"सीतला षष्ठी": अवतरणों में अंतर

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'''शीतला षष्ठी''' का व्रत [[माघ|माघ माह]] में [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] तिथि को शीतला माता के नाम से किया जाता है। इस व्रत का पालन आमतर पर महिलाएं करती हैं। शीतला माता के व्रत का महात्मय यह है कि जो भी व्रत रखकर इनकी [[पूजा]] करता है, वह दैहिक और दैविक ताप से मुक्त हो जाता है। यह व्रत पुत्र प्रदान करने वाला एवं सौभाग्य देने वाला है। पुत्री की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए यह व्रत उत्तम कहा गया है।
#REDIRECT [[शीतला षष्ठी]]
==व्रत कथा==
[[कथा]] के अनुसार एक साहूकार था जिसके सात पुत्र थे। साहूकार ने समय के अनुसार सातों पुत्रों का [[विवाह]] कर दिया, परंतु कई वर्ष बीत जाने के बाद भी सातो पुत्रों में से किसी के घर संतान का जन्म नहीं हुआ। पुत्र वधूओं की सूनी गोद को देखकर साहूकार की पत्नी बहुत दु:खी रहती थी। एक दिन एक वृद्ध स्त्री साहूकार के घर से गुजर रही थी और साहूकार की पत्नी को दु:खी देखकर उसने दु:ख का कारण पूछा। साहूकार की पत्नी ने उस वृद्ध स्त्री को अपने मन की बात बताई। इस पर उस वृद्ध स्त्री ने कहा कि आप अपने सातों पुत्र वधूओं के साथ मिलकर शीतला माता का व्रत और पूजन कीजिए, इससे माता शीतला प्रसन्न हो जाएंगी और आपकी सातों पुत्र वधूओं की गोद भर जाएगी। साहूकार की पत्नी ने तब [[माघ|माघ मास]] की [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] तिथि को अपनी सातों बहूओं के साथ मिलकर उस वृद्धा के बताये विधान के अनुसार माता शीतला का व्रत किया।<ref>{{cite web |url=http://cafehindu.com/festivals/sheetla_shasti_vrat_parv_katha.html |title=शीतला षष्ठी व्रत पर्व कथा |accessmonthday=14 दिसम्बर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=cafehindu.com |language= हिन्दी}}</ref>
 
माता शीतला की कृपा से सातों बहूएं गर्भवती हुईं और समय आने पर सभी के सुन्दर पुत्र हुए। समय का चक्र चलता रहा और माघ शुक्ल षष्ठी तिथि आई, लेकिन किसी को माता शीतला के व्रत का ध्यान नहीं आया। इस दिन सास और बहूओं ने गर्म पानी से स्नान किया और गरमा गरम भोजन किया। माता शीतला इससे कुपित हो गईं और साहूकार की पत्नी के स्वप्न में आकर बोलीं कि- "तुमने मेरे व्रत का पालन नहीं किया है, इसलिए तुम्हारे पति का स्वर्गवास हो गया है।" स्वप्न देखकर साहूकार की पत्नी पागल हो गयी और भटकते-भटकते घने वन में चली गईं। वन में साहूकार की पत्नी ने देखा कि जिस वृद्धा ने उसे शीतला माता का व्रत करने के लिए कहा था, वह [[अग्नि]] में जल रही है। उसे देखकर साहूकार की पत्नी चौक पड़ी और उसे एहसास हो गया कि यह शीतला माता है। अपनी भूल के लिए वह माता से विनती करने लगी, माता ने तब उसे कहा कि- "तुम मेरे शरीर पर [[दही]] का लेपन करो, इससे तुम्हारे शरीर पर जो दैविक ताप है, वह समाप्त हो जाएगा।" साहूकार की पत्नी ने तब शीतला माता के शरीर पर दही का लेपन किया। इससे उसका पागलपन ठीक हो गया व साहूकार के प्राण भी लौट आये।
==व्रत की विधि==
शीतला षष्ठी के दिन [[स्नान]], [[ध्यान]] करके शीतला माता की [[पूजा]] करनी चाहिए। इस दिन कोई भी गरम चीज़ सेवन नहीं करना चाहिए। शीतला माता के व्रत के दिन ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। ठंडा भोजन करना चाहिए। [[उत्तर भारत]] के कई हिस्सों में इसे 'बसयरा' या 'बासौढ़ा' भी कहते हैं। इसे बसयरा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस दिन लोग रात में बना बासी खाना पूरे दिन खाते हैं। शीतला षष्ठी के दिन लोग चूल्हा नहीं जलाते हैं, बल्कि चूल्हे की पूजा करते हैं। इस दिन भगवान को भी रात में बना बासी खाना प्रसाद रूप में अर्पण किया जाता है। इस [[तिथि]] को घर के दरबाजे, खिड़कियों एवं चुल्हे को [[दही]], [[चावल]] और बेसन से बनी हुई बड़ी मिलाकर भेंट किया जाता है।
==महत्त्व==
इस तिथि को व्रत करने से जहां तन मन शीतल रहता है, वहीं [[चेचक]] से भी मुक्त रहते हैं। शीतला षष्ठी के दिन देश के कई भागों में [[मिट्टी]] पानी का खेल उसी प्रकार खेला जाता है, जैसे [[होली]] में रंगों से।
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{पर्व और त्योहार}}{{व्रत और उत्सव}}
[[Category:व्रत और उत्सव]][[Category:पर्व_और_त्योहार]][[Category:संस्कृति कोश]]
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07:18, 14 दिसम्बर 2016 के समय का अवतरण

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