"स्वस्तिक का विश्वव्यापि प्रभाव": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{स्वस्तिक विषय सूची}}
{{स्वस्तिक विषय सूची}}
[[चित्र:many svt.jpg|विभिन्न धर्मों में स्वस्तिक|300px|thumb]]
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
|चित्र=Swastika-1.jpg
|चित्र का नाम=स्वस्तिक
|विवरण=पुरातन [[वैदिक]] सनातन [[संस्कृति]] का परम मंगलकारी प्रतीक चिह्न 'स्वस्तिक' अपने आप में विलक्षण है। यह [[देवता|देवताओं]] की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक है।
|शीर्षक 1=स्वस्तिक का अर्थ
|पाठ 1=सामान्यतय: स्वस्तिक शब्द को "सु" एवं "अस्ति" का मिश्रण योग माना जाता है। यहाँ "सु" का अर्थ है- 'शुभ' और "अस्ति" का 'होना'। [[संस्कृत]] व्याकरण के अनुसार "सु" एवं "अस्ति" को जब संयुक्त किया जाता है तो जो नया शब्द बनता है- वो है "स्वस्ति" अर्थात "शुभ हो", "कल्याण हो"।
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|शीर्षक 3=
|पाठ 3=
|शीर्षक 4=स्वस्ति मंत्र
|पाठ 4=ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा । स्वस्ति न-ह ताक्षर्‌यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु ॥
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|शीर्षक 6=
|पाठ 6=
|शीर्षक 7=
|पाठ 7=
|शीर्षक 8=
|पाठ 8=
|शीर्षक 9=
|पाठ 9=
|शीर्षक 10=
|पाठ 10=
|संबंधित लेख=
|अन्य जानकारी=[[भारतीय संस्कृति]] में [[स्वस्तिक]] चिह्न को [[विष्णु]], [[सूर्य देव|सूर्य]], सृष्टिचक्र तथा सम्पूर्ण [[ब्रह्माण्ड]] का प्रतीक माना गया है। कुछ विद्वानों ने इसे [[गणेश]] का प्रतीक मानकर इसे प्रथम वन्दनीय भी माना है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
[[हिन्दू]] मांगलिक प्रतीकों में [[स्वस्तिक]] एक ऐसा चिह्न है, जो अत्यन्त प्राचीन काल से लगभग सभी धर्मों और सम्प्रदायों में प्रचलित रहा है। [[भारत]] में तो इसकी जड़ें गहरायी से पैठी हुई हैं ही, विदेशों में भी इसका काफ़ी अधिक प्रचार प्रसार हुआ है। अनुमान है कि व्यापारी और पर्यटकों के माध्यम से ही हमारा यह मांगलिक प्रतीक विदेशों में पहुँचा। [[भारत]] के समान विदेशों में भी स्वस्तिक को शुभ और विजय का प्रतीक चिह्न माना गया। इसके नाम अवश्य ही अलग-अलग स्थानों में, समय-समय पर अलग-अलग रहे।
[[हिन्दू]] मांगलिक प्रतीकों में [[स्वस्तिक]] एक ऐसा चिह्न है, जो अत्यन्त प्राचीन काल से लगभग सभी धर्मों और सम्प्रदायों में प्रचलित रहा है। [[भारत]] में तो इसकी जड़ें गहरायी से पैठी हुई हैं ही, विदेशों में भी इसका काफ़ी अधिक प्रचार प्रसार हुआ है। अनुमान है कि व्यापारी और पर्यटकों के माध्यम से ही हमारा यह मांगलिक प्रतीक विदेशों में पहुँचा। [[भारत]] के समान विदेशों में भी स्वस्तिक को शुभ और विजय का प्रतीक चिह्न माना गया। इसके नाम अवश्य ही अलग-अलग स्थानों में, समय-समय पर अलग-अलग रहे।
==स्वस्तिक का विस्तार==
==स्वस्तिक का विस्तार==
स्वस्तिक [[संस्कृत]] का शब्द है। स्वस्तिक शब्द स्वस्ति से बना है। यह सभी जानते हैं कि [[भारतीय संस्कृति]] विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। संभवत:यहीं से विश्व के अनेक देशों में स्वस्तिक का विस्तार हुआ होगा। स्वस्तिक शब्द का प्रयोग पश्चिमी देशों में भी होता है। विभिन्न देशों में इसका अर्थ भिन्न-भिन्न है। स्वस्तिक चिह्न का डिजाइन इजिप्सन क्रास, चाइनीज ताउ, रोसीक्रूसियंस और क्रिश्चियन क्रास से मिलता जुलता है। विभिन्न आकृतिओं से मिलने वाला यह चिह्न हर युग में अपना अलग-अलग महत्त्व भी रखता है। [[सनातन धर्म]] और [[जैन धर्म]] हो या [[बौद्ध धर्म]], हर धर्म और युग में अपनी महत्ता के साथ स्वस्तिक उपस्थित है। स्वस्तिक को [[भारत]] में ही नहीं, अपितु विश्व के अन्य कई देशों में विभिन्न स्वरूपों में मान्यता प्राप्त है। [[जर्मनी]], [[यूनान]], [[फ़्राँस]], [[रोम]], [[मिस्र]], [[ब्रिटेन]], [[अमरीका]], स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, [[तिब्बत]], [[चीन]], साइप्रस और [[जापान]] आदि देशों में भी स्वस्तिक का प्रचलन है।
स्वस्तिक [[संस्कृत]] का शब्द है। स्वस्तिक शब्द स्वस्ति से बना है। यह सभी जानते हैं कि [[भारतीय संस्कृति]] विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। संभवत:यहीं से विश्व के अनेक देशों में स्वस्तिक का विस्तार हुआ होगा। स्वस्तिक शब्द का प्रयोग पश्चिमी देशों में भी होता है। विभिन्न देशों में इसका अर्थ भिन्न-भिन्न है।[[चित्र:many svt.jpg|विभिन्न धर्मों में स्वस्तिक|250px|left|thumb]]स्वस्तिक चिह्न का डिजाइन इजिप्सन क्रास, चाइनीज ताउ, रोसीक्रूसियंस और क्रिश्चियन क्रास से मिलता जुलता है। विभिन्न आकृतिओं से मिलने वाला यह चिह्न हर युग में अपना अलग-अलग महत्त्व भी रखता है। [[सनातन धर्म]] और [[जैन धर्म]] हो या [[बौद्ध धर्म]], हर धर्म और युग में अपनी महत्ता के साथ स्वस्तिक उपस्थित है। स्वस्तिक को [[भारत]] में ही नहीं, अपितु विश्व के अन्य कई देशों में विभिन्न स्वरूपों में मान्यता प्राप्त है। [[जर्मनी]], [[यूनान]], [[फ़्राँस]], [[रोम]], [[मिस्र]], [[ब्रिटेन]], [[अमरीका]], स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, [[तिब्बत]], [[चीन]], साइप्रस और [[जापान]] आदि देशों में भी स्वस्तिक का प्रचलन है।
 


स्वस्तिक की रेखाओं को कुछ विद्वान [[अग्नि]] उत्पन्न करने वाली अश्वत्थ तथा [[पीपल]] की दो लकड़ियाँ मानते हैं। प्राचीन मिस्र के लोग स्वस्तिक को निर्विवाद, रूप से काष्ठ दण्डों का प्रतीक मानते हैं। [[यज्ञ]] में अग्नि मंथन के कारण इसे प्रकाश का भी प्रतीक माना जाता है। अधिकांश लोगों की मान्यता है कि स्वस्तिक [[सूर्य]] का प्रतीक है। जैन धर्मावलम्बी अक्षत पूजा के समय स्वस्तिक चिह्न बनाकर तीन बिन्दु बनाते हैं। [[पारसी]] उसे चतुर्दिक दिशाओं एवं चारों समय की प्रार्थना का प्रतीक मानते हैं। व्यापारी वर्ग इसे शुभ-लाभ का प्रतीक मानते हैं। बहीखातों में ऊपर की ओर 'श्री' लिखा जाता है। इसके नीचे [[स्वस्तिक]] बनाया जाता है। इसमें न और स अक्षर अंकित किया जाता है जो कि नौ निधियों तथा आठों सिद्धियों का प्रतीक माना जाता है।
स्वस्तिक की रेखाओं को कुछ विद्वान [[अग्नि]] उत्पन्न करने वाली अश्वत्थ तथा [[पीपल]] की दो लकड़ियाँ मानते हैं। प्राचीन मिस्र के लोग स्वस्तिक को निर्विवाद, रूप से काष्ठ दण्डों का प्रतीक मानते हैं। [[यज्ञ]] में अग्नि मंथन के कारण इसे प्रकाश का भी प्रतीक माना जाता है। अधिकांश लोगों की मान्यता है कि स्वस्तिक [[सूर्य]] का प्रतीक है। जैन धर्मावलम्बी अक्षत पूजा के समय स्वस्तिक चिह्न बनाकर तीन बिन्दु बनाते हैं। [[पारसी]] उसे चतुर्दिक दिशाओं एवं चारों समय की प्रार्थना का प्रतीक मानते हैं। व्यापारी वर्ग इसे शुभ-लाभ का प्रतीक मानते हैं। बहीखातों में ऊपर की ओर 'श्री' लिखा जाता है। इसके नीचे [[स्वस्तिक]] बनाया जाता है। इसमें न और स अक्षर अंकित किया जाता है जो कि नौ निधियों तथा आठों सिद्धियों का प्रतीक माना जाता है।
==जैन धर्म में महत्ता==
==जैन धर्म में महत्ता==
जैन अनुयायी स्वस्तिक की चार भुजाओं को संभावित पुनर्जन्मों के स्थल-स्थानों के रूप में मानते हैं। ये स्थल हैं- वनस्पति या प्राणिजगत, [[पृथ्वी]], जीवात्मा एवं नरक। [[बौद्ध मठ|बौद्ध मठों]] में भी स्वस्तिक का अंकन मिलता है। जॉर्ज वडंउड ने बौद्धों के धर्मचक्र को यूनानी क्रॉस को तथा स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना है। उनके अनुसार यह अत्यंत प्राचीनतम प्रतीक है, जिसमें गहन अर्थ निहित है। तिब्बत के लामाओं के निवास स्थान तथा मंदिरों में स्वस्तिक की आकृति बनी हुई मिलती है। क्रॉस की उत्पत्ति का आधार ही स्वस्तिक है। [[बौद्ध धर्म]] में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। यह [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] के पग चिन्हों को दिखाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं, स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है। [[हिन्दू धर्म]] से कहीं ज्यादा महत्व स्वास्तिक का [[जैन धर्म]] में है। जैन धर्म में यह सातवें जिन का प्रतीक है, जिसे सब तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्टमंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।
जैन अनुयायी स्वस्तिक की चार भुजाओं को संभावित पुनर्जन्मों के स्थल-स्थानों के रूप में मानते हैं। ये स्थल हैं- वनस्पति या प्राणिजगत, [[पृथ्वी]], जीवात्मा एवं नरक। [[बौद्ध मठ|बौद्ध मठों]] में भी स्वस्तिक का अंकन मिलता है। जॉर्ज वडंउड ने बौद्धों के धर्मचक्र को यूनानी क्रॉस को तथा स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना है। उनके अनुसार यह अत्यंत प्राचीनतम प्रतीक है, जिसमें गहन अर्थ निहित है। तिब्बत के लामाओं के निवास स्थान तथा मंदिरों में स्वस्तिक की आकृति बनी हुई मिलती है। क्रॉस की उत्पत्ति का आधार ही स्वस्तिक है। [[बौद्ध धर्म]] में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। यह [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] के पग चिन्हों को दिखाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं, स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है। [[हिन्दू धर्म]] से कहीं ज्यादा महत्व स्वास्तिक का [[जैन धर्म]] में है। जैन धर्म में यह सातवें जिन का प्रतीक है, जिसे सब तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्टमंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।
 
{|style="width:100%"
 
|-
|
|}
{{लेख क्रम2 |पिछला=स्वस्तिक की प्राचीनता|पिछला शीर्षक=स्वस्तिक की प्राचीनता|अगला शीर्षक= स्वस्तिक का प्रयोग|अगला=स्वस्तिक का प्रयोग}}
{{लेख क्रम2 |पिछला=स्वस्तिक की प्राचीनता|पिछला शीर्षक=स्वस्तिक की प्राचीनता|अगला शीर्षक= स्वस्तिक का प्रयोग|अगला=स्वस्तिक का प्रयोग}}



13:20, 28 सितम्बर 2016 का अवतरण

स्वस्तिक विषय सूची
स्वस्तिक का विश्वव्यापि प्रभाव
स्वस्तिक
स्वस्तिक
विवरण पुरातन वैदिक सनातन संस्कृति का परम मंगलकारी प्रतीक चिह्न 'स्वस्तिक' अपने आप में विलक्षण है। यह देवताओं की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक है।
स्वस्तिक का अर्थ सामान्यतय: स्वस्तिक शब्द को "सु" एवं "अस्ति" का मिश्रण योग माना जाता है। यहाँ "सु" का अर्थ है- 'शुभ' और "अस्ति" का 'होना'। संस्कृत व्याकरण के अनुसार "सु" एवं "अस्ति" को जब संयुक्त किया जाता है तो जो नया शब्द बनता है- वो है "स्वस्ति" अर्थात "शुभ हो", "कल्याण हो"।
स्वस्ति मंत्र ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा । स्वस्ति न-ह ताक्षर्‌यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु ॥
अन्य जानकारी भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक चिह्न को विष्णु, सूर्य, सृष्टिचक्र तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतीक माना गया है। कुछ विद्वानों ने इसे गणेश का प्रतीक मानकर इसे प्रथम वन्दनीय भी माना है।

हिन्दू मांगलिक प्रतीकों में स्वस्तिक एक ऐसा चिह्न है, जो अत्यन्त प्राचीन काल से लगभग सभी धर्मों और सम्प्रदायों में प्रचलित रहा है। भारत में तो इसकी जड़ें गहरायी से पैठी हुई हैं ही, विदेशों में भी इसका काफ़ी अधिक प्रचार प्रसार हुआ है। अनुमान है कि व्यापारी और पर्यटकों के माध्यम से ही हमारा यह मांगलिक प्रतीक विदेशों में पहुँचा। भारत के समान विदेशों में भी स्वस्तिक को शुभ और विजय का प्रतीक चिह्न माना गया। इसके नाम अवश्य ही अलग-अलग स्थानों में, समय-समय पर अलग-अलग रहे।

स्वस्तिक का विस्तार

स्वस्तिक संस्कृत का शब्द है। स्वस्तिक शब्द स्वस्ति से बना है। यह सभी जानते हैं कि भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। संभवत:यहीं से विश्व के अनेक देशों में स्वस्तिक का विस्तार हुआ होगा। स्वस्तिक शब्द का प्रयोग पश्चिमी देशों में भी होता है। विभिन्न देशों में इसका अर्थ भिन्न-भिन्न है।

विभिन्न धर्मों में स्वस्तिक

स्वस्तिक चिह्न का डिजाइन इजिप्सन क्रास, चाइनीज ताउ, रोसीक्रूसियंस और क्रिश्चियन क्रास से मिलता जुलता है। विभिन्न आकृतिओं से मिलने वाला यह चिह्न हर युग में अपना अलग-अलग महत्त्व भी रखता है। सनातन धर्म और जैन धर्म हो या बौद्ध धर्म, हर धर्म और युग में अपनी महत्ता के साथ स्वस्तिक उपस्थित है। स्वस्तिक को भारत में ही नहीं, अपितु विश्व के अन्य कई देशों में विभिन्न स्वरूपों में मान्यता प्राप्त है। जर्मनी, यूनान, फ़्राँस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, अमरीका, स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस और जापान आदि देशों में भी स्वस्तिक का प्रचलन है।


स्वस्तिक की रेखाओं को कुछ विद्वान अग्नि उत्पन्न करने वाली अश्वत्थ तथा पीपल की दो लकड़ियाँ मानते हैं। प्राचीन मिस्र के लोग स्वस्तिक को निर्विवाद, रूप से काष्ठ दण्डों का प्रतीक मानते हैं। यज्ञ में अग्नि मंथन के कारण इसे प्रकाश का भी प्रतीक माना जाता है। अधिकांश लोगों की मान्यता है कि स्वस्तिक सूर्य का प्रतीक है। जैन धर्मावलम्बी अक्षत पूजा के समय स्वस्तिक चिह्न बनाकर तीन बिन्दु बनाते हैं। पारसी उसे चतुर्दिक दिशाओं एवं चारों समय की प्रार्थना का प्रतीक मानते हैं। व्यापारी वर्ग इसे शुभ-लाभ का प्रतीक मानते हैं। बहीखातों में ऊपर की ओर 'श्री' लिखा जाता है। इसके नीचे स्वस्तिक बनाया जाता है। इसमें न और स अक्षर अंकित किया जाता है जो कि नौ निधियों तथा आठों सिद्धियों का प्रतीक माना जाता है।

जैन धर्म में महत्ता

जैन अनुयायी स्वस्तिक की चार भुजाओं को संभावित पुनर्जन्मों के स्थल-स्थानों के रूप में मानते हैं। ये स्थल हैं- वनस्पति या प्राणिजगत, पृथ्वी, जीवात्मा एवं नरक। बौद्ध मठों में भी स्वस्तिक का अंकन मिलता है। जॉर्ज वडंउड ने बौद्धों के धर्मचक्र को यूनानी क्रॉस को तथा स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना है। उनके अनुसार यह अत्यंत प्राचीनतम प्रतीक है, जिसमें गहन अर्थ निहित है। तिब्बत के लामाओं के निवास स्थान तथा मंदिरों में स्वस्तिक की आकृति बनी हुई मिलती है। क्रॉस की उत्पत्ति का आधार ही स्वस्तिक है। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। यह भगवान बुद्ध के पग चिन्हों को दिखाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं, स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है। हिन्दू धर्म से कहीं ज्यादा महत्व स्वास्तिक का जैन धर्म में है। जैन धर्म में यह सातवें जिन का प्रतीक है, जिसे सब तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्टमंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।


पीछे जाएँ
पीछे जाएँ
स्वस्तिक का विश्वव्यापि प्रभाव
आगे जाएँ
आगे जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख