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||'रैयतवाड़ी व्यवस्था' में प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार भूमि का स्वामी होता था, जो सरकार को लगान देने के लिए उत्तरदायी होता था। भूमिदार के पास भूमि को रहने, रखने व बेचने का अधिकार था। भूमि कर न देने की स्थिति में भूमिदार को, भूस्वामित्व के अधिकार से वंचित होना पड़ता था। इस व्यवस्था के अंतर्गत अंग्रेज़ सरकार का रैयत से सीधा सम्पर्क होता था। [[रैयतवाड़ी व्यवस्था]] को मद्रास (वर्तमान [[चैन्नई]]) तथा बम्बई (वर्तमान [[मुम्बई]]) एवं [[असम]] के अधिकांश भागों में लागू किया गया। रैयतवाड़ी भूमि कर व्यवस्था को पहली बार 1792 ई. में मद्रास के बारामहल ज़िले में लागू किया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रैयतवाड़ी व्यवस्था]] | ||'रैयतवाड़ी व्यवस्था' में प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार भूमि का स्वामी होता था, जो सरकार को लगान देने के लिए उत्तरदायी होता था। भूमिदार के पास भूमि को रहने, रखने व बेचने का अधिकार था। भूमि कर न देने की स्थिति में भूमिदार को, भूस्वामित्व के अधिकार से वंचित होना पड़ता था। इस व्यवस्था के अंतर्गत अंग्रेज़ सरकार का रैयत से सीधा सम्पर्क होता था। [[रैयतवाड़ी व्यवस्था]] को मद्रास (वर्तमान [[चैन्नई]]) तथा बम्बई (वर्तमान [[मुम्बई]]) एवं [[असम]] के अधिकांश भागों में लागू किया गया। रैयतवाड़ी भूमि कर व्यवस्था को पहली बार 1792 ई. में मद्रास के बारामहल ज़िले में लागू किया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रैयतवाड़ी व्यवस्था]] | ||
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