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| {[[जरासंध]] कौन से [[महाजनपद]] का राजा था?
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| -कौसल
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| -[[शूरसेन]]
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| -कैकेय
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| +[[मगध महाजनपद|मगध]]
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| ||[[चित्र:Magadha-Map.jpg|मगध|100px|right]]मगध प्राचीन [[भारत]] के [[सोलह महाजनपद]] में से एक था। [[बौद्ध]] काल तथा परवर्तीकाल में उत्तरी भारत का सबसे अधिक शक्तिशाली जनपद था। इसकी स्थिति स्थूल रूप से दक्षिण बिहार के प्रदेश में थी। आधुनिक [[पटना]] तथा [[गया ज़िला]] इसमें शामिल थे। इसकी राजधानी गिरिव्रज थी। भगवान [[बुद्ध]] के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मगध महाजनपद|मगध]]
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| {[[महाभारत]] के अठारहवें दिन के युद्ध का कौरव सेना का सेनापतित्व किसने किया था?
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| -[[कृपाचार्य]]
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| +[[शल्य]]-[[अश्वत्थामा]]
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| -[[दु:शासन]]
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| -[[जयद्रथ]]-[[जरासंध]]
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| ||कर्ण-वध के उपरांत [[कौरव|कौरवों]] ने [[अश्वत्थामा]] के कहने से शल्य को सेनापति बनाया। [[कृष्ण]] ने [[युधिष्ठिर]] को शल्य-वध के लिए उत्साहित करते हुए कहा कि इस समय यह बात भूल जानी चाहिए कि वह [[पांडव|पांडवों]] का मामा है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शल्य]]
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| ||[[महाभारत]] का अठारह दिन तक युद्ध चलता रहा। अश्वत्थामा को जब [[दुर्योधन]] के अधर्म-पूर्वक किये गये वध के विषय में पता चला तो वे क्रोध से अंधे हो गये। उन्होंने शिविर में सोते हुए समस्त पांचालों को मार डाला। द्रौपदी को समाचार मिला तो उसने आमरण अनशन कर लिया और कहा कि वह अनशन तभी तोड़ेगी, जब कि अश्वत्थामा के मस्तक पर सदैव बनी रहने वाली मणि उसे प्राप्त होगी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अश्वत्थामा]]
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| {[[महाभारत]] युद्ध में इनमें से कौन जीवित बचा?
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| -[[कर्ण]]
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| -[[द्रोणाचार्य]]
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| -[[घटोत्कच]]
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| +[[कृपाचार्य]]
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| ||[[महाभारत]] युद्ध में कृपाचार्य [[कौरव|कौरवों]] की ओर से सक्रिय थे। [[कर्ण]] के वधोपरांत उन्होंने [[दुर्योधन]] को बहुत समझाया कि उसे [[पांडव|पांडवों]] से संधि कर लेनी चाहिए किंतु दुर्योधन ने अपने किये हुए अन्यायों को याद कर कहा कि न पांडव इन बातों को भूल सकते हैं और न उसे क्षमा कर सकते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कृपाचार्य]]
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| { इनमें से कौन [[महाभारत]] में सती हुई थी?
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| -[[सत्यवती]]
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| -[[उलूपी]]
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| +[[माद्री]]
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| -[[गांधारी]]
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| || महाभारत में [[पाण्डु]] की पत्नी माद्री पाण्डु के साथ ही सती हो गयी थी। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[माद्री]]
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| {[[युधिष्ठिर]] को [[राजसूय यज्ञ]] करने की सलाह किसने दी थी?
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| +[[नारद]]
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| -[[व्यास]]
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| -[[कृष्ण]]
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| -[[विदुर]]
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| ||[[चित्र:Narada-Muni.jpg|नारद|100px|right]]महायोगी नारद जी [[ब्रह्मा]] जी के मानसपुत्र हैं। वे प्रत्येक [[युग]] में भगवान की भक्ति और उनकी महिमा का विस्तार करते हुए लोक-कल्याण के लिए सर्वदा सर्वत्र विचरण किया करते हैं। भक्ति तथा संकीर्तन के ये आद्य-आचार्य हैं। इनकी वीणा भगवन जप 'महती' के नाम से विख्यात है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नारद]]
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| {[[महाभारत]] [[ग्रंथ]] में कुल [[श्लोक|श्लोकों]] की संख्या कितनी है? | | {[[महाभारत]] [[ग्रंथ]] में कुल [[श्लोक|श्लोकों]] की संख्या कितनी है? |
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| +[[बृहन्नला]] | | +[[बृहन्नला]] |
| ||[[चित्र:Karn1.jpg|right|100px|अर्जुन द्वारा कर्ण का वध]][[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी था, जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया था। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहे। इन्होंने [[विराट|राजा विराट]] के यहाँ सेवक बनकर एक वर्ष बिताया। यहाँ [[युधिष्ठिर]] सबसे अपरिचित रहकर 'कंक' नामक [[ब्राह्मण]] के रूप में रहने लगे। [[भीम|भीमसेन]] रसोइया 'वल्लभ' बने और [[अर्जुन]] ने अपना नाम 'बृहन्नला' रख लिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहन्नला]] | | ||[[चित्र:Karn1.jpg|right|100px|अर्जुन द्वारा कर्ण का वध]][[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी था, जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया था। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहे। इन्होंने [[विराट|राजा विराट]] के यहाँ सेवक बनकर एक वर्ष बिताया। यहाँ [[युधिष्ठिर]] सबसे अपरिचित रहकर 'कंक' नामक [[ब्राह्मण]] के रूप में रहने लगे। [[भीम|भीमसेन]] रसोइया 'वल्लभ' बने और [[अर्जुन]] ने अपना नाम 'बृहन्नला' रख लिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहन्नला]] |
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