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{मार्क्स के अनुसार राज्य के गठन का आसन्न कारण क्या था? ( | {[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] के अनुसार राज्य के गठन का आसन्न कारण क्या था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-1 | ||
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-शोषण | -शोषण | ||
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+असमाधेय वर्ग संघर्ष | +असमाधेय वर्ग संघर्ष | ||
-पूंजीवाद | -पूंजीवाद | ||
||मार्क्स के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति का कारण वर्ग संघर्ष की असमाधेय स्थिति है। एंजेल्स ने अपनी प्रशंसनीय पुस्तक 'ओरिजिन ऑफ फैमिली, प्राइवेट | ||[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] के अनुसार, [[राज्य]] की उत्पत्ति का कारण वर्ग संघर्ष की असमाधेय स्थिति है। एंजेल्स ने अपनी प्रशंसनीय पुस्तक 'ओरिजिन ऑफ फैमिली, प्राइवेट प्रॉपर्टी एण्ड द स्टेट' में राज्य की उत्पत्ति और स्वरूप के विषय में लिखा है कि 'यह समाज के विकास के एक निश्चित चरण की उपज है। यह इस बात की स्वीकृति है कि समाज ऐसे वर्ग अंतर्विरोध (संघर्ष) का शिकार है जिसका कोई हल नहीं है। ये वर्ग संघर्ष समाज और वर्गों को भस्म न कर दे इसलिए प्रकट रूप से राज्य की आवश्यकता हुई जो इस संघर्ष पर नियंत्रण कर सके और व्यवस्था के अंतर्गत सीमित रख सके। इस संदर्भ में लेकिन का भी यही निष्कर्ष है कि 'राज्य वर्ग संघर्षों' की, जिनमें कोई समझौता सम्भव नहीं है, उपज और अभिव्यक्ति है। | ||
{"राष्ट्रीयता सभ्यता के लिए एक खतरा है" किसने कहा है? ( | {"राष्ट्रीयता सभ्यता के लिए एक खतरा है" किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-1 | ||
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+रवींद्रनाथ टैगोर | +[[रवींद्रनाथ टैगोर]] | ||
-महात्मा गाँधी | -[[महात्मा गाँधी]] | ||
-जे.एस. मिल | -जे.एस. मिल | ||
-मैकियावेली | -मैकियावेली | ||
||"राष्ट्रीयता सभ्यता के लिए एक खतरा है", यह कथन रवींद्रनाथ टैगोर का है। रवींद्रनाथ टैगोर की विचारधारा में विश्वबंधुत्व का तत्त्व गहरे से समाया हुआ था। उनका मानवतावाद सीमाहीन था। उनके मानवतावाद में जाति, धर्म, भाषा, रंग एवं सीमा जैसे तत्त्वों का कोई स्थान नहीं था। वे विश्वबंधुत्व के पोषक थे और विश्व की समस्त संस्कृतियों को सुंदर मानते थे। वे भारतीय शिक्षा प्रणाली में | ||"राष्ट्रीयता सभ्यता के लिए एक खतरा है", यह कथन [[रवींद्रनाथ टैगोर]] का है। रवींद्रनाथ टैगोर की विचारधारा में विश्वबंधुत्व का तत्त्व गहरे से समाया हुआ था। उनका मानवतावाद सीमाहीन था। उनके मानवतावाद में जाति, [[धर्म]], भाषा, रंग एवं सीमा जैसे तत्त्वों का कोई स्थान नहीं था। वे विश्वबंधुत्व के पोषक थे और विश्व की समस्त संस्कृतियों को सुंदर मानते थे। वे भारतीय शिक्षा प्रणाली में [[अंग्रेज़ी भाषा]] के विरोधी थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि राष्ट्रवादी होने के साथ वे अंतर्राष्ट्रीयतावाद के भी समर्थक थे। | ||
{कौन-सी विचारधारा समर्थन करती है कि "तथ्य अनिवार्यत: तकनीक से पूर्व है"? ( | {कौन-सी विचारधारा समर्थन करती है कि "तथ्य अनिवार्यत: तकनीक से पूर्व है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-80 प्रश्न-101 | ||
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+व्यवहारवाद | +व्यवहारवाद | ||
-अस्तित्ववाद | -अस्तित्ववाद | ||
-उत्तर- | -उत्तर-व्यवहारवाद | ||
-प्रत्यक्षवाद | -प्रत्यक्षवाद | ||
||व्यवहारवाद वैज्ञानिक पद्धति पर बल देते हुए मूल्य-निरक्षेप उपागम का समर्थन करता है। व्यवहारवादी ऐसे किसी कथन को मान्यता नहीं देते, जिसकी वैज्ञानिक स्तर पर पुष्टि नहीं की जा सकती है। व्यवहारवाद सामाजिक स्थिरता पर बल देता रहा है, अत: उसने अपना ध्यान तथ्यों के विश्लेषण तक सीमित रखा है। व्यवहारवादी विचारधारा तथ्य को अनिवार्यत: | ||व्यवहारवाद वैज्ञानिक पद्धति पर बल देते हुए मूल्य-निरक्षेप उपागम का समर्थन करता है। व्यवहारवादी ऐसे किसी कथन को मान्यता नहीं देते, जिसकी वैज्ञानिक स्तर पर पुष्टि नहीं की जा सकती है। व्यवहारवाद सामाजिक स्थिरता पर बल देता रहा है, अत: उसने अपना ध्यान तथ्यों के विश्लेषण तक सीमित रखा है। व्यवहारवादी विचारधारा तथ्य को अनिवार्यत: तकनीक से पूर्व मानती है। | ||
{आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के प्रमुख समर्थक हैं | {आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के प्रमुख समर्थक कौन हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-1 | ||
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-चार्ल्स मेरियम | -चार्ल्स मेरियम | ||
-डेविड ईस्टन | -डेविड ईस्टन | ||
- | -हैरॉल्ड लासवेल | ||
+उपर्युक्त सभी | +उपर्युक्त सभी | ||
||आधुनिक राजनीतिक | ||आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के प्रमुख समर्थक हैं- चार्ल्स मेरियम, ग्राहम वालास, लिओनार्ड ह्वाइट, क्विंसी राइट, हैरल्ड लासवेल, फ़्रेडरिक शूमैन, वी.ओ.की. जूनियर, गेब्रीयल आमंड, हर्बर्ट साइमन, डेविड ट्रूमैन, डेविड ईस्टन, कैटलिन। | ||
{राज्य की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया था | {राज्य की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक सिद्धांत किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-16 प्रश्न-1 | ||
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+हेनरी मेन | +हेनरी मेन | ||
- | -ट्राइट्सके | ||
-ओपेनहाइमर | -ओपेनहाइमर | ||
-दुर्खीम | -दुर्खीम | ||
||राज्य की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक अथवा विकासवादी सिद्धांत का प्रतिपादन सर हेनरी मेन द्वारा किया गया। इन्होंने अपनी पुस्तक ' | ||राज्य की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक अथवा विकासवादी सिद्धांत का प्रतिपादन सर हेनरी मेन द्वारा किया गया। इन्होंने अपनी पुस्तक 'An- cient Law' ([[1861]]) में माना कि समाजों की उत्पत्ति प्रस्थिति से संविदा में हुई है, अर्थात प्रारंभिक समाजों में मनुष्यों के समाजिक संबंध, प्रस्थिति या स्थिर स्थिति से निर्धारित होते थे। इनके अनुसार, सामाजिक संबंधों में एकता का प्रारंभिक बंधन रक्त संबंध ही था, जो राज्य के विकास में प्रमुख सहायक तत्त्व है। '''अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- बेजहाट राज्य के विकास को डार्विन के उद्विकास सिद्धांत से जोड़कर देखते हैं। वे विभिन्न समाजों के विकास में संघर्ष व नव प्रवर्तन (Innovation) को जरूरी मानता है। बेजहाट ने 'चर्चा की प्रवृत्ति' (Instinct of Discussion) को समाज के प्रगतिशीलता के लिए आवश्यक माना है। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
बेजहाट राज्य के विकास को डार्विन के उद्विकास सिद्धांत से जोड़कर देखते हैं। वे विभिन्न समाजों के विकास में संघर्ष व नव प्रवर्तन (Innovation) को जरूरी मानता है। बेजहाट ने 'चर्चा की प्रवृत्ति' (Instinct of Discussion) को समाज के प्रगतिशीलता के लिए आवश्यक माना है। | |||
{निम्न में से तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य है | {निम्न में से तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य क्या है? (नागरिकक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-1 | ||
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-दार्शनिक लक्ष्य | -दार्शनिक लक्ष्य | ||
-वैज्ञानिक लक्ष्य | -वैज्ञानिक लक्ष्य | ||
-शासन नीति के प्रयोग का लक्ष्य | -शासन नीति के प्रयोग का लक्ष्य | ||
+ | +उपर्युक्त सभी | ||
{व्यक्तिवाद व समाजवाद में किस प्रकार का संबंध हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-30 प्रश्न-1 | {व्यक्तिवाद व समाजवाद में किस प्रकार का संबंध हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-30 प्रश्न-1 | ||
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-ग्रीन | -ग्रीन | ||
+मुसोलिनी | +मुसोलिनी | ||
||फॉसीवाद एक सर्वशक्तिमान राज्य का समर्थन करता है। राज्य की सत्ता परम असीमित तथा अविभाज्य है इसी संदर्भ में मुसोलिनी ने कहा "राज्य के बाहर कुछ नहीं, इसके ऊपर कुछ नहीं। "राज्य के हित के सामने व्यक्ति का हित गौण हैं इसी प्रकार त्रीत्सके ने भी कहा है कि "दण्डवत होकर राज्य की पूजा करनी चाहिए।" | ||फॉसीवाद एक सर्वशक्तिमान राज्य का समर्थन करता है। राज्य की सत्ता परम असीमित तथा अविभाज्य है इसी संदर्भ में मुसोलिनी ने कहा "राज्य के बाहर कुछ नहीं, इसके ऊपर कुछ नहीं।" राज्य के हित के सामने व्यक्ति का हित गौण हैं इसी प्रकार त्रीत्सके ने भी कहा है कि "दण्डवत होकर राज्य की पूजा करनी चाहिए।" | ||
{संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में कितने सदस्य अस्थायी हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-118 प्रश्न-1 | {संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में कितने सदस्य अस्थायी हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-118 प्रश्न-1 | ||
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||संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं-1.रूस, 2.संयुक्त राज्य अमेरिका, 3.यूनाइटेड किंगडम, 4. | ||संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है। | ||
{'केस' पद्धति किस देश की देन है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-1 | {'केस' पद्धति किस देश की देन है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-1 | ||
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+अमेरिका | +[[अमेरिका]] | ||
-भारत | -[[भारत]] | ||
-इंग्लैंड | -[[इंग्लैंड]] | ||
- | -[[फ़्राँस]] | ||
||केस पद्धति अमेरिका की देन है। अमेरिकी प्रशासन में केस पद्धति का विकास 1930 के दशक में विशेष परिस्थितियों में प्रशासक द्वारा निर्णय निर्माण करने के लिए हुआ। केस पद्धति निर्णय निर्माण करने वाले प्रशासक के निर्णयन, व्यवहार तथा उसको प्रभावित करने वाले | ||केस पद्धति [[अमेरिका]] की देन है। अमेरिकी प्रशासन में केस पद्धति का विकास [[1930]] के दशक में विशेष परिस्थितियों में प्रशासक द्वारा निर्णय निर्माण करने के लिए हुआ। केस पद्धति निर्णय निर्माण करने वाले प्रशासक के निर्णयन, व्यवहार तथा उसको प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों (वैयक्तिक, विधिक तथा सांस्थानिक) पर विशेष बल देता है। वर्तमान समय में यह पद्धति लोक प्रशासन के अध्ययन और अध्यापन का स्थाई साधन बन गई है। | ||
{निम्नलिखित में से मार्क्स के अनुसार कौन ऐतिहासिक परिवर्तन का प्रमुख कारक है? ( | {निम्नलिखित में से [[कार्ल मार्क्स]] के अनुसार कौन ऐतिहासिक परिवर्तन का प्रमुख कारक है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-2 | ||
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-व्यक्ति | -व्यक्ति | ||
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+वर्ग | +वर्ग | ||
-दल | -दल | ||
||मार्क्स के अनुसार, वर्ग ऐतिहासिक परिवर्तन का प्रमुख कारक है। मार्क्स के अनुसार समाज का अब तक का इतिहास, वर्ग संघर्षों का | ||[[कार्ल मार्क्स]] के अनुसार, वर्ग ऐतिहासिक परिवर्तन का प्रमुख कारक है। मार्क्स के अनुसार समाज का अब तक का इतिहास, वर्ग संघर्षों का इतिहास रहा है। मार्क्स के अनुसार, धनवान एवं निर्धन वर्गों के बीच संघर्ष आदिमकाल से ही रहा है जो तब तक जारी रहेगा जब तक स्वयं कामगार वर्ग समाज की बागडोर नहीं लेता। | ||
{निम्नलिखित में से अनमेल को बताइए- ( | {निम्नलिखित में से अनमेल को बताइए- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-2 | ||
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-तिलक-विपिन चंद्र पाल | -[[बाल गंगाधर तिलक|तिलक]]-[[विपिन चंद्र पाल]] | ||
-गोखले-नौरोजी | -[[गोपाल कृष्ण गोखले|गोखले]]-[[दादा भाई नौरोजी|नौरोजी]] | ||
+नेहरू-बोस | +[[जवाहर लाल नेहरू|नेहरू]]-[[सुभाष चंद्र बोस|बोस]] | ||
-जय प्रकाश-लोहिया | -[[जयप्रकाश नारायण|जय प्रकाश]]-[[राम मनोहर लोहिया|लोहिया]] | ||
||तिलक और बिपिन चंद्र पाल उग्रवादी विचारधारा से संबंधित थे। गोपाल कृष्ण गोखले तथा दादाभाई नौरोजी उदारवादी विचारधारा से या नरमपंथी विचारधारा से संबंधित थे। जय प्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया प्रमुख समाजवादी विचारक थे। विकल्प (c) में जवाहर लाल नेहरू लोकतांत्रिक समाजवादी थे जबकि सुभाष चंद्र बोस क्रांतिकारी समाजवादी थे। इस प्रकार विकल्प (c) बेमेल है। | ||[[बाल गंगाधर तिलक|तिलक]]और [[विपिन चंद्र पाल|बिपिन चंद्र पाल]] उग्रवादी विचारधारा से संबंधित थे। [[गोपाल कृष्ण गोखले]] तथा [[दादाभाई नौरोजी]] उदारवादी विचारधारा से या नरमपंथी विचारधारा से संबंधित थे। [[जय प्रकाश नारायण]] और [[डॉ. राम मनोहर लोहिया]] प्रमुख समाजवादी विचारक थे। विकल्प (c) में [[जवाहर लाल नेहरू]] लोकतांत्रिक समाजवादी थे जबकि [[सुभाष चंद्र बोस]] क्रांतिकारी समाजवादी थे। इस प्रकार विकल्प (c) बेमेल है। | ||
{बहुलतावादी वकालत करते हैं- ( | {बहुलतावादी वकालत करते हैं- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-80 प्रश्न-102 | ||
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-राज्यों की स्वायत्तता की | -राज्यों की स्वायत्तता की | ||
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+समुदायों की स्वायत्तता की | +समुदायों की स्वायत्तता की | ||
-केंद्र सरकार की स्वायत्तता की | -केंद्र सरकार की स्वायत्तता की | ||
||राज्य तथा अन्य समुदायों के संबंध में बहुलवादियों का यह विश्वास है कि समाज में कुछ समुदाय या तो राज्य से भी अधिक आवश्यक हैं, अन्यथा समाज हैं। बहुलवादियों के अनुसार, राज्य भी अन्य समुदायों के समान एक समुदाय है। जिस प्रकार राज्य के | ||राज्य तथा अन्य समुदायों के संबंध में बहुलवादियों का यह विश्वास है कि समाज में कुछ समुदाय या तो राज्य से भी अधिक आवश्यक हैं, अन्यथा समाज हैं। बहुलवादियों के अनुसार, राज्य भी अन्य समुदायों के समान एक समुदाय है। जिस प्रकार राज्य के क़ानून एवं नियम होते हैं, उसी प्रकार अन्य समुदायों के भी अपने नियम व क़ानून निर्मित होते हैं। बहुलवादी राज्य से ज्यादा समाज को महत्त्व देते हैं। लॉस्की राज्य को अनेक समितियों जी भांति एक समिति मानते हैं, पर उसे अन्य समितियों की तुलना में प्रथम मानते हैं। | ||
{ | {"राजनीति शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है।" किसकी उक्ति है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-2 | ||
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-लास्की | -लास्की | ||
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||गार्नर ने कहा है कि "राजनीतिक शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है" अत: राजनीति शास्त्र के अध्ययन का विषय-क्षेत्र मात्र राज्य है। | ||गार्नर ने कहा है कि "राजनीतिक शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है" अत: राजनीति शास्त्र के अध्ययन का विषय-क्षेत्र मात्र राज्य है। | ||
{जॉन लॉक और रूसो के सामाजिक संविदा सिद्धांत के संबंध में क्या सही है? ( | {जॉन लॉक और रूसो के सामाजिक संविदा सिद्धांत के संबंध में क्या सही है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-16 प्रश्न-2 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-लॉक का समझौता पूर्णतया स्वतंत्र समझौता है, जबकि रूसो की संविदा आबद्ध संविदा है। | -लॉक का समझौता पूर्णतया स्वतंत्र समझौता है, जबकि रूसो की संविदा आबद्ध संविदा है। | ||
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-लॉक की संविदा में व्यक्तियों के अधिकार सुरक्षित हो जाता हैं जबकि रूसो की संविदा में व्यक्ति के अधिकार का अवसान हो जाता है। | -लॉक की संविदा में व्यक्तियों के अधिकार सुरक्षित हो जाता हैं जबकि रूसो की संविदा में व्यक्ति के अधिकार का अवसान हो जाता है। | ||
+उपर्युक्त सभी | +उपर्युक्त सभी | ||
||लॉक का समझौता एक ऐतिहासिक तथ्य है जबकि रूसो का एक दार्शनिक विचार। लॉक का मत है कि लोगों ने अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए राज्य बनाने का समझौता किया था तथा इस प्रक्रिया में वे अपने किसी अधिकार का समर्पण नहीं करते। रूसो का कहना है कि प्राकृतिक अवस्था के लोग अपनी यथार्थ इच्छा (अर्थात स्वार्थ इच्छा) द्वारा समझौता करते हैं और वे जंजीरों में जकड़ते चले जाते हैं। लॉक के अनुसार, सामाजिक समझौता समाज व राज्य के बीच होता है, जिसके अंतर्गत राज्य लोगों की संपत्ति की रक्षा का दायित्व अपने ऊपर लेता है। रूसो ने लोगों की वास्तविक इच्छा से बनी सामान्य इच्छा के आधार पर राज्य की रचना की बात की है जो अपने स्वरूप में इतना उच्चतम है कि वह सर्वाहित में कार्य करता है तथा जिसके विरुद्ध लोगों को उसके | ||लॉक का समझौता एक ऐतिहासिक तथ्य है जबकि रूसो का एक दार्शनिक विचार। लॉक का मत है कि लोगों ने अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए राज्य बनाने का समझौता किया था तथा इस प्रक्रिया में वे अपने किसी अधिकार का समर्पण नहीं करते। रूसो का कहना है कि प्राकृतिक अवस्था के लोग अपनी यथार्थ इच्छा (अर्थात स्वार्थ इच्छा) द्वारा समझौता करते हैं और वे जंजीरों में जकड़ते चले जाते हैं। लॉक के अनुसार, सामाजिक समझौता समाज व राज्य के बीच होता है, जिसके अंतर्गत राज्य लोगों की संपत्ति की रक्षा का दायित्व अपने ऊपर लेता है। रूसो ने लोगों की वास्तविक इच्छा से बनी सामान्य इच्छा के आधार पर राज्य की रचना की बात की है जो अपने स्वरूप में इतना उच्चतम है कि वह सर्वाहित में कार्य करता है तथा जिसके विरुद्ध लोगों को उसके क़ानूनों की अवहेलना का अधिकार नहीं होता है जबकि रूसो का असीमित, अविभाज्य एवं अमर्यादित। हॉब्स कानूनी, लॉक राजनीतिक एवं रूसो लौकिक संप्रभुता की चर्चा करते हैं। वस्तुत: रूसो अपने सामाजिक समझौते के सिद्धांत में लॉक की भांति आरंभ करता है, परंतु इसका अंत हॉब्स के लेवियाथन ने जिसका सिर कटा हुआ है, पर समाप्त करता है। | ||
{"तुलनात्मक राजनीति सब कुछ है या कुछ भी नहीं" यह कथन है | {"तुलनात्मक राजनीति सब कुछ है या कुछ भी नहीं" यह कथन किसका है? (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-2 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-मेकीडिस | -मेकीडिस | ||
+जी.के. | +जी. के. रॉबर्ट्स | ||
-जीन ब्लोण्डेल | -जीन ब्लोण्डेल | ||
-स्प्रेंगलर | -स्प्रेंगलर | ||
||तुलनात्मक राजनीति विभिन्न परिवेश तथा विभिन्न देशों में राजनीतिक व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन करता है। इसके अध्ययन के विषय वस्तु लेकर हमेशा संशय बना रहता है कि यह केवल राजनीतिक संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन है या इसमें राजनीतिक विकास, राजनीतिक आधुनिकीकरण, या सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक विकास, आदि विषय को शामिल किया जाए। इसी विषय-वस्तु के संदर्भ में जी.के. | ||तुलनात्मक राजनीति विभिन्न परिवेश तथा विभिन्न देशों में राजनीतिक व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन करता है। इसके अध्ययन के विषय वस्तु लेकर हमेशा संशय बना रहता है कि यह केवल राजनीतिक संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन है या इसमें राजनीतिक विकास, राजनीतिक आधुनिकीकरण, या सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक विकास, आदि विषय को शामिल किया जाए। इसी विषय-वस्तु के संदर्भ में जी. के. रॉबर्ट्स ने अपनी शोध 'कम्परेटिव पोलिटिक्स टुडे' में लिखा है कि 'तुलनात्मक राजनीति या तो सब कुछ है या कुछ भी नहीं है।" | ||
{इनमें से किस विचार को प्राय: व्यक्तिवादी विचारक अपने अनुकूल पाते हैं | {इनमें से किस विचार को प्राय: व्यक्तिवादी विचारक अपने अनुकूल पाते हैं? (नाग शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-2 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धांत | -[[कार्ल मार्क्स]] का वर्ग संघर्ष सिद्धांत | ||
-मार्क्स का क्रांतिकारी हिंसा का सिद्धांत | -[[कार्ल मार्क्स]] का क्रांतिकारी हिंसा का सिद्धांत | ||
+डार्विन का अनुकूलतम की अतिजीविता का सिद्धांत | +डार्विन का अनुकूलतम की अतिजीविता का सिद्धांत | ||
-ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत | -ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत | ||
||व्यक्तिवादी विचारक डॉर्विन का 'अनुकूलतम की अतिजीविता का सिद्धांत' को अपनी विचारधारा के अनुकूल पाते हैं। व्यक्तिवादी विचारधारा के अनुसार, व्यक्ति अपने हित का सर्वोत्तम निर्णायक है और उसकी सिद्धि करते समय वह दूसरों के हित साधने में योग देता है। अत: राज्य का अन्य कोष अथवा संस्था भी व्यक्ति के लिए है, व्यक्ति स्वयं राज्य या अन्य किसी स्थान के लिए नहीं है। | ||व्यक्तिवादी विचारक डॉर्विन का 'अनुकूलतम की अतिजीविता का सिद्धांत' को अपनी विचारधारा के अनुकूल पाते हैं। व्यक्तिवादी विचारधारा के अनुसार, व्यक्ति अपने हित का सर्वोत्तम निर्णायक है और उसकी सिद्धि करते समय वह दूसरों के हित साधने में योग देता है। अत: राज्य का अन्य कोष अथवा संस्था भी व्यक्ति के लिए है, व्यक्ति स्वयं राज्य या अन्य किसी स्थान के लिए नहीं है। | ||
प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हर्बर्ट स्पेंसर ने समाज की संकल्पना जीवित प्राणी (Organism) के रूप में की है। जिसमें विकास की प्रवृत्ति पाई जाती है। | प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक [[हर्बर्ट स्पेंसर]] ने समाज की संकल्पना जीवित प्राणी (Organism) के रूप में की है। जिसमें विकास की प्रवृत्ति पाई जाती है। | ||
{"जिसे जीना है उसे युद्ध करना होगा" यह कथन किसका है?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-2 | {"जिसे जीना है उसे युद्ध करना होगा" यह कथन किसका है?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-2 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-सिकंदर महान | -[[सिकंदर|सिकंदर महान]] | ||
-मुसोलिनी | -मुसोलिनी | ||
-माओत्से तुंग | -माओत्से तुंग | ||
+हिटलर | +हिटलर | ||
||हिटलर ने कहा था कि "अविराम युद्ध से ही मानव जाति की उन्नति हुई है। जिसे जीना है उसे युद्ध करना होगा। सदा के लिए शांति की स्थापना से मानव जाति गर्त में चली जायेगी।" एक अन्य स्थान पर हिटलर ने कहा है कि "युद्ध सदाबहार तथा विश्वव्यापी हैं युद्ध जिंदगी है। हर संघर्ष युद्ध है, हर चीज की उत्पत्ति युद्ध के माध्यम से हुई | ||हिटलर ने कहा था कि "अविराम युद्ध से ही मानव जाति की उन्नति हुई है। "जिसे जीना है उसे युद्ध करना होगा। सदा के लिए शांति की स्थापना से मानव जाति गर्त में चली जायेगी।" एक अन्य स्थान पर हिटलर ने कहा है कि "युद्ध सदाबहार तथा विश्वव्यापी हैं युद्ध जिंदगी है। हर संघर्ष युद्ध है, हर चीज की उत्पत्ति युद्ध के माध्यम से हुई है।" | ||
{सुरक्षा | {सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की संख्या है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-118 प्रश्न-2 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+5 | +5 | ||
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-7 | -7 | ||
-10 | -10 | ||
{'पोस्डकार्ब' की अवधारणा दी गई है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-3 | {'पोस्डकार्ब' की अवधारणा दी गई है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-3 | ||
पंक्ति 170: | पंक्ति 166: | ||
-गिलक्राइस्ट | -गिलक्राइस्ट | ||
||लोक प्रशासन प्रशासन की प्रक्रियाओं का अध्ययन है। लोक प्रशासन के कार्य-क्षेत्र के संबंध में लूथर ने जिस मत को प्रतिपादित किया है उसे 'पोस्डकोर्ब' कहा जाता है। पोस्डकोर्ब शब्द, अग्रेंजी के सात शब्दों के प्रथम अक्षरों से मिलाकर बनाया गया है, जो इस प्रकार हैं- | ||लोक प्रशासन प्रशासन की प्रक्रियाओं का अध्ययन है। लोक प्रशासन के कार्य-क्षेत्र के संबंध में लूथर ने जिस मत को प्रतिपादित किया है उसे 'पोस्डकोर्ब' कहा जाता है। पोस्डकोर्ब शब्द, अग्रेंजी के सात शब्दों के प्रथम अक्षरों से मिलाकर बनाया गया है, जो इस प्रकार हैं- | ||
P-Planning (योजना बनाना), O-Organizing (संगठन बनाना), S-Staffing (कर्मचारियों की व्यवस्था करना), D-Directing (निर्देशन करना), Co-Co-ordination (समंवय करना), R-Reporting ( | P-Planning (योजना बनाना), O-Organizing (संगठन बनाना), S-Staffing (कर्मचारियों की व्यवस्था करना), D-Directing (निर्देशन करना), Co-Co-ordination (समंवय करना), R-Reporting (रपट देना), B-Budgeting (बजट तैयार करना।)। | ||
{मार्क्स किस देश का रहने वाला था? ( | {मार्क्स किस देश का रहने वाला था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-3 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-जापान | -जापान | ||
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||कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 को जर्मनी के राइन प्रांत के 'ट्रियर' शहर में हुआ था। मार्क्स ने अपने जीवन का अधिकांश समय फ्रांस और ब्रिटेन में विताया। मार्क्स ने काल्पनिक समाजवाद को वैज्ञानिक समाजवाद में रूपांतरित किया। मार्क्स की शिक्षा बॉन और बर्लिन विश्वविद्यालय में हुई जहां वह जी.डब्ल्यू. एफ. हेगेल के चिंतन से बहुत प्रभावित हुआ। बाद में उसने हेगेल की द्वंद्वात्मक पद्धति को लेते हुए तथा फायरबाख से भौतिकवाद को लेते हुए अपने 'द्वंद्वात्मक भौतिकवाद' का निरूपण किया। | ||कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 को जर्मनी के राइन प्रांत के 'ट्रियर' शहर में हुआ था। मार्क्स ने अपने जीवन का अधिकांश समय फ्रांस और ब्रिटेन में विताया। मार्क्स ने काल्पनिक समाजवाद को वैज्ञानिक समाजवाद में रूपांतरित किया। मार्क्स की शिक्षा बॉन और बर्लिन विश्वविद्यालय में हुई जहां वह जी.डब्ल्यू. एफ. हेगेल के चिंतन से बहुत प्रभावित हुआ। बाद में उसने हेगेल की द्वंद्वात्मक पद्धति को लेते हुए तथा फायरबाख से भौतिकवाद को लेते हुए अपने 'द्वंद्वात्मक भौतिकवाद' का निरूपण किया। | ||
{निम्न में से कौन प्राचीन भारतीय राजनैतिक चिंतन के सप्तांग सिद्धांत में सम्मिलित नहीं है? ( | {निम्न में से कौन प्राचीन भारतीय राजनैतिक चिंतन के सप्तांग सिद्धांत में सम्मिलित नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-3 | ||
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+सामंत एवं गुरुकुल | +सामंत एवं गुरुकुल | ||
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||प्राचीन भारत के प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक कौटिल्य ने राज्य के अंगों की चर्चा करते हुए अर्थशास्त्र के छठें अधिकरण में सप्तांग की चर्चा की। राज्य के सप्तांग अर्थात सात अंगों का उल्लेख इस प्रकार है- 1.राजा या स्वामी, 2.अमात्य अथवा मंत्री, 3.जनपद या प्रादेशिक क्षेत्र, 4 दुर्ग या किला, 5.राजकोष, 6.दण्ड या सेमा, 7.मित्र। अत: सामंत एवं गुरुकुल का उल्लेख इसमें नहीं है। | ||प्राचीन भारत के प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक कौटिल्य ने राज्य के अंगों की चर्चा करते हुए अर्थशास्त्र के छठें अधिकरण में सप्तांग की चर्चा की। राज्य के सप्तांग अर्थात सात अंगों का उल्लेख इस प्रकार है- 1.राजा या स्वामी, 2.अमात्य अथवा मंत्री, 3.जनपद या प्रादेशिक क्षेत्र, 4 दुर्ग या किला, 5.राजकोष, 6.दण्ड या सेमा, 7.मित्र। अत: सामंत एवं गुरुकुल का उल्लेख इसमें नहीं है। | ||
{'अंतर्रष्ट्रीय राजनीति के वैज्ञानिक अध्ययन में उन्नति तब तक संभव नहीं हैं जब तक नार्गेंथाऊ का यथार्थवादी सिद्धांत प्रभावशाली है।" यह कथन किसका है? ( | {'अंतर्रष्ट्रीय राजनीति के वैज्ञानिक अध्ययन में उन्नति तब तक संभव नहीं हैं जब तक नार्गेंथाऊ का यथार्थवादी सिद्धांत प्रभावशाली है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-80 प्रश्न-103 | ||
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-के.डब्ल्यू. थाम्पसन | -के.डब्ल्यू. थाम्पसन | ||
पंक्ति 199: | पंक्ति 195: | ||
||बेनो वासरमैन के अनुसार, "अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के वैज्ञानिक अध्ययन में उन्नति कब तक संभव नहीं है जब तक मार्गेंथाऊ का यथार्थवादी सिद्धांत प्रभावशाली है"। | ||बेनो वासरमैन के अनुसार, "अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के वैज्ञानिक अध्ययन में उन्नति कब तक संभव नहीं है जब तक मार्गेंथाऊ का यथार्थवादी सिद्धांत प्रभावशाली है"। | ||
{"राजनीति शास्त्र के अध्यययन का आरंभ और अंत राज्य के साथ होता है।" किसने कहा? ( | {"राजनीति शास्त्र के अध्यययन का आरंभ और अंत राज्य के साथ होता है।" किसने कहा? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-3 | ||
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-लीकॉक | -लीकॉक | ||
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||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||
{हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मानवीय जीवन- ( | {हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मानवीय जीवन- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-3 | ||
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+एकाकी, निर्धन, निंदनीय अल्पकालिक था | +एकाकी, निर्धन, निंदनीय अल्पकालिक था | ||
पंक्ति 265: | पंक्ति 261: | ||
{इनमें से किस वर्ग के विचारकों ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वन्द्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया? ( | {इनमें से किस वर्ग के विचारकों ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वन्द्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-4 | ||
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-मार्क्स और मिल ने | -मार्क्स और मिल ने | ||
पंक्ति 273: | पंक्ति 269: | ||
||हेगेल और मार्क्स ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक किया (Dialec-tic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा किया तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है। | ||हेगेल और मार्क्स ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक किया (Dialec-tic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा किया तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है। | ||
{राज्य के संबंध में गांधी जी के विचार इनमें से किसके निकट थे? ( | {राज्य के संबंध में गांधी जी के विचार इनमें से किसके निकट थे? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-4 | ||
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+दार्शनिक अराजकतावादी | +दार्शनिक अराजकतावादी | ||
पंक्ति 281: | पंक्ति 277: | ||
||राज्य के संबंध में गांधीजी के विचार दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि गांधी राज्य विरोधी थे। वे मार्क्सवादियों तथा अराजकतावादियों के समान एक राज्यविहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे। वे दार्शनिक, नैतिक, ऐतिहासिक और आर्थिक कारणों के आधार पर राज्य का विरोध करते थे। अत: उनके सिद्धांत को दार्शनिक अराजकतावाद कहा जाता है। | ||राज्य के संबंध में गांधीजी के विचार दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि गांधी राज्य विरोधी थे। वे मार्क्सवादियों तथा अराजकतावादियों के समान एक राज्यविहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे। वे दार्शनिक, नैतिक, ऐतिहासिक और आर्थिक कारणों के आधार पर राज्य का विरोध करते थे। अत: उनके सिद्धांत को दार्शनिक अराजकतावाद कहा जाता है। | ||
{जीवन, स्वतंत्रता और सुखानुसरण तथ्य है- ( | {जीवन, स्वतंत्रता और सुखानुसरण तथ्य है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-104 | ||
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+अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र का | +अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र का | ||
पंक्ति 289: | पंक्ति 285: | ||
||जुलाई, 1776 को अमेरिका की कांटिनेंटल कांग्रेस द्वारा अंग्रीकृत अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-अप्त्र में सभी मनुष्यों को जन्म से समान घोषित करते हुए जीवन, स्वतंत्रता और सुखानुसरण को उनके जन्म से प्राप्त अहस्तांतरणीय अधिकार घोषित किया गया है। | ||जुलाई, 1776 को अमेरिका की कांटिनेंटल कांग्रेस द्वारा अंग्रीकृत अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-अप्त्र में सभी मनुष्यों को जन्म से समान घोषित करते हुए जीवन, स्वतंत्रता और सुखानुसरण को उनके जन्म से प्राप्त अहस्तांतरणीय अधिकार घोषित किया गया है। | ||
{राजनीति विज्ञान का प्रारंभ औरं अंत राज्य से होता है यह कथन है: ( | {राजनीति विज्ञान का प्रारंभ औरं अंत राज्य से होता है यह कथन है: (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-4 | ||
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-अरस्तू का | -अरस्तू का | ||
पंक्ति 297: | पंक्ति 293: | ||
||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||
{इनमें से किससे लॉक के विचारों को प्रेरणा प्राप्त हुई? ( | {इनमें से किससे लॉक के विचारों को प्रेरणा प्राप्त हुई? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-4 | ||
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-1655 की हिंसक क्रांति | -1655 की हिंसक क्रांति | ||
पंक्ति 350: | पंक्ति 346: | ||
{निम्नलिखित विचारों में से मार्क्स ने हीगल से कौन-सा विचार लिया था? ( | {निम्नलिखित विचारों में से मार्क्स ने हीगल से कौन-सा विचार लिया था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-5 | ||
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-वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत | -वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत | ||
पंक्ति 358: | पंक्ति 354: | ||
||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||
{1936 किसने कहा "गांधीवाद जैसी कोई चीज नहीं है"? ( | {1936 किसने कहा "गांधीवाद जैसी कोई चीज नहीं है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-5 | ||
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+दार्शनिक अराजकतावादी | +दार्शनिक अराजकतावादी | ||
पंक्ति 370: | पंक्ति 366: | ||
.गांधीजी की रचनाएं- शांति और युद्ध में अहिंसा, नैतिक धर्म, सत्याग्रह, सत्य ही ईश्वर है. सर्वोदय आदि हैं। इसके अतिरिक्त गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में इंडियन ओपिनियन नामक साप्ताहिक पत्र तथा भारत में यंग इंडिया, हरिजन सेवक, हतिजन बंधु आदि पत्रों का संपादन किया। | .गांधीजी की रचनाएं- शांति और युद्ध में अहिंसा, नैतिक धर्म, सत्याग्रह, सत्य ही ईश्वर है. सर्वोदय आदि हैं। इसके अतिरिक्त गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में इंडियन ओपिनियन नामक साप्ताहिक पत्र तथा भारत में यंग इंडिया, हरिजन सेवक, हतिजन बंधु आदि पत्रों का संपादन किया। | ||
{"एक व्यवस्थापिका जो मंत्रिपरिषद के समक्ष निर्बल है तथा एक मंत्रिपरिषद जो राष्ट्रपति के समक्ष निर्बल है" किस देश की शासन व्यवस्था की विशेषता दर्शाता है- ( | {"एक व्यवस्थापिका जो मंत्रिपरिषद के समक्ष निर्बल है तथा एक मंत्रिपरिषद जो राष्ट्रपति के समक्ष निर्बल है" किस देश की शासन व्यवस्था की विशेषता दर्शाता है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-105 | ||
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||उपरोक्त शासन व्यवस्था फ्रांस की शासन व्यवस्था की विशेषता है। क्योंकि फ्रांस के पंचम गणतंत्र के संविधान में शासन प्रणाली को अपनाया गया है। किंतु यह अर्द्ध संसदीय शासन प्रणाली ही है। इसमें मंत्रिमण्डल संसद के सम्मुख पूर्ण उत्तरदायी नहीं है। प्रधानमंत्री का चुनाव राष्ट्रपति करता है जिसको साधारण शक्तियों के साथ-साथ अनेक असाधरण शक्तियां प्राप्त है। यह केवल नाम मात्र का राज्याध्यक्ष नहीं है। कई मामलों में यह अमेरिकी राष्ट्रपति के समान है। यदि संसद मंत्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास पास करता है तब भी मंत्रिमण्डल चल सकता है क्योंकि उसका उत्तरदायित्व राष्ट्रपति के प्रति है संसद के प्रति नहीं। फ्रांसीसी राष्ट्रपति पर अभियोग भी नहीं चलाया जा सकता। इसीलिए पिकिल्स ने इसे "दो विरोधी सिद्धांतों का मिश्रण कहा है।" | ||उपरोक्त शासन व्यवस्था फ्रांस की शासन व्यवस्था की विशेषता है। क्योंकि फ्रांस के पंचम गणतंत्र के संविधान में शासन प्रणाली को अपनाया गया है। किंतु यह अर्द्ध संसदीय शासन प्रणाली ही है। इसमें मंत्रिमण्डल संसद के सम्मुख पूर्ण उत्तरदायी नहीं है। प्रधानमंत्री का चुनाव राष्ट्रपति करता है जिसको साधारण शक्तियों के साथ-साथ अनेक असाधरण शक्तियां प्राप्त है। यह केवल नाम मात्र का राज्याध्यक्ष नहीं है। कई मामलों में यह अमेरिकी राष्ट्रपति के समान है। यदि संसद मंत्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास पास करता है तब भी मंत्रिमण्डल चल सकता है क्योंकि उसका उत्तरदायित्व राष्ट्रपति के प्रति है संसद के प्रति नहीं। फ्रांसीसी राष्ट्रपति पर अभियोग भी नहीं चलाया जा सकता। इसीलिए पिकिल्स ने इसे "दो विरोधी सिद्धांतों का मिश्रण कहा है।" | ||
{"राजनीति विज्ञान के अंतर्गत राज्य तथा सरकार का अध्ययन किया जाता है", राजनीति विज्ञान की यह परिभाषा किस विचारक ने की है? ( | {"राजनीति विज्ञान के अंतर्गत राज्य तथा सरकार का अध्ययन किया जाता है", राजनीति विज्ञान की यह परिभाषा किस विचारक ने की है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-5 | ||
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-गार्नर | -गार्नर | ||
पंक्ति 382: | पंक्ति 378: | ||
||राजनीति विज्ञान के अंतर्गत राज्य और सरकार दोनों की ही अध्ययन किया जाता है राज्य के बिना सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि सरकार राज्य के द्वारा राज्य के द्वारा प्रदत्त प्रभुत्व शक्ति का प्रयोग करती है और सरकार के बिना राज्य तो एक अमूर्त कल्पना मात्र है। गिलक्राइस्ट ने इसी को परिभाषित करते हुए लिखा है कि 'राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का अध्ययन करता है। पॉल जैनेट ने भी संदर्भ में लिखा है कि "राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह अंग है जिसमें राज्य के आधार और सरकार के सिद्धांतों पर विचार किया जाता है। | ||राजनीति विज्ञान के अंतर्गत राज्य और सरकार दोनों की ही अध्ययन किया जाता है राज्य के बिना सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि सरकार राज्य के द्वारा राज्य के द्वारा प्रदत्त प्रभुत्व शक्ति का प्रयोग करती है और सरकार के बिना राज्य तो एक अमूर्त कल्पना मात्र है। गिलक्राइस्ट ने इसी को परिभाषित करते हुए लिखा है कि 'राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का अध्ययन करता है। पॉल जैनेट ने भी संदर्भ में लिखा है कि "राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह अंग है जिसमें राज्य के आधार और सरकार के सिद्धांतों पर विचार किया जाता है। | ||
{"सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह इच्छा है. सामान्य नहीं है तथा जहां तक यह सामान्य है, यह इच्छा नहीं"। यह किसने कहा है?( | {"सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह इच्छा है. सामान्य नहीं है तथा जहां तक यह सामान्य है, यह इच्छा नहीं"। यह किसने कहा है?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-5 | ||
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-बोसांके | -बोसांके | ||
पंक्ति 448: | पंक्ति 444: | ||
{मार्क्स ने द्बंद्व का सिद्धांत किससे लिया? ( | {मार्क्स ने द्बंद्व का सिद्धांत किससे लिया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-6 | ||
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-एंजिल्स | -एंजिल्स | ||
पंक्ति 456: | पंक्ति 452: | ||
||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||
{जयप्रकाश नारायण के किस विचार से भारत में एक बड़ा जनांदोलन हुआ और आपात काल लागू हुआ? ( | {जयप्रकाश नारायण के किस विचार से भारत में एक बड़ा जनांदोलन हुआ और आपात काल लागू हुआ? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-6 | ||
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+समग्र क्रांति | +समग्र क्रांति | ||
पंक्ति 464: | पंक्ति 460: | ||
||जय प्रकाश नारायण भारतीय समाजवाद के अग्रणी प्रवक्ता थे। इन्होंने अपना विचार अपनी पुस्तक, (ह्वाई सोशलिज्म) तथा 'टूवार्ड्स स्ट्रगल' में व्यक्त किया है। इनके अनुसार सोवियत संघ में भ्रष्ट समाजवाद ने सभी राजनीतिक तथा आर्थिक शक्ति एक ही जगह केंद्रित कर दी है। वहां समाजवाद के नाम पर सर्वाधिकारवाद पनप गया है। इसलिए इन्होंने भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद को सार्थक बनाने के लिए आर्थिक शक्ति के समय के समय में इन्होंने 'समग्र क्रांति' आंदोलन चलाय। जिससे भयभीत होकर सरकार को आपात कल लागू करना पड़ा। | ||जय प्रकाश नारायण भारतीय समाजवाद के अग्रणी प्रवक्ता थे। इन्होंने अपना विचार अपनी पुस्तक, (ह्वाई सोशलिज्म) तथा 'टूवार्ड्स स्ट्रगल' में व्यक्त किया है। इनके अनुसार सोवियत संघ में भ्रष्ट समाजवाद ने सभी राजनीतिक तथा आर्थिक शक्ति एक ही जगह केंद्रित कर दी है। वहां समाजवाद के नाम पर सर्वाधिकारवाद पनप गया है। इसलिए इन्होंने भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद को सार्थक बनाने के लिए आर्थिक शक्ति के समय के समय में इन्होंने 'समग्र क्रांति' आंदोलन चलाय। जिससे भयभीत होकर सरकार को आपात कल लागू करना पड़ा। | ||
{जैरीमेंडरिंग की प्रथा किस देश में प्रचलित है? ( | {जैरीमेंडरिंग की प्रथा किस देश में प्रचलित है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-106 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-इंग्लैंड | -इंग्लैंड | ||
पंक्ति 472: | पंक्ति 468: | ||
||जैरीमेंडरिंग संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिनिधि सभा के गठन से संबंधित एक प्रथा है। इस प्रथा का प्रयोग चुनाव में कूटनीति के माध्यम से सत्ता प्राप्त करने हेतु किया जाता है। | ||जैरीमेंडरिंग संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिनिधि सभा के गठन से संबंधित एक प्रथा है। इस प्रथा का प्रयोग चुनाव में कूटनीति के माध्यम से सत्ता प्राप्त करने हेतु किया जाता है। | ||
{निम्न में से कौन-सा समुच्चय राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र को परिभाषित करता है? ( | {निम्न में से कौन-सा समुच्चय राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र को परिभाषित करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-6 | ||
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-राज्य, सरकार, विधियां, प्रथाएं और संस्कृति | -राज्य, सरकार, विधियां, प्रथाएं और संस्कृति | ||
पंक्ति 480: | पंक्ति 476: | ||
||राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र राज्य, मूल्य, सरकार, निर्णय-निर्माण, राजनीतिक दल, शक्ति, संघर्षों और सहमति का अध्ययन है। आधुनिक सिद्धांत के अनुसार, राजनीति विज्ञान संस्थाओं एवं राजनीति का अध्ययन है। | ||राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र राज्य, मूल्य, सरकार, निर्णय-निर्माण, राजनीतिक दल, शक्ति, संघर्षों और सहमति का अध्ययन है। आधुनिक सिद्धांत के अनुसार, राजनीति विज्ञान संस्थाओं एवं राजनीति का अध्ययन है। | ||
{प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत एक भाग है- ( | {प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत एक भाग है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-6 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-ऑस्टिन के संप्रभुता सिद्धांत का | -ऑस्टिन के संप्रभुता सिद्धांत का | ||
पंक्ति 531: | पंक्ति 527: | ||
{निम्न में से कौन-सा कथन कार्ल मार्क्स के दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है? ( | {निम्न में से कौन-सा कथन कार्ल मार्क्स के दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-राज्य का सकारात्मक अच्छाई है | -राज्य का सकारात्मक अच्छाई है | ||
पंक्ति 539: | पंक्ति 535: | ||
||कार्ल मार्क्स के अनुसार, राज्य का उदय वर्ग विभेद के कारण हुआ और राज्य संस्था सदैव ही शोषक वर्ग के सहायक के रूप में कार्य करती रही है। पूंजीवादी युग में राज्य संस्था पर पूंजीपति वर्ग का आधिपत्य है और पूंजीपति वर्ग राज्य संस्था की सहायता से श्रमिक वर्ग का शोषण करता है। मार्क्स के अनुसार, "राज्य केवल एक यंत्र है जिसकी सहायता से एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करता है।" | ||कार्ल मार्क्स के अनुसार, राज्य का उदय वर्ग विभेद के कारण हुआ और राज्य संस्था सदैव ही शोषक वर्ग के सहायक के रूप में कार्य करती रही है। पूंजीवादी युग में राज्य संस्था पर पूंजीपति वर्ग का आधिपत्य है और पूंजीपति वर्ग राज्य संस्था की सहायता से श्रमिक वर्ग का शोषण करता है। मार्क्स के अनुसार, "राज्य केवल एक यंत्र है जिसकी सहायता से एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करता है।" | ||
{'प्रन्यास सिद्धांत' का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया? ( | {'प्रन्यास सिद्धांत' का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
||'प्रन्यास सिद्धांत' का प्रतिपादन गांधी के द्वारा किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार पूंजीपतियों द्वारा स्वयं को अपनी संपत्ति का स्वामी न मानकर संरक्षक मानना चाहिए। | ||'प्रन्यास सिद्धांत' का प्रतिपादन गांधी के द्वारा किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार पूंजीपतियों द्वारा स्वयं को अपनी संपत्ति का स्वामी न मानकर संरक्षक मानना चाहिए। | ||
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.गांधी का यह सिद्धान्त अपरिग्रह के विचार पर आधारित है। अपरिग्रह का अर्थ है कि मनुष्य को अपने जीवन की आवश्यकताओं से अधिक किसी वस्तु का संग्रह नहीं करना चाहिए। | .गांधी का यह सिद्धान्त अपरिग्रह के विचार पर आधारित है। अपरिग्रह का अर्थ है कि मनुष्य को अपने जीवन की आवश्यकताओं से अधिक किसी वस्तु का संग्रह नहीं करना चाहिए। | ||
{'स्वतंत्रता, समानता और विश्वबंधुत्व' नारा है- ( | {'स्वतंत्रता, समानता और विश्वबंधुत्व' नारा है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-107 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र का | -अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र का | ||
पंक्ति 554: | पंक्ति 550: | ||
||वर्ष 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के घोषणा-पत्र का शीर्षक 'मानव और नागरिक के अधिकारों की घोषणा' है और इसका नारा 'स्वतंत्रत, समानता और बंधुत्व' है। | ||वर्ष 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के घोषणा-पत्र का शीर्षक 'मानव और नागरिक के अधिकारों की घोषणा' है और इसका नारा 'स्वतंत्रत, समानता और बंधुत्व' है। | ||
{नागरिक शास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय है: ( | {नागरिक शास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय है: (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+नागरिकता | +नागरिकता | ||
पंक्ति 562: | पंक्ति 558: | ||
||नागरिक शास्त्र, नागरिक, नागरिक जीवन एवं नागरिक संस्थाओं का अध्ययन है। नागरिक शास्त्र के अंतर्गत मुख्यत: नागरिकता का अध्ययन किया जाता है। | ||नागरिक शास्त्र, नागरिक, नागरिक जीवन एवं नागरिक संस्थाओं का अध्ययन है। नागरिक शास्त्र के अंतर्गत मुख्यत: नागरिकता का अध्ययन किया जाता है। | ||
{निम्न में से कौन सामाजिक संविदा के सिद्धांत से संबद्ध है? ( | {निम्न में से कौन सामाजिक संविदा के सिद्धांत से संबद्ध है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-ऑस्टिन | -ऑस्टिन | ||
पंक्ति 618: | पंक्ति 614: | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा मार्क्सवाद से संबंधित नहीं है? ( | {निम्नलिखित में से कौन-सा मार्क्सवाद से संबंधित नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-8 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
||यद्मात्यम् की नीति का संबंध उदारवाद से है जबकि अन्य सभी सिद्धांतों का संबंध मार्क्सवाद से हैं। | ||यद्मात्यम् की नीति का संबंध उदारवाद से है जबकि अन्य सभी सिद्धांतों का संबंध मार्क्सवाद से हैं। | ||
पंक्ति 624: | पंक्ति 620: | ||
.द्वंद्वात्मक भौतिकवाद .ऐतिहासिक भौतिकवाद .वर्ग संघर्ष का सिद्धांत .अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत .वर्ग चेतना की अवधारणा .क्रांति का सिद्धांत | .द्वंद्वात्मक भौतिकवाद .ऐतिहासिक भौतिकवाद .वर्ग संघर्ष का सिद्धांत .अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत .वर्ग चेतना की अवधारणा .क्रांति का सिद्धांत | ||
{किसको भारत में अशांति का अग्रदूत कहा गया? ( | {किसको भारत में अशांति का अग्रदूत कहा गया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-8 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+बाल गंगाधर तिलक | +बाल गंगाधर तिलक | ||
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||प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बल गंगाधर तिलक को 'भारत में अशांति का अग्रदूत' कहा गया है। बेलेंटाइन शिरोल ने उन्हें 'भारतीय अशांति का जनक' कहा है। | ||प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बल गंगाधर तिलक को 'भारत में अशांति का अग्रदूत' कहा गया है। बेलेंटाइन शिरोल ने उन्हें 'भारतीय अशांति का जनक' कहा है। | ||
{किस देश की न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है? ( | {किस देश की न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-108 | ||
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-इंग्लैंड | -इंग्लैंड | ||
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||साम्यवादी दल तथा उसकी विचारधारा के साथ संबद्ध रहने के कारण सोवियत संघ (रूस) में न्यायाधीशों की विचारधारा स्वतंत्रा नहीं थी। अत: रूस की न्यायपालिका को स्वतंत्र नहीं माना जा सकता। | ||साम्यवादी दल तथा उसकी विचारधारा के साथ संबद्ध रहने के कारण सोवियत संघ (रूस) में न्यायाधीशों की विचारधारा स्वतंत्रा नहीं थी। अत: रूस की न्यायपालिका को स्वतंत्र नहीं माना जा सकता। | ||
{राजनीतिक शास्त्र के पिता जाने जाते है: ( | {राजनीतिक शास्त्र के पिता जाने जाते है: (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-6 प्रश्न-8 | ||
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-सुकरात | -सुकरात | ||
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||अरस्तू राजनीति शास्त्र के जनक माने जाते हैं। अरस्तू ने ही राजनीति शास्त्र को व्यवस्थित अध्ययन विषय के रूप में नीति शास्त्र से अलग किया। अरस्तू ने राजनीति को सर्वोच्च विज्ञान की संज्ञा दी। | ||अरस्तू राजनीति शास्त्र के जनक माने जाते हैं। अरस्तू ने ही राजनीति शास्त्र को व्यवस्थित अध्ययन विषय के रूप में नीति शास्त्र से अलग किया। अरस्तू ने राजनीति को सर्वोच्च विज्ञान की संज्ञा दी। | ||
{निम्न सिद्धांतों में किसके अनुसार राज्य की स्थापना जनता की इच्छा से हुई? ( | {निम्न सिद्धांतों में किसके अनुसार राज्य की स्थापना जनता की इच्छा से हुई? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-18 प्रश्न-8 | ||
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-शक्ति सिद्धांत से | -शक्ति सिद्धांत से | ||
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{किसने कहा 'सर्वहारा की तानाशाही मार्क्स के सिद्धांत का सार है"? ( | {किसने कहा 'सर्वहारा की तानाशाही मार्क्स के सिद्धांत का सार है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-9 | ||
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||लेनिन ने 'सर्वहारा की तानाशाही या अधिनायकवाद को मार्क्सवाद का सार' माना है। लेनिन के अनुसार, समाजवादी क्रांति से सर्वहारा का अधिनायकत्व स्थापित होगा। यह व्यवस्था उत्पादन के प्रमुख साधनों को सामाजिक स्वामित्व में रखेगी और अपनी सारी शक्ति तथा राज्य के सब संसाधनों का प्रयोग इस तरह करेगी जिससे पूंजीवाद के अवशेषों को मिटाया जा सके, प्रतिक्रांतिकारी शक्तियों को कुचला जा सके और सभी स्वस्थ व्यक्तियों के लिए श्रम की अनिवार्यता बनाकर प्रौद्योगिकी को इतना उन्नत किया जा सके कि श्रम की उत्पादन क्षमता को उच्चतम स्तर तक पहुंचाया जा सके। | ||लेनिन ने 'सर्वहारा की तानाशाही या अधिनायकवाद को मार्क्सवाद का सार' माना है। लेनिन के अनुसार, समाजवादी क्रांति से सर्वहारा का अधिनायकत्व स्थापित होगा। यह व्यवस्था उत्पादन के प्रमुख साधनों को सामाजिक स्वामित्व में रखेगी और अपनी सारी शक्ति तथा राज्य के सब संसाधनों का प्रयोग इस तरह करेगी जिससे पूंजीवाद के अवशेषों को मिटाया जा सके, प्रतिक्रांतिकारी शक्तियों को कुचला जा सके और सभी स्वस्थ व्यक्तियों के लिए श्रम की अनिवार्यता बनाकर प्रौद्योगिकी को इतना उन्नत किया जा सके कि श्रम की उत्पादन क्षमता को उच्चतम स्तर तक पहुंचाया जा सके। | ||
{कांग्रेस के किस अधिवेशन में नेहरू की प्रेरणा से समाज के समाजवादी ढांचे का प्रस्ताव पारित हुआ? ( | {कांग्रेस के किस अधिवेशन में नेहरू की प्रेरणा से समाज के समाजवादी ढांचे का प्रस्ताव पारित हुआ? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-9 | ||
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-नागपुर अधिवेशन, 1942 | -नागपुर अधिवेशन, 1942 | ||
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||कांग्रेस के आवाडी अधिवेशन, 1955 में नेहरू की प्रेरणा से समाज के समाजवादी ढांचे का प्रस्ताव पारित हुआ। इस अधिवेशन के अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू थे। | ||कांग्रेस के आवाडी अधिवेशन, 1955 में नेहरू की प्रेरणा से समाज के समाजवादी ढांचे का प्रस्ताव पारित हुआ। इस अधिवेशन के अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू थे। | ||
{'स्वतंत्र नियामकीय अयोग' का आविर्भाव हुआ- ( | {'स्वतंत्र नियामकीय अयोग' का आविर्भाव हुआ- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-109 | ||
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-जापान में | -जापान में | ||
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||'स्वतंत्र नियामकीय आयोगों' का आविर्भाव संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। इन्हें 'सरकार की शीर्षकविहीन चौथी शाखा' भी कहा कहा गया है। | ||'स्वतंत्र नियामकीय आयोगों' का आविर्भाव संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। इन्हें 'सरकार की शीर्षकविहीन चौथी शाखा' भी कहा कहा गया है। | ||
{'राजनीति शास्त्र का पिता' किसे कहा जाता है: ( | {'राजनीति शास्त्र का पिता' किसे कहा जाता है: (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-6 प्रश्न-9 | ||
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-गार्नर | -गार्नर | ||
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||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||
{सामाजिक संविदा सिद्धांत के अनुसार-( | {सामाजिक संविदा सिद्धांत के अनुसार-(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-18 प्रश्न-9 | ||
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-राज्य एक नैतिक संस्था है। | -राज्य एक नैतिक संस्था है। | ||
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{राज्य के सावयविक होने पर किस वर्ष वर्ग का विश्वास था? ( | {राज्य के सावयविक होने पर किस वर्ष वर्ग का विश्वास था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-10 | ||
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+आदर्शवादियों का | +आदर्शवादियों का | ||
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||राज्य के सावयविक होने पर आदर्शवादियों का विश्वास था। आदर्शवाद के समर्थक कांट, हेगल, वोसांकी आदि। | ||राज्य के सावयविक होने पर आदर्शवादियों का विश्वास था। आदर्शवाद के समर्थक कांट, हेगल, वोसांकी आदि। | ||
{'द्वितत्वीय सिद्धांत' का प्रतिपादन किया गया थ- ( | {'द्वितत्वीय सिद्धांत' का प्रतिपादन किया गया थ- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-10 | ||
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-मैस्लो | -मैस्लो | ||
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||'द्वितत्वीय सिद्धांत' का प्रतिपादन फ्रेडरिक हर्जबर्ग ने किया था। हर्जबर्ग के अनुसार, कर्मचारी उपलब्ध अनुरक्षक तत्वों के प्रति संतुष्ट रहते हैं और उनमें किसी तरह की वृद्धि से प्रेरित नहीं होते जबकि कमी से हतोत्साहित होते हैं। | ||'द्वितत्वीय सिद्धांत' का प्रतिपादन फ्रेडरिक हर्जबर्ग ने किया था। हर्जबर्ग के अनुसार, कर्मचारी उपलब्ध अनुरक्षक तत्वों के प्रति संतुष्ट रहते हैं और उनमें किसी तरह की वृद्धि से प्रेरित नहीं होते जबकि कमी से हतोत्साहित होते हैं। | ||
{निम्न में से किस देश को स्वतंत्र नियामकीय आयोग की जन्मस्थली माना जा सकता है? ( | {निम्न में से किस देश को स्वतंत्र नियामकीय आयोग की जन्मस्थली माना जा सकता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-110 | ||
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-ब्रिटेन | -ब्रिटेन | ||
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||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें। | ||
{किसने कहा कि "निश्चित भू-भाग राज्य का आवश्यक तत्त्व नहीं है"? ( | {किसने कहा कि "निश्चित भू-भाग राज्य का आवश्यक तत्त्व नहीं है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-6 प्रश्न-10 | ||
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||राजनीतिक वैज्ञानिक सीले के अनुसार, "निश्चित भू-भाग या निश्चित प्रदेश राज्य का आवश्यक अंग नहीं हैं।" इसी प्रकार का विचार लियोन डिग्विट तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून के विद्वान हॉल द्वारा भी व्यक्त किया गया है। इनके अनुसार क्षेत्र या निश्चित भू-भाग राज्य का अनिवार्य तत्व नहीं है। वर्तमान समय में राज्य के निम्नलिखित अनिवार्य तत्व माने जाते हैं- I.जनसंख्या | ||राजनीतिक वैज्ञानिक सीले के अनुसार, "निश्चित भू-भाग या निश्चित प्रदेश राज्य का आवश्यक अंग नहीं हैं।" इसी प्रकार का विचार लियोन डिग्विट तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून के विद्वान हॉल द्वारा भी व्यक्त किया गया है। इनके अनुसार क्षेत्र या निश्चित भू-भाग राज्य का अनिवार्य तत्व नहीं है। वर्तमान समय में राज्य के निम्नलिखित अनिवार्य तत्व माने जाते हैं- I.जनसंख्या | ||
II.निश्चित प्रदेश III.सरकार IV.संप्रभुता। | II.निश्चित प्रदेश III.सरकार IV.संप्रभुता। | ||
{निम्नलिखित में से कौन 'आत्मरक्षा के अधिकार' को व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार मानता है?( | {निम्नलिखित में से कौन 'आत्मरक्षा के अधिकार' को व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार मानता है?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-18 प्रश्न- | ||
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-प्लेटो | -प्लेटो |
13:14, 21 दिसम्बर 2016 का अवतरण
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