"प्रयोग:रिंकू3": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 226: | पंक्ति 226: | ||
-मार्क्सवाद | -मार्क्सवाद | ||
-श्रमिक-संघवाद | -श्रमिक-संघवाद | ||
||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। एडम स्मिथ, हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। [[एडम स्मिथ]], हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||
{नाजीवाद का जनक कौन था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-3 | {नाजीवाद का जनक कौन था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-3 | ||
पंक्ति 309: | पंक्ति 309: | ||
-आदर्शवादी | -आदर्शवादी | ||
-समाजवादी | -समाजवादी | ||
||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। एडम स्मिथ, हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। [[एडम स्मिथ]], हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||
{"अस्थायी अधिनायकवाद के स्थायी और सुस्थापित अत्याचारपूर्ण व्यवस्था बन जाने की संभावना सदा बनी रहती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-4 | {"अस्थायी अधिनायकवाद के स्थायी और सुस्थापित अत्याचारपूर्ण व्यवस्था बन जाने की संभावना सदा बनी रहती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-4 | ||
पंक्ति 388: | पंक्ति 388: | ||
||तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में पारंपरिक उपागमों में आधुनिक तथ्यों पर जोर नहीं दिया गया और तथ्यों के सुनिश्चित परिमाणन का अभाव ही रहा। पारंपरिक उपागम में सरकारों का अध्ययन, संस्थाओं के वर्णन तथा संविधानों की तुलना पर बल दिया गया है। | ||तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में पारंपरिक उपागमों में आधुनिक तथ्यों पर जोर नहीं दिया गया और तथ्यों के सुनिश्चित परिमाणन का अभाव ही रहा। पारंपरिक उपागम में सरकारों का अध्ययन, संस्थाओं के वर्णन तथा संविधानों की तुलना पर बल दिया गया है। | ||
{व्यक्तिवादी विचारक राज्य को अनिवार्य बुराई और अराजकतावादी विचारक राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। यह वक्तव्य | {व्यक्तिवादी विचारक [[राज्य]] को अनिवार्य बुराई और अराजकतावादी विचारक राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। यह वक्तव्य है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+प्रमुखत: सत्य | +प्रमुखत: सत्य | ||
-प्रमुखत: असत्य | -प्रमुखत: असत्य | ||
-अर्थहीन | -अर्थहीन | ||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। एडम स्मिथ, हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। [[एडम स्मिथ]], हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||
{निम्नलिखित में से फॉसीवाद की विशेषता | {निम्नलिखित में से कौन फॉसीवाद की विशेषता नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-फॉसीवाद एक सर्वशक्तिसंपन्न राज्य | -फॉसीवाद एक सर्वशक्तिसंपन्न [[राज्य]] का समर्थन करता है। | ||
-इसमें जातीय सर्वोच्चता पर बल दिया जाता है। | -इसमें जातीय सर्वोच्चता पर बल दिया जाता है। | ||
-यह महामानव पूजा और विशेष वर्ग में विश्वास करता है। | -यह महामानव पूजा और विशेष वर्ग में विश्वास करता है। | ||
+यह अंतर्राष्ट्रीय | +यह अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों में पूरी निष्ठा रखता है। | ||
||फॉसीवाद अंतर्राष्ट्रीय एवं शांति का विरोधी है। अत: यह अंतर्राष्ट्रीय | ||फॉसीवाद अंतर्राष्ट्रीय एवं शांति का विरोधी है। अत: यह अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों में निष्ठा नहीं रखता। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- फॉसीवादी चिंतन की विशेषताएं हैं:- यह विचारधारा का विरोधी है एवं इसका कोई क्रमबद्ध नहीं है। यह कार्य प्रधान आंदोलन है एवं व्यवहारिक है।, यह सर्वाधिकारवादी अवधारणा है एवं राज्य को सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान संस्था मानती है।, यह समाजवाद एवं साम्यवाद विरोधी है। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | .यह तर्क एवं बुद्धि विरोधी है।, यह महामानव पूजा तथा विशिष्ट वर्ग में विश्वास करती है।, यह लोकतंत्र विरोधी है।, यह हिंसा एवं युद्ध का समर्थक है।, यह उग्र राष्ट्रवाद का समर्थक है।, यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता विरोधी है।, यह क्रांति विरोधी विचारधारा है।, यह व्यक्तिवाद एवं उदारवाद विरोधी है। यह अर्थव्यवस्था पर राज्य नियंत्रण का समर्थन है। और यह अंतर्राष्ट्रीय एवं शांति का विरोधी है। | ||
फॉसीवादी चिंतन की | |||
.यह तर्क एवं बुद्धि विरोधी है। | |||
{'सुरक्षा परिषद' की कुल सदस्य संख्या है | {'संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद' की कुल सदस्य संख्या कितनी है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+15 | +15 | ||
पंक्ति 432: | पंक्ति 418: | ||
+लेविस मेरियम | +लेविस मेरियम | ||
-उर्विक | -उर्विक | ||
- | -उपरोक्त सभी | ||
||लेविस मेरियम के अनुसार "पोस्डकोर्ब" सिद्धांत अत्यंत स्वेच्छाचारी, काल्पनिक एवं संकुचित है जिसमें प्रशासन के वास्तविक | ||लेविस मेरियम के अनुसार "पोस्डकोर्ब" सिद्धांत अत्यंत स्वेच्छाचारी, काल्पनिक एवं संकुचित है जिसमें प्रशासन के वास्तविक तत्त्वों को कोई स्थान नहीं दिया गया है। इस सूत्र में पाठ्य-विषय के ज्ञान के तत्त्व को गौण माना गया है।" | ||
{मार्क्स ने द्बंद्व का सिद्धांत किससे लिया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-6 | {[[कार्ल मार्क्स]] ने द्बंद्व का सिद्धांत किससे लिया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-51 प्रश्न-6 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-एंजिल्स | -एंजिल्स | ||
पंक्ति 446: | पंक्ति 432: | ||
||हेगेल और [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक किया (Dialectic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा किया तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है। | ||हेगेल और [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने वाद, प्रतिवाद और संवाद की द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग किया। हेगेल विश्व का अध्ययन सदैव विकासवादी दृष्टिकोण से करता है। इस विकासवादी क्रिया को हेगेल ने द्वंद्वात्मक किया (Dialectic Process) नाम दिया। इस द्वन्द्ववाद शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'Dialego' से हुई जिसका अर्थ वाद-विवाद करना होता है और जिसके फलस्वरूप संश्लेषण अर्थात संवाद की उत्पत्ति होती है जो पहले के दोनों रूपों से भिन्न होता है। मार्क्स, हेगेल के द्वन्द्ववाद से प्रभावित था परंतु उसने हेगेल के आदर्शवाद की उपेक्षा किया तथा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का प्रतिपादन किया। मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद का सिद्धांत विकासवाद का सिद्धांत है जिसके तीन अंग वाद, प्रतिवाद और संश्लेषण या संवाद हैं। उदाहरणार्थ- यदि गेहूं के दाने पर द्वन्द्ववाद का अध्ययन करें, तो गेहूं को जमीन में गाड़ देने से उसका स्वरूप नष्ट हो जाएगा और एक अंकुरण प्रकट होगा और वह अंकुरण विकसित होकर पौधा बनेगा उसमें गेहूं के अनेक दाने लगेंगे। यदि गेहूं का बीज वाद है तो पौधा 'प्रतिवाद' जो निरंतर बढ़ता रहता है और पौधे से नये दाने का जन्म संश्लेषण है। | ||
{जयप्रकाश नारायण के किस विचार से भारत में एक बड़ा जनांदोलन हुआ और आपात काल लागू हुआ? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-6 | {[[जयप्रकाश नारायण]] के किस विचार से [[भारत]] में एक बड़ा जनांदोलन हुआ और [[आपात काल]] लागू हुआ? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-6 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+समग्र क्रांति | +समग्र क्रांति | ||
पंक्ति 452: | पंक्ति 438: | ||
-सर्वोदय-अंत्योदय | -सर्वोदय-अंत्योदय | ||
-भूदान-जीवनदान | -भूदान-जीवनदान | ||
|| | ||[[जयप्रकाश नारायण]] भारतीय समाजवाद के अग्रणी प्रवक्ता थे। इन्होंने अपना विचार अपनी पुस्तक, 'Why Socialism' (ह्वाई सोशलिज्म) तथा 'टूवार्ड्स स्ट्रगल' में व्यक्त किया है। इनके अनुसार सोवियत संघ में भ्रष्ट समाजवाद ने सभी राजनीतिक तथा आर्थिक शक्ति एक ही जगह केंद्रित कर दी है। वहां समाजवाद के नाम पर सर्वाधिकारवाद पनप गया है। इसलिए इन्होंने [[भारत]] में लोकतांत्रिक समाजवाद को सार्थक बनाने के लिए आर्थिक शक्ति के समय के समय में इन्होंने 'समग्र क्रांति' आंदोलन चलाया। जिससे भयभीत होकर सरकार को [[आपात काल]] लागू करना पड़ा। | ||
{जैरीमेंडरिंग की प्रथा किस देश में प्रचलित है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-106 | {जैरीमेंडरिंग की प्रथा किस देश में प्रचलित है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-106 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-इंग्लैंड | -[[इंग्लैंड]] | ||
- | -[[फ़्राँस]] | ||
-चीन | -[[चीन]] | ||
+संयुक्त राज्य अमेरिका | +[[संयुक्त राज्य अमेरिका]] | ||
||जैरीमेंडरिंग संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिनिधि सभा के गठन से संबंधित एक प्रथा है। इस प्रथा का प्रयोग चुनाव में कूटनीति के माध्यम से सत्ता प्राप्त करने हेतु किया जाता है। | ||जैरीमेंडरिंग [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] की प्रतिनिधि सभा के गठन से संबंधित एक प्रथा है। इस प्रथा का प्रयोग चुनाव में कूटनीति के माध्यम से सत्ता प्राप्त करने हेतु किया जाता है। | ||
{निम्न में से कौन-सा समुच्चय राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र को परिभाषित करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-6 | {निम्न में से कौन-सा समुच्चय राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र को परिभाषित करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-6 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-राज्य, सरकार, विधियां, प्रथाएं और संस्कृति | -[[राज्य]], सरकार, विधियां, प्रथाएं और संस्कृति | ||
-संप्रभुता, सरकार, | -संप्रभुता, सरकार, बाज़ार, राजनीतिक दल और सामाजिक वर्ग | ||
-राज्य, सरकार, विधियां, सभ्य समाज और राजनीतिक दल | -राज्य, सरकार, विधियां, सभ्य समाज और राजनीतिक दल | ||
+राज्य, मूल्य, सरकार, निर्णय-निर्माण और राजनीतिक दल | +[[राज्य]], मूल्य, सरकार, निर्णय-निर्माण और राजनीतिक दल | ||
||राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र राज्य, मूल्य, सरकार, निर्णय-निर्माण, राजनीतिक दल, शक्ति, संघर्षों और सहमति का अध्ययन है। आधुनिक सिद्धांत के अनुसार, राजनीति विज्ञान संस्थाओं एवं राजनीति का अध्ययन है। | ||राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र राज्य, मूल्य, सरकार, निर्णय-निर्माण, राजनीतिक दल, शक्ति, संघर्षों और सहमति का अध्ययन है। आधुनिक सिद्धांत के अनुसार, राजनीति विज्ञान संस्थाओं एवं राजनीति का अध्ययन है। | ||
{प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत एक भाग है | {प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत किसका एक भाग है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-6 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-ऑस्टिन | -ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत | ||
-दैवीय उत्पत्ति | -दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत | ||
-शक्ति सिद्धांत | -शक्ति सिद्धांत | ||
+सामाजिक समझौता सिद्धांत | +सामाजिक समझौता सिद्धांत | ||
||प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत सामाजिक समझौता सिद्धांत का भाग है। इस सिद्धांत के प्रबल समर्थक हॉब्स, लॉक तथा | ||प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत सामाजिक समझौता सिद्धांत का भाग है। इस सिद्धांत के प्रबल समर्थक हॉब्स, लॉक तथा रूसो हैं। इनके अनुसार राज्य लोगों के द्वारा किए गए समझौते (सामाजिक समझौते) का फल है। समझौता करने से पूर्व लोग प्राकृतिक अवस्था में रहते थे। प्राकृतिक अवस्था के दौरान लोगों के पास प्राकृतिक अधिकार थे। लॉक ने तीन प्राकृतिक अधिकारों का वर्णन किया है जिनमें जीवन, स्वतंत्रता एवं संपत्ति सम्मिलित है। हॉब्स ने आत्मरक्षा के अधिकार को वरीयता दी है। | ||
{सरकार का | {सरकार का व्यवस्थित वर्गीकरण सर्वप्रथम किसके द्वारा प्रस्तुत किया गया था? (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-6 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-प्लेटो | -[[प्लेटो]] | ||
+अरस्तू | +[[अरस्तू]] | ||
-मैकियावेली | -मैकियावेली | ||
-मॉन्टेस्क्यू | -मॉन्टेस्क्यू | ||
||सरकार का व्यवस्थित वर्गीकरण सर्वप्रथम अरस्तू द्वारा प्रस्तुत किया गया था। अरस्तू की | ||सरकार का व्यवस्थित वर्गीकरण सर्वप्रथम [[अरस्तू]] द्वारा प्रस्तुत किया गया था। अरस्तू की वर्गीकरण का आधार यह था कि क्या किसी देश में सत्ता एक व्यक्ति के हाथ में रहती है, गिने-चुने लोगों या फिर बहुत सारे व्यक्तियों के हाथ में रहती है अरस्तू का ध्येय इस वर्गीकरण के आधार पर 'आदर्श शासन-प्रणाली' की रूपरेखा प्रस्तुत करना था। यद्यपि अरस्तू से पूर्व [[प्लेटो]] ने अपने पुस्तक 'पॉलिटिक्स' या 'स्टेट्समैन' में राजनीतिक व्यवस्थाओं का वर्गीकरण का श्रेय दिया जाता है। | ||
{निम्न में से कौन एक व्यक्तिवाद का समर्थक नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-6 | {निम्न में से कौन एक व्यक्तिवाद का समर्थक नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-6 | ||
पंक्ति 492: | पंक्ति 478: | ||
+जी.डी.एच. कोल | +जी.डी.एच. कोल | ||
-मिल | -मिल | ||
||लॉक, बेंथम, एडम स्मिथ, स्पेंसर, | ||लॉक, बेंथम, [[एडम स्मिथ]], [[हर्बर्ट स्पेंसर]], ग्राहम वालास, एफ.ए.हेयक, आइजिया बर्लिन, रॉबर्ट नाजिक, मिल्टन फ्रीडमैन, नार्मन एंजल, मिस फालेट इत्यादि व्यक्तिवादी विचारक हैं जबकि जी.डी.एच. कोल श्रेणी समाजवादी विचारक हैं। ए.जे.पेंटी, ए.आर. ऑरेज, एस.जी. हाब्सन अन्य श्रेणी समाजवादी विचारक हैं। | ||
{फॉसीवाद निम्नलिखित में से किसको महिमामंडित करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-6 | {फॉसीवाद निम्नलिखित में से किसको महिमामंडित करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-6 | ||
पंक्ति 500: | पंक्ति 486: | ||
-नेता | -नेता | ||
+उपर्युक्त सभी | +उपर्युक्त सभी | ||
||फॉसीवाद | ||फॉसीवाद हिंसा, युद्ध एवं नेता को महिमामंडित करता है। | ||
{निम्नांकित में कौन-सा देश संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-6 | {निम्नांकित में कौन-सा देश संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-6 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+भारत | +[[भारत]] | ||
-अमेरिका | -[[अमेरिका]] | ||
- | -[[सोवियत संघ]] | ||
-ब्रिटेन | -[[ब्रिटेन]] | ||
||संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है। | ||संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है। | ||
{ओ. और एम. संबंधित हैं | {ओ. और एम. किससे संबंधित हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+संगठन और पद्धति | +संगठन और पद्धति | ||
-ओम | -ओम | ||
-संगठन और प्रबंध | -संगठन और प्रबंध | ||
-संगठन और कार्यालय का स्त्रोत | -संगठन और कार्यालय का स्त्रोत | ||
||ओ. तथा एम. (O and M) अंग्रेजी भाषा में आर्गेनाइजेशन एण्ड मेथड्स का संक्षिप्ताक्षर है। इसे हिंदी के संगठन एवं प्रणाली अथवा पद्धति कहते हैं। भारत तथा ब्रिटेन में O & M का यही अर्थ लिया जाता है। जबकि अमेरिका में कभी-कभी इसे विस्तृत अर्थ में लिया जाता है। वहां इसे 'संगठन तथा प्रबंध' के रूप में लिया जाता है। भारत में केंद्रीय O & M डिवीजन 1954 में स्थापित की गई और इसको मंत्रिमंडलीय सचिवालय में स्थान दिया गया। इस समय प्रशासनिक सुधार तथा लोक शिकायत विभाग प्रशासनिक सुधारों तथा संगठन एवं प्रणाली के लिए भारत सरकार की नोडल एजेंसी है। | ||ओ. तथा एम. (O and M) अंग्रेजी भाषा में आर्गेनाइजेशन एण्ड मेथड्स का संक्षिप्ताक्षर है। इसे हिंदी के संगठन एवं प्रणाली अथवा पद्धति कहते हैं। [[भारत]] तथा [[ब्रिटेन]] में O & M का यही अर्थ लिया जाता है। जबकि [[अमेरिका]] में कभी-कभी इसे विस्तृत अर्थ में लिया जाता है। वहां इसे 'संगठन तथा प्रबंध' के रूप में लिया जाता है। भारत में केंद्रीय O & M डिवीजन [[1954]] में स्थापित की गई और इसको मंत्रिमंडलीय सचिवालय में स्थान दिया गया। इस समय प्रशासनिक सुधार तथा लोक शिकायत विभाग प्रशासनिक सुधारों तथा संगठन एवं प्रणाली के लिए [[भारत सरकार]] की नोडल एजेंसी है। | ||
{निम्न में से कौन-सा कथन कार्ल मार्क्स के दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-7 | {निम्न में से कौन-सा कथन [[कार्ल मार्क्स]] के दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-राज्य का सकारात्मक अच्छाई | -[[राज्य]] का सकारात्मक अच्छाई है। | ||
-राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का अवतरण | -राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का अवतरण है। | ||
+राज्य शोषण का एक साधन | +[[राज्य]] शोषण का एक साधन है। | ||
-राज्य एक आवश्यक बुराई | -राज्य एक आवश्यक बुराई है। | ||
||कार्ल मार्क्स के अनुसार, राज्य का उदय वर्ग विभेद के कारण हुआ और राज्य संस्था सदैव ही शोषक वर्ग के सहायक के रूप में कार्य करती रही है। पूंजीवादी युग में राज्य संस्था पर पूंजीपति वर्ग का आधिपत्य है और पूंजीपति वर्ग राज्य संस्था की सहायता से श्रमिक वर्ग का शोषण करता है। मार्क्स के अनुसार, "राज्य केवल एक यंत्र है जिसकी सहायता से एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करता है।" | ||[[कार्ल मार्क्स]] के अनुसार, [[राज्य]] का उदय वर्ग विभेद के कारण हुआ और राज्य संस्था सदैव ही शोषक वर्ग के सहायक के रूप में कार्य करती रही है। पूंजीवादी युग में राज्य संस्था पर पूंजीपति वर्ग का आधिपत्य है और पूंजीपति वर्ग राज्य संस्था की सहायता से श्रमिक वर्ग का शोषण करता है। मार्क्स के अनुसार, "राज्य केवल एक यंत्र है जिसकी सहायता से एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करता है।" | ||
{'प्रन्यास सिद्धांत' का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-7 | {'प्रन्यास सिद्धांत' का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
||'प्रन्यास सिद्धांत' का प्रतिपादन गांधी के द्वारा किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार पूंजीपतियों द्वारा स्वयं को अपनी संपत्ति का स्वामी न मानकर संरक्षक मानना चाहिए। | -[[विवेकानंद|स्वामी विवेकानंद]] | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | -[[जवाहरलाल नेहरू]] | ||
.गांधी के अनुसार धनी व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं से अधिक | -[[दादाभाई नौरोजी]] | ||
.गांधी का यह सिद्धान्त अपरिग्रह के विचार पर आधारित है। अपरिग्रह का अर्थ है कि मनुष्य को अपने जीवन की आवश्यकताओं से अधिक किसी वस्तु का संग्रह नहीं करना चाहिए। | +[[महात्मा गांधी]] | ||
||'प्रन्यास सिद्धांत' का प्रतिपादन [[गांधी]] के द्वारा किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार पूंजीपतियों द्वारा स्वयं को अपनी संपत्ति का स्वामी न मानकर संरक्षक मानना चाहिए। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. गांधी के अनुसार धनी व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं से अधिक ज़मीन, जायदाद, कारख़ाने आदि का स्वामी न समझे अपितु इसे समाज की धरोहर माने। इसका प्रयोग अपने लाभ के लिए न कर समाज के कल्याण के लिए करें। 2. गांधी का यह सिद्धान्त अपरिग्रह के विचार पर आधारित है। अपरिग्रह का अर्थ है कि मनुष्य को अपने जीवन की आवश्यकताओं से अधिक किसी वस्तु का संग्रह नहीं करना चाहिए। | |||
{'स्वतंत्रता, समानता और विश्वबंधुत्व' नारा है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-107 | {'स्वतंत्रता, समानता और विश्वबंधुत्व' नारा है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-107 | ||
पंक्ति 544: | पंक्ति 531: | ||
||वर्ष 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के घोषणा-पत्र का शीर्षक 'मानव और नागरिक के अधिकारों की घोषणा' है और इसका नारा 'स्वतंत्रत, समानता और बंधुत्व' है। | ||वर्ष 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के घोषणा-पत्र का शीर्षक 'मानव और नागरिक के अधिकारों की घोषणा' है और इसका नारा 'स्वतंत्रत, समानता और बंधुत्व' है। | ||
{नागरिक शास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय है | {नागरिक शास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय क्या है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-5 प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+नागरिकता | +नागरिकता | ||
-पंचायती राज | -पंचायती राज | ||
-राज्य | -[[राज्य]] | ||
-नगर | -नगर निगम | ||
||नागरिक शास्त्र, नागरिक, नागरिक जीवन एवं नागरिक संस्थाओं का अध्ययन है। नागरिक शास्त्र के अंतर्गत मुख्यत: नागरिकता का अध्ययन किया जाता है। | ||नागरिक शास्त्र, नागरिक, नागरिक जीवन एवं नागरिक संस्थाओं का अध्ययन है। नागरिक शास्त्र के अंतर्गत मुख्यत: नागरिकता का अध्ययन किया जाता है। | ||
पंक्ति 558: | पंक्ति 545: | ||
-जे.एस. मिल | -जे.एस. मिल | ||
-मार्क्स | -मार्क्स | ||
|| | ||प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत सामाजिक समझौता सिद्धांत का भाग है। इस सिद्धांत के प्रबल समर्थक हॉब्स, लॉक तथा रूसो हैं। इनके अनुसार राज्य लोगों के द्वारा किए गए समझौते (सामाजिक समझौते) का फल है। समझौता करने से पूर्व लोग प्राकृतिक अवस्था में रहते थे। प्राकृतिक अवस्था के दौरान लोगों के पास प्राकृतिक अधिकार थे। लॉक ने तीन प्राकृतिक अधिकारों का वर्णन किया है जिनमें जीवन, स्वतंत्रता एवं संपत्ति सम्मिलित है। हॉब्स ने आत्मरक्षा के अधिकार को वरीयता दी है। | ||
{निम्नलिखित वक्तव्यों में से कौन-सा | {निम्नलिखित वक्तव्यों में से कौन-सा संवैधानिक सरकार की प्रकृति को ठीक प्रकार स्पष्ट करता है? (नागरिक शिक्षा,पृ.सं-93 प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-सीमित शासन | -सीमित शासन | ||
पंक्ति 566: | पंक्ति 553: | ||
-व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा | -व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा | ||
+उपर्युक्त सभी | +उपर्युक्त सभी | ||
|| | ||संवैधानिक सरकार के प्रमुख लक्षण-सीमित शासन, स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा, व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा, संपत्ति का अधिकार, अनुबंध की स्वतंत्रता एवं क़ानूनों का समान संरक्षण आदि है। | ||
{'वैज्ञानिक व्यक्तिवाद' की अवधारणा को किसने विकसित किया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-7 | {'वैज्ञानिक व्यक्तिवाद' की अवधारणा को किसने विकसित किया? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-31 प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-एडम स्मिथ | -[[एडम स्मिथ]] | ||
-बेंथम | -बेंथम | ||
-जे.एस. मिल | -जे.एस. मिल | ||
+स्पेंसर | +[[हर्बर्ट स्पेंसर]] | ||
||हर्बर्ट स्पेंसर (1820-1930) उन्नीसवीं शताब्दी का ब्रिटिश दार्शनिक और सामाजिक सिद्धांतकार था। इसके वैज्ञानिक आधार पर व्यक्तिवाद को स्थापित किया। स्पेंसर के चिंतन को सामाजिक डार्विनवाद की मुख्य अभिव्यक्ति माना जाता है। इसने प्राकृतिक विज्ञानों के नियमों को समाजिक विज्ञान के क्षेत्र में लागू किया। इसने प्राकृतिक चयन के नियम | ||[[हर्बर्ट स्पेंसर]] (1820-[[1930]]) उन्नीसवीं शताब्दी का ब्रिटिश दार्शनिक और सामाजिक सिद्धांतकार था। इसके वैज्ञानिक आधार पर व्यक्तिवाद को स्थापित किया। स्पेंसर के चिंतन को सामाजिक डार्विनवाद की मुख्य अभिव्यक्ति माना जाता है। इसने प्राकृतिक विज्ञानों के नियमों को समाजिक विज्ञान के क्षेत्र में लागू किया। इसने प्राकृतिक चयन के नियम को सामाजिक प्रगति की प्रक्रिया पर लागू करते हुए यह तर्क दिया कि कम योग्य व्यक्तियों को अधिक योग्य व्यक्तियों के हित में बलिदान कर लेना चाहिए। राज्य को अयोग्य व्यक्ति को संरक्षण देने की आवश्यकता नहीं है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. स्पेंसर ने सब तरह के कल्याण कार्यक्रमों का खंडन किया। 2. इसने मताधिकार के विस्तार का विरोध किया। 3. स्पेंसर ने आशा व्यक्त की कि कालान्तर में बाज़ार समाज को इतना विनियमित (Regulste) कर देगा कि राज्य का अस्तित्व निरर्थक हो जाएगा। 4. इनकी प्रमुख कृति Social Statics, Princciples of Socilogy तथा Man Verses State हैं। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.स्पेंसर ने सब तरह के कल्याण कार्यक्रमों का खंडन किया। | |||
.इसने मताधिकार के विस्तार का विरोध किया। | |||
.स्पेंसर ने आशा व्यक्त की कि कालान्तर में | |||
.इनकी प्रमुख कृति Social Statics, Princciples of | |||
{फॉसीवाद निम्नलिखित में से किस एक सिद्धांत का समर्थन नहीं करता? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-7 | {फॉसीवाद निम्नलिखित में से किस एक सिद्धांत का समर्थन नहीं करता? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-7 |
13:15, 24 दिसम्बर 2016 का अवतरण
|