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==भारत के प्रथम शोध छात्र==
डॉ. पीताम्बर दत्त बडथ्वाल स्वन्त्रत [[भारत]] के प्रथम शोध छात्र थे। उन्हें उनके शोध कार्य "हिन्दी काव्य में निर्गुणवाद"<ref>'द निर्गुण स्कूल ऑफ़ हिंदी पोयट्री', [[अंग्रेज़ी]] शोध पर आधारित जो उन्होंने श्री श्यामप्रसाद जी के निर्देशन में किया था।</ref> के लिए वर्ष [[1933]] के दीक्षांत समारोह में 'डी.लिट.' ([[हिन्दी]]) से नवाज़ा गया। पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का आध्यात्मिक रचनाओं की तरफ लगाव था, जो उनके अध्यन व शोध कार्य मे झलकता है। उन्होंने [[संस्कृत]], [[अवधी भाषा|अवधी]], [[ब्रजभाषा]], [[अरबी भाषा|अरबी]] एवं [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] के शब्दों और बोली को भी अपने कार्य में प्रयोग किया। उन्होंने संत, सिद्ध, नाथ और भक्ति साहित्य की खोज और विश्लेषण में अपनी रुचि दिखाई और अपने गूढ़ विचारों के साथ इन पर प्रकाश डाला। [[भक्ति आन्दोलन]]<ref>शुक्ल जी की मान्यता</ref> को [[हिन्दू|हिन्दू जाति]] की निराशा का परिणाम नहीं माना, लेकिन उसे भक्ति धारा का विकास माना। उनके शोध और लेख उनके गम्भीर अध्ययन और उनकी दूर दृष्टि के भी परिचायक हैं। उन्होंने कहा था- "[[भाषा]] फलती-फूलती तो है साहित्य में, अंकुरित होती है बोलचाल में, साधारण बोलचाल पर बोली मँज-सुधरकर साहित्यिक भाषा बन जाती है।" वे दार्शनिक वयक्तित्व के धनी, शोधकर्ता, निबंधकार व समीक्षक थे। उनके [[निबंध]]/शोधकार्य को आज भी शोध विद्यार्थी प्रयोग करते हैं। उनके निबंध का मूल भाव उसकी भूमिका या शुरुआत में ही मिल जाता है।<ref name="aa"/>
==प्रमुख कृतियाँ==
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#'रामानन्द की हिन्दी रचनायें ([[वाराणसी]], [[विक्रम संवत]] 2012)
#'डॉ. बडथ्वाल के श्रेष्ठ निबंध' (स. श्री गोबिंद चातक)
#'गोरखवाणी' (कवि गोरखनाथ की रचनाओं का संकलन व सम्पादन)
#'सूरदास जीवन सामग्री'
#'मकरंद' (स. डॉ. भगीरथ मिश्र)
#'किंग आर्थर एंड नाइट्स आव द राउड टेबल' का [[हिन्दी]] अनुवाद (बच्चों के लिये)
#'कणेरीपाव'
#'गंगाबाई'
#'हिन्दी साहित्य में उपासना का स्वरूप'
#'कवि केशवदास'
#'योग प्रवाह' (स. डॉ. सम्पूर्णानंद)
 
 
पीताम्बर दत्त जी की बहुत-सी रचनाओं में से कुछ एक पुस्तकें "वर्डकेट लाईब्रेरी" के पास सुरक्षित हैं। 'हिन्दी साहित्य अकादमी' अब भी उनकी पुस्तकें प्रकाशित करती है। [[कबीर]], [[रामानन्द]] और गोरखवाणी<ref>गोरखबानी, सं. डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल, हिंदी साहित्य सम्मेलन, [[प्रयाग]], द्वि. सं.</ref> पर पीताम्बर दत्त ने बहुत कार्य किया और इसे बहुत-से साहित्यकारों ने अपने लेखों में और शोध कार्यों में शामिल किया और उनके कहे को पैमाना माना। यह अवश्य ही चिंताजनक है कि सरकार और साहित्यकारों ने उनको वह स्थान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे। 'प्रयाग विश्वविद्यालय' के दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. रानाडे ने भी कहा कि- "यह केवल हिंदी साहित्य की विवेचना के लिये ही नहीं अपितु रहस्यवाद की दार्शनिक व्याख्या के लिये भी एक महत्त्वपूर्ण देन है।"
==मृत्यु==
पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की मृत्यु [[27 जुलाई]], [[1944]] को उनकी जन्म भूमि पाली ग्राम, [[गढ़वाल]], [[उत्तराखण्ड]] में ही हुई।


*पीताम्बर दत्त जी का जन्म [[गढ़वाल|गढ़वाल जनपद]]<ref>पहले [[उत्तर प्रदेश]] के अंतर्गत</ref> में लैसडाउना अंचल के समीप पाली नामक ग्राम में हुआ था।
*'[[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]]' के [[हिन्दी]] विभाग के प्रथम स्नातकोत्तर होने का गौरव इन्हें प्राप्त हुआ।
*[[डॉ. श्यामसुन्दर दास]] के निर्देशन में पीताम्बर दत्त जी ने डी.लिट् की उपाधि धारण की थी, यह उपाधि धारण करने वाले आप प्रथम विद्वान थे।
*इनका शोध प्रबन्ध 'हिन्दी काव्य के निपुण सम्प्रदाय’ बहुत प्रसिद्ध हुआ था। आपने दो [[वर्ष]] तक हिन्दी विभाग में अध्यापन किया।
*'[[नागरी प्रचारिणी सभा]]' के शोध विभाग के अवैतनिक संचालक और [[आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] के सहयोगी के रूप में कई ग्रन्थों के संपादन और लेखन में भी पीताम्बर दत्त की उल्लेखनीय भूमिका रही थी।
*'गोरख बानी' और 'रामानन्द' इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
*पीताम्बर दत्त बड़श्वाल के [[निबंध|निबंधों]] का संग्रह 'मकरन्द' नाम से प्रकाशित हुआ था।
*[[27 जुलाई]], [[1944]] को पीताम्बर दत्त बड़श्वाल का निधन हुआ।


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06:37, 12 जुलाई 2016 का अवतरण

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल (अंग्रेज़ी: Pitamber Dutt Barthwal, जन्म- 2 दिसम्बर, 1901, गढ़वाल, उत्तराखण्ड; मृत्यु- 27 जुलाई, 1944) हिन्दी के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार थे। वे विद्वान आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सहयोगी रहे थे। उन्होंने 'गोरख बानी' और 'रामानन्द' की रचना की थी।[1] पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिन्दी में 'डी.लिट.' की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी थे। उन्होंने अनुसंधान और खोज परंपरा का प्रवर्तन किया तथा आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हिन्दी आलोचना को मजबूती प्रदान की। उन्होंने भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिये भाषा को अधिक सामर्थ्यवान बनाकर विकासोन्मुख शैली को सामने रखा।[2] वे उत्तराखंड की ही नहीं अपितु भारत की भी शान हैं, जिन्हें देश-विदेशों में सम्मान मिला। उत्तराखंड के लोक-साहित्य के प्रति भी उनका लगाव था।

भारत के प्रथम शोध छात्र

डॉ. पीताम्बर दत्त बडथ्वाल स्वन्त्रत भारत के प्रथम शोध छात्र थे। उन्हें उनके शोध कार्य "हिन्दी काव्य में निर्गुणवाद"[3] के लिए वर्ष 1933 के दीक्षांत समारोह में 'डी.लिट.' (हिन्दी) से नवाज़ा गया। पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का आध्यात्मिक रचनाओं की तरफ लगाव था, जो उनके अध्यन व शोध कार्य मे झलकता है। उन्होंने संस्कृत, अवधी, ब्रजभाषा, अरबी एवं फ़ारसी के शब्दों और बोली को भी अपने कार्य में प्रयोग किया। उन्होंने संत, सिद्ध, नाथ और भक्ति साहित्य की खोज और विश्लेषण में अपनी रुचि दिखाई और अपने गूढ़ विचारों के साथ इन पर प्रकाश डाला। भक्ति आन्दोलन[4] को हिन्दू जाति की निराशा का परिणाम नहीं माना, लेकिन उसे भक्ति धारा का विकास माना। उनके शोध और लेख उनके गम्भीर अध्ययन और उनकी दूर दृष्टि के भी परिचायक हैं। उन्होंने कहा था- "भाषा फलती-फूलती तो है साहित्य में, अंकुरित होती है बोलचाल में, साधारण बोलचाल पर बोली मँज-सुधरकर साहित्यिक भाषा बन जाती है।" वे दार्शनिक वयक्तित्व के धनी, शोधकर्ता, निबंधकार व समीक्षक थे। उनके निबंध/शोधकार्य को आज भी शोध विद्यार्थी प्रयोग करते हैं। उनके निबंध का मूल भाव उसकी भूमिका या शुरुआत में ही मिल जाता है।[2]

प्रमुख कृतियाँ

निम्नलिखित कृ्तियाँ डॉ. पीताम्बर दत्त बडथ्वाल की सोच, अध्यन व शोध को दर्शाती हैं[2]-

  1. 'रामानन्द की हिन्दी रचनायें (वाराणसी, विक्रम संवत 2012)
  2. 'डॉ. बडथ्वाल के श्रेष्ठ निबंध' (स. श्री गोबिंद चातक)
  3. 'गोरखवाणी' (कवि गोरखनाथ की रचनाओं का संकलन व सम्पादन)
  4. 'सूरदास जीवन सामग्री'
  5. 'मकरंद' (स. डॉ. भगीरथ मिश्र)
  6. 'किंग आर्थर एंड नाइट्स आव द राउड टेबल' का हिन्दी अनुवाद (बच्चों के लिये)
  7. 'कणेरीपाव'
  8. 'गंगाबाई'
  9. 'हिन्दी साहित्य में उपासना का स्वरूप'
  10. 'कवि केशवदास'
  11. 'योग प्रवाह' (स. डॉ. सम्पूर्णानंद)


पीताम्बर दत्त जी की बहुत-सी रचनाओं में से कुछ एक पुस्तकें "वर्डकेट लाईब्रेरी" के पास सुरक्षित हैं। 'हिन्दी साहित्य अकादमी' अब भी उनकी पुस्तकें प्रकाशित करती है। कबीर, रामानन्द और गोरखवाणी[5] पर पीताम्बर दत्त ने बहुत कार्य किया और इसे बहुत-से साहित्यकारों ने अपने लेखों में और शोध कार्यों में शामिल किया और उनके कहे को पैमाना माना। यह अवश्य ही चिंताजनक है कि सरकार और साहित्यकारों ने उनको वह स्थान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे। 'प्रयाग विश्वविद्यालय' के दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. रानाडे ने भी कहा कि- "यह केवल हिंदी साहित्य की विवेचना के लिये ही नहीं अपितु रहस्यवाद की दार्शनिक व्याख्या के लिये भी एक महत्त्वपूर्ण देन है।"

मृत्यु

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की मृत्यु 27 जुलाई, 1944 को उनकी जन्म भूमि पाली ग्राम, गढ़वाल, उत्तराखण्ड में ही हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. काशी के साहित्यकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 जनवरी, 2014।
  2. 2.0 2.1 2.2 डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल (हिन्दी) merapahadforum.com। अभिगमन तिथि: 12 जुलाई, 2016।
  3. 'द निर्गुण स्कूल ऑफ़ हिंदी पोयट्री', अंग्रेज़ी शोध पर आधारित जो उन्होंने श्री श्यामप्रसाद जी के निर्देशन में किया था।
  4. शुक्ल जी की मान्यता
  5. गोरखबानी, सं. डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल, हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, द्वि. सं.

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