"कबहुँ कि दुःख सब कर हित ताकें": अवतरणों में अंतर
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कबहुँ कि दुःख सब कर हित ताकें। तेहि कि दरिद्र परस मनि जाकें॥ | कबहुँ कि दुःख सब कर हित ताकें। तेहि कि दरिद्र परस मनि जाकें॥ | ||
परद्रोही की होहिं निसंका। कामी पुनि कि रहहिं अकलंका॥1॥ | परद्रोही की होहिं निसंका। कामी पुनि कि रहहिं अकलंका॥1॥ |
04:33, 14 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
कबहुँ कि दुःख सब कर हित ताकें
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
कबहुँ कि दुःख सब कर हित ताकें। तेहि कि दरिद्र परस मनि जाकें॥ |
- भावार्थ
सबका हित चाहने से क्या कभी दुःख हो सकता है? जिसके पास पारसमणि है, उसके पास क्या दरिद्रता रह सकती है? दूसरे से द्रोह करने वाले क्या निर्भय हो सकते हैं और कामी क्या कलंकरहित (बेदाग) रह सकते हैं?॥1॥
कबहुँ कि दुःख सब कर हित ताकें |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-530
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