"महि मंडल मंडन चारुतरं": अवतरणों में अंतर
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आप पृथ्वी मंडल के अत्यंत सुंदर आभूषण हैं, आप श्रेष्ठ [[बाण अस्त्र|बाण]], [[धनुष अस्त्र|धनुष]] और तरकस धारण किए हुए हैं। महान मद, मोह और ममता रूपी [[रात्रि]] के अंधकार समूह के नाश करने के लिए आप सूर्य के तेजोमय किरण समूह हैं॥3॥ | आप [[पृथ्वी]] मंडल के अत्यंत सुंदर आभूषण हैं, आप श्रेष्ठ [[बाण अस्त्र|बाण]], [[धनुष अस्त्र|धनुष]] और तरकस धारण किए हुए हैं। महान मद, मोह और ममता रूपी [[रात्रि]] के अंधकार समूह के नाश करने के लिए आप सूर्य के तेजोमय किरण समूह हैं॥3॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=दससीस बिनासन बीस भुजा |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=मनजात किरात निपात किए}} | {{लेख क्रम4| पिछला=दससीस बिनासन बीस भुजा |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=मनजात किरात निपात किए}} | ||
06:19, 8 जून 2016 का अवतरण
महि मंडल मंडन चारुतरं
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक चाप निषंग बरं। |
- भावार्थ
आप पृथ्वी मंडल के अत्यंत सुंदर आभूषण हैं, आप श्रेष्ठ बाण, धनुष और तरकस धारण किए हुए हैं। महान मद, मोह और ममता रूपी रात्रि के अंधकार समूह के नाश करने के लिए आप सूर्य के तेजोमय किरण समूह हैं॥3॥
महि मंडल मंडन चारुतरं |
छन्द- शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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