"तब सुग्रीव चरन गहि नाना": अवतरणों में अंतर
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तब सुग्रीव चरन गहि नाना। भाँति बिनय कीन्हे हनुमाना॥ | तब सुग्रीव चरन गहि नाना। भाँति बिनय कीन्हे हनुमाना॥ | ||
दिन दस करि रघुपति पद सेवा। पुनि तव चरन देखिहउँ देवा॥4॥ | दिन दस करि रघुपति पद सेवा। पुनि तव चरन देखिहउँ देवा॥4॥ | ||
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05:08, 11 जून 2016 के समय का अवतरण
तब सुग्रीव चरन गहि नाना
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
तब सुग्रीव चरन गहि नाना। भाँति बिनय कीन्हे हनुमाना॥ |
- भावार्थ
तब हनुमान जी ने सुग्रीव के चरण पकड़कर अनेक प्रकार से विनती की और कहा- हे देव! दस (कुछ) दिन श्री रघुनाथ जी की चरणसेवा करके फिर मैं आकर आपके चरणों के दर्शन करूँगा॥4॥
तब सुग्रीव चरन गहि नाना |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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