 4 जून 2016 के समय का अवतरण
जौं केवल पितु आयसु ताता
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥ |
- भावार्थ
हे तात! यदि केवल पिताजी की ही आज्ञा, हो तो माता को (पिता से) बड़ी जानकर वन को मत जाओ, किन्तु यदि पिता-माता दोनों ने वन जाने को कहा हो, तो वन तुम्हारे लिए सैकड़ों अयोध्या के समान है॥1॥
जौं केवल पितु आयसु ताता |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख