"प्रयोग:रिंकू3": अवतरणों में अंतर
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||गार्नर ने कहा है कि "राजनीतिक शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है" अत: राजनीति शास्त्र के अध्ययन का विषय-क्षेत्र मात्र राज्य है। | ||गार्नर ने कहा है कि "राजनीतिक शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है" (Political Science begins and ends with the State)। अत: राजनीति शास्त्र के अध्ययन का विषय-क्षेत्र मात्र राज्य है। | ||
{जॉन लॉक और रूसो के सामाजिक संविदा सिद्धांत के संबंध में क्या सही है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-16 प्रश्न-2 | {जॉन लॉक और रूसो के सामाजिक संविदा सिद्धांत के संबंध में क्या सही है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-16 प्रश्न-2 | ||
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+गार्नर | +गार्नर | ||
-गेटिल | -गेटिल | ||
||गार्नर ने कहा है कि "राजनीतिक शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है" (Political Science begins and ends with the State)। अत: राजनीति शास्त्र के अध्ययन का विषय-क्षेत्र मात्र राज्य है। | |||
{हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मानवीय जीवन- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-3 | {हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मानवीय जीवन- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-3 | ||
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||हेगेल और [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक किया (Dialectic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा किया तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है। | ||हेगेल और [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक किया (Dialectic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा किया तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है। | ||
{राज्य के संबंध में गांधी जी के विचार इनमें से किसके निकट थे? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-4 | {राज्य के संबंध में [[गांधी जी]] के विचार इनमें से किसके निकट थे?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-4 | ||
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+दार्शनिक अराजकतावादी | +दार्शनिक अराजकतावादी | ||
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-नैतिक अंतर्निहितवाद | -नैतिक अंतर्निहितवाद | ||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
||राज्य के संबंध में | ||राज्य के संबंध में [[गांधी जी]] के विचार दार्शनिक अराजकतावादी थे क्योंकि गांधी राज्य विरोधी थे। वे मार्क्सवादियों तथा अराजकतावादियों के समान एक राज्यविहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे। वे दार्शनिक, नैतिक, ऐतिहासिक और आर्थिक कारणों के आधार पर राज्य का विरोध करते थे। अत: उनके सिद्धांत को दार्शनिक अराजकतावाद कहा जाता है। | ||
{जीवन, स्वतंत्रता और सुखानुसरण तथ्य है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-104 | {जीवन, स्वतंत्रता और सुखानुसरण तथ्य है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-104 | ||
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+अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र का | +अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र का | ||
-भारत के संविधान की उद्देशिका का | -[[भारत का संविधान|भारत के संविधान]] की उद्देशिका का | ||
-सोवियत नागरिकों के अधिकार से संबंध रखने वाले यू.एस.एस.आर. के संविधान का | -सोवियत नागरिकों के अधिकार से संबंध रखने वाले यू.एस.एस.आर. के संविधान का | ||
-यूनाइटेड स्टेट्स के संविधान के अधिकार-पत्र का | -यूनाइटेड स्टेट्स के संविधान के अधिकार-पत्र का | ||
||जुलाई, 1776 को अमेरिका की कांटिनेंटल कांग्रेस द्वारा अंग्रीकृत अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा- | ||[[जुलाई]], 1776 को [[अमेरिका]] की कांटिनेंटल कांग्रेस द्वारा अंग्रीकृत अमेरिकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र में सभी मनुष्यों को जन्म से समान घोषित करते हुए जीवन, स्वतंत्रता और सुखानुसरण को उनके जन्म से प्राप्त अहस्तांतरणीय अधिकार घोषित किया गया है। | ||
{राजनीति विज्ञान का प्रारंभ | {'राजनीति विज्ञान का प्रारंभ और अंत राज्य से होता है' यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-4 | ||
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-अरस्तू | -[[अरस्तू]] | ||
-लीकॉक | -लीकॉक | ||
+गार्नर | +गार्नर | ||
-ग्रीसस | -ग्रीसस | ||
|| | ||गार्नर ने कहा है कि "राजनीतिक शास्त्र का 'आदि' और 'अंत' राज्य है" (Political Science begins and ends with the State)। अत: राजनीति शास्त्र के अध्ययन का विषय-क्षेत्र मात्र राज्य है। | ||
{इनमें से किससे लॉक के विचारों को प्रेरणा प्राप्त हुई? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-4 | {इनमें से किससे लॉक के विचारों को प्रेरणा प्राप्त हुई? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-4 | ||
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-1650 की स्वर्णिम क्रांति | -1650 की स्वर्णिम क्रांति | ||
+1688 की स्वर्णिम क्रांति | +1688 की स्वर्णिम क्रांति | ||
||1688 की इंग्लैंड की स्वर्णिम क्रांति से लॉक के विचारों को प्रेरणा प्राप्त हुई। लॉक ने इनका समर्थन किया जिसके कारण इसे क्रांति का दार्शनिक कहा जाता है। | ||1688 की [[इंग्लैंड]] की स्वर्णिम क्रांति से लॉक के विचारों को प्रेरणा प्राप्त हुई। लॉक ने इनका समर्थन किया जिसके कारण इसे क्रांति का दार्शनिक कहा जाता है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1.लॉक का सबसे प्रमुख ग्रंथ 'Two Treaties on Government है| 2.लॉक अपने विचारों के लिए 'The Laws of Ecclesiastical Polity' के लेखक रिचार्ड हूकर के ऋणी थे। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
1.लॉक का सबसे प्रमुख ग्रंथ है 2.लॉक अपने विचारों के लिए | |||
{"तुलनात्मक | {"तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन रामसामयिक राजनीति विज्ञान का हृदय है।" यह किसने कहा? (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-4 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+एम. कर्टिस | +एम. कर्टिस | ||
-जी.के. | -जी.के. रॉबर्ट्स | ||
-जीन ब्लोण्डेल | -जीन ब्लोण्डेल | ||
-आर.सी. मैक्रीडिस | -आर.सी. मैक्रीडिस | ||
||वर्तमान समय में तुलनात्मक राजनीति में विभिन्न देशों की राजनीति व्यवस्थाओं यथा संसदात्मक- अध्यक्षात्मक, संघात्मक-एकात्मक, निर्णय निर्माण प्रक्रिया शक्ति संरचना | ||वर्तमान समय में तुलनात्मक राजनीति में विभिन्न देशों की राजनीति व्यवस्थाओं यथा संसदात्मक-अध्यक्षात्मक, संघात्मक-एकात्मक, निर्णय निर्माण प्रक्रिया, शक्ति संरचना तथा शासन प्रणालियों का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा इसमें राजनीतिक विकास, राजनीतिक समाजीकरण, आधुनिकीकरण, सांस्कृतिकरण आदि का भी अध्ययन किया जाता है। इसके महत्त्व को देखते हुए एम. कार्टिस ने लिखा है कि "तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन सम-सामयिक राजनीति विज्ञान का हृदय है।" | ||
{निम्नलिखित में से कौन राज्य को "आवश्यक बुराई" मानते है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-4 | {निम्नलिखित में से कौन राज्य को "आवश्यक बुराई" मानते है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-4 | ||
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-आदर्शवादी | -आदर्शवादी | ||
-समाजवादी | -समाजवादी | ||
|| | ||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। एडम स्मिथ, हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||
{"अस्थायी अधिनायकवाद के स्थायी और सुस्थापित अत्याचारपूर्ण व्यवस्था बन जाने की संभावना सदा बनी रहती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-4 | {"अस्थायी अधिनायकवाद के स्थायी और सुस्थापित अत्याचारपूर्ण व्यवस्था बन जाने की संभावना सदा बनी रहती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-4 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+के.सी. व्हीयर | +के. सी. व्हीयर | ||
-गार्नर | -गार्नर | ||
-विलियम एण्डूज | -विलियम एण्डूज | ||
-बार्कर | -बार्कर | ||
||उपरोक्त कथन के.सी. व्हीयर का है। के.सी.व्हीयर पुस्तक माडर्न कांस्टीट्यूशन में चेतावनी देते हुए लिखते हैं कि शासक वर्ग युद्ध या आपात की स्थितियों में शक्ति को अपने हाथों में केंद्रित कर लेते हैं उसे स्थाई बनाकर अत्याचारपूर्ण व्यवस्था में बदल लेते हैं। इसी संदर्भ में इन्होंने लिखा है कि "अस्थाई अधिनायकवाद के स्थाई एवं सुस्थापित अत्याचारपूर्ण व्यवस्था बन जाने की संभावना रहती है।" | ||उपरोक्त कथन के. सी. व्हीयर का है। के.सी.व्हीयर पुस्तक माडर्न कांस्टीट्यूशन में चेतावनी देते हुए लिखते हैं कि शासक वर्ग युद्ध या आपात की स्थितियों में शक्ति को अपने हाथों में केंद्रित कर लेते हैं उसे स्थाई बनाकर अत्याचारपूर्ण व्यवस्था में बदल लेते हैं। इसी संदर्भ में इन्होंने लिखा है कि "अस्थाई अधिनायकवाद के स्थाई एवं सुस्थापित अत्याचारपूर्ण व्यवस्था बन जाने की संभावना रहती है।" | ||
{सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्य चुने जाते हैं | {सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्य कितनी अवधि के लिए चुने जाते हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-4 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -1 वर्ष | ||
+ | +2 वर्ष | ||
- | -3 वर्ष | ||
- | -5 वर्ष | ||
|| | ||संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है। | ||
{लूथर गुलिक ने संगठन के सिद्धांतों को 'POSDCORB' शब्द में अभिव्यक्त किया है इसमें 'CO' का तात्पर्य | {लूथर गुलिक ने संगठन के सिद्धांतों को 'POSDCORB' शब्द में अभिव्यक्त किया है इसमें 'CO' का तात्पर्य किससे है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-कॉरपोरेशन | -कॉरपोरेशन | ||
-कोऑपरेशन | -कोऑपरेशन | ||
+कोआर्डीनेशन | +कोआर्डीनेशन | ||
-कंपनी | -कंपनी | ||
||लोक प्रशासन प्रशासन की प्रक्रियाओं का अध्ययन है। लोक प्रशासन के कार्य-क्षेत्र के संबंध में लूथर ने जिस मत को प्रतिपादित किया है उसे 'पोस्डकोर्ब' कहा जाता है। पोस्डकोर्ब शब्द, अग्रेंजी के सात शब्दों के प्रथम अक्षरों से मिलाकर बनाया गया है, जो इस प्रकार हैं- | ||लोक प्रशासन प्रशासन की प्रक्रियाओं का अध्ययन है। लोक प्रशासन के कार्य-क्षेत्र के संबंध में लूथर ने जिस मत को प्रतिपादित किया है उसे 'पोस्डकोर्ब' कहा जाता है। पोस्डकोर्ब शब्द, अग्रेंजी के सात शब्दों के प्रथम अक्षरों से मिलाकर बनाया गया है, जो इस प्रकार हैं- | ||
P-Planning (योजना बनाना), O-Organizing (संगठन बनाना), S-Staffing (कर्मचारियों की व्यवस्था करना), D-Directing (निर्देशन करना), Co-Co-ordination (समंवय करना), R-Reporting (रपट देना), B-Budgeting (बजट तैयार करना।)। | P-Planning (योजना बनाना), O-Organizing (संगठन बनाना), S-Staffing (कर्मचारियों की व्यवस्था करना), D-Directing (निर्देशन करना), Co-Co-ordination (समंवय करना), R-Reporting (रपट देना), B-Budgeting (बजट तैयार करना।)। | ||
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{निम्नलिखित विचारों में से मार्क्स ने हीगल से कौन-सा विचार लिया था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-5 | |||
{निम्नलिखित विचारों में से [[कार्ल मार्क्स]] ने हीगल से कौन-सा विचार लिया था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-5 | |||
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-वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत | -वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत | ||
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+द्वंद्वात्मक पद्धति | +द्वंद्वात्मक पद्धति | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
|| | ||हेगेल और [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक किया (Dialectic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा किया तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है। | ||
{1936 किसने कहा "गांधीवाद जैसी कोई | {[[1936]] किसने कहा "गांधीवाद जैसी कोई चीज़ नहीं है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | +महात्मा गांधी | ||
- | -मौलाना आज़ाद | ||
- | -[[जवाहर लाल नेहरु]] | ||
- | -[[रविन्द्रनाथ टैगोर]] | ||
|| | ||[[गांधी जी]] की शिक्षाओं को अक्सर 'गांधीवाद' के नाम से संबोधित किया गया परंतु इस शब्द से उन्हें स्वयं आपत्ति थी, महात्मा गांधी का कहना था कि गांधीवाद जैसी कोई वस्तु नहीं है और मैं अपने बाद कोई संप्रदाय छोड़ना नहीं चाहता। मैं कभी इस बात का दावा नहीं करता कि मैंने कोई नया सिद्धान्त चलाया..... आप लोग इसे गांधीवाद न कहें, इसमें वाद जैसा कुछ भी नहीं है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. गांधी-इर्विन समझौते के बाद एक सार्वजनिक सभा में गांधी जी ने अपने वक्तव्य में कहा था- "गांधी मर सकता है परंतु गांधीवाद सदा जीवित रहेगा।" 2. गांधी जी ने अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन मुख्य रूप से अपनी दो पुस्तकों 'हिंद स्वराज' तथा अपनी आत्मकथा 'मेरे सत्य के प्रयोग' में किया। 3. गांधी जी की रचनाएं- शांति और युद्ध में अहिंसा, नैतिक धर्म, सत्याग्रह, सत्य ही ईश्वर है. सर्वोदय आदि हैं। इसके अतिरिक्त गांधी जी ने [[दक्षिण अफ़्रीका]] में इंडियन ओपिनियन नामक साप्ताहिक पत्र तथा [[भारत]] में यंग इंडिया, हरिजन सेवक, हतिजन बंधु आदि पत्रों का संपादन किया। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.गांधी-इर्विन समझौते के बाद एक सार्वजनिक सभा में | |||
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{"एक व्यवस्थापिका जो मंत्रिपरिषद के समक्ष निर्बल है तथा एक मंत्रिपरिषद जो राष्ट्रपति के समक्ष निर्बल है" किस देश की शासन व्यवस्था की विशेषता दर्शाता है | {"एक व्यवस्थापिका जो मंत्रिपरिषद के समक्ष निर्बल है तथा एक मंत्रिपरिषद जो [[राष्ट्रपति]] के समक्ष निर्बल है" किस देश की शासन व्यवस्था की विशेषता दर्शाता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-105 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
||उपरोक्त शासन व्यवस्था फ्रांस की शासन व्यवस्था की विशेषता है। क्योंकि फ्रांस के पंचम गणतंत्र के संविधान में शासन प्रणाली को अपनाया गया है। किंतु यह अर्द्ध संसदीय शासन प्रणाली ही है। इसमें मंत्रिमण्डल संसद के सम्मुख पूर्ण उत्तरदायी नहीं है। प्रधानमंत्री का चुनाव राष्ट्रपति करता है जिसको साधारण शक्तियों के साथ-साथ अनेक असाधरण शक्तियां प्राप्त है। यह केवल नाम मात्र का राज्याध्यक्ष नहीं है। कई मामलों में यह अमेरिकी राष्ट्रपति के समान है। यदि संसद मंत्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास पास करता है तब भी मंत्रिमण्डल चल सकता है क्योंकि उसका उत्तरदायित्व राष्ट्रपति के प्रति है संसद के प्रति नहीं। फ्रांसीसी राष्ट्रपति पर अभियोग भी नहीं चलाया जा सकता। इसीलिए पिकिल्स ने इसे "दो विरोधी सिद्धांतों का मिश्रण कहा है।" | +[[फ़्राँस]] | ||
-[[जर्मनी]] | |||
-[[भारत]] | |||
-[[श्रीलंका]] | |||
||उपरोक्त शासन व्यवस्था [[फ्रांस]] की शासन व्यवस्था की विशेषता है। क्योंकि फ्रांस के पंचम गणतंत्र के संविधान में शासन प्रणाली को अपनाया गया है। किंतु यह अर्द्ध संसदीय शासन प्रणाली ही है। इसमें मंत्रिमण्डल संसद के सम्मुख पूर्ण उत्तरदायी नहीं है। प्रधानमंत्री का चुनाव राष्ट्रपति करता है जिसको साधारण शक्तियों के साथ-साथ अनेक असाधरण शक्तियां प्राप्त है। यह केवल नाम मात्र का राज्याध्यक्ष नहीं है। कई मामलों में यह अमेरिकी राष्ट्रपति के समान है। यदि संसद मंत्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास पास करता है तब भी मंत्रिमण्डल चल सकता है क्योंकि उसका उत्तरदायित्व राष्ट्रपति के प्रति है संसद के प्रति नहीं। फ्रांसीसी राष्ट्रपति पर अभियोग भी नहीं चलाया जा सकता। इसीलिए पिकिल्स ने इसे "दो विरोधी सिद्धांतों का मिश्रण कहा है।" | |||
{"राजनीति विज्ञान के अंतर्गत राज्य तथा सरकार का अध्ययन किया जाता है", राजनीति विज्ञान की यह परिभाषा किस विचारक ने की है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-5 | {"राजनीति विज्ञान के अंतर्गत [[राज्य]] तथा सरकार का अध्ययन किया जाता है", राजनीति विज्ञान की यह परिभाषा किस विचारक ने की है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-5 | ||
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-गार्नर | -गार्नर | ||
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-गेटिल | -गेटिल | ||
+गिलक्राइस्ट | +गिलक्राइस्ट | ||
||राजनीति विज्ञान के अंतर्गत | ||राजनीति विज्ञान के अंतर्गत राज्य और सरकार दोनों की ही अध्ययन किया जाता है राज्य के बिना सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि सरकार राज्य के द्वारा [[राज्य]] के द्वारा प्रदत्त प्रभुत्व शक्ति का प्रयोग करती है और सरकार के बिना राज्य तो एक अमूर्त कल्पना मात्र है। गिलक्राइस्ट ने इसी को परिभाषित करते हुए लिखा है कि 'राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का अध्ययन करता है। पॉल जैनेट ने भी संदर्भ में लिखा है कि "राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह अंग है जिसमें राज्य के आधार और सरकार के सिद्धांतों पर विचार किया जाता है। | ||
{"सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह इच्छा है | {"सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह इच्छा है, सामान्य नहीं है तथा जहां तक यह सामान्य है, यह इच्छा नहीं"। यह किसने कहा है?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-5 | ||
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-बोसांके | -बोसांके | ||
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-एम.पी. फोलेट | -एम.पी. फोलेट | ||
+हाबहाउस | +हाबहाउस | ||
||रुसो के सामान्य इच्छा को अस्पष्ट एवं अव्यावहरिक बताते हुए एल.टी. हाबहाउस ने टिप्पणी की है कि सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह सामान्य है, यह इच्छा नहीं है और जहां तक यह इच्छा है, यह सामान्य नहीं है।" अर्थात यह या तो सामान्य है या इच्छा, यह दोनों नहीं हो सकती। वाहन ने भी रुसो पर अधिनायकवाद के पोषण का आरोप लगाते हुए कहा है कि "रुसो ने अपनी समष्टिवादी विचारधारा व्यक्ति को शून्य बना दिया | ||रुसो के सामान्य इच्छा को अस्पष्ट एवं अव्यावहरिक बताते हुए एल.टी. हाबहाउस ने टिप्पणी की है कि "सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह सामान्य है, यह इच्छा नहीं है और जहां तक यह इच्छा है, यह सामान्य नहीं है।" अर्थात यह या तो सामान्य है या इच्छा, यह दोनों नहीं हो सकती। वाहन ने भी रुसो पर अधिनायकवाद के पोषण का आरोप लगाते हुए कहा है कि "रुसो ने अपनी समष्टिवादी विचारधारा व्यक्ति को शून्य बना दिया है।" | ||
{तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में | {तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में पारंपरिक उपागमों में अपेक्षा हुई: (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-सरकारों के अध्ययन की | -सरकारों के अध्ययन की | ||
+आनुभविक अनुसंधानों की | +आनुभविक अनुसंधानों की | ||
-संस्थाओं के वर्णन की | -संस्थाओं के वर्णन की | ||
-संविधानों की | -संविधानों की तुलना की | ||
||तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में पारंपरिक उपागमों में आधुनिक तथ्यों पर जोर नहीं दिया गया और तथ्यों के सुनिश्चित परिमाणन का अभाव ही रहा। पारंपरिक उपागम में सरकारों का अध्ययन, संस्थाओं के वर्णन तथा संविधानों की तुलना पर बल दिया गया है। | ||तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में पारंपरिक उपागमों में आधुनिक तथ्यों पर जोर नहीं दिया गया और तथ्यों के सुनिश्चित परिमाणन का अभाव ही रहा। पारंपरिक उपागम में सरकारों का अध्ययन, संस्थाओं के वर्णन तथा संविधानों की तुलना पर बल दिया गया है। | ||
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-अर्थहीन है | -अर्थहीन है | ||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
|| | ||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। एडम स्मिथ, हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||
{निम्नलिखित में से फॉसीवाद की विशेषता कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-5 | {निम्नलिखित में से फॉसीवाद की विशेषता कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-5 | ||
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|| | ||संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है। | ||
{'POSDCORB' दृषिकोण की आलोचना निम्न में से किसने की है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-6 | {'POSDCORB' दृषिकोण की आलोचना निम्न में से किसने की है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-6 | ||
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{मार्क्स ने द्बंद्व का सिद्धांत किससे लिया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं- | {मार्क्स ने द्बंद्व का सिद्धांत किससे लिया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-6 | ||
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-एंजिल्स | -एंजिल्स | ||
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-आवेन | -आवेन | ||
-रिकार्डो | -रिकार्डो | ||
|| | ||हेगेल और [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक किया (Dialectic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा किया तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है। | ||
{जयप्रकाश नारायण के किस विचार से भारत में एक बड़ा जनांदोलन हुआ और आपात काल लागू हुआ? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-6 | {जयप्रकाश नारायण के किस विचार से भारत में एक बड़ा जनांदोलन हुआ और आपात काल लागू हुआ? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-6 | ||
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-सोदियत संघ | -सोदियत संघ | ||
-ब्रिटेन | -ब्रिटेन | ||
|| | ||संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है। | ||
{ओ. और एम. संबंधित हैं- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-7 | {ओ. और एम. संबंधित हैं- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-7 |
13:05, 23 दिसम्बर 2016 का अवतरण
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