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तब प्रभु ने अनेक [[रंग|रंगों]] के अनुपम और सुंदर गहने-कपड़े मँगवाए। सबसे पहले [[भरत |भरतजी]] ने अपने हाथ से सँवारकर [[सुग्रीव]] को वस्त्राभूषण पहनाए॥3॥ | तब प्रभु ने अनेक [[रंग|रंगों]] के अनुपम और सुंदर गहने-कपड़े मँगवाए। सबसे पहले [[भरत |भरतजी]] ने अपने हाथ से सँवारकर [[सुग्रीव]] को वस्त्राभूषण पहनाए॥3॥ | ||
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'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। | '''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। |
04:17, 10 जून 2016 के समय का अवतरण
तब प्रभु भूषन बसन मगाए
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
तब प्रभु भूषन बसन मगाए। नाना रंग अनूप सुहाए॥ |
- भावार्थ
तब प्रभु ने अनेक रंगों के अनुपम और सुंदर गहने-कपड़े मँगवाए। सबसे पहले भरतजी ने अपने हाथ से सँवारकर सुग्रीव को वस्त्राभूषण पहनाए॥3॥
तब प्रभु भूषन बसन मगाए |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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