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| {{पात्र परिचय | | {{बहुविकल्पी शब्द}} |
| |चित्र=blankimage.gif
| | #[[भीम (शिव)]]- भगवान शिव का भी नाम भीम है। |
| |अन्य नाम=वृकोदर, भीमसेन
| | #[[भीम (विष्णु)]]- भगवान विष्णु का भी नाम भीम है। |
| |अवतार=पवन का अंशावतार
| | #[[भीम (पांडव)]]- पांडु के पाँच में से दूसरी संख्या के पुत्र का नाम भीम था। |
| |वंश-गोत्र=[[चंद्रवंश]]
| | #[[भीम (पुरूरवा पौत्र)]]-पुरूरवा के पौत्र का भी नाम भीम है। |
| |कुल=यदुकुल
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| |पिता=[[पाण्डु]]
| | {{शब्द संदर्भ लघु |
| |माता=[[कुन्ती]], [[माद्री]](विमाता)
| | |हिन्दी=बहुत बडा उत्साही या बहादुर, साहित्य में भयानक रस, [[कुंती]] के एक पुत्र जो [[युधिष्ठिर]] से छोटे तथा अन्य [[पांडव|पांडवों]] से बड़े थे और जो गदा धारण करते थे, महर्षि [[विश्वामित्र]] के पूर्व-पुरुष जो [[पुरूरवा]] के पौत्र थे। |
| |जन्म विवरण=कुन्ती द्वारा पवन का आवाहन करने से प्राप्त पुत्र भीम
| | |व्याकरण=[[विशेषण]] ([[संज्ञा]] √भी (भय करना)+मक् |
| |समय-काल=[[महाभारत]] काल
| | |उदाहरण= |
| |परिजन=भाई [[युधिष्ठिर]], [[अर्जुन]], [[नकुल]], [[सहदेव]], [[कर्ण]] | | |विशेष= |
| |विवाह=[[द्रौपदी]], [[हिडिंबा]] | | |पर्यायवाची=[[शिव]], [[विष्णु]], [[भीमसेन]], भयंकर, भीषण, बहुत बड़ा। |
| |संतान=द्रौपदी से श्रुतसोम और हिडिंबा से [[घटोत्कच]] नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई। | | |संस्कृत= |
| |विद्या पारंगत=गदा युद्ध में पारंगत | | |अन्य ग्रंथ= |
| |महाजनपद=[[कुरु]] | |
| |शासन-राज्य=[[हस्तिनापुर]], [[इन्द्रप्रस्थ]]
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| |मृत्यु=भीम बहुत खाते थे और दूसरों को कुछ भी न समझकर अपने बल की डींग हाँका करते थे; इसी कारण स्वर्ग जाते समय उनकी मृत्यु हो गई। | |
| |संबंधित लेख=महाभारत | |
| }} | | }} |
| *[[पांडु]] के पाँच में से दूसरी संख्या के पुत्र का नाम भीम अथवा भीमसेन था।
| | ७. |
| *भीम में दस हज़ार हाथियों का बल था और वह गदा युद्ध में पारंगत था । [[दुर्योधन]] की ही तरह भीम ने भी गदा युद्ध की शिक्षा श्री[[कृष्ण]] के बड़े भाई [[बलराम]] से ली थी।
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| *[[महाभारत]] में भीम ने ही दुर्योधन और [[दुशासन|दुःशासन]] सहित [[गांधारी]] के सौ पुत्रों को मारा था। [[द्रौपदी]] के अलावा भीम की पत्नी का नाम [[हिडिंबा]] था जिससे भीम का परमवीर पुत्र [[घटोत्कच]] था।
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| *घटोत्कच ने ही [[इन्द्र]] द्वारा [[कर्ण]] को दी गई अमोघ शक्ति को अपने ऊपर चलवाकर [[अर्जुन]] के प्राणों की रक्षा की थी।
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| *भीम बलशाली होने के साथ साथ बहुत अच्छा रसोइया भी था । [[विराट नगर]] में जब अज्ञातवास के समय जब द्रौपदी सैरंध्री बनकर रह रही थी, द्रौपदी के शील की रक्षा करते हुए उसने [[कीचक]] को भी मारा था।
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| *[[श्रीकृष्ण]] के परम शत्रु मगध नरेश [[जरासंध]] को भी भीम ने ही मारा था।
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| [[चित्र:Bhim-Dushasan.jpg|250px|thumb|left|दु:शासन वध <br />Dushasan Slaughter]]
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| भीम के अपरिमित बल से त्रस्त तथा ईर्ष्यालु होकर [[दुर्योधन]] जलविहार के बहाने [[पांडव|पांडवों]] को [[गंगा नदी|गंगा]] के तट पर ले गया। भोजन में कालकूट विष खिलाकर दुर्योधन ने भीमसेन को लताओं इत्यादि से बांधकर नदी में फेंक दिया। शेष पांडव थककर सो गये थे, अत: प्रात: भीम को वहाँ न देख समझे कि वह उनसे पहले ही घर वापस चला गया है। भीम जल में डूबकर नागलोक पहुंच गया। वहाँ नागों के दर्शन से उसका विष उतर गया और उसने नागों का नाश प्रारंभ कर दिया। घबराकर उन्होंने [[वासुकि]] से समस्त वृत्तांत कह सुनाया। वासुकि तथा नागराज आर्यक (भीम के नाना के नाना) ने भीम को पहचानकर गले से लगा लिया, साथ ही प्रसन्न होकर उसे उस कुण्ड का जल पीने का अवसर दिया जिसका पान करने से एक हज़ार हाथियों का बल प्राप्त होता है। भीम ने वैसे आठ कुण्डों का रसपान करके विश्राम किया। तदनंतर आठ दिवस बाद वह सकुशल घर पहुंचा। दुर्योधन ने पुन: उसे कालकूट विष का पान करवाया था किंतु भीम के पेट में वृक नामक अग्नि थी जिससे विष पच जाता था तथा उसका कोई प्रभाव नहीं होता था। इसी कारण वह वृकोदर कहलाता था। दुर्योधन ने एक बार भीम की शैया पर सांप भी छोड़ था। [[महाभारत]] के चौदहवें [[दिन]] की रात्रि में भी युद्ध होता रहा। उस रात पांडवों ने [[द्रोणाचार्य|द्रोण]] पर आक्रमण किया था। युद्ध में भीम ने घूंसों तथा थप्पड़ों से ही कलिंग राजकुमार का, जयरात तथा धृतराष्ट्र-पुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध कर दिया। इसके अतिरिक्त भी बाह्लीक, दुर्योधन के दस भाइयों, [[शकुनी]] के पांच भाइयों तथा सात रथियों को भी उसने सहज ही मार डाला।<ref>महाभारत, आदिपर्व, 127, 128।– द्रोणपर्व, 155।20-46, 157</ref>
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| युद्ध के भयंकर कांड का समापन योद्धाओं की मां,बहन, पत्नियों के रूदन तथा मृत वीरों की अंत्येष्टि क्रिया से हुआ। इसी निमित्त [[हस्तिनापुर]] पहुंचने पर [[धृतराष्ट्र]] को रोती हुई [[द्रौपदी]], [[पांडव]], [[सात्यकि]] तथा श्री[[कृष्ण]] भी मिले। यद्यपि [[व्यास]] तथा [[विदुर]] धृतराष्ट्र को पर्याप्त समझ चुके थे कि उनका पांडवों पर क्रोध अनावश्यक है। इस युद्ध के मूल में उनके प्रति अन्याय कृत्य ही था, अत: जनसंहार अवश्यभावी था तथापि [[युधिष्ठर]] को गले लगाने के उपरांत धृतराष्ट्र अत्यंत क्रोध में भीम से मिलने के लिए आतुर हो उठे। श्रीकृष्ण उनकी मनोगत भावना जान गये, अत: उन्होंने भीम को पीछे हटा, उनके स्थान पर लोहे की आदमकद प्रतिमा धृतराष्ट्र के सम्मुख खड़ी कर दी। धृतराष्ट्र में दस हज़ार हाथियों का बल था। वे धर्म से विचलित हो भीम को मार डालना चाहते थे क्योंकि उसी ने अधिकांश कौरवों का हनन किया था। अत: लौह प्रतिमा को भीम समझकर उन्होंने उसे दोनों बांहों में लपेटकर पीस डाला। प्रतिमा टूट गयी किंतु इस प्रक्रिया में उनकी छाती पर चौट लगी तथा मुंह से ख़ून बहने लगा, फिर भीम को मरा जान उसे याद कर रोने भी लगे। सब अवाक देखते रह गये। श्रीकृष्ण भी क्रोध से लाल-पीले हो उठे। बोले-'जैसे यम के पास कोई जीवत नहीं रहता, वैसे ही आपकी बांहों में भी भीम भला कैसे जीवित रह सकता था! आपका उद्देश्य जानकर ही मैंने आपके बेटे की बनायी भीम की लौह-प्रतिमा आपके सम्मुख प्रस्तुत की थी। भीम के लिए विलाप मत कीजिये, वह जीवित है।' तदनंतर धृतराष्ट्र का क्रोध शांत हो गया तथा उन्होंने सब पांडवों को बारी-बारी से गले लगा लिया।<ref>महाभारत, स्त्रीपर्व, 12, 13।-</ref>
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==सम्बंधित लिंक==
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| [[Category:महाभारत ]]
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| [[Category:पौराणिक कोश]]
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| [[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
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