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प्रसिद्ध क्रांतिकारी प्रतुलचंद्र गांगुली का जन्म 1894 ई. में चंदपुर (बंगाल) में हुआ था। वे आरंभिक शिक्षा पूरी कर ही पाए थे कि बंग-भंग विरोधी आंदोलन में सम्मिलित हो गए। तभी उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और क्रांतिकारी कार्यों गुप्त संगठन अनुशील समिति के सदस्य बन गए। प्रतुलचंद्र ने अनेक क्रांतिकारी कार्यों में सक्रिय भाग लिया। पहले उनका कार्य क्षेत्र ढ़ाका था। 1913 में कोलकाता आते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया और बारीसाल षड्यंत्र केस में मुकदमा चला। उन्हें दस वर्ष की सजा हो गई। 1922 में जेल से बाहर आए और फिर क्रांतिकारियों को संगठित करने में जुट गए।
'''प्रतुलचंद्र् गांगुली'''(जन्म 1894 चंदपुर, [[बंगाल]];  मृत्यु-[[1957]]) [[भारत]] के क्रांतिकारियों में से एक थे। ये बंग-भग विरोधी आंदोलन के सदस्य थे। इनका कार्य क्षेत्र ढ़ाका था।
प्रतुलचंद गांगुली सुभाष बाबू के विश्वस्त सहयोगी थे। इन पर [[स्वामी विवेकानंद]] और [[बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय|बंकिम चंद्र]] के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। [[कांग्रेस]] संगठन से भी वे जुड़े थे और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे ।


  1923 में दिल्ली में हुए काग्रेस  के विशेष अधिवेशन में प्रतुल ने भाग लिया। वही उनकी भेंट सुभाष बाबू से हुई। दोनों में इतनी निकटता बढ़ी कि वे सुभाष बाबू के विश्वस्त सहयोगी बन गए । लेकिन सरकार ने उन्हें बाहर नही रहने दिया। 1924 में वे फिर गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारियों का सिलसिला ऐसा चला कि 1946 तक उनका अधिंकाश समय जेलों  के अंदर ही बीता। अपनी लोकप्रियता के कारण 1929 में वे बंगाल कौंसिल के और 1939 में बंगाल असेम्बली के सदस्य चुने गए। कांग्रेस संगठन से भी वे जुड़े थे और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे ।
==परिचय==प्रतुलचंद गांगुली का जन्म [[बंगाल]] के चंदपुर गांव में हुआ था। वे आरंभिक शिक्षा पूरी कर ही पाए थे कि बंग-भंग विरोधी आंदोलन में सम्मिलित हो गए।  


     प्रतुलचंद्र का प्रसिद्ध क्रांतिकारी रास बिहारी बोस से भी निकट का संबंध था। स्वामी विवेकानंद और बंकिम चंद्र का उनके विचारों पर बड़ा प्रभाव रहा। अपने विचारों के प्रचार के लिए वे बंगाल के पत्रों बहुधा लिखा करते थे। 1957 में उनका देहांत हो गया ।
==क्रांतिकारी गतिविधिया== प्रतुलचंद्र् गांगुली आरंभिक शिक्षा पूरी कर ही पाए थे कि बंग-भंग विरोधी आंदोलन में सम्मिलित हो गए। उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और क्रांतिकारी कार्यों के गुप्त संगठन अनुशील समिति के सदस्य बन गए। प्रतुलचंद्र ने अनेक क्रांतिकारी कार्यों में सक्रिय भाग लिया। पहले उनका कार्य क्षेत्र ढ़ाका था। [[1191 ]] में कोलकाता आते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया और बारीसाल षड्यंत्र केस में मुकदमा चला। उन्हें दस वर्ष की सजा हो गई। [[1922]] में जेल से बाहर आए और फिर क्रांतिकारियों को संगठित करने में जुट गए।
 
 
[[1923]] में दिल्ली में हुए [[कांग्रेस]]  के विशेष अधिवेशन में प्रतुल ने भाग लिया। वही उनकी भेंट सुभाष बाबू से हुई। दोनों में इतनी निकटता बढ़ी कि वे सुभाष बाबू के विश्वस्त सहयोगी  बन गए । लेकिन सरकार ने उन्हें बाहर नही रहने दिया। [[1924]] में वे फिर गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारियों का सिलसिला ऐसा चला कि 1946 तक उनका अधिंकाश समय जेलों  के अंदर ही बीता। अपनी लोकप्रियता के कारण 1929 में वे बंगाल कौंसिल के और 1939 में बंगाल असेम्बली के सदस्य चुने गए। कांग्रेस संगठन से भी वे जुड़े थे और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे ।
 
     प्रतुलचंद्र का प्रसिद्ध क्रांतिकारी रास बिहारी बोस से भी निकट का संबंध था। स्वामी विवेकानंद और बंकिम चंद्र का उनके विचारों पर बड़ा प्रभाव रहा। अपने विचारों के प्रचार के लिए वे बंगाल के पत्रों बहुधा लिखा करते थे। 1957 में उनका देहांत हो गया ।

12:00, 22 सितम्बर 2016 का अवतरण

प्रतुलचंद्र् गांगुली(जन्म 1894 चंदपुर, बंगाल; मृत्यु-1957) भारत के क्रांतिकारियों में से एक थे। ये बंग-भग विरोधी आंदोलन के सदस्य थे। इनका कार्य क्षेत्र ढ़ाका था। प्रतुलचंद गांगुली सुभाष बाबू के विश्वस्त सहयोगी थे। इन पर स्वामी विवेकानंद और बंकिम चंद्र के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। कांग्रेस संगठन से भी वे जुड़े थे और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे ।

==परिचय==प्रतुलचंद गांगुली का जन्म बंगाल के चंदपुर गांव में हुआ था। वे आरंभिक शिक्षा पूरी कर ही पाए थे कि बंग-भंग विरोधी आंदोलन में सम्मिलित हो गए।

==क्रांतिकारी गतिविधिया== प्रतुलचंद्र् गांगुली आरंभिक शिक्षा पूरी कर ही पाए थे कि बंग-भंग विरोधी आंदोलन में सम्मिलित हो गए। उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और क्रांतिकारी कार्यों के गुप्त संगठन अनुशील समिति के सदस्य बन गए। प्रतुलचंद्र ने अनेक क्रांतिकारी कार्यों में सक्रिय भाग लिया। पहले उनका कार्य क्षेत्र ढ़ाका था। 1191 में कोलकाता आते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया और बारीसाल षड्यंत्र केस में मुकदमा चला। उन्हें दस वर्ष की सजा हो गई। 1922 में जेल से बाहर आए और फिर क्रांतिकारियों को संगठित करने में जुट गए।


1923 में दिल्ली में हुए कांग्रेस  के विशेष अधिवेशन में प्रतुल ने भाग लिया। वही उनकी भेंट सुभाष बाबू से हुई। दोनों में इतनी निकटता बढ़ी कि वे सुभाष बाबू के विश्वस्त सहयोगी  बन गए । लेकिन सरकार ने उन्हें बाहर नही रहने दिया। 1924 में वे फिर गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारियों का सिलसिला ऐसा चला कि 1946 तक उनका अधिंकाश समय जेलों  के अंदर ही बीता। अपनी लोकप्रियता के कारण 1929 में वे बंगाल कौंसिल के और 1939 में बंगाल असेम्बली के सदस्य चुने गए। कांग्रेस संगठन से भी वे जुड़े थे और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे ।
   प्रतुलचंद्र का प्रसिद्ध क्रांतिकारी रास बिहारी बोस से भी निकट का संबंध था। । स्वामी विवेकानंद और बंकिम चंद्र का उनके विचारों पर बड़ा प्रभाव रहा। अपने विचारों के प्रचार के लिए वे बंगाल के पत्रों बहुधा लिखा करते थे। 1957 में उनका देहांत हो गया ।