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;दोहा
;चौपाई
तब बसिष्ठ मुनि समय सम कहि अनेक इतिहास।
तेल नावँ भरि नृप तनु राखा। दूत बोलाइ बहुरि अस भाषा॥
सोक नेवारेउ सबहि कर निज बिग्यान प्रकास॥156॥</poem>
धावहु बेगि भरत पहिं जाहू। नप सुधि कतहुँ कहहु जनि काहू॥1॥</poem>
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;भावार्थ
;भावार्थ
तब वशिष्ठ मुनि ने समय के अनुकूल अनेक इतिहास कहकर अपने विज्ञान के प्रकाश से सबका शोक दूर किया॥156॥
वशिष्ठजी ने नाव में तेल भरवाकर राजा के शरीर को उसमें रखवा दिया। फिर दूतों को बुलवाकर उनसे ऐसा कहा- तुम लोग जल्दी दौड़कर भरत के पास जाओ। राजा की मृत्यु का समाचार कहीं किसी से न कहना॥1॥


{{लेख क्रम4| पिछला= गारीं सकल कैकइहि देहीं |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= तेल नावँ भरि नृप तनु राखा}}
{{लेख क्रम4| पिछला= तब बसिष्ठ मुनि समय  |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= एतनेइ कहेहु भरत सन जाई}}








'''दोहा''' - मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
 
'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।





09:47, 5 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

तेल नावँ भरि नृप तनु राखा
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
मुनि वशिष्ठ का भरतजी को बुलाने के लिए दूत भेजना
चौपाई

तेल नावँ भरि नृप तनु राखा। दूत बोलाइ बहुरि अस भाषा॥
धावहु बेगि भरत पहिं जाहू। नप सुधि कतहुँ कहहु जनि काहू॥1॥

भावार्थ

वशिष्ठजी ने नाव में तेल भरवाकर राजा के शरीर को उसमें रखवा दिया। फिर दूतों को बुलवाकर उनसे ऐसा कहा- तुम लोग जल्दी दौड़कर भरत के पास जाओ। राजा की मृत्यु का समाचार कहीं किसी से न कहना॥1॥


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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-245

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