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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[सम्पाती]] और [[जटायु]] के [[पिता]] का नाम क्या था?
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| +[[अरुण देवता|अरुण]]
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| -[[अश्विनीकुमार]]
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| -[[वरुण देवता|वरुण]]
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| -[[उत्तानपाद]]
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| ||[[चित्र:Surya-arun.jpg|right|100px|सारथि अरुण]]प्रजापति [[कश्यप]] की पत्नी विनता के दो पुत्र थे- [[गरुड़]] और [[अरुण देवता|अरुण]]। अरुण [[सूर्य]] के सारथी हुए। [[सम्पाती]] और [[जटायु]] इन्हीं अरुण के पुत्र थे। बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य-मण्डल को स्पर्श करने के उद्देश्य से लम्बी उड़ान भरी। सूर्य के असहनीय तेज़ से व्याकुल होकर जटायु तो बीच रास्ते से ही लौट आये, किन्तु सम्पाती उड़ते ही गये। सूर्य के सन्निकट पहुँचने पर सूर्य के प्रखर [[ताप]] से सम्पाती के पंख जल गये और वे [[समुद्र]] के तट पर गिरकर चेतना शून्य हो गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अरुण देवता]]
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| {[[राम]] को वानर राज [[सुग्रीव]] से मित्रता की सलाह किसने दी थी?
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| -[[अहल्या|अहिल्या]]
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| -[[कैकसी]]
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| +[[शबरी]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||'शबरी' का वास्तविक नाम 'श्रमणा' था और वह [[भील]] समुदाय की 'शबरी' जाति से संबंध रखती थी। [[शबरी]] के [[पिता]] भीलों के राजा थे। [[सीता]] की खोज में जब [[राम]] और [[लक्ष्मण]] उसकी [[कुटिया]] में पधारे, तब उसने राम का सत्कार किया और उन्हें सीता की खोज के लिये [[सुग्रीव]] से मित्रता करने की सलाह दी। भगवान श्री राम के दर्शन करने के बाद वह स्वयं को योगाग्नि में भस्म करके सदा के लिये श्री राम के चरणों में लीन हो गई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शबरी]]
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| {निम्न में से किस स्त्री को [[मतंग|मतंग ऋषि]] ने आश्रय प्रदान किया?
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| -[[सीता]]
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| +[[शबरी]]
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| -[[उर्मिला]]
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| -[[देवयानी]]
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| ||[[विवाह]] की रात शबरी घर से भागकर जंगल में आ गयी, किंतु निम्न जाति की होने के कारण उसे कहीं आश्रय नहीं मिला। वह रात्रि में जल्दी उठकर, जिधर से [[ऋषि]] निकलते, उस रास्ते को नदी तक साफ़ करती। कँकरीली ज़मीन में बालू बिछा आती। जंगल में जाकर लकड़ी काटकर डाल आती। इन सब कामों को वह इतनी तत्परता से छिपकर करती कि कोई ऋषि देख न ले। यह कार्य वह कई वर्षों तक करती रही। अन्त में 'मतंग' ऋषि ने उस पर कृपा की। [[मतंग|महर्षि मतंग]] ने सामाजिक बहिष्कार स्वीकार किया, किन्तु शरणागत शबरी का त्याग नहीं किया। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शबरी]]
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| {निम्न में से किस वानर ने [[दुंदुभी दैत्य]] का वध किया था?
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| -[[नल (रामायण)|नल]]
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| -[[सुग्रीव]]
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| +[[बालि]]
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| -[[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]]
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| ||[[दुंदुभी दैत्य|दुंदुभी]], [[कैलास पर्वत]] के समान एक विशाल [[दैत्य]] था, जिसमें हज़ार [[हाथी|हाथियों]] का बल था। एक भयंकर युद्ध में दुंदुभी का वध [[बालि]] के हाथों हुआ, जिसने उसके शव को उठाकर एक [[योजन]] दूर फेंक दिया। मार्ग में उसके मुँह से निकली [[रक्त]] की बूंदें महर्षि मतंग के आश्रम पर जाकर गिरीं। महर्षि मतंग ने बालि को शाप दिया कि वह और उसके वानरों में से कोई यदि उनके आश्रम के पास एक योजन की दूरी तक आयेगा तो मर जायेगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दुंदुभी दैत्य]]
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| {[[लंका]] के राजा [[रावण]] की पुत्री का क्या नाम था?
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| |type="()"}
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| +अवली
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| -[[रेणुका]]
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| -[[ताड़का|ताड़का]]
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| -[[दमयंती]]
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| {श्री [[राम]] की सेना में [[विश्वकर्मा]] के अंशावतार कौन थे? | | {श्री [[राम]] की सेना में [[विश्वकर्मा]] के अंशावतार कौन थे? |
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