"रानी ईश्‍वरी कुमारी": अवतरणों में अंतर

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'''रानी ईश्‍वरी कुमारी''' तुलसीपुर की रानी थीं। 1857 के प्रथम [[स्वतंत्रता संग्राम]] में [[गोरखपुर]] के निकट तुलसीपुर की रानी ईश्वरी कुमारी का अमर त्याग उल्लेखनीय है। यह बात दुसरी है कि उनके अमर यश से कम लोग परिचित है।<ref name="Kranti">{{cite web |url=http://www.kranti1857.org/krantikari_mahilaye.php|title=  रानी ईश्‍वरी कुमारी|accessmonthday=15 फरवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=kranti1857|language=हिंदी }}</ref>
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*तुलसीपुर 1857 में बहुत ही छोटा एक जनपद था। वहाँ के शासक राजा दृगनाथ सिंह थे उन्हें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ काम करने पर नजरबन्द कर लिया गया था। नजरबन्दी के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
*तुलसीपुर 1857 में बहुत ही छोटा एक जनपद था। वहाँ के शासक राजा दृगनाथ सिंह थे उन्हें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ काम करने पर नजरबन्द कर लिया गया था। नजरबन्दी के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।

12:27, 15 फ़रवरी 2017 का अवतरण

रानी ईश्‍वरी कुमारी
पूरा नाम रानी ईश्‍वरी कुमारी
प्रसिद्धि वीरांगनाएँ
विशेष योगदान रानी ईश्वर कुमारी ने सीमित साधन रहते हुए भी युद्ध करने का निर्णय लिया।
नागरिकता भारतीय

रानी ईश्‍वरी कुमारी तुलसीपुर की रानी थीं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में गोरखपुर के निकट तुलसीपुर की रानी ईश्वरी कुमारी का अमर त्याग उल्लेखनीय है। यह बात दुसरी है कि उनके अमर यश से कम लोग परिचित है।[1]

  • तुलसीपुर 1857 में बहुत ही छोटा एक जनपद था। वहाँ के शासक राजा दृगनाथ सिंह थे उन्हें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ काम करने पर नजरबन्द कर लिया गया था। नजरबन्दी के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
  • रानी ईश्वर कुमारी ने अपनी रियासत सम्भाली। 1857 की क्रांति में रानी ने कम्पनी सरकार का विरोध किया। उन्हे कम्पनी की ओर से यह संदेश दिया गया की वह सरकार के साथ मिल जाए अन्यथा राज्य हड़प लिया जाएगा। रानी ईश्वर कुमारी ने सीमित साधन रहते हुए भी युद्ध करने का निर्णय लिया।
  • 13 जनवरी, 1859 के एक दस्तावेज के अनुसार च्गदर में राजा दृगनाथ सिंह की रानी ने ब्रिटिश राज्य के खिलाफ़ बहुत बड़े पैमाने पर विद्रोह किया था।
  • छ शाही फ़रमान के आगे वह झुकी नहीं। इसीलिए उनका राज्य छीनकर बलरामपुर राज्य में मिला लिया गया था।
  • रानी को बहुत प्रलोभन दिए गए कि वह हथियार डाल दे और ब्रितानियों की सत्ता स्वीकार कर ले। तब उनका जप्त किया हुआ राज्य उन्हें वापस कर दिया जाएगा। पर रानी ने आत्मसमर्पण के बजाय बेगम हजरत महल की तरह देश के बाहर निर्वासित जीवन बिताना स्वीकार किया। यह विचार असिस्टेन्ट कमिश्नर मेजर बैरव ने व्यक्त किया।
  • रानी ईश्वर कुमारी अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रही। वह हार नहीं मानती युद्ध में विजय या पराजय तो होती ही रहती है। सरकार ने इन वीरांगना पर जो अत्याचार किया उसे याद कर रोंगटे खडे हो जाते है।
  • ईश्वर कुमारी समझ गयी कि विशाल ब्रिटिश सेना का मुकाबला नहीं कर सकती। शत्रुओं के हाथों मरने की अपेक्षा स्वयं मरना श्रेयष्कर है। उन्होंने तुलसीपुर छोड़ने का निर्णय लिया। मातृभूमि को नमन कर ईश्वर कुमारी नेपाल के जंगलों में जा छिपी। सुनते है कि बेगम हजरत महल के साथ रानी का घनिष्ट सम्पर्क था। हजरत महल ईश्वर कुमारी के यहां कुछ दिनों तक ठहरी हुई थी।
  • ईश्वर कुमारी के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है। नेपाल में उनकी गतिविधियां क्या थी? इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता। मालूम पडता है रानी का देहावसान नेपाल में ही हुआ था। इतिहास इस पर मौन है।
  • रानी के शौर्य एवं उत्साह से ब्रितानी सेनापति भी परिचित थे। ईश्वर कुमारी नि:सन्देह भारतवर्ष की एक बहादुर वीरागंना हो गयी है जिन पर हमें गर्व होना चाहिए।[1]


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  1. 1.0 1.1 रानी ईश्‍वरी कुमारी (हिंदी) kranti1857। अभिगमन तिथि: 15 फरवरी, 2017।

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