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'''प्यारे लाल नय्यर'''([[अंग्रेज़ी]]: ''Pyarelal Nayyar'') जन्म: [[1899]], [[दिल्ली]]: मृत्यु: [[1982]]) [[महात्मा गांधी]] के निजी सचिव और [[भारत]] के स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्होंने अनेक ग्रंथ भी लिखे हैं।
'''लोकराम नयनराम शर्मा'''(जन्म: [[1890]] [[हैदराबाद]] ;मृत्यु: [[29 मई]] [[1933]]भारत के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और संगठनकर्त्ता थे।
==परिचय==
==जन्म एवं शिक्षा==
स्वतंत्रता सेनानी प्यारे लाल नय्यर का जन्म [[1899]] में दिल्ली में हुआ था। इनका पारिवारिक निवास पश्चिमी सीमा प्रांत (अब [[पाकिस्तान]]) में था। प्यारे लाल की शिक्षा गवर्नमेंट कॉलेज, [[लाहौर]] में हुई।
सिंध प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और संगठनकर्त्ता लोकराम नयनराम शर्मा का जन्म [[1890 ]] मैं,  [[हैदराबाद]] (सिंध) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पारिवारिक प्रभाव से लोकराम नयनराम शर्मा ने छोटी उम्र में ही प्राचीन भारतीय साहित्य का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। संस्कृत भाषा के प्रति इनकी विशेष रुचि थी। इसी रुची के कारण ये 15 वर्ष की उम्र में अपने मित्र गुरुदास के साथ संस्कृत का अध्ययन करने के लिए वाराणसी गये। [[1905]] से [[1907]] तक ये वाराणसी रहे।
==सच्चे क्रांतिकारी ==
==आदोंलन==
प्यारे लाल नय्यर एक सच्चे क्रांतिकारी थे। जब ये [[अंग्रेज़ी]] से एम.ए. के लिए अध्ययन कर रहे थे कि तभी महात्मा गांधी ने [[1920]] का [[असहयोग आंदोलन]] आरंभ कर दिया, और जब इन्हें यह पता चला तो ये अपनी अंतिम परीक्षा जिसमें 6 महीने शेष रह गए थे।, कॉलेज छोड़ कर बाहर आ गए और असहयोग आंदोलन से जुड़ गये।
लोकराम नयनराम शर्मा जब [[वाराणसी]] में रह रहे थे तभी इनका परिचय बंग-भंग विरोधी और स्वेदेशी आंदोलन से हुआ। [[1907]] में वापस [[सिंध]] पहुंचने तक ये राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत थे। लोकराम की लेखनी राष्ट्रीय आकांक्षाओं का जोरदार समर्थन करती थी। इसलिए कई बार सरकार ने इनके पत्रों पर लोक लगाई, प्रेस को जब्त किया और इन्हें जेल की सजाएं भी भोगनी पड़ी। इनके प्रयत्नों से बने वातावरण में ही [[1931]] में [[कराची]] में [[कांग्रेस]] का अधिवेशन हो पाया था। इन्होने नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया था।
==गांधी जी के सहायक==
==विचारों के प्रचार के लिये ==
प्यारे लाल नय्यर सदा महात्मा गांधी जी के सहायक रहे, यद्यपि [[1942]] में अपने निधन तक [[महादेव देसाई]] महात्मा गांधी जी के निजी सचिव थे। ये [[1930]] के [[गोलमेज सम्मेलन]] में महात्मा गांधी जी के साथ गए थे। प्यारे लाल नय्यर महात्मा गांधी जी के राजनैतिक और आर्थिक विचारों के अनुयायी थे। स्वतंत्रता संग्राम में जब-जब गिरफ्तारियां हुईं इन्होंने भी जेल की सजाएं भोगीं। देश के विभाजन के समय नोआखाली के दंगों में उन्होंने पीड़ित लोगों की बड़ी सहायता की। प्यारे लाल ने कभी संगठन या सरकार में कोई पद ग्रहण नही किया। ये 'हरिजन' पत्र के संपादक भी रहे है।
लोकराम नयनराम शर्मा ने अपने विचारों के प्रचार के लिए पहले कुछ प्रपत्र प्रकाशित किए और 'रास मंडली' नामक सांस्कृतिक संस्था बनाई। फिर सिंध में राष्ट्रीय पत्र की कमी दूर करने के लिए 'सिंध भास्कर' पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। इस पत्र को इन्होंने अरबी लिपि के स्थान पर देवनागरी लिपि में निकाला था। कुछ समय बाद इसका नाम बदल कर 'हिंन्दू' कर दिया गया। इसी समय लोकराम सिंध के प्रमुख नेता चोइथराम गिडवानी, जयराम दास दौलतराम आदि के संपर्क में आए। बाद में जब 'हिंदू' का 'वंदेमातरम' नाम से [[अंग्रेज़ी]] संस्करण निकला तो कुछ समय तक जयराम दास दौलतराम ने उसका संपादन किया था।
==रचनाएं ==
==मृत्यु==
महात्मा गांधी जी के दृष्टिकोण की व्याख्या करते हुए उन्होंने अनेक ग्रंथ लिखे हैं जो इस प्रकार हैं -
लोकराम नयनराम शर्मा का जेल से खराब स्वास्थय लेकर आने पर 29 मई,1933 को उनका देहांत हो गया।
* दि इपिक फास्ट
* ए पिलिग्रिमेज ऑफ पीस
* ए नेशन बिल्डर ऐट वर्क
* महात्मा गांधी दि लास्ट फेज
* महात्मा गांधी दि अर्ली फेज
==निधन==
प्यारे लाल नय्यर का 1982 में निधन हो गया।
 
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==टीका-टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
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11:54, 26 अक्टूबर 2016 का अवतरण

लोकराम नयनराम शर्मा(जन्म: 1890 हैदराबाद ;मृत्यु: 29 मई 1933) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और संगठनकर्त्ता थे।

जन्म एवं शिक्षा

सिंध प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और संगठनकर्त्ता लोकराम नयनराम शर्मा का जन्म 1890 मैं, हैदराबाद (सिंध) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पारिवारिक प्रभाव से लोकराम नयनराम शर्मा ने छोटी उम्र में ही प्राचीन भारतीय साहित्य का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। संस्कृत भाषा के प्रति इनकी विशेष रुचि थी। इसी रुची के कारण ये 15 वर्ष की उम्र में अपने मित्र गुरुदास के साथ संस्कृत का अध्ययन करने के लिए वाराणसी गये। 1905 से 1907 तक ये वाराणसी रहे।

आदोंलन

लोकराम नयनराम शर्मा जब वाराणसी में रह रहे थे तभी इनका परिचय बंग-भंग विरोधी और स्वेदेशी आंदोलन से हुआ। 1907 में वापस सिंध पहुंचने तक ये राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत थे। लोकराम की लेखनी राष्ट्रीय आकांक्षाओं का जोरदार समर्थन करती थी। इसलिए कई बार सरकार ने इनके पत्रों पर लोक लगाई, प्रेस को जब्त किया और इन्हें जेल की सजाएं भी भोगनी पड़ी। इनके प्रयत्नों से बने वातावरण में ही 1931 में कराची में कांग्रेस का अधिवेशन हो पाया था। इन्होने नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया था।

विचारों के प्रचार के लिये

लोकराम नयनराम शर्मा ने अपने विचारों के प्रचार के लिए पहले कुछ प्रपत्र प्रकाशित किए और 'रास मंडली' नामक सांस्कृतिक संस्था बनाई। फिर सिंध में राष्ट्रीय पत्र की कमी दूर करने के लिए 'सिंध भास्कर' पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। इस पत्र को इन्होंने अरबी लिपि के स्थान पर देवनागरी लिपि में निकाला था। कुछ समय बाद इसका नाम बदल कर 'हिंन्दू' कर दिया गया। इसी समय लोकराम सिंध के प्रमुख नेता चोइथराम गिडवानी, जयराम दास दौलतराम आदि के संपर्क में आए। बाद में जब 'हिंदू' का 'वंदेमातरम' नाम से अंग्रेज़ी संस्करण निकला तो कुछ समय तक जयराम दास दौलतराम ने उसका संपादन किया था।

मृत्यु

लोकराम नयनराम शर्मा का जेल से खराब स्वास्थय लेकर आने पर 29 मई,1933 को उनका देहांत हो गया।