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| {{सूचना बक्सा साहित्यकार
| | '''बाबा रामचंद्र''' (अंगेज़ी: ''Baba Ram Chandra'', जन्म: [[1875]] [[ग्वालियर]]; मृत्यु: [[1950]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध किसान नेता तथा स्वतंत्रता सेनानी थे। |
| |चित्र=C-Narayana-Reddy.jpg
| | ==परिचय== |
| |चित्र का नाम=सी. नारायन रेड़्ड़ी
| | बाबा रामचंद्र का जन्म [[1875]] में [[ग्वालियर]] के एक गरीब [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] में हुआ था। इनका जीवन बड़ा घटना प्रधान रहा था। इन्हें औपचारिक शिक्षा का अवसर नहीं मिला, किंतु '[[रामचरित मानस]]' का इन्होंने अध्ययन किया। |
| |पूरा नाम=सिंगिरेड्डी नारायण रेड्डी
| | ==कार्य क्षेत्र== |
| |अन्य नाम=
| | बाबा रामचंद्र अपने यौवनकाल में शर्तबंद कुली बन कर फिजी पहुंचे। ये अपने [[रामायण |रामायण ज्ञान]] और भाषण देने की क्षमता के कारण वहां बसे हुए भारतीयों में शीघ्र ही लोगप्रिय हो गए। [[अंग्रेज]] जो भारतीयों को कुली बनाकर ले गए थे, उन पर बड़े अत्याचार करते थे। बाबा रामचंद्र ने इसके विरोध में आवाज उठाई और लोगों को संगठित किया। इस पर उन्हें [[1918]] में भारत वापस भेज दिया गया। |
| |जन्म=[[29 जुलाई]], [[1931]]
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| |जन्म भूमि=[[आंध्र प्रदेश]]
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| |मृत्यु=
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| |मृत्यु स्थान=
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| |अभिभावक=
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| |पालक माता-पिता=
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| |पति/पत्नी=
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| |संतान=
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| |कर्म भूमि=
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| |कर्म-क्षेत्र=[[कवि]]
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| |मुख्य रचनाएँ="मुखामुखी" ([[1971]]), "मनिषि चिलक" ([[1962]]), "उदयं ना हृदयं" ([[1963]])
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| |विषय=
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| |भाषा=तेलुगु
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| |विद्यालय=
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| |शिक्षा=
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| |पुरस्कार-उपाधि="[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]" ([[1988]])
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| |प्रसिद्धि=[[कवि]]
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| |विशेष योगदान=
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| |नागरिकता=भारतीय
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| |संबंधित लेख=
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| |शीर्षक 1=
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| |पाठ 1=
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| |शीर्षक 2=
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| |पाठ 2=
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| |अन्य जानकारी=सी. नारायण रेड्डी पर किशोरावस्था से ही लोकगीतों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित हरि-कथा, विथि-भागवत आदि लोकशैलियों की गहरी छाप पड़ी। यह संगीत-प्रेमी और सुमधुर कंठ के स्वामी हैं
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| |बाहरी कड़ियाँ=
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| '''सिंगिरेड्डी नारायण रेड्डी''' ([[अंग्रेजी]]: ''C. Narayana Reddy'', जन्म: [[29 जुलाई]], [[1931]], [[आंध्र प्रदेश]]) [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से सम्मानित [[तेलुगु भाषा]] के प्रख्यात [[कवि]] है। ये अपनी पीढ़ी के सर्वाधिक जाने-माने कवियों में से एक हैं। ये पांच दशकों से भी अधिक समय तक काव्य रचना में लगे हुए है, अब तक इनकी 40 से भी अधिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं, जिसमें [[कविता]], गीत, [[संगीत]], [[नाटक]], नृत्य-नाट्य, [[निबंध]], यात्रा संस्मरण, साहित्यालोचन तथा [[ग़ज़ल|ग़ज़लें]] (मौलिक तथा अनूदित) सम्मिलित हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-5|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=131|url=}}</ref> | |
| ==जन्म एवं शिक्षा== | |
| सिंगिरेड्डी नारायण रेड्डी का जन्म 29 जुलाई, 1931 को आंध्र प्रदेश के दूरदराज़ के गांव हनुमाजीपेट के एक कृषक परिवार में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा [[उर्दू]] माध्यम से हुई। किशोरावस्था में इन पर लोकगीतों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित हरि-कथा, विथि-भागवत आदि लोकशैलियों की गहरी छाप पड़ी। यह [[संगीत|संगीत-प्रेमी]] हैं और सुमधुर कंठ के स्वामी हैं, जिसका यह अपने [[काव्य]] पाठों में पूरा लाभ उठाते हैं।
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| ==कवि के रूप में==
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| सी. नारायन रेड़्ड़ी को [[कवि]] के विकासक्रम के विभिन्न चरणों में रखा जा सकता है, ये है, रूमानी, प्रगतिशील तथा मानवतावादी चरण, यह वर्गीकरण कवि की विकास यात्रा में पड़ने वाले किसी एक पड़ाव से जुड़ी रचनाओं में पाए जाने वाले सर्वप्रथम तत्त्व को निर्दिष्ट करने मात्र के लिए है। इन सभी चरणों के दौरान मनुष्य की अंतर्निहित अच्छाई और अंतत: सामाजिक, आर्थिक अथवा राजनीतिक बुराई पर उसकी विजय की अवश्यंभाविता में [[कवि]] की गहन एवं अटूट आस्था एक अंरर्धारा की भांति निरंतर प्रवहमान रहती है।
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| ==कवि का विकास चरण==
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| कवियों के लिए जीवन में कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसे किसी भी प्रकार, जिस-तिस साधन से सुलझाना ही है और न वह कोई मधुर सुखात्मक कथा है, जिसका प्रफुल्लतापूर्ण आस्वादन किया जाए। वह कठोर परिश्रम और मानव कल्याण की [[सिद्धि]] का साधना स्थल है। कवि के इन सभी विकास चरणों में उनका काव्य दुनिया के बेज़ुबान जूझते करोड़ों लोगों को अपने ढंग से निरंतर वाणी देता है। स्वभावत: उनकी तरुणाई का काव्य रूमानी उमंग से परिपूर्ण है। इनमें भाषा तथा बिंब विधान पर उनके अधिकार तथा प्रकृति एवं सौंदर्य के प्रति अनुराग है।
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| ==रचनाएँ== | |
| सी. नारायन रेड़्ड़ी के काव्य के रूमानी दौर की सर्वाधिक प्रतिनिधि काव्य रचना 26 वर्ष की आयु में रचित "कपूर वसंतरायलु" ([[1956]]) है। इसने उन्हें उग्रणी कवियों में प्रतिष्ठित कर दिया। वर्तमान [[समाज]] में बेहद कठिन स्थितियों के बीच चिथड़े-चिथड़े होते मनुष्य की दुर्दशा कवि को यातना देती है। वह ऐसे लोगों से दो-चार होते हैं, जिसके हाथों में सत्ता है चाहे वह धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक, ये लोग उत्तरदायित्व की किसी विवेकशील भावना या मानवीय सरोकार के बिना सत्ता का उपभोग करते हैं। उपर्युक्त धारा में आने वाले इनके प्रमुख संग्रह हैं-
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| #मुखामुखी ([[1971]])
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| #मनिषि चिलक ([[1962]])
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| #उदयं ना हृदयं ([[1963]])
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| | | बाबा रामचंद्र ने [[भारत]] आने पर पहले [[उत्तर प्रदेश]] में [[जौनपुर]] को फिर [[प्रतापगढ़ ज़िला|प्रतापगढ़]] और [[रायबरेली]] को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। ये गांव-गांव घूमकर किसानों को विदेशी सरकार के अत्याचारों के विरुद्ध संगठित करते थे। रामायण की कथा के नाम पर वहा लोगो की भीड़ एकत्र होती और बाबा रामचंद्र 'जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, से नृप अवसर नरक अधिकारी' कह कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध वातावरण का माहौल बनाते। जिससे इनकी सभाओं में हजारों की भीड़ जमा होती और ये अपनी ऊंची आवाज में लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में समर्थ होते थे। एक बार ये किसानों की भीड़ लेकर [[इलाहाबाद]] में [[जवाहरलाल नेहरू]] के पास पहुंचे और उन्हें गांवों में जाकर किसानों की दशा देखने के लिए प्रेरित किया। नेहरू जी ने अपनी आत्मकथा में इसका उल्लेख किया है। |
| सी. नारायन रेड़्ड़ी की [[1977]] में प्रकाशित रचना भूमिका मानवतावादी चरण की सर्वाधिक उल्लेखनीय रचना है। इनका [[काव्य]] मूलत: जीवन की पुष्टि का काव्य है और इन्हें उसे, उसके संपूर्ण बहुमुखी गौरव तथा उसके समस्त कोलाहल सहित चित्रित करने में हर्षानुभूमि होती है। यह रचना अगली रचना "विश्वंभरा ([[1980]])" की भूमिका का काम करती है, यह सी. नारायण रेड्डी की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण [[कृति]] है, प्रस्तुत काव्य की [[कहानी]] आदि काल से लेकर आज तक की गई मानव [[यात्रा]] के माध्यम से प्रतीकात्मक भाषा में परत-दर-परत खुलती है। जीवन और सृष्टि का स्वभाव समझने की दिशा में मनुष्य का अन्वेषण इस यात्रा की एक प्रमुख विशेषता है।
| | ==मृत्यु== |
| ====प्रमुख कृतियां==== | | बाबा रामचंद्र ने [[कांग्रेस]] के हर आंदोलन भाग लिया और जेल भी गए। [[1942]] के भारत छोड़ो आंदोलन में वे नैनी जेल में बंद किये गये। 1950 में इनका देहांत हो गया। |
| सी. नारायन रेड़्ड़ी की प्रमुख कृतियां निम्न प्रकार हैं-
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| ::'''कविता''' - स्वप्नभंगम् ([[1954]]), नागार्जुन सागरम् ([[1955]]), कर्पूण वसंतरायलु ([[1957]]), दिव्वेल मुव्वलु ([[1959]]), विश्वंभरा ([[1980]]), अक्षराल गवाक्षालु ([[1966]]), भूमिका ([[1977]]), मृत्युवु नुंचि ([[1979]]), रेक्कलु ([[1982]])
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| ::'''नाटक''' - अजंता सुंदरी [[1954]]
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| ::'''प्रदीर्घ गीत''' - विश्वगीति ([[1954]])
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| ::'''गद्य''' - मा ऊरु माट्लाडिंदि ([[1980]]), व्यासवाहिनी ([[1965]])
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| ::'''समीक्षा''' - मंदारमकरंदालु ([[1972]])
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बाबा रामचंद्र (अंगेज़ी: Baba Ram Chandra, जन्म: 1875 ग्वालियर; मृत्यु: 1950) भारत के प्रसिद्ध किसान नेता तथा स्वतंत्रता सेनानी थे।
परिचय
बाबा रामचंद्र का जन्म 1875 में ग्वालियर के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका जीवन बड़ा घटना प्रधान रहा था। इन्हें औपचारिक शिक्षा का अवसर नहीं मिला, किंतु 'रामचरित मानस' का इन्होंने अध्ययन किया।
कार्य क्षेत्र
बाबा रामचंद्र अपने यौवनकाल में शर्तबंद कुली बन कर फिजी पहुंचे। ये अपने रामायण ज्ञान और भाषण देने की क्षमता के कारण वहां बसे हुए भारतीयों में शीघ्र ही लोगप्रिय हो गए। अंग्रेज जो भारतीयों को कुली बनाकर ले गए थे, उन पर बड़े अत्याचार करते थे। बाबा रामचंद्र ने इसके विरोध में आवाज उठाई और लोगों को संगठित किया। इस पर उन्हें 1918 में भारत वापस भेज दिया गया।
बाबा रामचंद्र ने भारत आने पर पहले उत्तर प्रदेश में जौनपुर को फिर प्रतापगढ़ और रायबरेली को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। ये गांव-गांव घूमकर किसानों को विदेशी सरकार के अत्याचारों के विरुद्ध संगठित करते थे। रामायण की कथा के नाम पर वहा लोगो की भीड़ एकत्र होती और बाबा रामचंद्र 'जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, से नृप अवसर नरक अधिकारी' कह कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध वातावरण का माहौल बनाते। जिससे इनकी सभाओं में हजारों की भीड़ जमा होती और ये अपनी ऊंची आवाज में लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में समर्थ होते थे। एक बार ये किसानों की भीड़ लेकर इलाहाबाद में जवाहरलाल नेहरू के पास पहुंचे और उन्हें गांवों में जाकर किसानों की दशा देखने के लिए प्रेरित किया। नेहरू जी ने अपनी आत्मकथा में इसका उल्लेख किया है।
मृत्यु
बाबा रामचंद्र ने कांग्रेस के हर आंदोलन भाग लिया और जेल भी गए। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वे नैनी जेल में बंद किये गये। 1950 में इनका देहांत हो गया।