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'''प्रतुलचंद्र गांगुली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pratulchandra Ganguli'', जन्म- [[1884]], चंदपुर, [[बंगाल]]; मृत्यु- [[1957]]) [[भारत]] के क्रांतिकारियों में से एक थे। [[सत्याग्रह]] के कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा था। ये बंग-भग विरोधी आंदोलन के सदस्य थे। इनका कार्य क्षेत्र [[ढाका]] था। प्रतुलचंद्र गांगुली सुभाष बाबू के विश्वस्त सहयोगी थे। इन पर [[स्वामी विवेकानंद]] और [[बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय|बंकिम चंद्र]] के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा था। ये अपने विचारों के प्रचार के लिए [[बंगाल]] के पत्रों में बहुधा लिखा करते थे। ये [[कांग्रेस|कांग्रेस संगठन]] और 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के सदस्य भी रहे थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=487|url=}}</ref>
 == पूर्णसिंह == (जन्म- 17 फरावरी, 1881 ई. सलहद गांव, एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) ; मृत्यु-
==परिचय==
 
प्रतुलचंद्र गांगुली का जन्म 1884 ई. में [[बंगाल]] के चंदपुर में हुआ था। आरंभिक शिक्षा पूरी कर के ही ये बंग-भंग विरोधी आंदोलन में सम्मिलित हो गए और क्रांतिकारी कार्यों के गुप्त संगठन 'अनुशीलन समिति' के सदस्य बन गए।
==क्रांतिकारी गतिविधियाँ==
हिन्दी में केवल छह आत्मव्यंजन निबंध लिखकर हिन्दी निबंधकारों में अपना विशिष्ठ स्थान बनाने वाले अध्यापक का जन्म 17 फरावरी, 1881 ई. को एक सिक्ख परिवार में पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में एबटाबाद के निकट हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू और गुरुमुखी में हुई। बाद में वे जापान के टोकियो विश्व्वविद्यालय में तीन वर्ष तक औषधी निर्माण संबंधी रसायन का अध्ययन करते रहे।
प्रतुलचंद्र ने अनेक क्रांतिकारी कार्यों में सक्रिय भाग लिया। पहले इनका कार्य क्षेत्र ढाका था। [[1913]] में [[कोलकाता]] आते ही इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 'बारीसाल षड्यंत्र केस' में मुकदमा चला, जिससे इन्हें दस वर्ष की सजा हो गई। [[1922]] में जेल से बाहर आए और फिर क्रांतिकारियों को संगठित करने में जुट गये।


[[1923]] में [[दिल्ली]] में हुए [[कांग्रेस]] के विशेष अधिवेशन में प्रतुलचंद्र गांगुली ने भाग लिया। वही इनकी भेंट सुभाष बाबू से हुई और दोनों में इतनी निकटता बढ़ी कि ये उनके विश्वस्त सहयोगी बन गए। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इन्हें बाहर नहीं रहने दिया और [[1924]] में ये फिर से गिरफ्तार कर लिए गये। गिरफ्तारियों का सिलसिला ऐसा चला कि [[1946]] तक इनका अधिंकाश समय जेलों के अंदर ही बीता। अपनी लोकप्रियता के कारण प्रतुलचंद्र गांगुली [[1929]] में बंगाल कौंसिल और [[1939]] में बंगाल असेम्बली के सदस्य चुने गए। कांग्रेस संगठन से भी ये जुड़े थे और अखिल भारतीय [[कांग्रेस]] कमेटी के सदस्य रहे।
जापान में ही वे स्वामी रामतीर्थ और उनके शिष्य स्वामी नारायण के संपर्क में आए। उन्होंने वहां भारत की स्वाधीनता के पक्ष में भाषण दिए और ‘थंडरिग डान’ नाम का पत्र भी निकाला।
==मृत्यु==
प्रतुलचंद्र गांगुली का अधिकांश समय जेलों के अंदर ही बीता और इस प्रकार [[1957]] में इनका देहांत हो गया।


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      भारत लौटने पर पूर्णसिंह लाला हरदयाल के संपर्क में आए। उसके बाद पूर्णसिंह की नियुक्ती देहरादून की वन अनुसंधानशाला में रसायन के प्रमुख परामर्शदाता के रूप में हो गई। अपने जीवन के अंतिम दिनों में पूर्णसिंह ननकाना साहब के पास खेती करने लगे।
==टीका-टिप्पणी और संदर्भ==
पूर्णसिंह ने अंग्रेजी और पंजाबी में अनेक ग्रंथों की रचना की। अंग्रेजी में ‘दि स्टोरी ऑफ स्वामी राम’, ‘दि स्केचेज फ्राम सिक्ख हिस्ट्री', हिज फीट’, ‘शार्ट स्टोरीज’ , ‘सिस्टर्स ऑफ दि स्पीनिंग हवील’, ‘गुरु तेगबहादुर’ लाइफ’, प्रमुख हैं । पंजाबी के प्रमुख ग्रंथ है – ‘अवि चल जोत’, ‘खुले मैदान’, ‘खुले खुंड’, ‘मेरा सांई’, ‘कविदा दिल कविता’,। हिन्दी में उनके निबंध हैं- ‘सच्ची वीरता’, ‘कन्यादान’, ‘पवित्रता’, ‘आचरण की सभ्यता’, ‘मजदूरी और प्रेम’,तथा अमेरिका का मस्ताना योगी वाल्ट हिवट मैंन।
<references/>
 
==संबंधित लेख==
    31 मई, 1931 ई. को देहरादून में पूर्णसिंह का देहांत हो गया।
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09:12, 23 सितम्बर 2016 का अवतरण

 == पूर्णसिंह == (जन्म- 17 फरावरी, 1881 ई. सलहद गांव, एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) ; मृत्यु-  

हिन्दी में केवल छह आत्मव्यंजन निबंध लिखकर हिन्दी निबंधकारों में अपना विशिष्ठ स्थान बनाने वाले अध्यापक का जन्म 17 फरावरी, 1881 ई. को एक सिक्ख परिवार में पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में एबटाबाद के निकट हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू और गुरुमुखी में हुई। बाद में वे जापान के टोकियो विश्व्वविद्यालय में तीन वर्ष तक औषधी निर्माण संबंधी रसायन का अध्ययन करते रहे।

जापान में ही वे स्वामी रामतीर्थ और उनके शिष्य स्वामी नारायण के संपर्क में आए। उन्होंने वहां भारत की स्वाधीनता के पक्ष में भाषण दिए और ‘थंडरिग डान’ नाम का पत्र भी निकाला।

     भारत लौटने पर पूर्णसिंह लाला हरदयाल के संपर्क में आए। उसके बाद पूर्णसिंह की नियुक्ती देहरादून की वन अनुसंधानशाला में रसायन के प्रमुख परामर्शदाता के रूप में हो गई। अपने जीवन के अंतिम दिनों में पूर्णसिंह ननकाना साहब के पास खेती करने लगे। 

पूर्णसिंह ने अंग्रेजी और पंजाबी में अनेक ग्रंथों की रचना की। अंग्रेजी में ‘दि स्टोरी ऑफ स्वामी राम’, ‘दि स्केचेज फ्राम सिक्ख हिस्ट्री', हिज फीट’, ‘शार्ट स्टोरीज’ , ‘सिस्टर्स ऑफ दि स्पीनिंग हवील’, ‘गुरु तेगबहादुर’ लाइफ’, प्रमुख हैं । पंजाबी के प्रमुख ग्रंथ है – ‘अवि चल जोत’, ‘खुले मैदान’, ‘खुले खुंड’, ‘मेरा सांई’, ‘कविदा दिल कविता’,। हिन्दी में उनके निबंध हैं- ‘सच्ची वीरता’, ‘कन्यादान’, ‘पवित्रता’, ‘आचरण की सभ्यता’, ‘मजदूरी और प्रेम’,तथा अमेरिका का मस्ताना योगी वाल्ट हिवट मैंन।

    31 मई, 1931 ई. को देहरादून में पूर्णसिंह का देहांत हो गया।