"श्रीमद्भागवत महापुराण एकादश स्कन्ध अध्याय 3 श्लोक 54-55": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
छो (1 अवतरण) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "ह्रदय" to "हृदय") |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
अपने-आपको भगवन्य ध्यान करते हुए ही भगवान की मूर्ति का पूजन करना चाहिये। निर्माल्य को अपने सिर पर रखे और आदर के साथ भगवद्विग्रह को यथास्थान स्थापित कर पूजा समाप्त करनी चाहिये । | अपने-आपको भगवन्य ध्यान करते हुए ही भगवान की मूर्ति का पूजन करना चाहिये। निर्माल्य को अपने सिर पर रखे और आदर के साथ भगवद्विग्रह को यथास्थान स्थापित कर पूजा समाप्त करनी चाहिये । | ||
इस प्रकार जो पुरुष अग्नि, सूर्य, जल, अतिथि और अपने | इस प्रकार जो पुरुष अग्नि, सूर्य, जल, अतिथि और अपने हृदय में आत्मरूप श्रीहरि की पूजा करता है, वह शीघ्र ही मुक्त हो जाता है । | ||
{{लेख क्रम|पिछला=श्रीमद्भागवत महापुराण एकादश स्कन्ध अध्याय 3 श्लोक 43-53|अगला=श्रीमद्भागवत महापुराण एकादश स्कन्ध अध्याय 4 श्लोक 1-7}} | {{लेख क्रम|पिछला=श्रीमद्भागवत महापुराण एकादश स्कन्ध अध्याय 3 श्लोक 43-53|अगला=श्रीमद्भागवत महापुराण एकादश स्कन्ध अध्याय 4 श्लोक 1-7}} |
09:54, 24 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
एकादश स्कन्ध: तृतीयोऽध्यायः (3)
श्रीमद्भागवत महापुराण: एकादश स्कन्ध: तृतीयोऽध्यायः श्लोक 54-55 का हिन्दी अनुवाद
अपने-आपको भगवन्य ध्यान करते हुए ही भगवान की मूर्ति का पूजन करना चाहिये। निर्माल्य को अपने सिर पर रखे और आदर के साथ भगवद्विग्रह को यथास्थान स्थापित कर पूजा समाप्त करनी चाहिये ।
इस प्रकार जो पुरुष अग्नि, सूर्य, जल, अतिथि और अपने हृदय में आत्मरूप श्रीहरि की पूजा करता है, वह शीघ्र ही मुक्त हो जाता है ।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
-