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-सुरक्षा परिषद | -सुरक्षा परिषद | ||
-न्यास परिषद | -न्यास परिषद | ||
||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख 6 अंगों में एक है। इसके प्रमुख 6 अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, | ||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के प्रमुख 6 अंगों में एक है। इसके प्रमुख 6 अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्याय परिषद तथा सचिवालय। शेष संयुक्त राष्ट्र संघ के विशिष्ट अभिकरण हैं। विशिष्ट अभिकरण 6 प्रमुख अंगों से अलग हैं। | ||
{'पोस्डकोर्ब' की अवधारणा दी गई है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-3 | {'पोस्डकोर्ब' की अवधारणा दी गई है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-129 प्रश्न-3 | ||
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+अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (I.C.J.) | +अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (I.C.J.) | ||
-अंतर्राष्ट्रीय औद्योगिक विकास संगठन (U.N.I.D.O.) | -अंतर्राष्ट्रीय औद्योगिक विकास संगठन (U.N.I.D.O.) | ||
||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (I.C.J.) संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख 6 अंगों में एक है। इसके प्रमुख 6 अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्याय परिषद तथा सचिवालय। शेष संयुक्त राष्ट्र संघ के विशिष्ट अभिकरण हैं। विशिष्ट अभिकरण 6 प्रमुख अंगों से अलग हैं। | ||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (I.C.J.) [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के प्रमुख 6 अंगों में एक है। इसके प्रमुख 6 अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्याय परिषद तथा सचिवालय। शेष संयुक्त राष्ट्र संघ के विशिष्ट अभिकरण हैं। विशिष्ट अभिकरण 6 प्रमुख अंगों से अलग हैं। | ||
{लोक प्रशासन का संबंध किससे है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-9 | {लोक प्रशासन का संबंध किससे है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-9 | ||
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-लीकाक | -लीकाक | ||
-हॉब्स | -हॉब्स | ||
||आधुनिक व्यक्तिवाद व्यक्ति के स्थान पर समूह या संवासों की सर्वोपरिता में आस्था रखता है। आधुनिक व्यक्तिवाद सत्ता के विकेंद्रीकरण और राज्य की शक्तियों एवं कार्य-क्षेत्र में नियंत्रण का पक्षधर है। ग्राहम वालास, नार्मन एंजल, वेलॉक तथा मिस फालेट आधुनिक व्यक्तिवाद के प्रमुख समर्थक हैं। इनकी प्रमुख कृतियां हैं, ग्राहम वालास (ग्रेट सोसाइटी, Great Society), नार्मल एंजल (दि ग्रेट इल्यूजन, The Geart Illusion), बेलॉक (दि सरवाइल स्टेट, The servile State), मिस फॉलेट (दि न्यू स्टेटे The New State) | ||आधुनिक व्यक्तिवाद व्यक्ति के स्थान पर समूह या संवासों की सर्वोपरिता में आस्था रखता है। आधुनिक व्यक्तिवाद सत्ता के विकेंद्रीकरण और राज्य की शक्तियों एवं कार्य-क्षेत्र में नियंत्रण का पक्षधर है। ग्राहम वालास, नार्मन एंजल, वेलॉक तथा मिस फालेट आधुनिक व्यक्तिवाद के प्रमुख समर्थक हैं। इनकी प्रमुख कृतियां हैं, ग्राहम वालास (ग्रेट सोसाइटी, Great Society), नार्मल एंजल (दि ग्रेट इल्यूजन, The Geart Illusion), बेलॉक (दि सरवाइल स्टेट, The servile State), मिस फॉलेट (दि न्यू स्टेटे The New State)। | ||
{फॉसीवाद का जन्म हुआ था | {फॉसीवाद का जन्म कहाँ हुआ था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-9 | ||
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-ब्रिटेन | -[[ब्रिटेन]] | ||
+इटली | +[[इटली]] | ||
-जर्मनी | -[[जर्मनी]] | ||
-रूस | -[[रूस]] | ||
||फॉसीवाद का जन्म प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इटली में हुआ जब मुसोलिनी के | ||फॉसीवाद का जन्म प्रथम विश्व युद्ध के दौरान [[इटली]] में हुआ जब मुसोलिनी के नेतृत्य में वर्ष 1915 में मिलान में पहले 'फासियो' की स्थापना की गई। | ||
{संयुक्त राष्ट्र संघ के कुल कितने मुख्य अंग हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-9 | {संयुक्त राष्ट्र संघ के कुल कितने मुख्य अंग हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-9 | ||
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+6 | +6 | ||
-8 | -8 | ||
||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ( | ||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (I.C.J.) [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के प्रमुख 6 अंगों में एक है। इसके प्रमुख 6 अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्याय परिषद तथा सचिवालय। शेष संयुक्त राष्ट्र संघ के विशिष्ट अभिकरण हैं। विशिष्ट अभिकरण 6 प्रमुख अंगों से अलग हैं। | ||
{लोक प्रशासन में 'लोक' शब्द का तात्पर्य है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-10 | {लोक प्रशासन में 'लोक' शब्द का तात्पर्य है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-10 | ||
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-कार्यपालिका | -कार्यपालिका | ||
-सरकार | -सरकार | ||
||लोक प्रशासन में 'लोक' शब्द 'सार्वजनिकता' का सूचक है तथा | ||लोक प्रशासन में 'लोक' शब्द 'सार्वजनिकता' का सूचक है तथा यह आम जनता के लिए प्रशासन के द्वार खोलता है अर्थात जो प्रशासन आम लोगों के लिए हो, वह लोक प्रशासन है। | ||
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{राज्य के सावयविक होने पर किस वर्ष वर्ग का विश्वास था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-10 | {राज्य के सावयविक होने पर किस वर्ष वर्ग का विश्वास था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-52 प्रश्न-10 | ||
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+आदर्शवादियों | +आदर्शवादियों | ||
-समाजवादियों | -समाजवादियों | ||
-सम्विदावादियों | -सम्विदावादियों | ||
-धर्मतांत्रियों | -धर्मतांत्रियों | ||
||राज्य के सावयविक होने पर आदर्शवादियों का विश्वास था। आदर्शवाद के समर्थक कांट, हेगल, वोसांकी आदि। | ||राज्य के सावयविक होने पर आदर्शवादियों का विश्वास था। आदर्शवाद के समर्थक कांट, हेगल, वोसांकी आदि। | ||
{' | {'द्वितत्त्वीय सिद्धांत' का प्रतिपादन किया गया था- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-65 प्रश्न-10 | ||
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-मैस्लो | -मैस्लो | ||
-मैकग्रेगर | -मैकग्रेगर | ||
-आर.लिकर्ट | -आर. लिकर्ट | ||
+हर्जबर्ग | +हर्जबर्ग | ||
||' | ||'द्वितत्त्वीय सिद्धांत' का प्रतिपादन फ्रेडरिक हर्जबर्ग ने किया था। हर्जबर्ग के अनुसार, कर्मचारी उपलब्ध अनुरक्षक तत्त्वों के प्रति संतुष्ट रहते हैं और उनमें किसी तरह की वृद्धि से प्रेरित नहीं होते जबकि कमी से हतोत्साहित होते हैं। | ||
{निम्न में से किस देश को स्वतंत्र नियामकीय आयोग की जन्मस्थली माना जा सकता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-110 | {निम्न में से किस देश को स्वतंत्र नियामकीय आयोग की जन्मस्थली माना जा सकता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-110 | ||
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-ब्रिटेन | -[[ब्रिटेन]] | ||
+संयुक्त राज्य अमेरिका | +[[संयुक्त राज्य अमेरिका]] | ||
- | -[[फ्राँस]] | ||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
||'स्वतंत्र नियामकीय आयोगों' का आविर्भाव [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में हुआ। इन्हें 'सरकार की शीर्षकविहीन चौथी शाखा' भी कहा कहा गया है। | ||'स्वतंत्र नियामकीय आयोगों' का आविर्भाव [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में हुआ। इन्हें 'सरकार की शीर्षकविहीन चौथी शाखा' भी कहा कहा गया है। | ||
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{किसने कहा कि "निश्चित भू-भाग राज्य का आवश्यक तत्त्व नहीं है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-6 प्रश्न-10 | {किसने कहा कि "निश्चित भू-भाग राज्य का आवश्यक तत्त्व नहीं है"? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-6 प्रश्न-10 | ||
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||राजनीतिक वैज्ञानिक सीले के अनुसार, "निश्चित भू-भाग या निश्चित प्रदेश राज्य का आवश्यक अंग नहीं हैं।" इसी प्रकार का विचार लियोन डिग्विट तथा अंतर्राष्ट्रीय | -बेंथम | ||
+सीले | |||
-विलेन | |||
-लीकॉक | |||
||राजनीतिक वैज्ञानिक सीले के अनुसार, "निश्चित भू-भाग या निश्चित प्रदेश राज्य का आवश्यक अंग नहीं हैं।" इसी प्रकार का विचार लियोन डिग्विट (Leon Degvit) तथा अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के विद्वान हॉल द्वारा भी व्यक्त किया गया है। इनके अनुसार क्षेत्र या निश्चित भू-भाग राज्य का अनिवार्य तत्त्व नहीं है। वर्तमान समय में राज्य के निम्नलिखित अनिवार्य तत्त्व माने जाते हैं- 1.जनसंख्या, 2.निश्चित प्रदेश, 3.सरकार, 4.संप्रभुता। | |||
{निम्नलिखित में से कौन 'आत्मरक्षा के अधिकार' को व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार मानता है?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-18 प्रश्न- | {निम्नलिखित में से कौन 'आत्मरक्षा के अधिकार' को व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार मानता है?(नागरिक शास्त्र,पृ.सं-18 प्रश्न-10 | ||
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-प्लेटो | -[[प्लेटो]] | ||
-बेंथम | -बेंथम | ||
+हॉब्स | +हॉब्स | ||
-बर्क | -बर्क | ||
||हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक दशा में मनुष्यों के कोई मान्यता प्राप्त अधिकार नहीं होते किंतु तब भी एक प्राकृतिक | ||हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक दशा में मनुष्यों के कोई मान्यता प्राप्त अधिकार नहीं होते किंतु तब भी एक प्राकृतिक क़ानून अवश्य विद्यमान रहता है। यह प्राकृतिक क़ानून वास्तव में 'आत्मरक्षा के नियम' हैं, जो इस प्रकार हैं- 1. मनुष्य अपने ऊपर उपकार करने वाले लोगों पर उपकार करें। 2.मनुष्य दूसरे मनुष्यों से किए समझौतों का पालन करें। 3.मनुष्य सामूहिक रूप से अपनी प्राकृतिक स्वतंत्रता का त्याग करने को तैयार रहें। 4.प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य शांति स्थापना होना चाहिए। हॉब्स के अनुसार, ये नियम ही व्यक्ति को राज्य या कॉमनवैल्थ की स्थापना की प्रेरणा देते हैं। | ||
{भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप निम्न में से कौन-सा है | {भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप निम्न में से कौन-सा है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-93 प्रश्न-1 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-गणतंत्रीय, | -गणतंत्रीय, संघीय, अध्यक्षात्मक | ||
-गणतंत्रीय, एकात्मक, संसदीय | -गणतंत्रीय, एकात्मक, संसदीय | ||
+गणतंत्रीय, | +गणतंत्रीय, संघीय संसदीय | ||
-गणतंत्रीय, एकात्मक, अध्यक्षात्मक | -गणतंत्रीय, एकात्मक, अध्यक्षात्मक | ||
||भारतीय राजनीति व्यवस्था का स्वरूप गणतंत्रीय, | ||भारतीय राजनीति व्यवस्था का स्वरूप गणतंत्रीय, संघीय, संसदीय है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1.संघात्मक संविधान के अंतर्गत मुख्यता दो प्रकार की सरकारों की स्थापना की जा सकती है- संसदीय तथा अध्यक्षात्मक। 2. [[भारतीय संविधान]] ने संसदीय सरकार की स्थापना की है। 3. 'गणतंत्र' (लोकतंत्र) शब्द इस बात का परिचायक है कि [[भारत]] की [[भारत सरकार|सरकार]] की शक्ति का स्त्रोत भारत की जनता है। 4.एक संघात्मक संविधान में सामान्यतया अग्रलिखित आवश्यक तत्त्व पाए जाते हैं- (क) शक्तियों का विभाजन, (ख) संविधान की सर्वोपरिता, (ग) लिखित संविधान, (घ) संविधान संशोधन की कठिन प्रक्रिया, (ड़) न्याय-पालिका की प्रधिकार। 5.संघात्मक संविधान के उपर्युक्त वर्णित सभी आवश्यक तत्त्व भारतीय संविधान में विद्यमान हैं। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.संघात्मक संविधान के अंतर्गत मुख्यता दो प्रकार की सरकारों की स्थापना की जा सकती है- संसदीय तथा | |||
.भारतीय | |||
.'गणतंत्र' (लोकतंत्र) शब्द इस बात का परिचायक है कि भारत की सरकार की शक्ति का स्त्रोत भारत की जनता है। | |||
.एक संघात्मक संविधान में | |||
.संघात्मक संविधान के उपर्युक्त वर्णित सभी आवश्यक | |||
{राजनैतिक सिद्धांत जो नागरिकों के व्यक्तिगत जीवन में न्यूनतम हस्तक्षेप करे उसे क्या कहते | {राजनैतिक सिद्धांत जो नागरिकों के व्यक्तिगत जीवन में न्यूनतम हस्तक्षेप करे उसे क्या कहते हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-32 प्रश्न-10 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-लेससफेयर | -लेससफेयर | ||
- | -युटलीटेरियनिज़म | ||
+व्यक्तिवाद | +व्यक्तिवाद | ||
-इंटरप्रेन्योरशिप | -इंटरप्रेन्योरशिप | ||
||व्यक्तिवाद राज्य को एक बुराई मानता है। पर यह बुराई मनुष्य की स्वार्थपरता और लुटेरेपन के कारण आवश्यक हो गयी है। व्यक्तिवाद का निर्देशक सिद्धांत है, 'व्यक्ति को अधिक से अधिक स्वंतत्रता मिले और राज्य कम से कम हस्तक्षेप करे'। | ||व्यक्तिवाद राज्य को एक बुराई मानता है। पर यह बुराई मनुष्य की स्वार्थपरता और लुटेरेपन के कारण आवश्यक हो गयी है। व्यक्तिवाद का निर्देशक सिद्धांत है, 'व्यक्ति को अधिक-से-अधिक स्वंतत्रता मिले और [[राज्य]] कम-से-कम हस्तक्षेप करे'। | ||
{ | {अध्यक्षात्मक शासन का सैद्धांतिक आधार है- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-92 प्रश्न-3 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -शक्तियों का संतुलन | ||
- | +शक्तियों का पृथक्करण | ||
-शक्तियों का एकीकरण | |||
- | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
|| | ||अध्यक्षात्मक शासन का सैद्धान्तिक आधार शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत है जो शासन के विभिन्न अंगों में शक्तियों के संबंधित है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत का अर्थ यह है कि शासन की शक्तियां, दायित्व एवं नियंत्रण किसी एक व्यक्ति या संस्था के हाथों में केंद्रित न रहें बल्कि वे शासन की विभिन्न शाखाओं में बंटे हों और ये शाखाएं एक दूसरे से स्वाधीन हों। | ||
{इनमें से कौन संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख अंग नहीं हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-10 | {इनमें से कौन [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] का प्रमुख अंग नहीं हैं? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-10 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-सेक्युरिटी काउंसिल | -सेक्युरिटी काउंसिल | ||
-ट्रस्टीशिप काउंसिल | -ट्रस्टीशिप काउंसिल | ||
+यूनेस्को | +[[यूनेस्को]] | ||
-सेक्रेटेरिएट | -सेक्रेटेरिएट | ||
||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ( | ||अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (I.C.J.) [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के प्रमुख 6 अंगों में एक है। इसके प्रमुख 6 अंग हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्याय परिषद तथा सचिवालय। शेष संयुक्त राष्ट्र संघ के विशिष्ट अभिकरण हैं। विशिष्ट अभिकरण 6 प्रमुख अंगों से अलग हैं। | ||
{लोक प्रशासन पर न्यायालय के नियंत्रण की दशा कौन-सी है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-11 | {लोक प्रशासन पर न्यायालय के नियंत्रण की दशा कौन-सी है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-11 | ||
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-प्रक्रिया संबंधी त्रुटि | -प्रक्रिया संबंधी त्रुटि | ||
+उपर्युक्त सभी | +उपर्युक्त सभी | ||
||लोक प्रशासन पर न्यायालय निम्नलिखित दशाओं में हस्त्क्षेप कर नियंत्रण कर सकते हैं- | ||लोक प्रशासन पर न्यायालय निम्नलिखित दशाओं में हस्त्क्षेप कर नियंत्रण कर सकते हैं- 1. अधिकारों या सत्ता का दुरुपयोग, 2. अधिकार क्षेत्र का अभाव, 3. वैधानिक त्रुटि, 4. तथ्य शोधन या जांच में दोष और 5. प्रक्रिया सम्बंधी दोष। | ||
</quiz> | </quiz> | ||
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13:06, 28 दिसम्बर 2016 का अवतरण
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