"जयपुर-अतरौली घराना": अवतरणों में अंतर
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'''जयपुर-अतरौली घराना''' [[हिंदुस्तानी संगीत]] के प्रसिद्ध [[घराना|घरानों]] में से एक है। मुहम्मद अली | '''जयपुर-अतरौली घराना''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jaipur-Atrauli Gharana'') [[हिंदुस्तानी संगीत]] के प्रसिद्ध [[घराना|घरानों]] में से एक है। इसे 'जयपुर घराना' और 'अल्लादिया ख़ान घराना' नाम से भी जाना जाता है। मुहम्मद अली ख़ाँ इस घराने के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके बेटे मशहूर गायक आशिक अली ख़ाँ थे। | ||
जयपुर घराने की शुरुआत करने वालों में भानु जी का नाम भी आता है, जिन्हें किसी [[संत]] द्वारा ताण्डव नृत्य की शिक्षा प्राप्त हुई। इनके बेटे मालु जी थे, जिन्होंने अपने पिता के सीखे हुए [[नृत्य]] की शिक्षा अपने दोनों बेटों- लालू जी और कान्हू जी को दी। कान्हू जी ने [[वृंदावन]] जा कर नटवरी नृत्य की शिक्षा भी प्राप्त की। इनके दो लड़के थे- गीधा जी और शेजा जी। पहले ने ताण्डव व दूसरे ने लास्य अंग में विशेष योग्यता प्राप्त की। | |||
==नृत्य शैली== | |||
जयपुर घराने से तात्पर्य [[कथक नृत्य]] की राजस्थानी परम्परा से है। इसके नर्तक ज़्यादातर [[हिन्दू]] राजाओं के दरबारों से संबद्ध रहे, अतः जहाँ एक ओर कथक नृत्य की बहुत-सी प्राचीन परम्परायें इस घराने में अभी भी सुरक्षित हैं, वहीं अपने आश्रायदाताओं की रुचि के अनुसार इनके नृत्य में जोश व तेज़ी तैयारी अधिक दिखाई पड़ती है। [[पखावज]] की मुश्किल तालों, जैसे- धमार, चौताल, रूद्र, अष्टमंगल, ब्रह्मा, लक्ष्मी, गणेश आदि ये अत्यंत सरलता से नाच लेते हैं। इनके द्वारा तत्कार में कठिन लयकारयों का प्रदर्शन बहुत प्रसिद्ध है। जितना पैरों की सफ़ाई पर इसमें ध्यान दिया जाता है, उतना हस्तकों पर नहीं। नृत्य के बोलों के अलावा, [[कवित्त]], प्रिमलू, पक्षी परन, जाती परन आदि के विभिन्न प्रकार के बोलों का प्रयोग इस घराने की विशेषता है। भाव प्रदर्शन में सात्विकता रहती है और [[ठुमरी]] की अपेक्षा भजन पदों पर भाव दिखाये जाते हैं।<ref>{{cite web |url=https://kathakahekathak.wordpress.com/2016/08/ |title=कत्थक नृत्य के घराने |accessmonthday=22 अक्टूबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=kathakahekathak.wordpress.com |language=हिंदी }}</ref> | |||
==विशेषता== | ==विशेषता== | ||
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कथक की जन्मस्थली [[राजस्थान]] की इस धरा से जुड़े कथक के तीर्थ जयपुर घराने में नृत्य के दौरान पाँव की तैयारी, अंग संचालन व नृत्य की गति पर विशेष ध्यान दिया जाता है, इसीलिए सशक्त नृत्य के नाम पर जयपुर घराना शीर्ष स्थान कायम किए हुए है। नृत्याचार्य गिरधारी महाराज व शशि मोहन गोयल के अथक प्रयासों के दम पर यह घराना अपनी पूर्व छवि कायम किए हुए है। इनकी शिष्याओं ज्योति भारती गोस्वामी, कविता सक्सेना, निभा नारंग, रीमा गोयल, प्रीति सोनी, मधु सक्सेना और गीतांजलि आदि अनेक कलाकारों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जयपुर घराने का काफ़ी नाम किया है। जयपुर घराने को शीर्ष पर पहुँचाने में '[[पद्मश्री]]' से सम्मानित उमा शर्मा, प्रेरणा श्रीमाली, 'पद्मश्री' शोवना नारायण, राजेन्द्र गंगानी और जगदीश गंगानी के योगदान को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है। इन कलाकारों ने विदेशों में भारतीय शास्त्रीय नृत्य की जो अमिट छाप छोड़ी है, वह अविस्मरणीय है।<ref>{{cite web |url=http://journalistnishant.blogspot.in/2010/11/blog-post_27.html |title=कत्थक के मूल स्वरूप में परिवर्तन और घरानों की देन|accessmonthday=22 अक्टूबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=journalistnishant.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref> | |||
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06:54, 22 अक्टूबर 2016 का अवतरण
जयपुर-अतरौली घराना (अंग्रेज़ी: Jaipur-Atrauli Gharana) हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध घरानों में से एक है। इसे 'जयपुर घराना' और 'अल्लादिया ख़ान घराना' नाम से भी जाना जाता है। मुहम्मद अली ख़ाँ इस घराने के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके बेटे मशहूर गायक आशिक अली ख़ाँ थे।
जयपुर घराने की शुरुआत करने वालों में भानु जी का नाम भी आता है, जिन्हें किसी संत द्वारा ताण्डव नृत्य की शिक्षा प्राप्त हुई। इनके बेटे मालु जी थे, जिन्होंने अपने पिता के सीखे हुए नृत्य की शिक्षा अपने दोनों बेटों- लालू जी और कान्हू जी को दी। कान्हू जी ने वृंदावन जा कर नटवरी नृत्य की शिक्षा भी प्राप्त की। इनके दो लड़के थे- गीधा जी और शेजा जी। पहले ने ताण्डव व दूसरे ने लास्य अंग में विशेष योग्यता प्राप्त की।
नृत्य शैली
जयपुर घराने से तात्पर्य कथक नृत्य की राजस्थानी परम्परा से है। इसके नर्तक ज़्यादातर हिन्दू राजाओं के दरबारों से संबद्ध रहे, अतः जहाँ एक ओर कथक नृत्य की बहुत-सी प्राचीन परम्परायें इस घराने में अभी भी सुरक्षित हैं, वहीं अपने आश्रायदाताओं की रुचि के अनुसार इनके नृत्य में जोश व तेज़ी तैयारी अधिक दिखाई पड़ती है। पखावज की मुश्किल तालों, जैसे- धमार, चौताल, रूद्र, अष्टमंगल, ब्रह्मा, लक्ष्मी, गणेश आदि ये अत्यंत सरलता से नाच लेते हैं। इनके द्वारा तत्कार में कठिन लयकारयों का प्रदर्शन बहुत प्रसिद्ध है। जितना पैरों की सफ़ाई पर इसमें ध्यान दिया जाता है, उतना हस्तकों पर नहीं। नृत्य के बोलों के अलावा, कवित्त, प्रिमलू, पक्षी परन, जाती परन आदि के विभिन्न प्रकार के बोलों का प्रयोग इस घराने की विशेषता है। भाव प्रदर्शन में सात्विकता रहती है और ठुमरी की अपेक्षा भजन पदों पर भाव दिखाये जाते हैं।[1]
विशेषता
- गीत की बंदिश छोटी होना
- खुली आवाज़ में गाना,
- आवाज़ बनाने का निराला ढंग
- वक्र तानें।
संस्थापक
- उस्ताद अल्लादिया ख़ान
प्रतिपादक
- मल्लिकार्जुन मंसूर
- केसरभाई केरकर
- किशोरी अमोनकर
- श्रुति सदोलीकर
- पद्म तलवलकर
- अश्विनी भिडे
प्रमुख नर्तक
कथक की जन्मस्थली राजस्थान की इस धरा से जुड़े कथक के तीर्थ जयपुर घराने में नृत्य के दौरान पाँव की तैयारी, अंग संचालन व नृत्य की गति पर विशेष ध्यान दिया जाता है, इसीलिए सशक्त नृत्य के नाम पर जयपुर घराना शीर्ष स्थान कायम किए हुए है। नृत्याचार्य गिरधारी महाराज व शशि मोहन गोयल के अथक प्रयासों के दम पर यह घराना अपनी पूर्व छवि कायम किए हुए है। इनकी शिष्याओं ज्योति भारती गोस्वामी, कविता सक्सेना, निभा नारंग, रीमा गोयल, प्रीति सोनी, मधु सक्सेना और गीतांजलि आदि अनेक कलाकारों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जयपुर घराने का काफ़ी नाम किया है। जयपुर घराने को शीर्ष पर पहुँचाने में 'पद्मश्री' से सम्मानित उमा शर्मा, प्रेरणा श्रीमाली, 'पद्मश्री' शोवना नारायण, राजेन्द्र गंगानी और जगदीश गंगानी के योगदान को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है। इन कलाकारों ने विदेशों में भारतीय शास्त्रीय नृत्य की जो अमिट छाप छोड़ी है, वह अविस्मरणीय है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कत्थक नृत्य के घराने (हिंदी) kathakahekathak.wordpress.com। अभिगमन तिथि: 22 अक्टूबर, 2016।
- ↑ कत्थक के मूल स्वरूप में परिवर्तन और घरानों की देन (हिंदी) journalistnishant.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 22 अक्टूबर, 2016।
बाहरी कड़ियाँ
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