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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[महाभारत]] युद्ध में [[पाण्डव|पाण्डवों]] की ओर से लड़ने वाला [[कौरव]] कौन था?
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| +[[युयुत्सु]]
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| -[[दु:शासन]]
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| -[[लक्ष्मण]]
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| -[[शिशुपाल]]
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| {[[श्रीकृष्ण]] ने [[पाण्डव|पाण्डवों]] के लिए [[दुर्योधन]] से क्या माँगा था?
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| -[[इन्द्रप्रस्थ]]
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| -[[हस्तिनापुर]]
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| +पाँच ग्राम
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| -[[कुरुक्षेत्र]]
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| ||[[चित्र:Radha-Krishna-1.jpg|right|100px|राधा-कृष्ण]]धर्मराज [[युधिष्ठिर]] 'सात अक्षौहिणी' सेना के स्वामी होकर [[कौरव|कौरवों]] के साथ युद्ध करने को तैयार हुए। पहले भगवान [[श्रीकृष्ण]] परम क्रोधी [[दुर्योधन]] के पास दूत बनकर गये। उन्होंने 'ग्यारह अक्षौहिणी' सेना के स्वामी राजा दुर्योधन से कहा- "तुम युधिष्ठिर को आधा राज्य दे दो या उन्हें 'पाँच गाँव' ही अर्पित कर दो; नहीं तो उनके साथ युद्ध करो।" श्रीकृष्ण की बात सुनकर दुर्योधन ने कहा- "मैं उन्हें सुई की नोक के बराबर भी भूमि नहीं दूँगा; हाँ, [[पाण्डव|पाण्डवों]] से युद्ध अवश्य ही करूँगा।" ऐसा कहकर वह भगवान श्रीकृष्ण को बंदी बनाने के लिये उद्यत हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीकृष्ण]]
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| {[[महाभारत]] में [[बलराम]] की भूमिका क्या थी?
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| -[[पाण्डव|पाण्डवों]] की ओर से लड़े
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| -[[कौरव|कौरवों]] की ओर से लड़े
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| +तीर्थाटन के लिए चले गये
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| -युद्ध देखते रहे
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| {[[महाभारत]] में [[कृष्ण]] की सेना किसकी ओर से लड़ी?
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| |type="()"}
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| -आधी [[कौरव]] और आधी [[पाण्डव|पाण्डवों]] की ओर से
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| +[[कौरव|कौरवों]] की ओर से
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| -[[पाण्डव|पाण्डवों]] की ओर से
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| -उदासीन रही
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| ||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए]][[दुर्योधन]] [[पांडव|पांडवों]] को पाँच गाँव तक देने को राजी नहीं हुआ। अब युद्ध अनिवार्य जानकर दुर्योधन और [[अर्जुन]] दोनों [[श्रीकृष्ण]] से सहायता प्राप्त करने के लिए [[द्वारका]] पहुँचे। नीतिज्ञ कृष्ण ने पहले दुर्योधन से पूछा- 'तुम मुझे लोगे या मेरी सेना को?' दुर्योधन ने तत्त्काल सेना मांगी। कृष्ण ने अर्जुन को वचन दिया कि वह उसके सारथी बनेगें और स्वयं [[अस्त्र शस्त्र|शस्त्र]] नहीं ग्रहण करेगें। कृष्ण अर्जुन के साथ [[इन्द्रप्रस्थ]] आ गये। कृष्ण के आने पर पांडवों ने एक बार फिर एक सभा का आयोजन किया और निश्चय किया कि एक बार संधि का और प्रयत्न किया जाय, जिससे युद्ध को टाला जा सके।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कृष्ण]]
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| {[[महाभारत]] युद्ध में [[कर्ण]] के सारथी का नाम क्या था?
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| +[[शल्य]]
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| -[[अधिरथ]]
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| -श्रुतकीर्ति
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| -भद्रसेन
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| ||[[पांडव|पांडवों]] ने अपने मामा [[शल्य]] को युद्ध में सहायतार्थ आमन्त्रित किया। शल्य अपनी विशाल सेना के साथ पांडवों की ओर जा रहा था। मार्ग में [[दुर्योधन]] ने उन सबका अतिथि-सत्कार कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। शल्य ने [[महाभारत]] युद्ध में सक्रिय भाग लिया। [[कर्ण]] के सेनापति बनने पर उसकी सलाह से दुर्योधन ने शल्य से कर्ण का सारथी बनने की प्रार्थना की। शल्य को यह प्रस्ताव अपमानजनक लगा। अत: वह दुर्योधन की सभा से उठकर जाने लगा। दुर्योधन ने बहुत समझा-बुझाकर तथा उसे [[श्रीकृष्ण]] से भी श्रेयस्कर बताकर सारथी का कार्यभार उठाने के लिए तैयार कर लिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शल्य]]
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| {[[कर्ण]] ने अपने कवच-कुण्डल किसे दान दिये? | | {[[कर्ण]] ने अपने कवच-कुण्डल किसे दान दिये? |
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10:50, 2 मार्च 2017 के समय का अवतरण